थेगछेन छोलिंग, धर्मशाला, भारत, २७ मई २०१६ - एक खिली सुबह को, वर्ष के समय के लिए एक आरामदायक तापमान पर, उत्सुक जनमानस, जिनमें से अधिकांश तिब्बती थे, चुगलगखंग के बगीचे में आज प्रातः सिक्योंग लोबसंग सांगे के द्वितीय शपथ ग्रहण को देखने हेतु एकत्रित हुए थे।
मंत्री, पूर्व मंत्री तथा तिब्बती जनप्रतिनिधि सभा और केन्द्रीय तिब्बती प्रशासन के कर्मचारी मंदिर के नीचे बरामदे पर बैठे थे, जबकि जनता प्रांगण में बैठी थी। उस समय उमंग की एक लहर दौड़ गई जब परम पावन के निवास का द्वार खुला और वे सिक्योंग लोबसंग सांगे और सेवानिवृत्त हो रहे अध्यक्ष पेनपा छेरिंग के साथ बाहर निकले।
टिब्बटेन इंस्टिट्यूट ऑफ पर्फामिंग आर्ट्स (टीपा) के सदस्यों ने तिब्बती और भारतीय राष्ट्रगान के गायन का नेतृत्व किया। नमज्ञल महाविहार के भिक्षुओं ने शरणगमन तथा मंगलाचरण छंदों का पाठ किया। जब चाय और मीठे चावल परोसे जा रहे थे तो टीपा कलाकारों ने गान व नृत्य प्रस्तुत किया।
सिक्योंग को मुख्य न्याय आयुक्त, श्री कर्ग्यु दोन्डुब ने पद एवं गोपनीयता की शपथ दिलाई। इसके बाद उन्होंने, कशाग के सदस्यों, मुख्य न्याय आयुक्त तथा संसद के सदस्यों ने परम पावन को पारम्परिक रेशमी स्कार्फ प्रस्तुत किया।
अपने संबोधन में जो पहले उन्होंने भोट भाषा में और फिर अंग्रेजी में दिया, सिक्योंग ने उल्लेख किया कि यह उनके लिए कितना महत्व रखता है कि परम पावन दलाई लामा, जो तिब्बतियों के लिए हर स्थान पर, किन्तु तिब्बत में विशेष रूप से, आशा की एक किरण और करुणा के अवतार हैं, ने आकर समारोह की शोभा बढ़ाई। उन्होंने कहा कि नया कशाग एकता, सृजनशीलता और आत्मनिर्भरता को बनाए रखने का कार्य जारी रहेगा। उन्होंने दोलज्ञल दल के भेदभाव के आरोपों को खारिज कर दिया। उन्होंने अपने प्रशासन के मध्यम मार्ग दृष्टिकोण करने के पालन की पुष्टि की। उन्होंने जोर देकर कहा कि तिब्बत और निर्वासन दोनों में तिब्बतियों की पहली प्राथमिकता शिक्षा थी।
परम पावन की उक्ति का पालन करते हुए कि श्रेष्ठ की आशा रखते हुए सबसे बुरी स्थिति की तैयारी करते रहो, उन्होंने प्रकट किया जिसे वे एक ५/५० की नीति बताते हैं। उन्होंने आगामी पाँच वर्षों में परम पावन के तिब्बत लौटने की उनकी प्रतिज्ञा को दोहराया, परन्तु तिब्बतियों से उस लक्ष्य पर डटे रहने के लिए कहा, फिर चाहे ५० वर्ष ही क्यों न लग जाएँ। उन्होंने भारत की जनता और सरकार के प्रति और साथ ही हिमाचल के लोगों और हिमाचल प्रदेश की सरकार के प्रति भी तिब्बतियों का आभार व्यक्त किया। अंत में उन्होंने परम पावन की दीर्घायु की प्रार्थना तथा उनकी इच्छाओं की पूर्ति और इस आशा के साथ कि तिब्बती शीघ्र ही एक साथ हों अपने संबोधन को समाप्त किया।
परम पावन ने सभी अतिथियों का अभिन्नदन करते हुए अपना संबोधन प्रारंभ किया। उन्होंने कहा:
"तिब्बत, तिब्बती पठार के ऊँचाई के कारण विश्व की छत के रूप में जाना जाता है, परन्तु हमारी समृद्ध धार्मिक परम्पराओं को देखते हुए हम कह सकते हैं कि यह संस्कृति का भी एक शिखर है। मैं यह अपने अंध विश्वास की भावना के कारण नहीं कह रहा, परन्तु वैज्ञानिकों और विद्वानों, साथ ही अन्य बौद्ध परम्पराओं के अनुयायियों के मध्य पाए गए समर्थन के आधार पर कह रहा हूँ।
"नालंदा परम्परा की एक विशिष्टता, जो शांतरक्षित ने तिब्बत को दी और जिसके हम संरक्षक हैं, वह यह सुझाव है कि हम सिद्धांत का परीक्षण उस रूप में करें जैसा एक सुनार सोने का परीक्षण करता है। हमें केवल वही स्वीकार करना चाहिए जिसे हमने तर्क व अनुभव के माध्यम से स्वयं को प्रमाणित किया है।
"विश्व में अन्य धार्मिक परम्पराएँ हैं जिनमें से प्रत्येक कई लोगों के लिए बहुत लाभकारी रही हैं परन्तु वे संस्थापक के शब्दों को स्वीकार करते हुए आस्था पर आश्रित हैं। नालंदा परम्परा, जो तिब्बत में बनी हुई है वह शंका, कारण और तर्क को प्रोत्साहित करते हुए अद्वितीय है। इसके हमारे चित्त और भावनाओं के साथ व्यवहार करने के दृष्टिकोण ने आधुनिक वैज्ञानिकों की रुचि और सम्मान को आकर्षित किया है। तो यह कुछ ऐसा है जिसका योगदान हम व्यापक विश्व में कर सकते हैं।"
तिब्बत में तिब्बतियों के साहस, जिसे वे तिब्बती लोगों की अद्भुत तथा दृढ़ भावना कहते हैं, की प्रशंसा करते हुए उन्होंने उन्हें अहिंसा पर दृढ़ बने रहने के लिए बधाई दी तथा टिप्पणी की कि निर्वासन में रह रहे लोगों को भी उसी तरह की दृढ़ता बनाई रखनी चाहिए। उन्होंने कहा कि भौतिक विकास आवश्यक है, पर यदि वह शिक्षा का प्राथमिक केंद्र बन जाए तो यह न तो पूर्ण संतुष्टि दे पाएगा और न ही बेईमानी और भ्रष्टाचार के लिए एक समाधान खोज पाएगा। उन्होंने कहा कि नैतिक सिद्धांत की एक सामान्य कमी को देख उन्हें समकालीन शिक्षा में धर्मनिरपेक्ष नैतिकता के विचार और उन्हें शामिल करने को बढ़ावा देने प्रेरणा मिली है।
उन्होंने सुझाया हाल में हुए तिब्बती समुदाय में क्षेत्रीय दरार का कारण उचित नैतिक सिद्धांतों की कमी है, जिसने उन्हें दुखी किया। उन्होंने कहा:
"ईमानदार और पारदर्शी रहते हुए हमें आत्मविश्वास प्राप्त होगा। क्षेत्रीय विभाजनकारी भावना अदूरदर्शिता का परिणाम है। ७ वीं, ८वीं और ९वीं सदी में तिब्बत के तीनों प्रांत एक थे। तिब्बतियों ने एक ही लिपि का उपयोग किया तथा जो कांग्यूर और तेंग्यूर में लिखा था उसका अनुपालन किया जो आम तिब्बती भाषा में लिखा जाता है। हमारी एकता में विभाजन होने देना एक गलती है। अच्छे और बुरे समय में सभी तीन प्रांतों के लोगों को साथ रहना चाहिए। यह हर किसी का सच है नेताओं से लेकर आम लोगों तक।
"आप में से जो लोग लामा, गेशे और धार्मिक अभ्यासी हैं, आपको भी स्मरण रखना चाहिए कि जिस भी किसी विशिष्ट परम्परा का आप पालन करें, उन सबका स्रोत नालंदा परम्परा में है। हमारे बीच के अंतर अपेक्षाकृत सतही हैं। हमारी सभी परम्पराओं ञिङमा, सक्या, कर्ग्यू, जोनंग और गेलुग ने महान आचार्यों को जन्म दिया है। जब हम धर्म के विषय में बात करते हैं, तो हमें व्यवहार में उसके प्रति निष्ठावान होने की आवश्यकता है।
"यदि आप मुझे अपना मित्र मानते हैं तो कृपया मैंने जो कहा है उस पर ध्यान दें।"
प्रेस द्वारा तस्वीरें लिए जाने के पश्चात परम पावन मुस्कुराते और रास्ते में पुराने मित्रों का अभिनन्दन करते हुए बगीचे से अपने निवास के द्वार से होते हुए लौटे।