आज परम पावन दलाई लामा ने डेपुंग लाची और डेपुंग लोसेललिंग के बीच अपेक्षाकृत कम दूरी को पैदल तय करने का निश्चय किया। मार्ग में उन्होंने शुभचिंतकों का अभिनन्दन किया, साथ ही याचकों को भी सांत्वना दी, जो उनका ध्यानाकर्षित करने की होड़ में थे। विशाल लोसेललिंग सभागार में लगभग ३००० भिक्षु, २६० भिक्षुणियां, जिनमें २० नईं गेशे मा भी शामिल थीं, स्थानीय तिब्बती स्कूली बच्चे और विदेश से आए लोग प्रथम अंतर्राष्ट्रीय एमोरी - तिब्बत संगोष्ठी में भाग लेने के लिए एकत्रित हुए थे ।
गेशे लोबसंग तेनजिन नेगी ने यह समझाते हुए कि संगोष्ठी बौद्ध धर्म और विज्ञान के बीच संवाद की परम पावन की दृष्टि की आंशिक पूर्ति है, इस अवसर का परिचय दिया। उन्होंने कहा कि यह एमोरी विश्वविद्यालय, तिब्बती ग्रंथ एवं अभिलेख पुस्तकालय और भिक्षुओं और भिक्षुणियों, अधिकतर दक्षिण भारत से, के बीच सहज विकसित संबंध हैं। उन्होंने घोषित किया कि वर्तमान बैठक डेपुंग महाविहार, अध्ययन के तिब्बत के महान पीठों में से एक, की ६००वीं वर्षगांठ के साथ मेल खाती है।
नेगी ने सभा को संबोधित करने के लिए, हाल ही में पदोन्नत १०३ गदेन ठिपा जेचुन लोबसंग तेनजिन को आमंत्रित किया। ठि रिनपोछे ने एक औपचारिक तिब्बती भाषण पढ़ा जिसमें उन्होंने परम पावन के प्रति सम्मान व्यक्त किया और बैठक में प्रत्येक का स्वागत किया। उन्होंने अनुमोदन करते हुए संदर्भित किया कि तथ्य यह है कि विज्ञान का प्रशिक्षण तिब्बती विहारीय शिक्षा का और यहां डेपुंग में आयोजित इस संगोष्ठी का एक अंग है। उन्होंने इसका कारण परम पावन के प्रयासों और प्रेरणा को उत्तरदायी ठहराया और साथ ही प्रोत्साहन के अपने शब्द प्रस्तुत किए।
नेगी परम पावन की ओर उन्मुख हुए और पूछा कि क्या वो कोई टिप्पणी साझा करना चाहते हैं। उन्होंने प्रारंभ किया:
"आदरणीय भाइयों और बहनों, मैं यहाँ आकर बहुत खुश हूँ और इस कार्यवाही में भाग लेना मेरे लिए एक महान सम्मान की बात है विशेषकर डेपुंग महाविहार की स्थापना के ६००वें वर्ष के अवसर पर।
"जब हमने माइंड एंड लाइफ संस्थान द्वारा आयोजित वैज्ञानिकों और बौद्ध विद्वानों के बीच पहली बैठक आयोजित की तो मैंने सुझाव दिया कि बौद्ध धर्म निर्वाण और बुद्धत्व को प्राप्त करने के उद्देश्य से एक निश्चित प्रशिक्षण को संदर्भित करता है। परन्तु संवाद के इन ३० वर्षों में, हमने कभी भी इन लक्ष्यों में से किसी पर भी बात नहीं की है, इसके स्थान पर हम अपनी वर्तमान वास्तविकता पर चर्चा कर रहे हैं। परिणामस्वरूप मैं इन संवादों का उल्लेख बौद्ध विज्ञान और आधुनिक विज्ञान के बीच संवाद के रूप में करना पसंद करूँगा।
"अब तक, आधुनिक विज्ञान ने भौतिक वस्तुओं पर ध्यान केन्द्रित किया है जिसमें चित्त तथा भावनाओं के कार्य के प्रति कम ध्यान केंद्रित किया गया है। और फिर भी हमारी कई समस्याएँ, जिनका सामना हम करते हैं, हमारे क्लेशों के कारण उत्पन्न होती हैं। मेरा विश्वास है कि आंतरिक विज्ञान और हम किस तरह अपनी भावनाओं से निपट सकते हैं, के बारे में अधिक सीख कर हम सुनिश्चित कर सकते हैं कि व्यक्ति, परिवार और व्यापक समुदाय अधिक सुखी और शांत हो। जब हमारे बीच मतभेद हों तो उनके समाधान के लिए हमें संवाद में लगने की आवश्यकता है और ऐसा करने हेतु हमें एक दूसरे का सम्मान करना होगा। इस प्रक्रिया के अंग के रूप में सहायक होगा यदि विज्ञान एक शैक्षणिक दृष्टि से चित्त व भावनाओं का परीक्षण करे।"
तत्पश्चात उन्होंने श्रोताओं में से तिब्बतियों से उनकी अपनी भाषा में बात की। उन्होंने इंगित किया और कहा कि जब बुद्ध ने पहले शिक्षा दी, तो उन्होंने चार आर्य सत्य समझाया, जिसका पहला दुःख के अस्तित्व से संबंधित है। सत्य को प्रकट कर, वस्तुओं की वास्तविकता बताते हुए वे निरोध की संभावना के विषय में बोलने में सक्षम हुए।
बौद्ध शिक्षाओं के व्यापक परिप्रेक्ष्य को लेते हुए, परम पावन ने घोषित किया कि यदि हम तर्क पर निर्भर करें तो अनुभवजन्य साक्ष्य के विपरीत कोई स्थान नहीं है। उन्होंने पांच तत्वों के उद्भव और 'अंतरिक्ष कण' के अस्तित्व पर बात की। उन्होंने उल्लेख किया कि 'बिग बैंग' के बारे में वैज्ञानिक अटकलें ब्रह्मांड के प्रकटीकरण और विनाश और कल्पों के संदर्भ में समय के बौद्ध विवरण से मेल खाती हैं।
उन्होंने बौद्ध वर्णन के अनुसार चेतना के विभिन्न स्तरों, किस तरह ऐन्द्रिक चेतना स्थूल होती है, स्वप्नावस्था में चेतना अधिक सूक्ष्म होती है, बेहोशी की अवस्था में और अधिक सूक्ष्म होती है और मृत्यु के समय सूक्ष्मतम होती है , की चर्चा की । यहाँ उन्होंने उन लोगों का उल्लेख किया जिनके शरीर नैदानिक मृत्यु के बाद भी वैसे ही बने रहते हैं क्योंकि उस समय तक के लिए सूक्ष्मतम चेतना बनी रहती है। इस संबंध में हमें और अधिक जानने की आवश्यकता है और जांच चल रही है।
"नालंदा परम्परा कारण और तर्क पर आधारित है," परम पावन ने कहा, "और इस आधार पर ही हम वैज्ञानिकों के साथ विचार विमर्श करने में सक्षम हैं। इस संगोष्ठी का पहला उद्देश्य दोनों पक्षों की समझ को समृद्ध करना है। दूसरा धर्मनिरपेक्ष नैतिकता के सामान्य विकास का समर्थन है, जैसा कि मैं अब पश्चिम में करता हूँ, जहाँ लोग 'धर्मनिरपेक्ष' सार्वभौमिक मूल्यों शब्द के संदर्भ में और अधिक सावधान हैं।
"विश्व को कई तरह की समस्याओं का सामना करना पड़ता है, जिनमें से कई हमारी अपनी निर्मित की गई हैं, तो उनके समाधान करने के लिए कदम उठाना हमारा उत्तरदायित्व है। हमें एक औपचारिक दृष्टिकोण अपनाने के बजाय एक यथार्थवादी दृष्टिकोण अपनाने की आवश्यकता है। जब हम जन्म लेते हैं तो कोई औपचारिकता नहीं होती और जब मरते हैं तो भी नहीं होता - तो जब हम जीवित हैं तो उस पर क्यों समय व्यर्थ करें?"
व्यक्तिगत रूप से भाग लेने में असमर्थ होने के कारण, रॉबर्ट एक पॉल ने वीडियो द्वारा एक प्रस्तुति की, जिसे सभागार में दिखाया गया। उन्होंने सुझाव दिया कि हम एक 'अक्षीय युग' में जी रहे हैं, परिवर्तन का एक समय, जब लोगों को नई और अभूतपूर्व परिस्थितियों के साथ संघर्ष करना होगा। उन्होंने कहा कि सोच, जानने और उस पर कार्य करने के नए तरीके बनाने के लिए प्रयास करना होगा जो कि सर्वश्रेष्ठ बौद्ध विज्ञान और आधुनिक विज्ञान पर बनाया जाना चाहिए।
फ्रांसीसी दार्शनिक मिशेल बिटबोल ने दिखाना चाहा कि दर्शन विज्ञान और बौद्ध धर्म के बीच एक सेतु हो सकता है, यह सुझाते हुए कि यह स्पष्ट कर सकता है कि विज्ञान क्या है। उन्होंने फ्रांसिस्को वरेला के विचार को उद्धृत किए कि बौद्ध धर्म की खोज एक नया पुनर्जागरण लेकर आएगी। उन्होंने कहा कि विज्ञान ध्यान को उसी तरह देखता है जैसा वह किसी अन्य वस्तु को देखता है, यह जानने की इच्छा रखते हुए कि वह किस प्रकार कार्य करता है और उसका उपयोग किस के लिए किया जा सकता है। उन्होंने सुझाव दिया कि पश्चिम में विज्ञान का ज्ञान के स्रोत के रूप में अतिमूल्यांकन हुआ है, पर निष्कर्ष निकाला कि यह बौद्ध दावा कि सूक्ष्म चेतना अनादि है, उत्क्रांति के वैज्ञानिक सिद्धांत के साथ असंगत नहीं है।
अपनी प्रस्तुति में, मानव विज्ञानी कैरोल वर्थमेन ने तिब्बती विहारीय संस्थानों के लिए व्यापक और दीर्घकालिक विज्ञान शिक्षा कार्यक्रम, जिसका प्रतिनिधित्व इमोरी टिब्बट साइंस इनिशिएटिव (इटीएसआइ) करता है, की बात की। उन्होंने भिक्षुओं के विज्ञान नेता बनने के लिए अपने विहारों को लौटने से पूर्व उन्हें विज्ञान की शिक्षा देने में प्रशिक्षिण के लिए क्षमता निर्माण की सूचना दी। वे इस तरह के प्रश्नों के साथ जूझते हैं जैसेः भौतिक वस्तु - क्या है? जीवन- यह कैसे आता है? चेतना - यह कैसे हो जाती है? ज्ञान- क्या हम वास्तव में जान पाते हैं? उन्होंने यह कहते हुए समाप्त किया कि बौद्ध और आधुनिक विज्ञान के बीच आदान-प्रदान से कई संभावित लाभ मिल सकते हैं।
परम पावन के इस अवलोकन के साथ कि उनके अपने अनुभव में वैज्ञानिक साधारणतया उल्लेखनीय रूप से खुला दिमाग रखते हैं, सत्र में मध्याह्न के भोजन के लिए अंतराल आया जो उन्होंने उस दिन के प्रस्तुतकर्ताओं के साथ किया।
जब मध्याह्न में दूसरा सत्र प्रारंभ हुआ तो जॉन डुरांट ने पूछा 'विज्ञान क्या है?' यह सुझाते हुए कि पता लगाने के लिए हमें यह देखना है कि वैज्ञानिक क्या कर रहे हैं न कि वे क्या कह रहे हैं। उन्होंने वैज्ञानिक निश्चितता के प्रबल और प्रभावशाली मिथक को संबोधित करते हुए कहा कि यह सोचना सरल है कि वैज्ञानिक ज्ञान विवाद से परे है। न्यूटन के गुरुत्वाकर्षण के अवलोकन के बारे में पूछताछ एक उदाहरण है। उन्होंने लिचन का भी उल्लेख किया जिसे सार्वभौमिक रूप में (आल्गे और फंगस) शैवाल और कवक माना जाता था जब तक कि हाल की खोजों ने बताया कि ईस्ट (खमीर) एक तीसरा घटक है।
उन्होंने वैज्ञानिक पद्धति के मिथक को भी चुनौती दी और इंगित किया कि सिद्धांत, भविष्यानुमान, प्रयोग और अवलोकन का ऑप्टिकल खगोल विज्ञान या या जीवाश्मों के अध्ययन में कम प्रासंगिकता है। उन्होंने वस्तुनिष्ठ वैज्ञानिक के मिथक पर प्रश्न उठाया और कहा कि वैज्ञानिक प्रगति वैज्ञानिक समुदाय द्वारा प्राप्त की जाती है किसी एक व्यक्ति द्वारा नहीं।
सोनम छोफेल ने बौद्ध धर्म में मान्य अनुभूति के ज्ञान पर एक अद्वितीय विवरण दिया, जिसे अज्ञान को दूर करने के लिए निर्विवाद और निश्चित होने की आवश्यकता है। उन्होंने ज्ञान के तीन क्षेत्रों का उल्लेख कियाः वस्तुएँ जो प्रकट हैं, वे जो किंचित छिपी हैं और वे जो बहुत छिपी हैं।
लोबसंग गोनपो, जूलिया हास और सोनम वांगचुक ने पैनल चर्चा के दौरान 'वैध अनुभूति' पर चर्चा जारी रखी। वैज्ञानिक निश्चितता पर प्रश्न उठाने के प्रभाव की ओर लौटते हुए जॉन डुरांट ने उल्लेख किया कि ऐसे लोग हैं जो कहते हैं कि जलवायु परिवर्तन के संबंध में विज्ञान निश्चित नहीं है, परन्तु इससे यह अर्थ नहीं निकाला जा सकता कि सब गलत है।
दिनांत में रवाना होने से पहले, परम पावन ने प्रस्तुतकर्ताओं से प्रत्येक का उनके योगदान के लिए धन्यवाद ज्ञापित किया और विशेष रूप से उन्होंने भिक्षु विद्वानों की सराहना की जिन्होंने अंग्रेजी में अपनी प्रस्तुतियों को रखने में साहस और क्षमता का प्रदर्शन किया था। सभागार से निकलकर वे गाड़ी से वापस डेपुंग लाची की ओर लौटे।