ठिकसे, लद्दाख, जम्मू एवं कश्मीर, भारत, ११ अगस्त २०१६ - आज प्रातः नभ मेघाच्छन्न था जब परम पावन दलाई लामा ठिकसे के प्रवचन स्थल के लिए गाड़ी से रवाना हुए, जहाँ हज़ारों की संख्या में लोग प्रवचन सुनने, दीर्घायु अभिषेक प्राप्त करने और परम पावन की दीर्घायु के लिए समर्पण तथा प्रार्थनाओं के लिए एकत्रित हुए थे। परम पावन ने अपने बीच एक थाई भिक्खु की उपस्थिति की घोषणा करते हुए प्रारंभ किया, जिनसे वे एक दिन पूर्व मिले थे ।
"वह पालि परम्परा का अनुसरण करते हैं जिसने सर्वप्रथम चार आर्य सत्य और ३७ बोध्यांगों को अभिलिखित किया - सभी बौद्ध शिक्षाओं का आधार। हम भी विनय का पालन करते हैं, विहारीय अनुशासन के नियम, जो आम हैं। निश्चित रूप से पालि तथा संस्कृत परम्परा दोनों बौद्ध धर्म के त्रिपिटक और तीन अधिशिक्षाओं: शील, ध्यान और प्रज्ञा को मानते हैं ।
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"यद्यपि ये हमारी परम्परा के लिए भी आधारभूत हैं, परन्तु हमने कहीं न कहीं इष्टदेव योग अभ्यास के पक्ष में उन्हें अनदेखा कर दिया। पर वे तांत्रिक अभ्यास के लिए आवश्यक आधार हैं। इष्टदेव योग उसी समय प्रभावशाली होगा जब हम बोधिचित्तोत्पाद और शून्य की समझ के अभ्यासों का विकास करेंगे।"
परम पावन ने आगे कहा कि श्रद्धा होना पर्याप्त नहीं है, बुद्ध देशनाओं का अनुसरण करने के लिए तर्क व समझ की आवश्यकता होती है, जिसके बिना बौद्ध धर्म विश्व में लंबे समय तक नहीं बना रह सकता। उन्होंने आगे कहा कि वे पथ क्रम के दृष्टिकोण के क्रम में परिवर्तन करने की इच्छा रखते हैं और आध्यात्मिक गुरु पर निर्भर होने के स्थान पर विपश्यना से आरंभ करेंगे। पारंपरिक आदेश का पालन और सुझाव कि अगर आप लामा के निर्देश का पालन नहीं करते तो आप नरक जाएँगे, से पालन करने वालों के हृदय उत्साह के स्थान पर भय से भर जाएँगे। परम पावन ने कहा कि दुख और इसके समुदय के विषय में बुद्ध की शिक्षाओं का उद्देश्य भय तथा व्याकुलता उत्पन्न करना नहीं है। उनके सच्चे मार्ग के पालन से निरोध की प्राप्ति की व्याख्या आनन्द का स्रोत है।
परम पावन ने स्पष्ट रूप से कहाः
"मैं आप से ईमानदारी से तथा सीधे कह रहा हूँ। तिब्बत के मुद्दे और बुद्ध धर्म को जीवंत रखने के संबंध में हम एक महत्वपूर्ण मोड़ पर हैं। चूँकि आप बुद्ध की शिक्षाओं के प्रति श्रद्धा जताते हैं, मैं आग्रह करता हूँ कि आप अध्ययन करें।"
परम पावन ने टिप्पणी की कि बोधिचित्तोत्पाद और शून्यता को समझने वाली प्रज्ञा के विकास से हम अपनी आत्म पोषण की प्रवृति और अस्तित्व के यथार्थ की भ्रांति की अति का सामना कर सकते हैं। उन्होंने कहा कि वे चार आर्य सत्यों के संदर्भ में चार स्मृत्युपस्थानों की प्रतिस्थापना में संलग्न होना सहायक समझते हैं, जैसे कि काय, वेदना, चित्त और धर्म का स्मृत्युपस्थान क्रमशः दुःख सत्य, समुदय सत्य, निरोध सत्य और मार्ग सत्य की ओर ले जाता है।
धर्म स्मृत्युपस्थान को मार्ग सत्य के साथ जोड़ने पर शून्यता की प्रत्यक्ष समझ प्राप्त होती है, जिसके विषय में उन्होंने कहा कि नागार्जुन संदर्भ देते हैं जब वे कहते हैं कि "शून्यता द्वारा प्रपञ्च का अंत होता है।" खुनु लामा तेनज़िन ज्ञलछेन ने इसे इस रूप में स्पष्ट किया कि "शून्यता के अंदर प्रपञ्च का अंत होता है।" जे चोंखापा भी लिखते हैं कि जब एक योगी शून्यता में पूर्ण समापत्ति प्राप्त करता है तो उसके चित्त के समस्त क्लेशों का उसी के चित्त की शून्यता की प्रकृति में विलयन हो जाता है, वे कहीं और नहीं जाते, पर केवल शून्यता क्षेत्र में विलीन हो जाते हैं। परम पावन ने समाप्त कियाः
"स्व चित्त की शून्यता पर ध्यान करना घट जैसे किसी बाह्य वस्तु की शून्यता पर ध्यान करने से कहीं अधिक प्रबल तथा महत्वपूर्ण है। यह आपके अपने यथार्थ की धारणा के संबंध में आधारभूत विकृतियों का प्रतिकार करता है। यदि आपकी शून्यता की अनुभूति बोधिचित्त के साथ जुड़ी हो तो आप बुद्धत्व प्राप्त कर सकते हैं। और इष्टदेव योग अभ्यास को प्रभावी बनाने के लिए हमें बोधिचित्त और शून्यता को समझने वाली प्रज्ञा की आवश्यकता है।"
परम पावन ने बोधिपथ प्रदीप के पाठ को वहाँ से जारी किया जहाँ यह बुद्धत्व के लिए इच्छा को विकसित करने की व्याख्या करता है। बोधिचित्तोत्पाद के अनुष्ठान की तैयारी करते हुए उन्होंने समन्तभद्रचरी प्रणिधान से सप्तांग प्रार्थना के पाठ का नेतृत्व कियाः
जो कुछ भी कुशल मैंने अर्जित किए हैं,
वन्दना, पूजा, देशना, अनुमोदना
अध्येषणा तथा याचना से
मेरे द्वारा संचित सभी शुभ द्वारा मैं बुद्धत्व की प्राप्ति की परिणामना करता हूँ
प्रणिधान बोधिचित्त और प्रस्थान बोधिचित्त के उत्पाद अनुष्ठान के पूर्व परम पावन ने साधारण लोगों में रुचि रखने वालों को उपासक/उपासिका के संवर प्रदान किए। उन्होंने बोधिसत्व संवर कहाः
मैं त्रिरत्न में शरण लेता हूँ।
मैं वैयक्तिक रूप से सभी अकुशलों की देशना करता हूँ।
मैं सभी सत्वों के गुणों की अनुमोदना करता हूँ।
मैं बुद्ध की प्रबुद्धता को हृदय में ग्रहण करता .......
जैसे वे दोहरा रहे थे तो उन्होंने अपने श्रोताओं को बोधिसत्व के संवर के महत्व पर विचार करने के लिए कहाः
परम प्रबुद्धता की प्रेरणा अर्जित करने के बाद
मैं सभी सत्वों को मेरे अतिथि रूप में आमंत्रित करूँगा
तथा मैं बोधिसत्वों के आनन्ददायी अभ्यास में रत होऊँगा ....
उन्होंने उन्हें स्मरण कराया कि उन्हें १८ मूलापत्तियाँ के विषय में तथा ४६ दुष्कृत के विषय में जानना चाहिए जिनसे बचना बोधिसत्व संवर है, परन्तु बल दिया कि उन सभी का सार स्वार्थ पर अंकुश लाना है। उन्होंने उनसे कहा कि वे हज़ारों लोगों को प्रणिधान बोधिचित्तोत्पाद के लिए, बोधिसत्व संवर ग्रहण करने और महान बोधिसत्व चर्या में प्रवेश कराने हेतु प्रोत्साहित करने में सक्षम होने के कारण कितना भाग्यवान अनुभव कर रहे हैं।
परम पावन ने दीर्घायु अभिषेक प्रदान किया - श्वेत तारा का चिन्ताचक्र। उन्होंने सलाह दी कि व्यवहारिक स्तर पर दीर्घायु, अच्छे तथा स्वस्थ जीवन को बनाए रखने पर निर्भर करता है। परन्तु एक आध्यात्मिक दृष्टिकोण से, बोधिचित्त और शून्यता को जानने वाली प्रज्ञा हमें बाधाओं से सुरक्षित करती है तथा आध्यात्मिक विकास के अनुकूल परिस्थितियों के उत्पाद में सहायक होती है।
"यदि आप और अधिक मित्र चाहते हैं तो आपको बोधिचित्त का विकास करना चाहिए" उन्होंने कहा, "उनके लिए खोज में जाने की बजाय आप उन्हें अपनी ओर आकर्षित करेंगे। यदि आप लोगों में दुश्मन बनाना पसन्द करते हैं तो उनके प्रति दुर्भावनापूर्ण विचार उत्पन्न करें और वे स्वाभाविक रूप से आपके प्रतिकूल होंगे।"
"जो सबसे महत्वपूर्ण है वह अपने चित्त के परिवर्तन को प्राप्त करना है। इन दो दिनों में जो प्रवचन मैंने दिए हैं उनका उद्देश्य यही है।"
दिन के कार्यक्रमों को समाप्त करने के लिए, ठिकसे रिनपोछे ने सोलह अर्हतों के अनुष्ठान से संबंधित इस प्रार्थना में, कि परम पावन दीर्घायु हों, भिक्षुओं, भिक्षुणियों तथा लद्दाखी साधारण लोगों के समुदाय का नेतृत्व किया।
कल परम पावन एक भिक्षुणी विहार, एक मस्जिद और लमडोन स्कूल का दौरा करेंगे जो सभी ठिकसे के आस-पास हैं।