थेगछेन छोलिंग, धर्मशाला, हि. प्र., भारत, झींगुर की ध्वनि सुनाई पड़ रही थी और धौलाधार पर्वतों की श्रृखंला प्रातः की धूप में स्पष्ट प्रतीत हो रही थी जब आज परम पावन दलाई लामा पैदल चुगलगखंग गए। ६००० की संख्या में श्रोता उनके आगमन की प्रतीक्षा कर रहे थे। सिंहासन के समक्ष खड़े होकर, उन्होंने उनका अभिनन्दन किया और कइयों ने उनके अभिनन्दन के उत्तर में हाथ हिलाए। थाई भिक्षुओं द्वारा पालि में मंगल सुत्त के सस्वर पाठ के उपरांत ताइवान से १३०० बौद्ध, जो इंटरनेशनल एसोसिएशन ऑफ टिब्बटेन बुद्धिस्ट धर्म, ताइवान की छत्रछाया में २२ सांस्कृतिक संगठनों से संबंधित थे, ने चीनी भाषा में 'हृदय सूत्र' का सस्वर पाठ किया।
परम पावन ने टिप्पणी की, कि आज प्रवचन की जिस श्रृंखला का वे प्रारंभ कर रहे थे, ये उसके मुख्य शिष्य थे। उन्होंने आगे कहा कि अन्य देशों के भी लोग थे जहाँ पारम्परिक रूप से बौद्ध धर्म का अनुपालन किया जाता है - भारत, नेपाल, कोरिया, जापान, रूस और वियतनाम --- और ऐसे देश जो बौद्ध धर्म के आदी नहीं हैं - इजरायल, स्पेन, जर्मनी, फ्रांस, अमरीका और ब्रिटेन। कुल मिलाकर ६९ देशों के लोग थे। परम पावन ने घोषित किया कि वे एक संक्षिप्त परिचय से प्रारंभ करेंगे।
"हम स्वयं को बौद्ध कहते हैं, पर प्रायः हम इस पर ध्यान नहीं देते कि वास्तव में बौद्ध धर्म क्या है। यदि हम शिक्षाओं का परीक्षण करें, इसके बारे में दृढ़ता विकसित करें तो हम कारणों पर आधारित एक समझ विकसित कर पाएंगे।
"सभी सत्वों में सुख की खोज तथा दुख से बचने की प्रवृत्ति होती है। पीड़ा व आनन्द कारणों और परिस्थितियों से आते हैं, पर मात्र हम मनुष्य ही इसे समझ सकते हैं। प्रति दिन मैं सभी सत्वों के कल्याण हेतु प्रार्थना करता हूँ, पर जिन लोगों के लिए मैं कुछ कर सकता हूँ, वे केवल इस ग्रह के मेरे सह मानव हैं। हमारी मानवीय बुद्धि हमें इस परीक्षण के लिए सक्षम करती है कि किस तरह मानवीय पीड़ा को कम किया जाए। परन्तु चूँकि शिक्षा भौतिकवादी लक्ष्यों पर अधिक केंद्रित है और जिस तरह लोग ऐन्द्रिक आनन्द में सुख ढूँढते हैं, हमारे आंतरिक विश्व, चित्त की शांति और नैतिकता की ओर कम ध्यान दिया गया है।
"इसका एक परिणाम यह है कि हम स्वनिर्मित समस्याओं का सामना करते हैं। करुणा के अभाव में युद्ध छिड़ते हैं तथा हम अचिन्तनीय हत्याएँ देखते हैं। हम शस्त्रों के व्यापार के पीछे दौड़ते हैं, जिसका एकमात्र उद्देश्य हानि पहुँचाना और हत्या है। देखिए कल लास वेगास में क्या हुआ, जहाँ लगभग ६० लोग मारे गए और ५०० से भी अधिक लोग घायल हुए। अन्य स्थानों में स्वच्छता की कमी और भोजन के अभाव का अर्थ है कि बच्चे भुखमरी का शिकार हो रहे हैं। क्रोध व घृणा, हमारे भाई और बहन मुनष्यों को 'हम' और 'उन' के संदर्भ में देखना हमारे दृष्टिकोण को सीमित करते हैं और धमकी, शोषण, हत्या की ओर ले जाते हैं, जिनके बारे में हम समाचार द्वारा जानते हैं।
"हम सामाजिक प्राणी हैं, जो समुदायों में रहते हैं, जो जीवित रहने हेतु परस्पर आश्रित हैं। हमें प्रेम व करुणा से एक दूसरे के साथ व्यवहार करना चाहिए। वैज्ञानिकों को शिशुओं के प्रमाण मिले हैं कि आधारभूत मानव प्रकृति करुणाशील है। परन्तु हमारी प्राकृतिक सहज करुणा हमारे निकट के लोगों के प्रति पक्षपाती होने लगती है। चूंकि हम सभी अन्योन्याश्रित हैं तो यदि हमारे पड़ोसी शांतिपूर्ण हों तो हम सभी को लाभ होगा, फिर चाहे वे पड़ोसी परिवार हों अथवा पड़ोसी देश। अतः हमें अपनी करुणा को सम्पूर्ण मानवता तक विस्तृत करने की आवश्यकता है।"
जिस ग्रंथ पर वे प्रवचन देने वाले थे उसकी ओर उन्मुख होकर परम पावन ने कहा कि आर्यदेव के 'चतुश्शतक' व चन्द्रकीर्ति के 'मध्यमकवतार' का अध्ययन तिब्बती बौद्ध धर्म के सभी परम्पराओं द्वारा किया जाता है। उन्होंने कहा कि उन्होंने 'मध्यमकवतार' का व्याख्यात्मक संचरण लिंग रिनपोछे से प्राप्त किया था जिन्होंने इसे चोने लामा रिनपोछे से सुना था। बाद में, परम पावन ने चन्द्रकीर्ति के भाष्य का व्याख्यात्मक संचरण सक्या उपाध्याय कुनगा वंगछुग से ग्रहण किया, जिन्होंने कई वर्ष कब्जा किए गए तिब्बत के कारागार में बिताए थे।
परम पावन ने चोंखापा की 'प्रतीत्य समुत्पाद स्तुति' का संचरण देने के अपने उद्देश्य को भी घोषित किया। उन्होंने सूचित किया कि जब वे छोटे थे तो उन्होंने लगभग एक घंटे में इस पाठ को कंठस्थ कर लिया था और उनमें से छंद हैं जिनका पाठ वे प्रतिदिन करते हैं।
"मैं जे चोंखापा को द्वितीय नागार्जुन के रूप में देखता हूँ, गेलुग परम्परा के प्रति मेरी आस्था के कारण नहीं अपितु उन्होंने जो लिखा उसके पठन व अध्ययन के कारण। 'विचार का अलंकरण' और 'सुभाषित सार' की ओर देखें। जब संस्कृत पंडित त्रिपाठी इनका हिंदी में अनुवाद कर रहे थे तो मैंने उनसे पूछा कि क्या वे सोचते हैं कि चोंखापा की तुलना महान नालंदा विद्वानों के साथ की जा सकती है और उन्होंने उत्तर दिया कि न केवल उनकी तुलना की जा सकती है पर उनकी गणना श्रेष्ठों में की जा सकती है।
"मेरे दो शिक्षक किन्नौरी थे, खुनु लामा रिनपोछे और गेन रिगज़िन तेनपा। गेन रिगज़िन ने मुझे 'प्रतीत्य समुत्पाद स्तुति' की व्याख्या दी।"
'मध्यमकावतार' को खोलते हुए परम पावन ने संस्कृत का शीर्षक पढ़ा, जो इसकी प्रामाणिकता को इंगित करता है। तत्पश्चात अनुवादक का मंजुश्री को प्रति वंदन था, जो यह इंगित करता है कि ग्रंथ अभिधर्म वर्ग का है।
परम पावन ने बताया कि भोट भाषा में बुद्ध वचनों का संग्रह कांग्यूर लगभग १०० खंडों में है जबकि तेंग्यूर में २२५ टीका ग्रंथ हैं। लगभग एक दर्जन चीनी भाषा से अनूदित किए गए थे, परन्तु शेष के स्रोत पालि या संस्कृत थे। इनमें मैत्रेय के विस्तृत चर्या से संबंधित प्रमुख लेखन तथा नागार्जुन के गहन दृष्टि को स्पष्ट करते हुए ग्रंथ शामिल हैं।
नागार्जुन की कृतियों में, 'प्रज्ञाज्ञान मूलमध्यमकारिका' शून्यता पर केंद्रित है, जबकि 'रत्नावली' मार्ग के पहलुओं को प्रकट करता है। 'मध्यमकावतार' दोनों दृष्टिकोणों को संयुक्त करती है। इसमें मध्यमक परम्परा के अतिरिक्त दार्शनिक विचारों की आलोचना भी शामिल है। आर्यदेव का 'चतुश्शतक' 'मूलमध्यमकारिका' की कारिका है, जैसा कि बुद्धापालित का नामस्रोतीय ग्रंथ है। अपने 'प्रज्ञा दीप' में, भवविवेक ने बुद्धपालित की आलोचना की। चन्द्रकीर्ति इन शंकाओं का उत्तर अन्य दृष्टिकोणों की आलोचना के सिद्धांत का अनुसरण कर, अपने दृष्टिकोण की स्थापना कर और फिर किसी भी विपरीत प्रतिक्रिया का खंडन कर देते हैं। परम पावन ने बताया कि इन विभिन्न लेखकों के दृष्टिकोण संबंधी विवेचनाओं का पठन और तुलना करना कितना मूल्यवान और उत्साहजनक है।
परम पावन ने उल्लेख किया कि वे देख पा रहे हैं कि जैसे जैसे उनकी आयु अधिक हो रही है, वह शीघ्र ही थक जाते हैं। ११:३० बजे वे मध्याह्न भोजन के लिए रुके और कल प्रातः अपनी व्याख्या जारी रखने का वादा किया। उन्होंने अपने श्रोताओं को मध्याह्न में आयोजित समीक्षात्मक कक्षाओं में भाग लेने के लिए प्रोत्साहित किया।
मंदिर से प्रस्थान करते हुए, वे जनमानस के बीच पुराने मित्रों व शुभचिंतकों के साथ हाथ मिलाने और शब्दों का आदान प्रदान करने के लिए बार बार रुके। सीढियों के निकट प्रतीक्षा कर रही गाड़ी में बैठकर मध्याह्न भोजन के लिए जाने से पूर्व वे एक बार पुनः मुस्कुराए तथा हाथ हिलाकर अभिनन्दन किया। इंटरनेशनल एसोसिएशन ऑफ टिब्बटेन बुद्धिस्ट धर्म, ताइवान के सदस्यों को मंदिर के प्रांगण के एक घिरी हुए खंड में मध्याह्न का भोजन परोसा गया जबकि सार्वजिनक लोगों को आम रसोईघर से भोजन प्रदान किया गया।