मेयो क्लीनिक, रोचेस्टर एम.एन., संयुक्त राज्य अमरीका, २९ फरवरी, २०१६- आज लीप वर्ष दिवस में मध्याह्न भोजनोपरांत जब परम पावन दलाई लामा अपनी गाड़ी से उतरकर मेयो क्लिनिक के छोटे से प्रार्थनालय की ओर बढ़े तो आकाश उज्ज्वल था परन्तु हवा ठंडी थी। जब वे मुस्कुराते हुए, हाथ जोड़े अभिनन्दन करते हुए गलियारे से गुज़रे तो ५०० में से कई लोग, जिन्होंने इस अवसर पर सीटों के लिए लॉटरी जीती थी, दर्शकों के रूप में वहाँ उपस्थित थे।
अध्यक्ष और मेयो क्लीनिक के सीईओ जॉन नोसवर्थी उनका परिचय देने तथा चिकित्सा में करुणा पर व्याख्यान देने हेतु उन्हें आमंत्रित करने के लिए वहीं उपस्थित थे। जब वे ऐसा कर चुके तो परम पावन ने जोर दिया कि वे उनके बगल में बैठें। इस व्याख्यान का क्लिनिक के इंट्रानेट पर और विश्व भर में सीधा प्रसारण हुआ।
"भाइयों और बहनों, आप सभी से, जो क्लीनिक के कार्य में इतना सकारात्मक योगदान दे रहे हैं, बात करने का अवसर मिलना मेरे लिए एक महान सम्मान की बात है," परम पावन ने प्रारंभ किया। "आप सैकड़ों हज़ारों का उपचार करते हैं जो आपके पास आशा लेकर आते हैं और आप उनकी आशाओं को पूरा करते हैं। उन लोगों की देख-भाल करना, जो शारीरिक और मानसिक पीड़ा में हैं, एक चुनौती है। मैं एक पुराना रोगी हूँ और इस बार मैंने यहाँ एक महीने से अधिक का समय बिताया है जिस दौरान डॉक्टर, नर्स और तकनीशियन सब बहुत दयालु रहे है। अपने पेशेवर कौशल के कार्य के अतिरिक्त आपने मेरा ध्यान रखा है, मेरे विषय में चिंताकुल व मैत्रीपूर्ण रहे हैं। आपसे आज बात करना मेरे लिए एक सम्मान है।"
उन्होंने टिप्पणी की, कि धार्मिक आस्था लम्बे समय से कठिनाइयों का सामना कर रहे लोगों के लिए सांत्वना तथा समर्थन का एक स्रोत रहा है। आस्था मरणासन्न व्यक्ति में भी आशा लाती है। उन्होंने आगे जोड़ा कि उनके पास औपचारिकता के लिए अधिक समय नहीं है और चूँकि मनुष्य रूप में हम सभी समान हैं, हमें एक दूसरे को भाई और बहनों के रूप में सोचने की आवश्यकता है।
"जाति, राष्ट्रीयता, विश्वास और यह कि हम अमीर हैं या गरीब, शिक्षित या अशिक्षित के अंतर हमारी मनुष्य होने की आधारभूत समानता की तुलना में गौण हैं। जब हम ऐसे अंतर पर बल देते हैं तो यह हमारे बीच समस्याओं का कारण बनता है। आधारभूत स्तर पर हम समान हैं। यदि हम आज जीवित ७ अरब मनुष्यों के बीच इस आधारभूत समानता पर बल दें तो यह हमारे बीच की कई समस्याओं को कम करेगा। इसी कारण जिन लोगों से मैं बात करता हूँ उनका 'भाइयों और बहनों' कहते हुए अभिनन्दन करता हूँ।
"यदि मैं ऐसा सोचूँ कि मैं आपसे किस तरह अलग हूँ, मैं एशिया से हूँ, मैं एक बौद्ध भिक्षु हूँ, एक तिब्बती, या यहाँ तक कि मैं परम पावन दलाई लामा हूँ, तो यह हम दोनों के बीच एक दीवार खड़ी करता है जिसके पीछे मैं स्वयं को एकाकी पाता हूँ। जब मैं आप दर्शकों की तरह अपने को एक मनुष्य रूप से सोचता हूँ तो हम दोनों के बीच कोई दीवार नहीं होती। आज के विश्व में यह स्मरण रखना कि सभी ७ अरब एक मानव परिवार के हैं, बहुत महत्वपूर्ण है। मानवता के बीच इसी तरह सद्भाव स्थापित किया जा सकता है। पर इस वास्तविकता के प्रति लोगों को शिक्षित कराने के लिए हमें प्रयास करना होगा।
एक ऐसे रोगी के समक्ष होते हुए जिसे सहायता की आवश्यकता है, आप में से जो इस अस्पताल में चिकित्सा प्रदान करते हैं, पहले यह प्रश्न नहीं करते कि वे कहाँ से आए हैं या वे किस पर विश्वास रखते हैं, आप जाँचते हैं कि उनकी समस्या क्या है और आप उनकी किस तरह सेवा कर सकते हैं और उनका उपचार कर सकते हैं। यदि हम इस तरह का मुक्त व्यवहार अपने सभी संबंधों में लागू कर पाएँ तो प्रत्येक लाभान्वित होगा। करुणा दूसरों को लेकर देखभाल और चिंता की भावना से संबंधित है। जब आप ऐसा करते हैं तो आप रोगी के परिवार तथा मित्रों को भी लाभ पहुँचाते हैं।
"अब मैं आप लोगों के साथ कुछ और अधिक बातचीत करना और आपके प्रश्नों के उत्तर देना चाहूँगा। मैं आपकी टिप्पणियों या फिर आलोचना का भी स्वागत करता हूँ क्योंकि मैं मानता हूँ कि ऐसी चुनौतियों का उत्तर देते हुए ही हम सीख सकते हैं।"
कैथी वुर्ज़र एक स्थानीय जुड़वा शहर की टी वी मेज़बान ने श्रोताओं के प्रश्नों को उनके समक्ष रखने के लिए परम पावन के बगल की कुर्सी ग्रहण की। उन्होने यह पूछते हुए प्रारंभ किया कि दूसरों के प्रति किस प्रकार सम्मान बढ़ाया जाए। परम पावन ने उत्तर दिया कि हम सभी गर्भ में एक ही तरह से बनते हैं। एक नवजात शिशु और माँ स्वाभाविक रूप से एक दूसरे की ओर खिंचते हैं। हमारे साथ भी ऐसा ही है। हम सब भी एक सुखी जीवन जीने की इच्छा रखते हुए समान हैं। इसी आधार पर हम एक दूसरे के साथ सम्मान भरा व्यवहार कर सकते हैं।
उन्होंने कहा कि ऐसे अवसर आते हैं जब आप किसी पर क्रोधित हो सकते हैं और आपके मन में उनके प्रति वैर की भावना हो सकती है। पर संभव है कि आपके क्रोध के कई कारण हों और संभव है कि आपका भी उसमें कुछ योगदान रहा हो। उन्होंने संज्ञानात्मक चिकित्सक हारून बेक की सलाह का उल्लेख किया कि जब आप क्रोधित होते हैं और जिस व्यक्ति पर आप क्रोधित होते हैं वह आपको पूरी तरह नकारात्मक जान पड़ता है, आपको यह स्मरण करना होगा कि उस भावना का ९०% आप का प्रक्षेपण है। क्रोध निश्चित या निरपेक्ष नहीं है। यह परिवर्तनशील है। उन्होंने कहा कि हमारी कई विनाशकारी भावनाएँ अतिशयोक्ति के साथ मिश्रित हैं। मनुष्य के रूप में हमारे पास एक अद्भुत मस्तिष्क है जो हमें वस्तुओं को विभिन्न कोणों से विचार करने के लिए अनुमति देता है और क्रोध जैसी भावनाओं से निपटने का एक तरीका हो सकता है।
यह पूछे जाने पर कि उन लोगों के साथ किस तरह का व्यवहार रखा जाए जिन्हें अपनी बीमारी को स्वीकार करने में कठिनाई होती है, परम पावन ने सलाह दी कि उन्हें शांत करते हुए, उनके प्रति चिंता व्यक्त करते हुए, उनकी तरफ मुस्कुराते चेहरे से देखते हुए और उनमें विश्वास उत्पन्न करते हुए कि उनकी देखभाल में आपसे जो बन पड़ेगा वह आप करेंगे।
सुश्री वुर्ज़र ने टिप्पणी की कि कुछ लोग अपने कैंसर या लाइलाज बीमारी को एक वरदान के रूप देखते जान पड़ते हैं। परम पावन ने उनका उत्तर देते हुए एक तिब्बती की बात की जिन्हे वे जानते थे जिसने अपने डॉक्टर से अपने हालत की सच्चाई बताने को कहा ताकि यदि आवश्यकता पड़े तो वह मृत्यु की तैयारी कर सके। उसने कहा कि कुछ और एक तरह की आत्म छलना होगी।
इस प्रश्न पर कि किस तरह परिचारक अपने रोगियों की देखभाल और अधिक न कर सकने की असमर्थता का सामना करते हैं, परम पावन ने कहा:
"आप यथा संभव दया बनाए रखें। प्रेम भरी दयालुता दिखाना एक मरणासन्न व्यक्ति के उत्साह को बनाए रखने का एक महत्वपूर्ण तरीका है। हममें से कई लोगों का मानना है कि चित्त की सकारात्मक अवस्था, मृत्यु के समय आशावादी बने रहना हमारे आगामी जीवन के लिए महत्वपूर्ण है। ईसाइयों को भगवान का स्मरण करना चाहिए और स्वर्ग जाने के प्रति आश्वस्त महसूस करना चाहिए। निराशा और अवसाद में पड़ना किसी रूप में सहायक नहीं होता।"
उन्होंने आगे कहा कि साधारणतया हमारे क्लेशों को अज्ञानता, वास्तविकता को न समझने से जोड़ा जाता है। इसे समझने के लिए यह सीखना सहायक होता है कि हमारा चित्त और भावनाएँ किस तरह काम करती हैं, और उसके पश्चात कठिन परिस्थितियों से निपटना सरल हो जाएगा।
यह पूछे जाने कि क्या करुणाशील होने के लिए एक निजी ईश्वर में विश्वास करना आवश्यक है, परम पावन ने कहा कि वह समझते हैं कि आस्था रखने वालों के लिए प्रत्येक जीवन ईश्वर निर्मित है, कि ईश्वर अनंत करुणा है और ईश्वर की संतान के रूप में हम में से प्रत्येक के अंदर करुणा की एक चिंगारी है। गैर विश्वासी प्रेम और और करुणा को मात्र धार्मिक गुणों के रूप में देखते हुए उसकी उपेक्षा कर सकते हैं जबकि वास्तव में वे आधारभूत मानवीय मूल्य हैं।
"हमारे बीच बिना प्रेम के परिवार और समुदाय किस तरह खुश रह सकते हैं? हम सामाजिक प्राणी हैं और जो हमें एक साथ लाता है, वह प्रेम है। कोई भी पूरी तरह से एकाकी होकर जीवित नहीं रह सकता, हम एक-दूसरे पर निर्भर हैं। चाहे आप धर्म में विश्वास करें अथवा नहीं, एक मनुष्य के रूप में सुख आपके चित्त की अवस्था से संबंधित है, न केवल आपके विभिन्न ऐन्द्रिक अनुभवों, कि आप क्या देखते, सुनते, चखते तथा स्पर्श करते हैं।"
इस पर ध्यान आकर्षित करते हुए, आपकी इच्छानुसार सभी आरामदायी सुविधाओं के बीच संभव है कि आप दुःखी हों, जबकि गरीबों में कई सुखी और संतुष्ट हैं। परम पावन ने एक भिक्षु की कहानी सुनाई जिनसे वे बार्सिलोना में मिले थे। उसने पहाड़ों में एक साधु के रूप में पचास वर्ष बिताए थे और ब्रेड तथा चाय पर ही जीवित था। जब वे मिले तो परम पावन ने उससे उसके अभ्यास के विषय में पूछा और भिक्षु ने उन्हें बताया कि उसने प्रेम पर ध्यान किया था। और जब उसने उन्हें बताया तो उसकी आँखों में सच्चे सुख तथा संतोष की एक चमक झलकती थी। परम पावन ने निष्कर्ष निकाला कि हमें जो करने की आवश्यकता है वह आंतरिक शांति विकसित करने के लिए अपनी बुद्धि का उपयोग।
इसमें और प्रौद्योगिकी के बीच संबंध के विषय में पूछे जाने पर उन्होंने घोषणा की, कि प्रौद्योगिकी अद्भुत है, पर यह निर्भर करता है कि हम इसे कैसे उपयोग में लाएँ। उन्होंने इंगित किया कि प्राचीन भारतीय चितंन में पाए जाने वाले विज्ञान और दर्शन से भी क्या कुछ सीखा जा सकता है।
यह पूछे जाने पर कि पीड़ा और दुख का सामना करते हुए किस तरह अपना उत्साह बनाए रखा जाए, परम पावन ने टिप्पणी की, कि जो भावनाएँ आंतरिक शांति में योगदान देती हैं रचनात्मक हैं। उन्होंने कहा कि करुणा दो प्रकार की होती है। एक तो जिनसे हमारा परिचय है उनके प्रति एक पक्षपाती चिंता है, पर एक अन्य में इस पहचान की व्यापकता है कि हममें से प्रत्येक एक मनुष्य़ है और उद्देश्य रखता है कि सभी मनुष्यों को सुखी रहना चाहिए। ऐसी सौहार्दता के आधार पर हम दूसरों के कल्याण में योगदान दे सकते हैं। एक अधिक करुणाशील विश्व के सृजन के लिए हमें ऐसे हृदय परिवर्तन की आवश्यकता है।
उन्होंने वैज्ञानिक प्रमाणों का उदाहरण दिया कि शिशु बात करने से पहले सहायक व्यवहार के उदाहरण की ओर झुकाव दिखते हैं और हानिकारक चित्रों से मुँह मोड़ लेते हैं। निष्कर्ष यह है कि आधारभूत मानव स्वभाव सकारात्मक और दयापूर्ण है। इसलिए सौहार्दता और करुणा का विकास कुछ ऐसा है जो हम सब कुछ कर सकते हैं।
जैसे ही श्रोता खड़े हुए और तालियाँ बजाई परम पावन ने अपना आभार व्यक्त किया और जहाँ ठहरे हुए हैं वहाँ गाड़ी से लौटने के लिए उज्ज्वल ठंड में बाहर निकले।