इंडियानापोलिस, इन, संयुक्त राज्य अमेरिका, २६ जून २०१६- संयुक्त राज्य अमेरिका की अपनी वर्तमान यात्रा के अंतिम दिन परम पावन दलाई लामा को महापौरों की अमरीकी सम्मेलन की ८४वीं वार्षिक बैठक में अध्यक्षीय भाषण देने हेतु आमंत्रित किया गया था। जे डब्ल्यू मैरियट होटल में आगमन पर उनका स्वागत सम्मेलन के अध्यक्ष बाल्टीमोर के महापौर स्टेफ़नी रॉलिंग्स ने किया।
सम्मेलन के पूर्ण सत्र में सम्मिलित होने से पहले उन्होंने लेडी गागा के साथ एक बातचीत में भाग लिया, जिसका फेसबुक पर सीधा प्रसारण किया गया। उनसे प्रश्न पूछते हुए, जिसे फेसबुक के माध्यम से प्रस्तुत किया गया था, उन्होंने पूछा कि उन युवा लोगों की किस तरह सहायता की जाए जो विभिन्न प्रकार की समस्याओं जैसे हीन भवना, आत्म-नुकसान इत्यादि का सामना कर रहे हैं। परम पावन ने उत्तर दिया:
"हमारे मानव स्वभाव के करुणाशील होने के बावजूद आधुनिक शिक्षा बाह्य तथा और भौतिक लक्ष्यों पर केंद्रित है। सामना करने के लिए सदैव समस्याएँ रहती हैं पर यदि हमारे चित्त शांत हों तो अंतर पड़ता है। सतही तौर पर हम परेशान हो सकते हैं, पर यदि हम अपने चित्त की गहराई में शांत रहने में सक्षम हों तो उससे अंतर पड़ता है।"
उन्होंने आगे कहा, "हम सामाजिक प्राणी हैं, तो हमारा भविष्य बाकी के समुदाय पर निर्भर करता है। इसलिए, प्रेम और करुणा जैसे आंतरिक मूल्यों पर अधिक ध्यान देना सही दृष्टिकोण हैं।"
एक अन्य प्रश्नकर्ता जानना चाहता था कि ध्यान का सबसे फलदायी प्रकार कौन सा है और परम पावन ने समझाया कि दो प्रकार के हैं। एक शमथ ध्यान, जो एक वस्तु केन्द्रित होता है या उदाहरणार्थ चित्त की स्पष्टता पर। परन्तु ध्यान का एक और प्रकार विश्लेषणात्मक है जिसमें विषय पर गहनता से चिन्तन किया जाता है। परम पावन ने कहा कि व्यक्तिगत रूप से वे विश्लेषणात्मक ध्यान को और अधिक प्रभावी और अधिक संतोषजनक पाते हैं।
यह पूछे जाने पर कि इस हिंसक विश्व में किस तरह शांति खोजी जाए, परम पावन ने सुझाव दिया कि यह बहुत सहायक होगा कि यदि वस्तुओं को एक व्यापक दृष्टिकोण से देखा जाए। कोई वस्तु जो निकट से अत्यंत भयावह प्रतीत होती है वह कम भयानक लग सकती है यदि हम कुछ कदम पीछे हट जाएँ। यहाँ तक कि आपको उसमें कुछ सकारात्मक पहलू भी मिल सकते हैं।
उन्होंने कहा, "जो कुछ भी हो आशा और आत्मविश्वास आवश्यक हैं।"
अमेरिकी टेलीविजन व्यक्तित्व और नए पत्रकार एन करी ने उनका सम्मेलन मंच पर अनुरक्षण किया, जहाँ परम पावन ने आसन ग्रहण किया, जबकि उन्होंने सभा को परम पावन का परिचय दिया। उन्होंने इन अस्थिर समयों की बात की जब लोगों को लगता है कि हमारा विश्व प्रकटित हो रहा है।
"फिर वहाँ एक व्यक्ति आता है जो कहता है कि उसका धर्म दया है। वो एक ऐसे हैं जिन्होंने १६ वर्ष की आयु में अपनी स्वतंत्रता खो दी, २४ में अपना देश खोया और एक शरणार्थी बन गए। वे एक ऐसे हैं जिन्होंने शास्त्रीय बौद्ध ग्रंथों का अध्ययन भली भांति अध्ययन किया है, पर आधुनिक विज्ञान के बारे में भी उत्सुक है। वे विज्ञान को उद्धृत करते हैं कि आधारभूत मानव स्वभाव करुणाशील है और वस्तुओं को ऐसे आधार के रूप में देखते हैं जिन पर हम आशा निर्मित कर सकते हैं।"
परम पावन से संबोधन का अनुरोध करने से पहले महापौर रॉलिंग्स - ब्लेक ने लुइसविल, केंटकी के महापौर गैरी फिशर और उनकी लुइसविल को करुणा का नगर घोषित करने की पहल और एनाहेम कैलिफोर्निया के महापौर टॉम टेट जिन्होंने एनाहेम को दया का शहर बनाया है पर दो लघु वीड़ियो देखने के लिए सभा को आमंत्रित किया। परम पावन ने इन दोनों शहरों की यात्रा की थी और महापौरों को उनके कार्य में प्रोत्साहित किया जिसमें शिक्षा पर विशेष ध्यान भी शामिल है।
जब परम पावन ने मंच पर कदम रखा तो श्रोता जिनमें २०० से अधिक महापौर थे, उठ खड़े हुए और उन्होंने उनसे कहाः
"आराम से बैठ जाएँ। मुझे औपचारिकता पसंद नहीं। यहाँ मुझे आमंत्रित करने के लिए धन्यवाद। इस महान देश के इतने महापौरों से भेंट करना एक महान सम्मान की बात है। मैं सदैव संयुक्त राज्य अमेरिका को मुक्त विश्व के नेता के रूप में सोचता हूँ। यह राष्ट्र तकनीकी नवाचार के लिए जाना जाता है। आपके सिद्धांत स्वतंत्रता, लोकतंत्र और मुक्तता हैं, और ये गुण सौहार्दता, दूसरों के प्रति सम्मान और दूसरों के हित की चिन्ता से संबंधित हैं। ये नारे नहीं अपितु चित्त के व्यवहार से संबंधित हैं। अतः मुझे आशा और विश्वास है कि यह देश एक अधिक करुणाशील विश्व के निर्माण में नेतृत्व कर सकता है।
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"इस छोटी सी नीले ग्रह पर हम जलवायु परिवर्तन के प्रभावों का सामना कर रहे हैं, हमारी जनसंख्या बढ़ रही है और प्राकृतिक संसाधनों में गिरावट आ रही है। ऊपर से हम अन्य समस्याओं का सामना कर रहे हैं, कठिनाइयाँ, जो हमने स्वयं के लिए निर्मित की हैं। कोई भी समस्याओं का सामना नहीं करना चाहता है, पर फिर भी बहुत अधिक आत्म केन्द्रित और दूसरों के विषय में पर्याप्त रूप से चिंतित न होने के कारण हम समस्या निर्माण करते हैं। हम लोगों को 'हम' और 'उन' में विभाजित करते हैं जो संघर्ष और कभी कभी युद्ध की ओर ले जाता है।
"२०वीं शताब्दी भारी हिंसा द्वारा चिह्नित की गई थी। कुछ इतिहासकारों का कहना है कि २०० अरब लोग बुरी तरह से मारे गए थे। यदि इसका परिणाम एक बेहतर विश्व के बनने में हुआ होता तो कुछ सुझाव दिया जा सकता है कि इसमें कुछ मतलब था, पर ऐसा नहीं है। अतः हमें क्रोध, ईर्ष्या और आत्मकेन्द्रितता जैसी विनाशकारी भावनाओं को संबोधित करना है, जो कि हमारी समस्याओं का स्रोत हैं। हमें करुणा की अपनी आधारभूत की मानवीय प्रकृति का विकास करना है।"
परम पावन ने कहा कि हम सब अपने माँ के गर्भ में अपने जीवन का प्रारंभ करते हैं। एक बार जब हमारा जन्म होता है तो वह स्नेह के साथ हमारी सुरक्षा करती है। बाद में, एक शांतिपूर्ण चित्त का होना हमारे शारीरिक स्वास्थ्य में योगदान देता है, जबकि कुछ वैज्ञानिकों का कहना है निरंतर भय और चिंता हमारी प्रतिरक्षा प्रणाली को दुर्बल करता है। उन्होंने कहा कि उनके अपने संबंध में उनके मित्र कहते हैं कि उनका चेहरा ६० के एक व्यक्ति आदमी की तरह लग रहा है न कि ८१ वर्ष का और इसका कारण यह है कि उनका चित्त शांत है। एक ओर अच्छा दिखना ठीक है, पर उससे कहीं महत्वपूर्ण सौहार्दता का आंतरिक सौंदर्य है।
उन्होंने कहा कि हर किसी को एक शांत चित्त के अनुभव के लिए उपाय खोजने की आवश्यकता है। उन्होंने उल्लेख किया कि वर्तमान शिक्षा व्यवस्था में आम मानवीय मूल्यों को प्रस्तुत करने का कार्य चल रहा है। अपने बैग से एक 'सिटी ऑफ काइंडनेस' का बटन निकालते हुए उन्होंने उल्लेख किया कि लुइसविल, करुणा का शहर सिटी और एनाहेम, दयालुता का शहर एक महान प्रेरणा हैं।
"उनके प्रयास मुझे बहुत साहस देते हैं कि एक उज्जवल भविष्य बनाने के लिए प्रयास किए जा रहे हैं। मैं इन परियोजनाओं को पूरा होने की आशा नहीं रखता पर हमें करुणा लागू करने के लिए व्यावहारिक कदम उठाने की आवश्यकता है, न केवल सिद्धांत में अपितु व्यवहार में भी। मुझे लगता है कि आप इस ओर एक महत्वपूर्ण योगदान दे सकते हैं और फिर कई देश आपके उदाहरण का अनुसरण करेंगे।"
लेडी गागा ने, जो परम पावन ने कहा था, उसे दयालुता के एक भावपूर्ण रूप में दोहराया।
"दयालुता के विषय में एक सच्ची शानदार बात यह है कि यह निःशुल्क है। आप देते ही रह सकते हैं और प्राप्त करते रह सकते हैं और यह स्रोत कभी नहीं सूखता।"
उन्होंने देश में सद्भाव के अभाव की बात की और कहा कि उसके उपचार के लिए दया सबसे सस्ता तरीका है जिसका बाद में प्रभाव अनमोल होता है। सह पैनल सदस्य, उद्यमी और परोपकार में लगे फिलिप अंशुट्ज़ ने इस पर कहा कि टॉम टेट अपना महापौर का चुनाव दया का मंच चुनते हुए लड़े थे और विजय प्राप्त की। "यह व्यावहारिक लोगों का एक कक्ष है," उन्होंने कहा। "दयालुता ऐसा है जिसका आप लोग सभी उपयोग कर सकते हैं।"
परम पावन ने अपने स्वयं के अनुभव से कुछ कहा:
"जब आप उपचार प्राप्त करने के लिए अस्पताल में होते हैं तो बहुत अंतर पड़ता है, जब चिकित्सक और सहयोगी कर्मचारी आपके पास एक मुस्कान और दया भाव लिए आते हैं। यह आपके चित्त को सहज कर देता है। जब वे कठोर और उदासीन होते हैं और आपका उपचार इस तरह करते हैं जैसे कोई मशीन ठीक कर रहे हों तो आप चिंतित और आशंकित अनुभव करते हैं।"
महापौरों से सीधे बोलते हुए लेडी गागा ने उनसे आग्रह किया कि वे लोगों के जीवन पर एक शांत प्रभाव डालें। क्षमा के विचार को स्पष्ट करते हुए परम पावन ने लोग जो गलत कार्य करते हैं और जो व्यक्ति उसे करता है उसके बीच अंतर करने का सुझाव दिया। उन्होंने कहा कि जब लोग आपके साथ बुरा व्यवहार करें या आपका लाभ उठाएँ, तो उसका विरोध करना उचित है। जो महत्वपूर्ण है वह यह कि उस व्यक्ति, आपका साथी, मानव के प्रति आप अपनी करुणा न खो दें, जो कर रहा है।
निर्णय लेने का प्रश्न, कठिन निर्णय, उठाया गया। परम पावन ने सलाह दी:
"अपने चित्त को शांत रहने दें और फिर स्पष्टता के साथ जो निर्णय लेना आवश्यक हो उसे तय करें।
मध्याह्न भोजन के पश्चात परम पावन ने वह यात्रा प्रारम्भ की जो उन्हें कल भारत वापस लेकर आएगी।