ब्रसेल्स, बेल्जियम, १० सितंबर २०१६ - बोज़र ललित कला केन्द्र के गलियारे में लोग धैर्य और स्निग्ध भाव से परम पावन दलाई लामा के अभिनन्दन के लिए पंक्तिबद्ध होकर प्रतीक्षा कर रहे थे, जब उनका आज प्रातः माइंड एंड लाइफ सम्मेलन के दूसरे दिन आगमन हुआ। पहले दिन अधिकांश प्रस्तुतकर्ता वैज्ञानिक थे। आज वे अधिक विविध क्षेत्रों से आए थे। हेनरी ले बोफ सभागार में आज प्रातः जो पैनल सदस्य परम पावन के साथ सम्मिलित हुए, उन्होंने आध्यात्मिक और धार्मिक परंपराओं के दृष्टिकोण से पॉवर एंड केयर पर चर्चा की। संचालिका रोशी जोआन हैलिफ़ैक्स ने प्रारंभ में परम पावन को कुछ शब्द कहने के लिए आमंत्रित कियाः
"यहाँ आकर इन चर्चाओं में भाग लेना वास्तव में एक सम्मान की बात है," परम पावन ने प्रारंभ किया, "मेरी तीन प्रतिबद्धताओं में से एक धार्मिक परम्पराओं के बीच सद्भाव को बढ़ावा देना है। इसके लिए एक ठोस आधार है, क्योंकि वे सभी प्रेम के एक साझे अभ्यास को आगे बढ़ाते हैं और उसकी सुरक्षा के लिए सहनशीलता, क्षमा और आत्म अनुशासन की सलाह देते हैं। उनके दार्शनिक विचारों, उदाहरणार्थ, एक सृजनकर्ता के अस्तित्व और भूमिका अथवा अहिंसा के आचरण में मतभेद है पर सभी प्रेम के अभ्यास का समर्थन करते हैं। ये विभिन्न दृष्टिकोण विभिन्न समयों में विभिन्न स्थानों पर विभिन्न प्रकृति के लोगों को आकर्षित करते हैं।
"सितम्बर ११वीं घटना के बाद से मैंने इस्लाम का बचाव किया है। यह स्पष्ट है कि यदि एक मुसलमान रक्तपात करता है, तो वे एक सही मुसलमान नहीं रह जाता। हलके फुलके तौर पर मुस्लिम आतंकवादी या बौद्ध आतंकवादी कहकर संदर्भित करना एक भूल है, क्योंकि जो लोग आतंकवाद में से जुड़ते हैं वे अपनी आस्था के उचित समर्थक नहीं रहते। यह मैंने मुसलमान दोस्तों से जाना है और मुसलमान विद्वानों के साथ चर्चा कर पुष्टि की है।
"इसके पश्चात धार्मिक परंपरा के सांस्कृतिक पहलू हैं, जो विशेष रूप से समय और स्थानों से जुड़े होते हैं। भारतीय मित्रों ने मुझे बताया है कि जैन धर्म के संस्थापक, महावीर के जीवन काल में, पशु बलि इतने व्यापक रूप में थी कि इसका आर्थिक परिणाम पड़ा। महावीर ने इसका उत्तर अहिंसा और जीवन के प्रति सम्मान के सख्त पालन के उपदेश से दिया। इस्लाम सर्वप्रथम अरब में अनियंत्रित खानाबदोशों को प्रकटित किया गया जिसमें बहुत कम नियम थे, इसी कारण कुरान शरीयत कानून रखता है। इनमें से कुछ प्रथाएँ, जैसे कि सामंती व्यवस्था का अर्थ लिए दलाई लामा की राजनीतिक भूमिका, को बदलना चाहिए। भारत में भी जाति व्यवस्था, जो दूरगामी भेदभाव को जन्म देती है, तारीख से बाहर है, कर्म पर या सृजनकर्ता की इच्छाओं पर दोषारोपण करना अपर्याप्त है।
"हमें आध्यात्मिक और धार्मिक परम्पराओं के अनुयायियों के बीच तक पहुँचना है और पारस्परिक संपर्क बनाने की आवश्यकता है। इनमें वे भी शामिल हैं जिन्हें कट्टरपंथी कहकर संबोधित किया जाता है, क्योंकि हम सब समान रूप से मनुष्य हैं।"
जब रोशी जोआन हैलिफ़ैक्स ने न्यूजीलैंड की वरिष्ठ माओरी पॉलीन टेनगियोरा को बोलने के लिए आमंत्रित किया तो उन्होंने कहा कि शक्ति हम सबको दी गई है, अच्छे अथवा बुरे के लिए । उन्होंने बहुराष्ट्रीय कंपनियाँ, जो भोजन के लिए बीजों का व्यापारीकरण कर रही हैं और बांधों के निर्माण से पानी के अधिकारों पर हस्तक्षेप कर रही हैं, के विरोध में आवाज उठाई। उन्होंने स्पष्ट रूप से कहा कि यदि हम ज़मीन की देखभाल न करें तो यह हमारे लिए बुरा होगा।
श्रद्धेय मैथ्यू रिकार्ड जो एक बौद्ध भिक्षु, फोटोग्राफर और मानवतावादी हैं, ने घोषणा की कि केवल जब हममें प्रज्ञा और करुणा होती है तो हम शक्ति का उचित उपयोग कर सकते हैं। उन्होंने दूसरों को दुःख से निवृत्ति देने के लिए निर्वाण प्राप्ति के बौद्ध परोपकारी उद्देश्य की बात की। यह बुद्धि का उचित उपयोग है। उन्होंने कहा कि सत्य की शक्ति और अहिंसा के आचरण को धारण करना कोई दुर्बलता का चिह्न नहीं जैसा प्रायः समझा जाता है, अपितु साहस और शक्ति का प्रतीक है। उन्होंने समाप्त करते हुए कहा कि हमें शक्ति का उपयोग दुःख को कम करने और सुख को सुनिश्चित करने के लिए करना चाहिए।
मानवीय मूल्यों के लिए जेकब सोएटनडोप संस्थान के संस्थापक, रबाई एवाराहम सोएटनडोप ने पैनल को बताया कि अपने आम लक्ष्यों को पूरा करने के लिए हमें एक-दूसरे की आवश्यकता है। उन्होंने परम पावन को बताया कि मानवता के बीच एकता की ओर संकेत करते हुए वे सही थे। उन्होंने चेतना की एक परिषद की स्थापना का प्रस्ताव रखा और परम पावन को संस्थापक सदस्य होने के लिए आमंत्रित किया। अंत में उन्होंने कहा कि वह एक ऐसे समय की प्रतीक्षा कर रहे हैं जब यहूदी और मुसलमान, इस्राइली और फिलिस्तीनी, तिब्बती और चीनी एक दूसरे से प्रेम करेंगे।
ब्रदर थियारी - मरी कुराओ ने देखभाल का गुणगान करते हुए उसे सुनना और दूसरों की सेवा करना बताया, जो वे माइंड एंड लाइफ के प्रतीक चिह्न में परिलक्षित होता देखते हैं। उन्होंने कहा कि हम प्रेम करने में चयन कर सकते हैं और चयन करना स्वतंत्र होना है, वही विश्व को परिवर्तित करेगा।
लीबिया महिलाओं की आवाज की संस्थापिका, अला म्यूराबिट ने कहा कि साधारणतया शक्ति और देखभाल परस्पर अनन्य हैं। उन्होंने समझाया कि आस्था से उनका परिचय मस्जिद में नहीं अपितु उनकी माँ द्वारा हुआ, जिन्होंने ११ बच्चों को पाला था। उन्होंने धार्मिक कट्टरपंथियों को मौलिक रूप से आस्था से संबंधित उल्लेख करने की अपनी अनिच्छा को लेकर टिप्पणी की, क्योंकि उनमें से अधिकांश वास्तव में इससे अलग थे। उन्होंने कहा कि राजनीतिक नियंत्रण के एक साधन के रूप में आस्था के उपयोग को ईमानदारी से देखना होगा।
अपनी टिप्पणी जोड़ने के लिए आमंत्रित किए जाने पर परम पावन ने स्मरण किया कि १९७५ के बाद से उन्होंने तीर्थयात्रा की भावना से पूजा के अन्य स्थानों की यात्रा की है। भारत में लद्दाख में हाल ही में उन्होंने एक बौद्ध मंदिर, एक सुन्नी मस्जिद और मैत्री के संकेत के रूप में एक शिया मस्जिद की यात्रा की। उन्होंने टिप्पणी की कि भारत मलेशिया और इंडोनेशिया जैसे देशों में बच्चे अन्य धर्मों के अस्तित्व के बारे में जागरूकता रखते हुए बड़े होते हैं, अतः वे अपने स्वयं की आस्था को लेकर इस तरह के एक संकीर्ण लगाव का प्रदर्शन नहीं करते। उन्होंने विश्वास व्यक्त किया कि निरंतर स्वस्थ प्रयास से अच्छे परिणाम आएँगे।
परम पावन ने पॉलीन टेनगियोरा से कहा कि वे माओरी दृष्टिकोण की बहुत सराहना करते हैं जो अपने पारम्परिक प्रथाओं और अस्तित्व का संरक्षण करते हुए साथ ही आधुनिक शिक्षा प्राप्त कर रहे हैं, जिसे वे आदिवासी लोगों के अस्तित्व के लिए बहुत महत्वपूर्ण मानते हैं।
उन्होंने अपने इस दृष्टिकोण की पुष्टि की कि महिलाओं को और अधिक नेतृत्व की भूमिका निभानी चाहिए और अटकल लगाते हुए कहा कि यदि आज लगभग २०० देशों में से अधिकांश देशों का नेतृत्व महिलाएँ करतीं तो संभवतः वास्तव में विश्व में और अधिक शांति हो सकती थी। इस पर जब सभा में प्रशंसा के स्वर गूँजे तो उन्होंने कहा, "पुरुषों का वर्चस्व बहुत हो चुका।" अला म्यूराबिट ने इस बिंदु को उठाया और कहा कि पुरुषत्व और स्त्रीत्व के पुनर्मूल्यांकन करने की आवश्यकता है। उन्होंने तालियों की गड़गड़ाहट के बीच प्रातःकालीन सत्र का समापन एक चुनौती की सिफारिश से की, जो संरचनात्मक असमानता को लेकर था, जो सभी को समान अवसर प्रदान करेगा, फिर चाहे वह धर्म के आधार पर हो।
अर्थशास्त्री उवे ह्यूज़र ने मध्याह्न सत्र का परिचय दिया, जिसमें शक्ति तथा देखभाल का परीक्षण अर्थशास्त्र और समाज के परिप्रेक्षय से करना था। उन्होंने इस ओर ध्यानाकर्षित किया कि अर्थशास्त्र मूल रूप से सुख का अध्ययन था। उन्होंने कहा कि दो अर्थशास्त्री, जो विश्व को बदलने की बात करते हैं और दो कार्यकर्ता, जो सक्रिय रूप से करते हैं, प्रस्तुति रखेंगे।
विश्व अर्थव्यवस्था के लिए कील संस्थान के अध्यक्ष, डेनिस स्नोवर ने यह कहते हुए प्रारंभ किया कि मनुष्य के रूप में हम विभिन्न हैं पर समान हैं और पूछा कि हम क्यों सहयोग नहीं करते और सुझाया कि हमारी तीन प्रेरणाएँ हैं - स्वार्थ, देखभाल और शक्ति। उन्होंने १९९० के बाद से माल और सेवाओं के महान विस्तार की ओर संकेत किया और कहा कि एक अरब गरीबी से बच गए हैं। जहाँ तक देखभाल का संबंध है हम दूसरों की सहायता करने से लाभान्वित होते हैं। उन्होंने आंतरिक परिवर्तन और बाहरी परिवर्तन को समझने के उपायों का उल्लेख किया, जिसमें भूमिका को पलटना - दूसरों के दृष्टिकोण को अपनाना - और एक आम घर का निर्माण शामिल है।
मध्यवर्ती टिप्पणी में परम पावन ने कहा कि एक प्रशंसा के अतिरिक्त, कि यह महत्वपूर्ण है, उन्हें अर्थशास्त्र का कोई ज्ञान नहीं था। सामान्य तौर पर वह एक समाजवादी दृष्टिकोण के पक्ष में है, लेकिन समान वितरण के मार्क्स के आदर्श के प्रति सहानुभूति रखते हैं। उन्होंने खेद व्यक्त किया कि समकालीन पूंजीवादी समाज में ऐसा प्रतीत होता है कि धनवान और धनवान हो जाते हैं, जबकि निर्धन या तो निर्धन बने रहते हैं अथवा और निर्धन हो जाते हैं।
ब्लवटनिक स्कूल ऑफ गवर्नमेंट के प्रोफेसर सर पॉल कोलियर ने उल्लेख किया कि अर्थशास्त्री अधिकांश रूप से गहन रूप से रूढ़िवादी हैं और १९वीं सदी के भौतिक विज्ञान के प्रारूप को पकड़े बैठे हैं, यह जाने बिना कि विज्ञान क्लासिक मेकानिक्स से क्वांटम भौतिकी तक पहुँच गया है। परम पावन ने यह धारणा जोड़ी कि हम सब अन्योन्यश्रित हैं और इसलिए अब हमारी वैश्विक अर्थव्यवस्था है। परिणामस्वरूप हमें मित्रों की आवश्यकता होती है। हम मित्र वहाँ पाते हैं जहाँ विश्वास है और विश्वास दूसरों के हित की चिंता से आता है।
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अफ्रीकी महिला विकास कोष की सीईओ थियो सोवा की प्रस्तुति समाज में पुरुषों और महिलाओं की भूमिकाओं और उनकी देखभाल की शक्ति को लेकर भावपूर्ण थी। वे महिलाओं और बच्चों के साथ काम करती हैं और उन्होंने कहा कि वैश्विक मूल्य व्यवस्था गड़बड़ा गयी है। उसे परिवर्तित करने के लिए आर्थिक परिवर्तन की आवश्यकता है। उन्होंने स्पष्ट रूप से कहा कि जब महिलाएँ कार्य संभालती हैं तो वास्तव में अच्छे परिणाम होते हैं। उन्होंने एक महिला की कहानी बतायी जो भोर होते ही उठ जाती है, अपने बच्चों के लिए खाना तैयार करती है, उन्हें स्कूल के लिए तैयार करती है, अपने पति को काम के लिए तैयार करती है, घर संभालती है और शाम का खाना बनाती है जब बच्चे और पति लौटते हैं। मित्र जो उसके पति के साथ घर आते हैं, उससे पूछते हैं "और तुम्हारी पत्नी क्या करती है?" और वह उनसे गर्व से कहता है, "कुछ नहीं।"
सोवा ने बल देते हुए कहा कि जब मूल्य विकृत होते हैं, तो महिलाएँ जो करती हैं उसकी कोई पहचान नहीं होती। जब अंतर्राष्ट्रीय समुदाय देखता है कि कहाँ निवेश किया जाए तो वह नियमित रूप से महिलाओं के योगदान को अनदेखा करता है। परिणाम स्वरूप उन्होंने नपे तुले शब्दों में विश्व को एक और अधिक सम भाव से देखने की आवश्यकता का आग्रह किया। सभागार करतल ध्वनि से गूँज उठा और श्रोता उठ कर खड़े हो गए। परम पावन ने उन्हे गले लगाया और कहा कि उन्हें वह प्रस्तुति कितनी अच्छी लगी।
तेजतर्रार कार्यकर्ता और नोबेल शांति पुरस्कार विजेता जोड़ी विलियम्स ने विषय पर बोलते हुए परम पावन और आर्चबिशप डेसमंड टूटू को उद्धृत किया कि पुरुषों ने सब कुछ कबाड़ कर दिया है और अब महिलाओं द्वारा कदम उठाने का समय आ गया है। उन्होंने पीस जाम की बात की, जो एक ऐसा आंदोलन है जो युवाओं को भविष्य को पकड़ने के लिए प्रोत्साहित करता है। उन्होंने कहा कि लोगों को जानने की आवश्यकता है कि उनके मानव अधिकार है पर साथ ही उनके मानवीय उत्तरदायित्व भी हैं।
"हम सबके पास शक्ति है जिसके उपयोग करने या न करने का चयन हम करते हैं," उन्होंने घोषणा की।
अंत में परम पावन ने मानव सुख को बढ़ावा देने, अंतर्धार्मिक सद्भाव को पोषित करने और तिब्बत की शांतिपूर्ण संस्कृति और प्राकृतिक पर्यावरण की रक्षा के लिए काम करने की अपनी तीन प्रतिबद्धताओं को पुनः रेखांकित किया। उन्होंने कहा कि जब भी संभव होता है वे मीडिया के सदस्यों से इनको स्पष्ट करते है, क्योंकि उनमें सकारात्मक मानवीय मूल्यों को प्रोत्साहित करने तथा और अधिक चौंकाने वाला और नकारात्मक से अधिक रिपोर्ट करने की एक जिम्मेदारी है। उन्होंने शिक्षा में सुधार लाने की सक्षमता को लेकर विश्वास को दोहराया क्योंकि भविष्य के लिए वही आशा का असली स्रोत है। केवल शिक्षा के माध्यम से विश्व की जनसंख्या समझेगी कि एक बेहतर, अधिक सुखी और अधिक न्यायोचित विश्व के निर्माण में लोगों को योगदान करने की आवश्यकता है।
उन्होंने समापन में कहा, "हम में से प्रत्येक का परिवर्तन को कार्यान्वित करने का उत्तरदायित्व है, कृपया सोचें कि आप क्या योगदान दे सकते हैं।"