मैडिसन, डब्ल्यू आइ, संयुक्त राज्य अमेरिका, ८ मार्च २०१६ - परम पावन दलाई लामा आज जब मैडिसन मेसोनिक केंद्र पहुँचे तो तिब्बतियों का एक छोटा समूह झंडे और तख्तियाँ लिए उनका स्वागत करने हेतु चुपचाप प्रतीक्षा कर रहा था। जैसे ही वे गाड़ी से उतरे तो विस्कॉन्सिन टिब्बटेन एसोसिएशन(डब्ल्यूटीए) के अध्यक्ष छेतेन डोलकर ने उनका स्वागत किया। १०५० लोग, जिनमें लगभग ७०० तिब्बती शामिल थे, थियेटर के अंदर उन्हें सुनने के लिए एकत्रित हुए थे। शरपा टुल्कु ने अवसर का संचालन किया और सबसे पहले डब्ल्यू टी ए के बच्चों का परिचय कराया जिन्होंने परम पावन के प्रति कृतज्ञता व्यक्त करने वाला गीत उत्साह भरे स्वर में गाया। अमदो येशे ज्ञाछो ने एसोसिएशन की गतिविधियों का एक सारांश रिपोर्ट पढ़ा।
अपने परिचय में छेतेन डोलकर ने विशेष रूप से पी एच डी तक एक व्यापक अध्ययन के क्षेत्र में छात्रों की उपलब्धियों के विषय में बात की। उन्होंने परम पावन की सलाह का उल्लेख किया कि मनुष्य के रूप में हमारे अस्तित्व के लिए करुणा आवश्यक है। उन्होंने उन सभी के प्रति आभार व्यक्त किया जिन्होंने इस अवसर को संभव बनाने में योगदान दिया था।
स्थानीय कांग्रेसी मार्क पोकन, परम पावन को एक पारम्परिक श्वेत रेशमी दुपट्टा प्रदान करने के लिए आगे आए तथा डेन काउंटी कार्यकारी, जो पिरिसी ने श्रोताओं से उनका परिचय कराया। उन्होंने परम पावन की तीन प्रमुख प्रतिबद्धताओं, मानवीय सुख को सुनिश्चित करने हेतु मानवीय मूल्यों को बढ़ावा देने, धार्मिक परंपराओं के बीच सद्भाव और तिब्बती बौद्ध संस्कृति के संरक्षण की बात की। उन्होंने उल्लेख किया कि समर्थन के प्रतीक के रूप में परम पावन की यात्रा के दौरान डेन काउंटी की कार्यकारी इमारत पर तिब्बती ध्वज, सितारे और पट्टियों के बगल में लहरा रही है। कार्यकारिणी मार्च १० के तिब्बती दिवस के लिए समर्थन देगी। अंत में उन्होंने समुदाय में गेशे सोपा की उपस्थिति के लिए आभार व्यक्त किया।
परम पावन ने इन विभिन्न परिचयों के उत्तर में कहा:
"वास्तव में यह मेरे लिए एक महान सम्मान की बात है कि मुझे आप तिब्बतियों और तिब्बतियों के मित्रों से मिलने का अवसर प्राप्त हुआ है। हम अब लगभग ५७ वर्षों से निर्वासन में हैं, परन्तु हम जहाँ भी हों स्थानीय लोगों का हमारे प्रति मैत्रीपूर्ण व्यवहार रहा है और हमें उनका समर्थन मिला है। यहाँ भी स्थानीय प्रशासन और मित्रों ने हमारे प्रति सौहार्दता दिखाई है और साथ ही हमारे उद्देश्य के लिए समर्थन दिया है। धन्यवाद।
"मैं यह सुनकर खुश हूँ कि यहाँ हमारे समुदाय में तिब्बतियों और स्थानीय नागरिकों के रूप में उत्तरदायित्व की भावना है। तिब्बत में लोगों को अभी भी बड़ी कठिनाइयों का सामना करना पड़ता है और यही कारण है कि यह अत्यंत महत्वपूर्ण है कि हम अपनी अस्मिता का संरक्षण करें। यह मात्र ऐसा विषय नहीं है कि हम किस तरह दिखते हैं पर अपनी भाषा को जानने, उसका उपयोग करने और ज्ञान के महत्वपूर्ण धरोहर नालंदा परंपरा, जो उसे अभिव्यक्त करने में सक्षम है, से संबंधित है। अतीत में केवल भिक्षु ही वास्तव में इन बातों का अध्ययन करते थे। इसमें परिवर्तन आवश्यक है। भिक्षुणियाँ अब शास्त्रीय ग्रंथों का अध्ययन कर रही हैं और उनमें से कइयों को शीघ्र ही गेशे की उपाधि से सम्मानित किया जाएगा।
"मैं साधारण लोगों को भी शास्त्रीय ग्रंथों का अध्ययन करने के लिए प्रोत्साहित करता रहा हूँ। आप युवाओं को भी ऐसा करने का प्रयास करना चाहिए। यह इस बात को समृद्ध करेगा कि एक तिब्बती होने का क्या अर्थ है और यही हमारी अस्मिता को बनाए रखना क्या है।"
परम पावन ने उल्लेख किया कि जब भी वे अन्य लोगों से मिलते हैं वह अपने आपको मात्र ७ अरब मनुष्यों में एक मानते हैं। उन्होंने कहा कि उस स्तर पर हमारे बीच कोई अंतर नहीं हैं, चाहे आप राष्ट्रीयता, आस्था के बारे में या फिर लोग अमीर हैं या गरीब, शिक्षित या अशिक्षित हैं, के बारे में सोचें । उन्होंने उल्लेख किया कि हम सभी समान रूप से जन्म लेते हैं और हमारा पालन पोषण अपनी माँ की ममता की छत्र छाया में होता है। यही कारण है कि सभी ७ अरब मनुष्यों में समान रूप से सौहार्दता का विकास करने की क्षमता है। साथ ही, वैज्ञानिक निष्कर्ष कि निरंतर क्रोध, भय और घृणा हमारी प्रतिरक्षा प्रणाली को दुर्बल करता है, हम सब पर लागू होता है। उन्होंने आगे कहा कि यह साधारण ज्ञान है कि वे परिवारों में जहाँ प्रेम तथा स्नेह पनपता है, सुखी होते हैं, उस समय भी जब वे निर्धन हैं, पर वे परिवार, जो अपनी सम्पत्ति के बावजूद, ईर्ष्या और संदेह की दृष्टि से विखंडित हैं, दुखी होते हैं।
परम पावन ने सुझाव दिया कि मानवता के अधिक शांतिपूर्ण होने की संभावना व्यक्तियों के आंतरिक रूप से शांतिपूर्ण होने पर निर्भर करता है। उन्होंने पुष्टि की कि हमारे अद्भुत मस्तिष्क के कारण हम आगे की सोचने और भविष्य के लिए योजना बनाने में सक्षम हैं। शिक्षा और जागरूकता के माध्यम से हम शारीरिक स्वास्थ्य और एक शांत चित्त का विकास कर सकते हैं। उन्होंने कहा कि हमें करुणा के विकास की आवश्यकता है, परन्तु आधुनिक शिक्षा सामग्री आंतरिक मूल्यों को पोषित करने के बजाय भौतिक विकास पर केन्द्रित हुई जान पड़ती है। और इसीलिए हमारी शिक्षा में नैतिकता और मानवीय मूल्यों को शामिल करने के उपाय खोजना महत्वपूर्ण है, यह कुछ ऐसा है जिसके समर्थन के लिए परम पावन प्रतिबद्ध हैं।
उन्होंने समझाया कि एक ऐसे समय में जब अकल्पनीय बातें हो रही हैं और लोग धर्म के नाम पर एक दूसरे की हत्या कर रहे हैं, एक बौद्ध भिक्षु के रूप में उनकी दूसरी बड़ी प्रतिबद्धता धार्मिक सद्भाव को बढ़ावा देना है। उन्होंने कहा कि यह संभव है क्योंकि सभी धर्मों का साझा उद्देश्य प्रेम तथा मैत्री का निर्माण करना है। उन्होंने घोषणा की कि उनके ईसाई, हिंदू, यहूदी और मुसलमान और साथ ही बौद्धों में कई मित्र हैं। ८१ वर्ष की आयु में वे मानव मूल्यों और धार्मिक सद्भाव को बढ़ावा देने के लिए काम करने हेतु प्रतिबद्ध हैं और उन्होंने अपने श्रोताओं से आग्रह किया कि यदि वे उन्हें अपने एक मित्रस्वरूप देखते हैं, तो उन्हें भी ऐसा करना चाहिए।
चित्त शोधन के अष्ट पदों पर आते हुए जो कि प्रमुख रूप से परोपकार से संबंधित शिक्षण है, उन्होंने कहा:
"यह मात्र ज्ञान सम्भार नहीं परन्तु त्रिरत्न में शरण गमन तथा बोधिचित्तोत्पाद पर आधारित है। हम साधारणतया शरण गमन के समय कहे जाने वाले चार पंक्तियों की तुलना उन शब्दों के साथ कर सकते हैं जो हम भोजन ग्रहण करने के समय कहते हैं - 'उस बुद्ध को जो अद्वितीय शिक्षक हैं, धर्म जो अद्वितीय शरण हैं, संघ जो अद्वितीय मार्गदर्शक हैं, मैं यह समर्पण करता हूँ'। जब हम कहते हैं कि बुद्ध अद्वितीय हैं तो हम उन्हें सृजनकर्ता के समान एक बलशाली रूप में नहीं देखते, पर मुक्ति के लिए मार्ग साझा करते हुए, एक ऐसा मार्ग जिस पर वे पहले ही प्रस्थान कर चुके हैं, के रूप में समझते हैं। जब हम कहते हैं कि धर्म अद्वितीय है तो हमारा संकेत मात्र ग्रंथों का अर्थ नहीं है, परन्तु वह अनुभूति है जो चित्त में उनके क्रियान्वयन से होती है। इसका संदर्भ हमारे शील, ध्यान तथा प्रज्ञा से है। इस तरह का शरण हमें उस अज्ञान के उन्मूलन में सहायता करता है जो दुःख का मूल है।
"जैसा शांतिदेव कहते हैं:
दुःख से छुटकारे की इच्छा होने पर भी
हम दुःख की ओर भागते हैं।
सुख की कामना होने पर भी
मोह से अपने सुख को शत्रु की तरह नष्ट करते हैं।
"अज्ञान वास्तविकता की एक विकृति है जिस पर हम केवल प्रज्ञा से काबू पा सकते हैं। और जब हम संघ का संदर्भ अद्वितीय मार्गदर्शक के रूप में देते हैं तो हम केवल चीवरधारियों के बारे में नहीं सोचते पर साथ ही उस किसी भी व्यक्ति के लिए भी जिसने शिक्षा को क्रियान्वित किया है। तो पद की प्रथम दो पंक्तियों में जिनका हम पाठ करने वाले हैं, हम सभी सत्वों के लिए शरण लेते हुए बुद्धत्व की कामना करते है और अंतिम दो पंक्तियों में बोधिचित्तोत्पाद करते हैं। यह हमारे सुख की खोज और दुःख से बचने की स्वाभाविक प्रवृत्ति की पुष्टि करता है, पर जैसे शांतिदेव पुनः कहते हैं कि आत्म- पोषण की हमारी प्रवृत्ति हमें विपरीत दिशा में ले जाती हैः
संसार में जितने भी सुख है
वे सब दूसरों की सुख की इच्छा से आते हैं
संसार में जितने भी दुख है
वे सब स्वयं के सुख की इच्छा से आते हैं।
स्वार्थ कमियों की ओर ले जाता है जबकि दूसरों के प्रति चिंता रखना लाभ प्रदान करता है। यद्यपि बुद्धत्व की प्राप्ति अन्य सत्वों के सहायतार्थ है, हमें स्मरण रखना चाहिएः
बुद्ध पाप को जल से धोते नहीं,
न ही जगत के दुःखों को अपने हाथों से हटाते हैं;
न ही अपने अधिगम को दूसरों में स्थान्तरण करते हैं;
वे धर्मता सत्य देशना से सत्वों को मुक्त कराते हैं।
"महायान दृष्टिकोण में शरण गमन के लिए हम उस समय तक शरण लेते हैं जब तक हम ज्ञान का सार पा लें। उद्देश्य सभी सत्वों के दुखों को दूर करने में उनकी सहायता करना है। तीसरी पंक्ति में आता है 'दानादि कर्मों में प्रवृत्त होने के पुण्य से मैं सभी सत्वों के लिए बुद्धत्व प्राप्त करूँ।' परन्तु यह केवल पुण्य के लिए ही नहीं है परन्तु प्रज्ञा के लिए भी है। यदि हम उस 'मैं' का परीक्षण करें जो शरण ग्रहण करता है तो हम देखेंगे कि आत्म की हमारी भावना कि इसकी स्वभावगत सत्ता है, का कोई आधार नहीं है। यह कुछ ऐसा है जिसे हम शरीर और चित्त के समाहार पर थोपते हैं।
"विश्लेषण ऐसा नहीं जिसे हम शीघ्रता से पूरा कर सकते हैं पर यह शक्तिशाली और प्रभावी है। पिछले ६० वर्षों से मैं इस अभ्यास में रत हूँ और इसका एक वास्तविक प्रभाव है। यह आत्म की हमारी भ्रांत धारणा को कम करता है और ऐसा करते हुए यह हमारे क्लेशों का प्रतिकार करता है। संज्ञानात्मक चिकित्सक हारून बेक ने मुझे बताया कि जब हम क्रोधित होते हैं तो हमारे क्रोध की वस्तु पूरी तरह से नकारात्मक प्रतीत होती है, पर यह ९०% मानसिक प्रक्षेपण है।
परम पावन चार प्रतिशरणों का पालन करने की सलाह दीः धर्म की प्रतिशरणता न कि पुद्गल की, अर्थ की प्रतिशरणता न कि व्यंजन की, नीतार्थ प्रतिशरणता न कि नेयार्थ प्रतिशरणता और ज्ञान प्रतिशरणता न कि विज्ञान प्रतिशरणता।
अष्ट पदों की ओर पुनः लौटते हुए, उन्होंने कहा कि उसकी रचना पोतोवा के छात्र लंगरी थंगपा द्वारा की गई थी जिनका संबंध उस वंशावली से था जो शास्त्रीय ग्रंथों का अध्ययन करते हैं। ग्रंथ का मुख्य बिंदु, जो संक्षिप्त किन्तु प्रभावी है, वह परोपकार का विकास है जिसका संबंध सांवृतिक बोधिचित्त से है। यद्यपि उन्होंने कहा कि हम वास्तव में केवल तभी आगे बढ़ सकते हैं, जब केवल प्रार्थना करने या किसी मंत्र के जाप से नहीं अपितु शून्यता पर ध्यान करें।
उन्होंने कहा कि जहाँ अंतिम पद 'सभी वस्तुओं को एक भ्रम की तरह देखने' की बात करता है, इसका संदर्भ ध्यान के बाद की अवस्था तथा यथार्थ जो हमें दृष्टिगोचर होता है उसके बीच की असमानता है। परम पावन ने नागार्जुन को उद्धृत किया:
जो प्रतीत्य समुत्पाद है
उसे शून्यता कहकर समझाया जाता है
चूँकि उसका रूप ज्ञापित है
वही प्रतिपद मध्यमा है।
ऐसे किसी धर्म का अस्तित्व नहीं
जो प्रतीत्य समुत्पन्न नहीं है
इसलिए ऐसा कोई धर्म नहीं है
जो शून्य न हो।
और उन्होंने इसे 'हृदय सूत्र' की में प्रसिद्ध पंक्तियों से जोड़ाः
रूप शून्यता है, शून्यता रूप है, रूप से पृथक शून्यता नहीं है, शून्यता से पृथक रूप नहीं है।
परम पावन को ओवरचर सेंटर फॉर द आर्ट्स में मैडिसन विस्कॉन्सिन विश्वविद्यालय के कुलाधिपति, रेबेका ब्लांक द्वारा मध्याह्न के भोज के लिए आमंत्रित किया गया था। आगमन पर उनके पुराने मित्र रिची डेविडसन ने भी उनका स्वागत किया। एक संक्षिप्त परिचय के दौरान चांसलर ब्लांक ने परम पावन की बुनियादी अच्छाई और स्वस्थ चित्त के निर्माण हेतु प्रयास के लिए उनके समर्थन की सराहना की। उन्होंने उल्लेख किया कि यद्यपि कक्ष में १००० लोग थे, पर नेशनल ज्योग्राफिक द्वारा प्रसारण के माध्यम से अतिरिक्त १०,००० शामिल होंगे।
मध्याह्न भोजन के दौरान गूगल से छाद मेंग टैन, जिसका संदर्भ रिची डेविडसन ने अपने भाई के रूप दिया, ने अपने जीवन काल में शांति, आनन्द तथा करुणा के माध्यम से विश्व शांति का निर्माण करने की अपने लक्ष्य की बात की।
मध्याह्न भोजनोपरांत परम पावन एक पैनल चर्चा में सम्मिलित हुए, जिसमें पुनः चित्त शांति के महत्व और अब वैज्ञानिकों द्वारा उसमें ली जा रही रुचि की बात हुई। परम पावन ने ध्यानाकर्षित किया कि जो वास्तव में हमारी चित्त की शांति को नष्ट करते हैं वे हमारे क्लेश हैं। उन्होंने महिला नेताओं की एक बड़ी भूमिका की सराहना की, तथा चुटकी लेते हुए सुझाया कि महिलाएँ यदि विश्व के लगभग २०० देशों का नेतृत्व करें तो विश्व एक अधिक सुरक्षित स्थान हो सकता है। उन्होंने प्रोत्साहजनक वैज्ञानिक प्रमाण का संदर्भ दिया कि आधारभूत मानव स्वभाव करुणाशील है, जिसका अर्थ है कि हम अपने आपको उस मार्ग पर आगे प्रशिक्षित कर सकते हैं।
उन्होंने उल्लेख किया कि भ्रष्टाचार अदूरदर्शिता, निम्न नैतिक मानकों और लोभ का परिणाम है। और यह बताते हुए कि वास्तविक उदारता तब होती है जब वहाँ किसी पुरस्कार की आशा नहीं होती, उन्होंने जो सुन रहे थे उन्हें प्राप्तकर्ता को सम्मान के साथ देने के महत्व का स्मरण कराया। जब उन्होंने मजाक किया कि उदार होने की कल्पना करना भी संभव है तो रिची डेविडसन ने बताया कि तंत्रिका विज्ञान बताती है भावना करते समय वही तंत्रिका सर्किट सक्रिय होती है जो उस समय होती है जब आप वास्तव में दे रहे हैं।
परम पावन ने सुझाया कि लोगों को सकारात्मक घटनाक्रम के विषय में शिक्षित करने में मीडिया की एक महत्वपूर्ण भूमिका है, जिसमें मानव गतिविधि और क्षमता का एक अधिक संतुलित दृष्टिकोण शामिल होगा। इस संबंध में कि एक बेहतर विश्व के निर्माण के योगदान हेतु वे वैज्ञानिकों द्वारा किसका अध्ययन करना चाहेंगे, उन्होंने उत्तर दिया कि उन्हें स्वीकार करना चाहिए कि उनका ज्ञान सीमित रहता है और अपने कार्य के प्रति एक उन्मुक्त दृष्टिकोण रखना चाहिए। उन्होंने ४० वर्ष पूर्व उन्हें मिली चेतावनियों, कि विज्ञान 'आस्था का हत्यारा' है, का स्मरण किया। उन्होंने इस सलाह को अनदेखी किया और वैज्ञानिकों के साथ संवाद पर उतरे जो कि समय के साथ पारस्परिक रूप से लाभप्रद और समृद्ध रहा है।
परम पावन पर कल एक बार पुनः 'द वर्ल्ड वी मेकः वेल बीइंग इन २०३०’ पर चर्चा में भाग लेंगे।