ताओरमीना, सिसिली, इटली, आज प्रातः जब परम पावन दलाई लामा ने अपने होटल में प्रेस के सदस्यों से भेंट की तो, उन्होंने यह कहते हुए प्रारंभ किया कि वह पुनः इटली आकर कितने खुश थे और सिसिली में अपने मित्र रेनाटो एकोरिन्ती के निमंत्रण पर आए थे।
"मैं मात्र एक मुनष्य हूँ - और यह स्मरण रखना कि हम सब मनुष्य के रूप में समान हैं, महत्वपूर्ण हैं, क्योंकि, जैसा हम बहुत अधिक करते हैं, हम अपने बीच के गौण भेदों पर बल देते हैं, यह सरलता से संकट और संघर्ष की ओर ले जाता है। यूरोप के इस भाग में आप ने कई शरणार्थी लिए हैं। उनके दुखों के समय आपने उन्हें ग्रहण किया और उनकी सहायता की, जो बहुत सराहनीय है। पर जैसे हम तिब्बती अंततः तिब्बत लौटने की आशा करते हैं, ये शरणार्थी भी जब एक बार वहाँ शांति और सुरक्षा बहाल हो जाए तो अपने देश लौटने की आशा रखेंगे। तो यह अच्छा होगा यदि आप उन्हें आश्रय दे सकें और युवाओं को शिक्षा और प्रशिक्षण प्राप्त करने की सुविधाएँ प्रदान कर सकें, ताकि वे घर लौटने पर पुनर्निर्माण के लिए सक्षम हों।
"मैं मानवता के अधिक सुख के लिए मानवता की एकता की सराहना का विकास करने और साथ ही धार्मिक सद्भाव को प्रोत्साहित करने हेतु प्रतिबद्ध हूँ। इस संदर्भ में, मेरा मानना है कि आप मीडिया के सदस्यों का भी इस तरह के सकारात्मक अवसरों के विषयों में लोगों को शिक्षित करने का उत्तरदायित्व है।"
पत्रकारों के प्रश्नों के उत्तर में, परम पावन ने ऐसी शिक्षा प्रणाली में सुधार की आवश्यकता की बात की, जो आंतरिक मूल्यों के स्थान पर भौतिकवादी लक्ष्यों पर केंद्रित है। उन्होंने इसके स्थान पर सौहार्दता और करुणा के महत्व की आवश्यकता पर बल दिया। उन्होंने यूरोपीय संघ की भावना के लिए अपनी सराहना दोहराई, जिसने दशकों से यूरोप में शांति बना रखी है। उन्होंने यह भी स्वीकारा कि तिब्बतियों ने अपनी समस्या के लिए महत्वपूर्ण समर्थन प्राप्त किया है क्योंकि वे दृढ़ता से अहिंसक हैं और स्वतंत्रता की मांग नहीं कर रहे।
"हम तिब्बती एक प्राचीन राष्ट्र हैं। हमारी अपनी भाषा, संस्कृति और जीवन शैली है। हमने १००० से अधिक वर्षों से अपनी बौद्ध विरासत जीवित रखी है जिसका स्रोत भारत का नालंदा विश्वविद्यालय है। चित्त के प्रकार्य के ज्ञान के अतिरिक्त हमने शिक्षा के दृष्टिकोण को संरक्षित रखा है जो तर्क के आधार पर है। इन दोनों कारकों के आधार पर, मेरा मानना है कि आज हमारे पास मानवता के कल्याण में योगदान करने के लिए कुछ है।"
परम पावन ने स्पष्ट किया कि उनकी अर्द्ध सेवानिवृत्ति के पश्चात जब तिब्बतियों ने २००१ में एक नेता चुना, तो वे २०११ में राजनीतिक बातों से पूर्ण रूप से सेवानिवृत्त हो गए। उन्होंने आगे कहा कि उन्होंने दलाई लामा की तिब्बत मामलों में राजनीतिक भूमिका निभाने की लगभग ४०० वर्ष की पुरानी परम्परा का भी अंत किया। उन्होंने कहा कि यद्यपि भारत में पूरी तरह दोष हीन बौद्ध शिक्षक थे, पर ऐसा कुछ लिखित नहीं मिलता जब उन्होंने अपने पुनर्जन्म को संस्थागत कर दिया हो।
परम पावन ने गाड़ी से अपने होटल से ग्रीक थियेटर तक की कम दूरी तय की, जहाँ अनुमानतः ढाई हजार लोग भरी धूप में उनकी प्रतीक्षा कर रहे थे। कैटेनिया और मेस्सिना के महापौरों के रूप में, एलिजिओ गिरार्डिना और रेनाटो एकोरिन्टी ने मंच पर उनका अनुरक्षण किया, और स्वागत और उल्लास के स्वर गूंज उठे।
एक बार पुनः सिसिली में परम पावन पवित्रता का स्वागत करते हुए, एकोरिन्टी ने बताया कि वह परम पावन को मेस्सिना और ताओरमिना लाने के स्वप्न को साकार होता देख कितने उत्साहित थे। उन्होंने १९९६ में पालेर्मो में परम पावन को देखने जाने की कहानी का स्मरण किया जब वे कार्यक्रम में प्रवेश नहीं कर पाए थे और परम पावन ने उनका हाथ पकड़कर उन्हें अंदर खींचा। उसी समय और वहीं उन्होंने परम पावन को मेस्सिना आने के लिए आमंत्रित किया। एक पत्रकार ने गलत सुना और सूचित किया कि महापौर ने आमंत्रण दिया था। एकोरिन्टी ने कहा कि उस समय उनका महापौर बनने का कोई विचार न था और फिर भी वैसा ही हुआ।
दो महापौरों ने परम पावन के विश्व में शांति और एकता को बढ़ाने के प्रयासों और संवाद के प्रति अपनी प्रतिबद्धता की सराहना में उन्हें मेट्रोपोलिटन सिटी ऑफ मेस्सिना का पुरस्कार प्रस्तुत किया, जिसके उपरांत उन्होंने जनमानस को संबोधित किया।
"भाइयों और बहनों, इस पुरस्कार को ग्रहण करते हुए मैं सम्मान का अनुभव कर रहा हूँ और आपके साथ संवाद का यह अवसर पाकर खुश हूँ। यह प्राचीन स्थान मुझे सिंधु घाटी सभ्यता और अंततः जिसने नालंदा परम्परा को जन्म दिया, उसका स्मरण करा रहा है। प्राचीन वैश्विक संस्कृतियों में प्रतीत होता है कि सिंधु घाटी सभ्यता ने कई विचारकों और दार्शनिकों को जन्म दिया है। बुद्ध का प्रतीत्य समुत्पाद का निर्देश, यह इंगित करते हुए कि कुछ भी स्वतंत्र सत्ता नहीं रखता और सब कुछ अन्य कारकों पर निर्भर करता है, समकालीन क्वांटम भौतिकी के दावे को प्रतिध्वनित करता है कि किसी का भी वस्तुनिष्ठ अस्तित्व नहीं है।
"आज, अत्यधिक भौतिक विकास के बावजूद, हम और हमारे नेता एक भावनात्मक संकट का सामना कर रहे हैं। यद्यपि बौद्ध साहित्य इस विषय पर बहुत कुछ कहता है, पर हमारी नकारात्मक भावनाओं से निपटने का धर्म के साथ कुछ लेना देना नहीं। पर प्राचीन भारतीय विचारक हमारे चित्त और भावनाओं के बारे में जो कहते हैं वह महत्वपूर्ण है तथा अधुना विश्व में प्रासंगिक है।
"मैं सदैव मात्र एक और मुनष्य होने के दृष्टिकोण से बोलता हूँ - एक तिब्बती, बौद्ध या परम पावन दलाई लामा के रूप में नहीं। मैंने केवल एक मनुष्य के रूप में जन्म लिया और मेरी मृत्यु ठीक मुनष्य जैसे ही होगी, अतः मैं इस बात पर जोर देता हूँ कि मानव होने के नाते हम सब एक समान हैं। हम भावनात्मक, मानसिक और शारीरिक रूप से समान हैं। हम समान रूप से उदासी, भय व शंका का अनुभव करते हैं। और इस आधार पर मेरा अनुभव आपके लिए किंचित सहायक हो सकता है।
"वैश्विक अर्थव्यवस्था और जलवायु परिवर्तन के प्रभाव राष्ट्रीय सीमाओं को नहीं पहचानते। वे जो हमें सिखा रहे हैं वह यह है कि हमें एक मानव समुदाय के रूप में और अधिक कार्य करना चाहिए। हम यहाँ शांति का आनंद ले रहे हैं, भले ही यहाँ बहुत गर्मी है, पर अन्य स्थानों में इस समय लोग त्रसित हैं, मारे जा रहे हैं अथवा भुखमरी का सामना कर रहे हैं। यह असहनीय है।
"हम जिन कई समस्याओं का सामना करते हैं उनमें से बहुत जन्म लेते हैं क्योंकि हम राष्ट्रीयता, रंग और यहां तक कि आस्था के गौण भेदों को बढ़ाने चढ़ाने पर जोर देते हैं। यह अनुपयुक्त बल विभाजन की ओर ले जाता है। यह अस्वीकार्य है। हमें अधिक गहराई से सोचने और मानवता की एकता को पहचानने की आवश्यकता है और यह कि मनुष्य के रूप में हम बहुत समान हैं।
"विश्व में शांति बल प्रयोग से नहीं लाई जा सकती। शांति चित्त की एक अवस्था है। हिंसा का प्रयोग क्रोध तथा और अधिक हिंसा उकसाता है। हमें मैत्री प्रदान कर क्रोध और भय को कम करने की आवश्यकता है। एक बार पुनः मुझे कहना होगा कि मैं यूरोपीय संघ की भावना की प्रशंसा करता हूँ, जिसने एक और अधिक समग्र दृष्टिकोण अपनाया है कि हमें एक साथ रहना है और इसे मित्र के रूप में बेहतर रूप से कर सकते हैं।
"हम जो प्राप्त करना चाहते हैं उसके लिए हिंसा काफी गलत उपाय है। यदि हम वास्तव में शांति प्राप्त करना चाहते हैं तो अंततः हमें एक विसैन्यीकृत विश्व के लिए काम करना होगा।"
परम पावन ने समझाया कि वह सर्वप्रथम मानवता की एकता के संदर्भ में मानवीय सुखों और दूसरा, धार्मिक सद्भाव को प्रोत्साहित करने हेतु बढ़ावा देने के लिए प्रतिबद्ध हैं। उन्होंने कहा कि भारत उदाहरण रूप में स्पष्ट रूप से यह दिखाता है कि यह संभव है। उन्होंने कहा कि भारत में विश्व के सभी प्रमुख धर्म प्रेम, सहिष्णुता और संतोष के अपने आम संदेश के साथ सदियों से विकसित हुए हैं। उन्होंने स्पष्ट रूप से यह घोषणा की, कि चूँकि सभी धर्मों में शांति लाने की क्षमता है, मुसलमानों या बौद्धों को आतंकवादियों कहकर उल्लखित करना गलत है। उन्होंने बल देकर कहा कि जिस समय कोई आतंकवादी कृत्य करता है तो वह अपनी आस्था का उचित रूप से पालन नहीं करता। पर यदि दूसरी ओर यदि आप अपने अभ्यास को प्रेम पर आधारित करते हैं, तो आप किसी का भी अहित नहीं कर सकते।
श्रोताओं के प्रश्नों में पहला प्रश्न था कि उत्तर कोरिया के संकट से निपटने के लिए उनके पास क्या सलाह है। उन्होंने सुझाया कि दोनों पक्षों को अधिक यथार्थवादी और कम भावनात्मक होना चाहिए। उन्होंने कहा कि जब चित्त पर क्रोध, शंका व गर्व हावी हो जाती है तो सामान्य ज्ञान को सहन करना कठिन होता है।
एक और प्रश्नकर्ता प्राचीन भारतीय ज्ञान और क्वांटम भौतिकी के बीच संबंध के बारे में और अधिक जानना चाहते थे। परम पावन ने उन्हें स्मरण कराया कि जहाँ क्वांटम भौतिकी का मत है कि पर्यवेक्षक के बिना कोई दृश्य वस्तु नहीं है, बौद्ध चित्तमात्र परम्परा कहती है कि वस्तु का कोई बाह्य अस्तित्व नहीं है, जबकि मध्यमक परम्परा का कहना है कि वस्तु की कोई स्वतंत्र सत्ता नहीं है।
परम पावन ने आगे तुलना की, जो नागार्जुन स्वतंत्र सत्ता की ग्राह्यता को लेकर कहते हैं कि वह गलत है इसकी तुलना में संज्ञानात्मक चिकित्सक हारून बेक ने उनको हमारी नकारात्मकता की भावना के बारे में बताया, कि जब हम किसी पर क्रोधित होते हैं तो वह हमारा ९०% मानसिक प्रक्षेपण है। उन्होंने कहा कि बौद्ध दर्शन में शून्यता शब्द का अर्थ है कि वस्तु की स्वतंत्र सत्ता नहीं है। उन्होंने आगे कहा कि ६० वर्ष से इस विषय में रुचि रखते हुए और ४० वर्षों साल तक इस पर कड़ा चिन्तन करते हुए, वे कह सकते हैं कि ऐसे विचार हमारी नकारात्मक भावनाओं को कम करने में उपयोगी हैं।
परम पावन ने यह भी स्पष्ट किया कि आज विश्व में ७ अरब लोगों में से १ अरब लोग धर्म के प्रति कोई रुचि नहीं दिखाते। शेष लोगों के लिए, उनकी आस्था जहाँ गिरजाघर, मन्दिर, मस्जिद में प्रबल हो सकती है, पर जब दैनिक जीवन का प्रश्न उठता है तो वह सतही है। इस संदर्भ में, धर्मनिरपेक्ष नैतिकता मानव मूल्यों में नए सिरे से दृढ़ विश्वास का एक दृष्टिकोण प्रदान करती है। उन्होंने बल देते हुए कहा कि वे धर्मनिरपेक्ष शब्द का प्रयोग जिस तरह से भारत में होता है, उस तरह करते हैं, जो कि सभी धर्मों के प्रति, यहाँ तक कि आस्थाहीन लोगों के विचारों को दर्शाने के लिए निष्पक्ष सम्मान है। और तो और धर्मनिरपेक्ष नैतिकता वैज्ञानिक निष्कर्षों पर आधारित होनी चाहिए - कि आधारभूत मानव प्रकृति करुणाशील है, आम अनुभव - जैसे स्नेह की हमारी आवश्यकता और सामान्य ज्ञान।
कुछ बौद्ध अनुष्ठानों में काम में लाए जाने वाले ब्रह्मांड के जटिल प्रस्तुतीकरण, मंडल के बारे में अंतिम प्रश्न का उत्तर देते हुए, परम पावन ने एक अवसर का स्मरण किया जब कुछ जापानी बौद्धों ने राजगीर में एक विशाल शांति स्तूप का निर्माण किया था। उद्घाटनार्थ भारत के राष्ट्रपति को आमंत्रित किया गया था। परम पावन ने अपनी टिप्पणी में कहा कि असली शांति स्तूप वह है जिसे हम अपने हृदय में निर्मित करते हैं।
श्रोताओं का धन्यवाद कर और विदा में हाथ हिलाते परम पावन का मंच से उनकी गाड़ी तक अनुरक्षण किया गया और वे मध्याह्न के भोजन के लिए अपने होटल लौटे। कल प्रातः वे थियेटर विटोरियो इमानुएल, मेस्सिना में एक सार्वजनिक व्याख्यान देंगे।