नई दिल्ली - ६ अगस्त २०१७, टाइम्स नाऊ के राष्ट्रीय मामलों के संपादक श्रृंजय चौधरी आज जब परम पावन दलाई लामा का साक्षात्कार करने के लिए आए तो उन्होंने आज के संकट से भरे विश्व में प्राचीन ज्ञान की प्रासंगिकता के संबंध में अपना प्रथम प्रश्न करने में किंचित विलम्ब न किया।
"परम पावन ने उनसे कहा कि," जिस प्राचीन ज्ञान के बारे में मैं बात कर रहा हूँ वह प्रमुख रूप से भावनाओं और चित्त में उनकी भूमिका से संबंधित है। फिर तर्क की भी बात आती है, जो हमें यथार्थ का विश्लेषण करने की अनुमति देता है। ये आज के विश्व में प्रासंगिक हैं क्योंकि हमारी कई समस्याओं का कारण हमारे दीर्घकालिक, समग्र दृष्टिकोण का न होना है।"
"इस संदर्भ में हिंसा व्यर्थ है। बल्कि मैं कह सकता हूँ कि हिंसा हमारी आधारभूत मानव प्रकृति के विरुद्ध है, जो वास्तव में करुणाशील है।"
चौधरी ने परम पावन तथा भारत के प्रति चीनी आक्रामकता के विषय में पूछा और परम पावन ने इसके लिए बीजिंग में कट्टरपंथियों को उत्तरदायी ठहराया। "उनका कहना है कि वे स्थिरता चाहते हैं, पर जो तरीके वे काम में लाते हैं वे भय उत्पन्न करते हैं। जब भय होता है तो वहाँ विश्वास नहीं होता और जहाँ विश्वास नहीं तो आप सद्भाव या स्थिरता कैसे उत्पन्न कर सकते हैं?"
इस वर्ष के प्रारंभ में परम पावन की अरुणाचल प्रदेश की यात्रा के संबंध में, उन्होंने दो महत्वपूर्ण कारकों को स्वीकार किया - वहाँ के लोग जो उनके प्रति अत्यधिक स्नेह रखते हैं तथा १९५९ में ल्हासा से निकलने के बाद जहाँ उन्होंने प्रथम बार भारत में प्रवेश किया था, वह स्थान उनके लिए एक भावनात्मक कड़ी है।
डोगलम में चीन और भारत के रुख के विषय में ज़ोर देकर पूछे जाने पर परम पावन ने टिप्पणी की, कि चीन और भारत दोनों महान और प्राचीन राष्ट्र हैं। उन्हें साथ साथ रहना होगा। उन्होंने कहा कि तिब्बत की तथाकथित मुक्ति के उपरांत भारतीय सीमा पर चीनी सेनाएं मौजूद हैं, जो पहले नहीं थी। उन्होंने कहा कि एकमात्र यथार्थवादी दृष्टिकोण वह है जो पारस्परिक रूप से लाभकारी है। उन्होंने सुझाया कि तीर्थयात्रा पर भारत आने के लिए चीनी बौद्धों की व्यवस्था सरल करना एक उचित आत्मविश्वास निर्मित कर सकता है।
घरेलू प्रश्नों की ओर संकेत करते हुए परम पावन ने प्रधान मंत्री मोदी की सक्रियता की प्रशंसा की। उन्होंने अंतर्राष्ट्रीय स्तर पर भारत की छवि के ऊपर उठने का अनुमोदन किया क्योंकि भारत विश्व का सबसे अधिक जनसंख्या वाला लोकतांत्रिक राष्ट्र है। जब चौधरी ने कहा कि परम पावन स्वतंत्र भारत के सभी प्रधान मंत्रियों से परिचित हैं तो उन्होंने नेहरू को अच्छी तरह से जानने और कई अवसरों पर उनकी सलाह मांगने का स्मरण किया।
दलाई लामा के रूप में अपने उत्तराधिकारी के विषय में चुनौती की बात सुनकर परम पावन हँसे और कहा कि ऐसा प्रतीत होता है कि इस विषय पर उनकी तुलना में चीनी सरकार अधिक चिंतित है। यद्यपि उन्होंने यह स्वीकारा कि वे किस तरह आगे बढ़ा जाए इस विषय पर तिब्बत के आध्यात्मिक नेताओं की पुनः बैठकों पर विचार कर रहे हैं।
जब चौधरी ने तिब्बत में निरंतर हो रहे उत्पीड़न का उल्लेख किया, विशेषकर धर्म के संबंध में, परम पावन ने स्पष्ट रूप से कहा, "हम स्वतंत्रता की मांग नहीं कर रहे; हमने १९७४ के बाद से यह स्पष्ट कर दिया है। चीन के पीपुल्स रिपब्लिक के साथ बना रहना हमारे लिए लाभकर हो सकता है, हमें आधुनिकीकरण की आवश्यकता है। पर साथ ही हमारे पास अपनी अनूठी भाषा और धरोहर - नालंदा परम्परा है - जो हमने १००० से अधिक वर्षों से जीवित रखा है और जिसके संरक्षण की आवश्यकता है। कई चीनी अब मानने लगे हैं कि हमारी एक व्यापक, प्रामाणिक बौद्ध परम्परा है।"
परम पावन ने कहा कि चूँकि तिब्बती पठार की उत्तर और दक्षिण ध्रुवों के समान वैश्विक जलवायु परिवर्तन में एक भूमिका है, अतः यह भी महत्वपूर्ण है कि तिब्बती उसकी रक्षा करने में सक्षम हों।
अंत में चौधरी ने आगामी १० -२० वर्षों में विश्व की संभावनाओं पर टिप्पणी करने हेतु परम पावन को आमंत्रित किया।
"आधुनिक शिक्षा इस समय एकांगी है, यह अत्यंत भौतिक है।" परम पावन ने उत्तर दिया "हमें लोगों को यह सिखाने में सक्षम होना चाहिए कि किस प्रकार चित्त शांति विकसित की जाए। भारत ऐसा देश है जिसमें चित्त और भावनाओं के कार्य की प्राचीन ज्ञान से जुड़ी समझ से ऐसी आधुनिक शिक्षा को सफलतापूर्वक संयोजित करने की क्षमता है। यह जागरूकता बढ़ाने का प्रश्न है।"
"तो, आप का कहना है कि प्राचीन भारतीय मूल्य भविष्य में विश्व को एक बेहतर और अधिक शांतिपूर्ण स्थान बनाने में सहायक होंगे?" चौधरी ने पूछा।
"हाँ," परम पावन ने उत्तर दिया, "अब मेरी प्रतिबद्धताओं में से एक इस देश में प्राचीन भारतीय प्रज्ञा का पुनरुद्धार है।"