रीगा, लातविया, आज प्रातः प्रवचन स्थल स्कांटो हॉल के लिए रवाना होने से पूर्व परम पावन दलाई लामा ने लातवियाई टेलीविजन के गुंडर्स रेडर्स को अपने प्रमुख समय के 'वन टू वन' में प्रसारण के लिए एक साक्षात्कार दिया। रेडर्स ने यह पूछते हुए प्रारंभ किया कि जब परम पावन कहते हैं कि विश्व संकट में है तो उनका तात्पर्य क्या है।
"अत्यधिक भय और क्रोध, न पूरी हुई कामनाएँ और शोषण, अमीरी और गरीबी-और भूखे बच्चों के बीच एक बड़ी खाई। मानवता द्वारा सामना किए जा रही कई समस्याएँ हमारी अपनी निर्मिति हैं।"
रेडर्स ने पूछा कि हम किस तरह करुणा द्वारा आतंकवाद का सामना कर सकते हैं - क्या यह असंभव नहीं है? परम पावन ने यह कहकर असहमति जताई कि अंततः ऐसी समस्याओं का हल तभी होगा जब हम उन लोगों तक पहुँच सकें, यह स्मरण रखते हुए कि ये गड़बड़ी फैलाने वाले लोग भी इंसान हैं। उन्होंने कहा कि पुनः बल प्रयोग का मार्ग अपनाने से केवल और आतंकवादी बनाने में सहायता मिलती है। यह एक पुराना दृष्टिकोण है जो एक शिक्षा प्रणाली को प्रतिबिम्बित करता है जिसकी प्रवृत्ति भौतिकवादी लक्ष्यों को निर्धारित करना है, पर जिसके पास आंतरिक मूल्यों के लिए बहुत कम समय है। उन्होंने समकालीन शिक्षा में धर्मनिरपेक्ष नैतिकता को लागू करने के लिए एक पाठ्यक्रम बनाने के लिए जारी प्रयासों का उल्लेख किया।
परम पावन रूस और चीन के बीच मौजूद संबंधों को स्वीकार करते हुए, रूस और उसके बौद्ध गणतंत्र काल्मिकिया, बुर्याशिया और तुवा की यात्रा में असमर्थ होने को लेकर सौहार्दपूर्ण थे। उन्होंने इसकी तुलना इस तथ्य से की, कि वर्तमान स्थिति में वे जापान को छोड़कर किसी भी बौद्ध देश की यात्रा करने में असमर्थ हैं। रेडर्स ने यह भी कहा कि वे लातवियाई राष्ट्रपति से नहीं मिल रहे हैं।
"कोई बात नहीं," परम पावन ने उत्तर दिया, "मेरी यात्रा पूरी तरह से गैर राजनीतिक है। मैं निराश नहीं हूँ। विश्व इसके ७ अरब लोगों की है और प्रत्येक देश उसकी जनसंख्या का है, अतः मैं सामान्य जनता को अधिक महत्वपूर्ण मानता हूँ।"
परम पावन के समक्ष प्रश्न रखते हुए, जो उन्हें सोशल मीडिया के माध्यम से मिला था, रेडर्स ने उनसे पूछा कि क्या उनके पास मोबाइल फोन है और क्या उन्होंने कभी शादी शुदा होने की इच्छा रखी। दोनों के लिए उनका तपाक उत्तर था "नहीं"। परन्तु यह पूछे जाने पर कि स्थायी सुख कैसे पाया जाए, उन्होंने कहा कि भारतीय नालंदा परम्परा के एक छात्र के रूप में, वे तर्क और विश्लेषण को व्यवहृत करते हैं। इससे वे निष्कर्ष निकालते हैं कि जो भंग करता है, वह क्रोध और भय जैसे क्लेशों के चंगुल में आना है। अतः समाधान उनके प्रतिकार ढूँढ कर उन्हें लागू करना है।
सोमवार की प्रातः स्कॉन्टो सभागार तक की छोटी यात्रा ने विगत दो दिनों तुलना में अधिक समय लिया। आगमन और श्रोताओं का अभिनन्दन करने के बाद परम पावन ने बैठने और समझाने में समय व्यर्थ नहीं किया, कि वे सबसे पहले उस दिन के प्रवचन की एक भूमिका देने वाले थे। उन्होंने उल्लेख किया कि तिब्बत में ११वीं शताब्दी में लोकचक्षु रिनछेन संगपो का समय ञिङ्मा या प्राचीन परंपरा से संबंधित रखते हुए विशिष्टता रखता है।
ञिङ्मा में बौद्ध देशनाओं के नौ यानों में वर्गीकरण निहित है। चार आर्य सत्यों पर आधारित तीन बाह्य यान; तीन बाह्य तंत्र और तीन आंतरिक तंत्र। बाह्य यान - श्रावकयान, प्रत्येकबुद्ध यान और बोधिसत्व यान तीन अधिशीलों के संदर्भ के संबंध में नकारात्मक भावनाओं के प्रतिकारकों से संबंधित हैं। बाह्य तंत्र, क्रिया, उप और योग तंत्र का संबंध वैदिक जैसा संन्यास, स्नान और उपवास जैसे अभ्यास से संबंधित है।
आंतरिक तंत्र, प्रबल, परिवर्तनकारी उपाय, महा, अनु और अति योग हैं। महायोग में निष्पत्ति चरण शामिल हैं। अनु योग में समापत्ति अवस्था और अति योग शामिल है, जो परम योग है, क्योंकि यह प्रभास्वरता को प्रयोग में लाता है जिसे मार्ग पर मूल जागरूकता को लाने के रूप में संदर्भित किया जाता है। इसमें यह अनुभूति शामिल है कि सभी धर्म और कुछ नहीं अपितु स्वाभाविक रूप से उत्पन्न होने वाली मूल प्रज्ञा है जो सदैव उत्पत्ति व निरोध से परे है। परम पावन ने टिप्पणी की, कि जो गुह्यसमाज और कालचक्र तंत्रों में वर्णित किया गया है उससे तुलना की जा सकती है।
परम पावन ने संबंधित ग्रंथों का उल्लेख किया है जिसमें लोंगछेन रबजम्पा की 'सात निधियाँ' और उन के 'सुख व सहजता की खोज का ग्रंथ त्रय' जो उन्हें ठुलशिक रिनपोछे से प्राप्त हुआ और जिन्हें वे ञिङ्मा शिक्षा केंद्रों में पढ़ाने व धारण करने के लिए प्रोत्साहित करते हैं। उन्होंने आगे कहा कि उन्हें 'धर्मधातु निधि' का व्याख्यात्मक संचरण प्राप्त हुआ है और उन्होंने उसके लिए आवश्यक १०० दिनों का एकांतवास किया है।
परम पावन ने कहा कि महान सिद्ध ल्होडक से शिक्षा प्राप्त करने के कारण जे चोंखापा का ञिङ्मा परंपरा के साथ एक विशेष संबंध था। उन्हें वज्रपाणी का दर्शन प्राप्त हुआ था और उन्होंने स्वयं मंजुश्री से शिक्षा प्राप्त की थी। जे रिनपोछे के शिष्य ज्ञलवा गेदुन डुब, प्रथम दलाई लामा और उनके उत्तराधिकारियों, २, ३ ,४ ,५वें और १३वें दलाई लामा सभी अभ्यास के प्रति गैर-सांप्रदायिक थे।
"मेरे जीवन के प्रारंभिक दिनों में," उन्होंने आगे कहा, "मैं मात्र गेलुग परम्परा का पालन करता था। पर एक समय आया जब मैं गुह्यगर्भ - रहस्यों का सार - खूनू लामा रिनपोछे से प्राप्त करना चाहता था। पर उस समय इस को लेकर कुछ अनिच्छा थी क्योंकि मैं तब दोलज्ञल की तुष्टि कर रहा था। बाद में, मैंने पाया कि पञ्चम दलाई लामा ने लिखा था कि दोलज्ञल एक दुरात्मा थी जो विकृत प्रार्थनाओं से उत्पन्न हुई थी जो बुद्ध की शिक्षाओं और सत्वों का अहित करती है। मैंने उसे त्याग दिया।
"आखिरकार मुझे गुह्यगर्भ और इस पर रोंगसोम का भाष्य दिलगो खेंचे रिनपोछे से साथ ही ठुलशिक रिनपोछे से शिक्षाएं भी मिलीं। विडंबना यह थी कि जब मैं दोलज्ञल की तुष्टि करता था तो मेरी धार्मिक स्वतंत्रता बाधित थी और अब जब मैंने इसके अभ्यास को प्रतिबंधित कर दिया है, इसके समर्थक शिकायत करते हैं कि उनकी स्वतंत्रता सीमित है।
"मैं ज़ोगछेन का बहुत अधिक अभ्यास नहीं कर पाता, पर इन दिनों मैं वज्रकिलय, हेवज्र, पञ्च - देवता हेरुका, वज्रयोगिनी, जो सक्या से आता है, कुरुकुल्ला, साथ ही पञ्चम दलाई लामा द्वारा रचित कग्ये छिद्रिल भी करता हूँ। रिगज़िन पेमा ठिनले ने आग्रह किया, 'यद्यपि आप अन्य शिक्षाओं का ह्रास करते हैं, पर कग्ये को कम न होने दें। मेरी 'धर्मधातु निधि' से नित्य प्रति पाठ की प्रतिबद्धता है, अतः मैं अब आपके लिए पहला अध्याय पढ़ूँगा।
यह किए जाने के बाद परम पावन ने ज़ा पटुल रिनपोछे की 'बुद्धिमान महान सम्राट की विशिष्टता: सार तक पहुँचने के तीन उपाय' को पढ़ा।
उन्होंने समाप्त करते हुए कहा "विगत कुछ दिनों में मैंने ऐसे प्रवचन दिए हैं जो कि सामान्य संरचना से संबंधित हैं और नालंदा परम्परा से निकले हैं। मुझे 'भावना क्रम' सक्या उपाध्याय संगे तेनज़िन से और 'संक्षिप्त पथ क्रम' लिंग रिनपोछे, ठिजांग रिनपोछे और तगडग रिनपोछे से प्राप्त हुआ। आज की शिक्षा, जो विशेष श्रेणी की है मुझे दिलगो खेनचे रिनपोछे से प्राप्त हुई थी और मेरी इस विषय पर सक्या उपाध्याय खेनपो रिनछेन के साथ उपयोगी चर्चाएँ हुईं। मैं आशा करता हूँ कि ये निर्देश आपके लिए कुछ लाभकारी होंगे।"
परम पावन मध्याह्न भोजनोपरांत स्कोंटो सभागार लौटे ताकि वे गायक-गीतकार, बोरिस ग्रेबेन्स्चिकोव, फिल्म निर्देशक, विटाली मंस्की; थियेटर निर्देशक एल्विस हर्मिस के साथ चर्चा में भाग ले सकें, जिसका संचालन निर्देशक, अभिनेता और नाटककार इवान वैरीपएव ने किया। उन सभी ने आंतरिक मूल्यों के और अधिक सार्वभौमिक स्रोत के रूप में परम पावन द्वारा धर्मनिरपेक्ष नैतिकता को बढ़ावा देने को लेकर स्वीकृति जताई।
आज के विश्व की समस्याओं का संक्षेपीकरण करने के लिए कहे जाने पर परम पावन ने भय, क्रोध और अल्पकालीन दृष्टि का उल्लेख किया, जो करुणा और आंतरिक मूल्यों के अभाव में पैदा होता है। उन्होंने घोषणा की कि अपने हित को पूरा करने का सबसे अच्छा उपाय, सौहार्दता का विकास करना है। उन्होंने बताया कि करुणा एक शांत चित्त और आत्मविश्वास जनित करती है, जिसके परिणामस्वरूप कम भय और चिंता होती है। दूसरों के लिए चिंता स्वाभाविक रूप से विश्वास को जन्म देती है, जो मैत्री का आधार है।
उन्होंने टिप्पणी की कि एक चिकित्सक आपको कभी भी अधिक क्रोधित होने की सलाह न देगा - वह आपको सहज होने के लिए कहेगी, जो शारीरिक रूप से सहज होने के साथ-साथ चित्त की शांति भी आवश्यक बना देती है। उन्होंने आगे स्पष्ट किया कि जीवन का उद्देश्य सुख प्राप्त करना है। हम आगामी सप्ताह, आगामी वर्ष यहाँ तक कि आगामी शताब्दी के लिए भी योजना बनाते हैं, पर इसमें से किसी के बारे में भी सुनिश्चितता नहीं है। हम कुछ अच्छे आशा से निरंतर रहते हैं।
यूक्रेन से श्रोताओं को उत्तर देते हुए जिसने पूछा कि क्या विश्व वास्तव में बेहतर हो रहा है, परम पावन ने संकेत किया कि २०वीं शताब्दी के प्रारंभ में, जब राष्ट्र युद्ध घोषित करते थे तो वहाँ के नागरिक बिना किसी हिचकिचाहट के युद्ध में शामिल हो जाते थे। शताब्दी के अंत तक इसमें परिवर्तन हो गया था। लोगों ने वियतनाम युद्ध का विरोध किया और इराक के आक्रमण के खिलाफ उन्होंने सैकड़ों हजारों में प्रदर्शन किया। लोग हिंसा से थक गए हैं और शांति की एक लोकप्रिय इच्छा बढ़ रही है।
अंत में, यह पूछे जाने पर कि समस्याओं और कठिनाइयों से किस तरह निपटा जाए, परम पावन ने उत्तर दिया कि वे ८वीं शताब्दी के भारतीय बौद्धाचार्य शांतिदेव की सलाह को यथार्थवादी और सहायक मानते हैं। समस्या का विश्लेषण करें और क्या आप इसे दूर करने में सक्षम हैं। यदि आप कर सकते हैं तो आपको ऐसा करना चाहिए और इसके बारे में चिंता करने की कोई आवश्यकता नहीं है। यदि आप नहीं कर सकते तो इस पर चिंता करने से कोई लाभ न होगा।
जब चर्चा समाप्त होने को आईं तो नताशा इंजोमेत्सेव ने आयोजकों की ओर से उन सभी को धन्यवाद दिया जिन्होंने इन तीन दिनों के प्रवचनों की सफलता में योगदान दिया था - कर्मचारी, स्वयंसेवक, सुरक्षाकर्मी, अनुवादक इत्यादि। फिर इस कार्यक्रम का मार्मिक समापन बोरिस ग्रेबेन्सचिकोव के एक मधुर गीत से हुआ। जनमानस ने करतल ध्वनि से सराहना व्यक्त की और परम पावन के मंच से बाहर निकलते तक उन्होंने वादन जारी रखा। कल तड़के ही परम पावन भारत लौट जाएँगे।