देहरादून, उत्तराखंड, भारत, ६ अप्रैल २०१६ - जब आज प्रातः परम पावन दलाई लामा राजपुर हैलीपैड पर उतरे तो युवा तथा वृद्ध तिब्बती, आम लोगों के साथ भिक्षु और भिक्षुणियाँ सड़क पर कतारबद्ध होकर उनके अभिनन्दन हेतु खड़े थे। एक छोटी सी ड्राइव के पश्चात वे अपने गंतव्य वेलनेस सेंटर पहुँचे जो मसूरी मार्ग से किंचित हटकर २१ एकड़ वाले मलसी एस्टेट पर है।
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जैसे ही उन्होंने गाड़ी से बाहर कदम रखा उनके मेजबान, वीर सिंह ने उनका स्वागत किया और उसके बाद केन्द्र के मुख्य भवन किले तक एक विद्युत संचालित यान में उनका अनुरक्षण किया, जहाँ विश्व के कई भागों से ४५० लोग उत्सुकता से उनकी प्रतीक्षा कर रहे थे। परम पावन का संदर्भ बुद्ध के संदेश के मशाल वाहक के रूप में देते हुए वीर सिंह ने संक्षिप्त रूप से वन में उनके आगमन के प्रति हर्ष व्यक्त किया और सभा को संबोधित करने का आग्रह किया।
"भाइयों और बहनों," परम पावन ने प्रारंभ किया, "जब अनलजीत सिंह, जो एक करीबी मित्र बन गए हैं, ने मुझे आने के लिए आमंत्रित किया तो मैं नकार न सका। जो काम आप यहाँ क्या कर रहे हैं, मैं वास्तव में उसकी सराहना करता हूँ और मुझे यह देखकर प्रसन्नता है कि यहाँ लोग दूर-दूर से आए हैं। एक बात जिसको साझा करने के लिए मैं प्रतिबद्ध हूँ वह यह भावना है कि मनुष्य के रूप में हम सब एक समान हैं। अपने आपको आज जीवित ७ अरब मनुष्यों में से एक मानना मुझे सहज लगता है। यदि मैं स्वयं को दलाई लामा के रूप में, जो लोगों से अलग है, सोचूँ तो यह मुझे एकाकी करेगा तथा मेरे और दूसरों के बीच एक व्यवधान उत्पन्न करेगा।
"करीब करीब अपने सम्पूर्ण जीवन के दौरान, मैं हत्याओं और हिंसा का साक्षी रहा हूँ। जब मेरा जन्म हुआ था तो चीन, जापान संघर्ष छिड़ने वाला था और जिन परिस्थितियों ने द्वितीय विश्व युद्ध को जन्म दिया वे यूरोप में सक्रिय थीं। उसके बाद कोरियाई युद्ध और वियतनाम युद्ध आए। इस पूरी अवधि के दौरान कई लोगों ने दुःख झेले और मारे गए। यहाँ और इस समय हम शांति और आराम से हैं, परन्तु अन्य स्थानों में लोग क्रोध तथा अन्य नकारात्मक भावनाओं के कारण मर रहे हैं। यदि सब कुछ इसी तरह चलता रहा तो २१वीं शताब्दी पूर्व की शताब्दी की तरह ही हिंसक होगी। हिंसा सदा दुख लाती है और कोई भी दुःख नहीं चाहता, हम सभी शांति से रहना चाहते हैं।"
परम पावन ने उल्लेख किया कि वैज्ञानिकों और चिकित्सा शोधकर्ताओं ने प्रमाण पाए हैं कि आधारभूत मानव स्वभाव करुणाशील है। उन्होंने स्पष्ट किया कि इसने उन्हें बड़ी आशा दी। परन्तु उन्होंने यह भी कहा कि हम सब माँओं से आए हैं, यहाँ तक कि आतंकवादी और क्रूर तानाशाह भी। यह एक ऐसा अनुभव है कि जो हम सभी में आम है। उन्होंने निश्चित रूप से सुझाया कि बिना अपनी माँओं के प्रेम के हम जीवित नहीं रह पाएँगे।
"समस्या यह है," परम पावन ने टिप्पणी की "कि यद्यपि हमारी मूल प्रकृति, दूसरों के प्रति दयालु, स्नेहमयी और करुणाशील होने की है, और बच्चों के रूप में हम उस तरह होते हैं, पर जैसे ही हम बड़े होते हैं हम इन गुणों को खोते से प्रतीत होते हैं। हम दूसरों के लिए चिन्ता रखने की आवश्यकता का अनुभव नहीं करते और उसके स्थान पर उनका शोषण करते हैं, धौंस जमाते हैं और झूठ बोलते हैं। हम दूसरों के दुःख से अभ्यस्त हो जाते हैं, यहाँ तक कि जब एक बाघ किसी को मार डाले तो वह समाचार बनता है पर जब लोगों के एक दूसरे की हत्या करने की सूचनाएँ मिलती हैं, तो हम उसके प्रति लगभग उदासीन होते हैं।"
उन्होंने हमारी आधुनिक शिक्षा प्रणाली, जो भौतिकवादी लक्ष्यों पर केंद्रित है, को अपर्याप्त बताया। उन्होंने कहा कि आंतरिक मूल्य चित्त की शांति का आधार हैं और अतीत में उनके विषय में सीखने के लिए हम अपनी धार्मिक परम्पराओं पर निर्भर थे। परन्तु आज १ अरब लोग घोषणा करते हैं कि उनकी धर्म में कोई रुचि नहीं है तथा शेष ६ अरब में से कई ऐसे हैं जो या तो निष्ठाहीन हैं अथवा अपने धर्म के पालन में भ्रष्ट हैं और उसका अधिकतर उपयोग विभाजनकारी कार्यों के लिए करते हैं। उन्होंने आगे कहाः
"मेरा मानना है कि विश्व में दूसरों के संकटों की उपेक्षा करते हुए मात्र अपने आराम तथा शांति के विषय में सोचना अनैतिक है। समय आ गया है कि हम गंभीरता से विचार करें कि हम अपने जीवन को किस तरह परिवर्तित करें, प्रार्थना अथवा धार्मिक शिक्षण के माध्यम से नहीं अपितु शिक्षा के माध्यम से। चूँकि नैतिक शिक्षा कभी कभी केवल सतही हो सकती है, हमें आंतरिक मूल्यों की खोज और एक अधिक शांतिपूर्ण विश्व के निर्माण हेतु एक व्यवस्थित दृष्टिकोण बनाने की आवश्यकता है। इसमें भविष्य के विषय में सोच शामिल है और यद्यपि जो आएगा उस अधिक सुखी विश्व को देखने के लिए मैं जीवित न रहूँगा पर वे युवा लोग जो २१वीं शताब्दी की पीढ़ी के हैं, प्रयास करें तो वे एक सुखी विश्व का निर्माण कर सकते हैं और यह सुनिश्चित कर सकते हैं कि अंततः यह शताब्दी और अधिक शांतिपूर्ण होगी।
"हम जिन समस्याओं का सामना करते हैं उनमें से कई हम अदूरदर्शिता और संकीर्णता के परिणामस्वरूप स्वयं निर्मित करते हैं। यह अज्ञानता के बराबर है और हमें इसे दूर करना है। हममें से वे जो पुरानी पीढ़ी के हैं, जिसने इन कई समस्याओं को बनाया है, का उत्तरदायित्व बनता है कि हम इंगित करें कि क्या गलत है और हम किस प्रकार एक अधिक सुखी मानवता की प्राप्ति कर सकते हैं। यह मेरी प्रथम प्रतिबद्धता है, दूसरी का संबंध मेरे एक बौद्ध भिक्षु होने और धार्मिक सद्भाव को बढ़ावा देने से है। दुनिया के सबसे अधिक जनसंख्या के लोकतंत्र भारत ने सैकड़ों वर्षों से दिखाया है कि विभिन्न धार्मिक परम्पराएँ, कंधे से कंधा मिलाकर सद्भाव से रह सकती हैं। एक ज्वलंत उदाहरण सिख धर्म के संस्थापक, गुरु नानक का है, जो एक हिंदू पृष्ठभूमि से आए थे, पर विविधता के प्रति अपना सम्मान प्रदर्शित करने के लिए मक्का की तीर्थयात्रा पर गए। भारत का उदाहरण कुछ ऐसा है जिससे विश्व सीख सकता है।"
यह स्वीकार करते हुए कि वन में स्वास्थ्य के लिए विभिन्न तरीके अपनाए जाते हैं, परम पावन ने ध्यानाकर्षित किया कि जिस तरह अपने शारीरिक स्वास्थ्य को बनाए रखने के लिए हम शारीरिक स्वच्छता का पालन करते हैं, एक स्वस्थ चित्त को बनाए रखने हेतु हमें भावनात्मक स्वच्छता का पालन करने की भी आवश्यकता है। उन्होंने टिप्पणी की कि आंतरिक निरस्त्रीकरण की भावना बंदूक नियंत्रण का सबसे कारगर साधन हो सकता है और यह एक आणवीकरण मुक्त विश्व के लिए भी प्रारंभिक बिंदु होगा। उन्होंने सुझाव दिया कि एक पूरी नई पीढ़ी को शिक्षित और प्रशिक्षित की आवश्यकता होगी कि वे हिंसा का सहारा न लें अपितु संघर्ष और असहमति को हल करने के लिए सदा संवाद की ओर मुड़ें। यदि वह किया जा सके तो यह शताब्दी शांति की एक शताब्दी बनने की आशा रख सकेगी।
श्रोताओं के प्रश्नों के उत्तर देते हुए, उनसे पूछा गया कि दैनिक जीवन में किस तरह अधिक करुणाशील हुआ जा सकता है, परम पावन ने सुझाया कि अपनी भावनाओं के प्रकार्य के प्रति और अधिक परिचित होते हुए, जैसा कि प्राचीन भारतीय मनोविज्ञान में वर्णित किया गया है। उन्होंने बल देकर कहा कि करुणा का विकास शीघ्रता में नहीं किया जा सकता और कहा कि वे ५० वर्षों से इस ओर प्रयत्नशील हैं। उन्होंने कहा कि यह ऐसा नहीं जिसे आप एक स्विच की तरह दबा सकें।
एक अन्य प्रश्नकर्ता ने उन्हें बताया कि उसे वह ऊर्जा पसंद है जो क्रोध अपने साथ लाता है और वे यह जानना चाहते थे कि क्या परम पावन ने कभी सोचा कि क्रोध कभी स्वीकार्य हो सकता है। परम पावन ने उत्तर दिया कि क्रोध कभी कभी ऊर्जा पैदा कर सकता है, परन्तु इसकी मूल प्रकृति अदूरदर्शी अज्ञान है। चूँकि यह एक अवास्तविक दृष्टिकोण पर आधारित है, यह अवास्तविक कार्रवाई प्रदान करती है।
यह पूछे जाने पर कि मरणासन्न व्यक्तियों को किस तरह सांत्वना दी जाए, परम पावन ने कहा कि प्रत्येक स्थिति अलग होती है। परन्तु आप आगामी जीवन के विषय में जो भी विश्वास रखते हों, महत्वपूर्ण बात यह है कि मृत्यु यथासंभव शांतिपूर्ण होना चाहिए। उन्होंने कहा कि क्रोध, भय और आसक्ति से बचा जाना चाहिए। उन्होंने बौद्ध धर्म में उल्लिखित चेतना की सूक्ष्मता के विभिन्न स्तरों का संदर्भ दिया और संक्षेप में उन लोगों का उदाहरण दिया जिनके शरीर नैदानिक मृत्यु के बाद भी कुछ समय के लिए ताजा रहते हैं, क्योंकि उनका ध्यान सूक्ष्मतम चेतना पर केंद्रित रहता है। यह टिप्पणी करते हुए कि मृत्यु का अभी अथवा बाद में आना निश्चित है, उन्होंने कहा कि यदि आपने सार्थक जीवन जिया है तो जब वह आएगी तो भय का कोई कारण न होगा। उन्होंने सार्थक जीवन के विचार को एक बुद्धिमत्ता भरे स्वार्थ के विकास के साथ जोड़ा जिसमें दूसरों की आवश्यकताओं तथा हित को शामिल करने की बात आती है। उन्होंने जोर देकर कहा कि इसके लिए जो कुछ भी हो उसका बुद्धि और तर्क के आधार पर एक और अधिक यथार्थवादी दृष्टिकोण लेना है।
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मध्याह्न भोजन से पहले परम पावन ने तिब्बती हीलिंग सेंटर परिसर का दौरा किया, जो वन में शामिल किया गया है। तिब्बती कर्मचारियों में शामिल कई तिब्बती चिकित्सा एवं ज्योतिष संस्थान से प्रशिक्षित थे। उन्होंने तिब्बती चिकित्सा परंपरा के संरक्षण और साझा करने के लिए उनकी सराहना की, पर साथ ही उन्हें सलाह दी कि जहाँ वे अन्य परम्पराओं से सीख सकते हैं उसके लिए अपने को तत्पर रखें।
एक स्वादिष्ट भोजन परोसा गया, जिसे परम पावन ने अन्य अतिथियों के साथ खाया। वीर सिंह ने पुनः उन्हें आने के लिए धन्यवाद दिया और यह कामना व्यक्त की कि उस अवसर से जो भी पुण्य संभार हुआ है वह परम पावन के दीर्घायु के लिए समर्पित होना चाहिए। समापन में अनलजीत सिंह ने कहा कि वह आशा करते हैं कि जो भी सम्मिलित हुए उन्हें यह दिन जीवन पर्यन्त स्मरण रहेगा। उन्होंने सुझाया कि जब वे अपने कक्ष में लौटें तो प्रत्येक व्यक्ति को एक बात लिखनी चाहिए जो उन्होंने परम पावन के व्याख्यान से सीखा और उसे कार्यान्वित करने की ओर प्रयास करना चाहिए।
जैसे ही नभ में मेघों का गर्जन प्रारंभ हुआ, परम पावन स्थानीय हेलीपैड पर लौट आए जहाँ से उन्होंने वापस नई दिल्ली के लिए उड़ान भरी।