दिल्ली, भारत - परम पावन दलाई लामा ने सिंहासन पर खड़े होकर सभागार में बैठे पीछे की पंक्तियों के लोगों को हाथ हिलाकर अभिनन्दन किया। एक बार जब उन्होंने आसन ग्रहण किया तो उन्होंने सम्पूर्ण 'हृदय सूत्र' का पाठ न कर पर उससे संबंधित मंत्र, उसके बाद ' अभिसमयालंकार ' और दिङ्नाग के ' सूत्र समुच्चय ' के भाष्य ' प्रमाणवार्तिक ' के श्रद्धा छंद का पाठ सुझाया।
"जब मैं इस तरह के प्रवचन देता हूँ," उन्होंने कहा, "तो मैं बुद्ध की देशनाओं और किस तरह अभ्यास में संलग्न हुआ जाए, का एक परिचय देता हूँ। तिब्बत में अतीत में और अब शायद चीन में भी लोग हैं जो बौद्ध धर्म में आस्था रखते हैं, जो वास्तव में इसके विषय में नहीं जानते कि यह क्या है। सभी धर्म प्रेम और करुणा, सहिष्णुता और संतोष की शिक्षा देते हैं और दीर्घ काल से लाभकारी रहे हैं। पर उनमें से मात्र बौद्ध धर्म नैरात्मय के संबंध में स्पष्ट रूप से शिक्षा देता है।
"एक जर्मन न्यूरोसाइंटिस्ट ने एक बार मुझे मस्तिष्क का एक चित्र दिखाया और मुझसे कहा कि अगर कोई नियंत्रित स्व अथवा आत्मा हो तो उसे वहाँ होना चाहिए, पर कुछ भी ऐसा आत्म को इंगित नहीं करता। वास्तव में चूँकि मस्तिष्क के न्यूरॉन्स गैर-केंद्रीकृत नेटवर्क के रूप में कार्य करते हैं, विज्ञान बौद्ध दावे का समर्थन करता प्रतीत होता है।"
भोट भाषा में बात करते हुए जिसका रूसी, मंगोलियाई, चीनी, हिन्दी और अंग्रेजी में साथ साथ अनुवाद किया गया, परम पावन ने आगे कहा कि जो बौद्ध दृष्टिकोण को विशिष्ट करता है, वह उसकी चार मुद्राएँ हैं:
सभी संस्कृत धर्म अनित्य हैं।
सभी सास्रव दुःख हैं।
सभी धर्म शून्यता व नैरात्म्य हैं।
निर्वाण शांति एवं कुशल है।
क्लेश और कर्म दुःख की प्रकृति में हैं। उनका कारण अज्ञान, विकृत दृष्टि जिसके कारण हम अनित्य को नित्य की प्रकृति में देखते हैं, जो आत्म सत्ता नहीं रखता उसे आत्मा के रूप में और जो दुखद है उसे सुखकर समझते हैं। इस का मूल एक स्वायत्त आत्म के विकृत दृश्य को पकड़ कर रखना है।
इसके विपरीत बौद्ध धर्म का अनूठा अन्योन्याश्रितता का दावा है। यह स्पष्ट रूप से प्रतीत होता है कि एक प्रभाव एक हेतु पर निर्भर करता है, परन्तु इसका विपरीत भी सच होता है क्योंकि कारण मात्र एक कारण है, क्योंकि यह एक प्रभाव को जन्म देता है। इसी तरह न केवल पूर्ण उसके अंगों पर निर्भर है, परन्तु अंग भी पूर्ण पर निर्भर हैं।
परम पावन ने 'हृदय सूत्र' का उल्लेख किया जो कहता है 'रूप शून्यता है, शून्यता रूप है।' रूप व शून्यता पृथक सत्ता नहीं हैं - 'रूप शून्यता से पृथक नहीं है; शून्यता रूप से पृथक नहीं है।' यह कार्य कारण के संदर्भ में परस्पर निर्भरता को दिखाता है, जबकि सूक्ष्मतम क्रमचय ज्ञापित के संदर्भ में निर्भरता है।
बुद्ध की शिक्षाओं के इस दृष्टिकोण के विपरीत, 'मार्ग के चरण' का संदर्भ अनित्यता, मानव जीवन का मूल्य और इस जीवन के सार को लेने का अभ्यास, मुक्त होने के दृढ़ संकल्प के विकास से है। जैसा कि 'मार्ग के तीन प्रमुख अंग' सलाह देते हैं, हमें अपने चित्त को इस जीवन के आकर्षण और भविष्य के सुखों से विमुख करना है और मुक्त होने के लिए दृढ़ संकल्प विकसित करने की आवश्यकता है। वसुबंधु को उद्धृत करते हुए परम पावन ने कहा कि शिक्षाओं को संरक्षित करने के लिए मात्र दो उपाय हैं - अध्ययन और अभ्यास।
इसके अतिरिक्त नागार्जुन को उद्धृत करते हुए, परम पावन ने स्पष्ट किया कि शून्यता का क्या अर्थ है। जब हम कहते हैं 'रूप शून्यता है' तो रूप को नकारा नहीं जाता अपितु इस विचार को कि इसका किसी तरह स्वभाव सत्ता रखते हुए अस्तित्व है। अपने श्रोताओं को स्वयं ही पहले नागार्जुन के 'मूल मध्यम कारिका' की ओर ध्यान देकर उसके अध्याय २६ - द्वादशांग प्रत्यय परीक्षा, जिसके बाद अध्याय १८ - आत्म और धर्म प्रत्यय परीक्षा तत्पश्चात अध्याय २४ चार आर्य सत्य की परीक्षा का अध्ययन करने के लिए प्रोत्साहित किया।
'बोधिसत्वचर्यावतार' के नवें अध्याय के ३७वें श्लोक तक पढ़कर परम पावन श्रोताओं से प्रश्न आमंत्रित करने के लिए रुके। पहला था, कि एक मित्र के लिए क्या किया जा सकता है जिसकी हाल ही में मृत्यु हो गई है। उत्तर था बोधिचित्तोत्पाद और उसकी सद्गति के लिए संभार किए गए पुण्य की परिणामना। श्रोताओं में से एक अन्य सदस्य ने घोषणा की, कि यह बड़े दिन का अवसर था और वे परम पावन को रूस के सबसे पवित्र विहार की एक तस्वीर भेंट कर रहे थे। वे यह भी जानना चाहते थे कि मृत्यु के समय सबसे अच्छा अभ्यास क्या है। परम पावन ने उसे बताया कि जब आप मरणासन्न अवस्था में हों तो यह सहायक हो सकता यदि आप प्यार और स्नेह के वातावरण से घिरे हों। सोने तथा अन्य संपत्ति से घिरे रहना कोई सहायता न देगा।
जब उनसे पूछा गया कि क्या यीशु मसीह को एक तरह के बोधिसत्व के रूप में देखना उचित होगा, परम पावन ने उत्तर दिया कि एक बौद्ध परिप्रेक्ष्य से, यह सोचते हुए कि वह लम्बे समय तक कितने लोगों के लिए कल्याणकारी रहे थे, उन्हें वास्तव में एक बोधिसत्व के रूप में माना जा सकता है।
परम पावन ने एक युवती से कहा, जो पहले ही बौद्ध तर्क और ज्ञान-मीमांसा का अध्ययन कर रही हैं, जो जानना चाहती थीं कि उसे किस तरह कम शुष्क बनाया जाए, कि वे विविध तरह की पुस्तकों का अध्ययन करें और उनके दृष्टिकोणों की तुलना करें। साठ से अधिक वर्षों के अपने स्वयं के अभ्यास की चर्चा करते हुए उन्होंने उससे कहा कि वह यह जल्दी में नहीं, अपितु एक लम्बी अवधि में करे। उन्होंने उससे दृढ़ता को विकसित करने और अपने आंतरिक अनुभव को एकीकृत करने के लिए कहा। उन्होंने प्रथम दलाई लामा गेदुन डुब के कथन को उद्धृत करते हुए कहा कि यदि आप अपनी नकारात्मक भावनाओं से जूझने के लिए जो सीखा है उसे काम में नहीं लाते तो वह पूर्व में एक दुरात्मा का प्रतिरोध करने के लिए पश्चिम में एक अनुष्ठान करना जैसा है। परम पावन ने डेपुंग के हाल के समारोह की सराहना की जिसमें प्रथम बीस भिक्षुणियों को गेशे-मा की उपाधि से सम्मानित किया गया था।
अंत में, स्वयंसेवक कर्मचारी के एक सदस्य ने कल की त्रासदी के संबंध में परम पावन को सूचित किया कि एक सैन्य विमान जिसमें ९२ यात्री सवार थे जिनमें से अंतर्राष्ट्रीय स्तर के प्रसिद्ध लाल सेना दल के ६० लोग भी शामिल थे, काले सागर में दुर्घटनाग्रस्त हो गया था और उनसे पीड़ितों के लिए प्रार्थना करने के लिए कहा।
"निस्संदेह मैं उनके लिए प्रार्थना करूँगा," परम पावन ने उत्तर दिया। "और आप भी करें। आप भी बोधिचित्तोत्पाद और शून्यता की अपनी समझ का विकास कर सकते हैं और उसकी परिणामना पीड़ितों के प्रति कर सकते हैं। आप अक्षोभ्य मंत्र का भी पाठ करना चाहेंगेः
"नमो रत्नत्रयाय ऊँ कंकनी रोचनी त्रोटनी त्रासनी प्रतिहन्न सर्व कर्म परम पर नि मे सर्व सत्व नञ्च स्वाहा
"इस विषय में पूछने के लिए आपका धन्यवाद।"
कल प्रातः प्रवचन का तीसरा सत्र होगा।