वेस्टमिंस्टर, सीए, संयुक्त राज्य अमेरिका, १९ जून २०१६- गर्म मौसम के बारे में मौसम की चेतावनियों के दूसरे दिन, परम पावन दलाई लामा ने अपने होटल की ठंडक में दक्षिणी कैलिफोर्निया के तिब्बती एसोसिएशन के ४०० सदस्यों के साथ बैठक से दिनारंभ किया। उन्होंने कहा:
"हम अपने २००० वर्षों के इतिहास के सबसे कठिन समय से गुजर रहे हैं। हम केवल आपस में झगड़ा करते थे जिसने तिब्बत के समूचे तीन प्रांतों की हानि की, पर अब हम अपनी संस्कृति और अस्मिता के लिए एक जीवन मौत के संघर्ष का सामना कर रहे हैं। यह हमारे कर्म का परिणाम हो सकता है परन्तु अब तक निर्वासित तिब्बतियों और तिब्बत में रह रहे लोगों में प्रबल भावना बनी हुई है। अन्य निर्वासितों के बीच हमारे साहस और निष्ठा के कारण हमारी अलग पहचान बनी हुई है। रिपोर्ट में कहा गया है कि आप अपने बच्चों को भोट भाषा सिखा रहे हैं। यह अच्छा है और उन्हें अपने धर्म के बारे में शिक्षा देना भी अच्छा है।
"एक पुरातात्विक दृष्टि से, तिब्बती प्राचीन लोग हैं। अमदो में पाए गए पाषाण युग के उपकरणों का ३०,००० वर्ष प्राचीन होने का अनुमान है, छमदो की कलाकृतियां ७००० साल पुरानी हैं, जबकि अन्य जो ङारी में पाए गए हैं वे १०,००० वर्ष पुराने हैं। अब जो महत्वपूर्ण है, वह यह कि हमारी लिपि १००० वर्ष से अधिक प्राचीन है। आज, यह नालंदा पंडितों के विचारों के सम्प्रेषण का श्रेष्ठ माध्यम है - जो एक गौरव की बात है।
"ठिसोंग देचेन की एक चीनी मां थी, तो वह चीन से तिब्बत में बौद्ध धर्म में ला सकती थीं। इसके बजाय उन्होंने मूल स्रोत पहुँचने का चयन किया और शांतरक्षित को भारत से तिब्बत आने के लिए आमंत्रित किया। अपनी उम्र के बावजूद, गुरु पद्मसंभव, जिन्होंने आंतरिक और बाह्य बाधाओं पर काबू किया, की सहायता से समये की स्थापना की। चीनी हशांग ने सुझाया कि अध्ययन करने की कोई आवश्यकता नहीं है परन्तु कमलशील ने अध्ययन, चिंतन और ध्यान के महत्व को स्पष्ट किया, ऐसा दृष्टिकोण जिसे विगत १००० वर्षों से हमने अपनाया है।
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"यही कारण है कि हमें केवल सम्मान के कारण कांग्यूर और तेंग्यूर को वेदी पर नहीं रखना चाहिए। इन ग्रंथों को कंधों पर रखकर आपदा से फसल की रक्षा के लिए खेतों के चारों ओर घूमने की भी प्रथा थी। पर पुस्तकें अध्ययन और पढ़े जाने के लिए हैं। मैं ४० वर्षों से भिक्षुणी विहारों तथा अनुष्ठानिक महाविहारों से शास्त्रों के अध्ययन का आग्रह करता आ रहा हूँ और इस वर्ष हम पूरी तरह योग्य भिक्षुणियों को गेशे मा की उपाधि प्रदान करने जा रहे हैं। मैंने भंडारा, महाराष्ट्र में एक आवास की यात्रा की जहाँ विद्यालय के बच्चों ने मेरे समक्ष शास्त्रार्थ किया। वह शास्त्रार्थ बहुत अच्छा था और मैंने पूछा, कि उन्हें किसने सिखाया था। पता चला कि उनको सिखाने वाली एक भिक्षुणी थी। उन्होंने बच्चों को अच्छा प्रशिक्षण दिया था। इस तरह भिक्षुणियाँ गेशे- मा बनेंगीं, पर गेलोंगमा प्रश्न पर अभी भी कार्य बाकी है। कुछ पश्चिमी नारीवादियों को ऐसा लगता है कि इस विषय पर मैं निर्णय ले सकता हूँ पर यह मेरे अधिकार से परे है। विनय के विषयों का निर्णय केवल महाविहार समुदाय के भीतर के विद्वान कर सकते हैं।
"धर्मशाला और लद्दाख में अब साधारण लोगों के बीच धर्म अध्ययन समूह हैं। इस वर्ष के पूर्वार्ध में रोचेस्टर में मेरी चिकित्सा उपचार के बाद, मैंने मैडिसन में डियर पार्क की यात्रा की। मैंने सिफारिश कि,कि यह शिक्षा का एक अधिक व्यापक केन्द्र बने, जहाँ चित्त और भावनाओं के कार्य का ज्ञान, जो हमारी अपनी परम्परा में है, उसे एक व्यापक हितार्थ पॉल एकमैन और उनकी बेटी के भावनाओं पर किए गए कार्य से जोड़ा जा सके।"
परम पावन ने यह कहते हुए समाप्त किया कि चीन में परिवर्तन अपरिहार्य है। उन्होंने तिब्बती जनप्रतिनिधि सभा के पूर्व अध्यक्ष पेनपा छेरिंग का उत्तरी अमेरिका में अपने अगली प्रतिनिधि के रूप में परिचय दिया। उन्होंने अपने श्रोताओं को सुखी रहने के लिए प्रोत्साहित किया।
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परम पावन के द्यू ञु बौद्ध मंदिर में आगमन पर पारम्परिक छाते और संगीत के साथ स्वागत किया गया। सभी तिब्बती, वियतनामी, अमेरिकी और बौद्ध राष्ट्र गान के लिए खड़े हुए, जिसके पश्चात एक मिनट का मौन ध्यान रखा गया। अपने भाषण में विहाराध्यक्ष श्रद्धेय थिच वियन लि ने आशा व्यक्त की, कि मंदिर विश्व शांति और सुख में योगदान देगा। उन्होंने परम पावन की यात्रा संभव करने के लिए श्रद्धेय तेनजिन दोनदेन के प्रति आभार व्यक्त किया। महापौर ठि टा ने उल्लेख किया कि उनके सुझाव पर वेस्टमिंस्टर का नगर दयालुता का नगर बन गया था। कांग्रेसी एलन लोवेन्थल ने कहा कि यह उनके लिए आनन्द का विषय था कि वे भव्य उद्घाटन समारोह का एक हिस्सा बने जबकि सेन जेनेट गुयेन इस प्रतीक्षा में थे कि मंदिर करुणा और दया का शरण बने।
परम पावन को मुख्य भाषण देने के लिए आमंत्रित किया गयाः
"आदरणीय साथी भिक्षुओं और भिक्षुणियों, भाइयों और बहनों, एक बार पुनः हम साथ तपते सूरज के तले एकत्रित हुए हैं। मैं मात्र बुद्ध शाक्यमुनि की शिक्षाओं का एक विद्यार्थी हूँ विशेषकर नालंदा परम्परा का। मुझे खुशी है कि आप इस मंदिर का निर्माण करने में सक्षम हो पाए। आप में से कुछ मुझ जैसे शरणार्थी हैं। जिस तरह से आपने अपनी वियतनामी संस्कृति और परम्पराओं को बनाए रखा है, मैं उसकी सरहना करता हूँ। मैंने यह विश्व के अन्य भागों में भी देखा है और मैं इसकी सराहना करता हूँ। अमेरिका मुक्त विश्व का अग्रणी राष्ट्र है और आप यहाँ एक बेहतर जीवन की खोज में आए हैं। अमेरिकी सरकार और स्थानीय लोगों ने आपकी सहायता के लिए अपने हाथ बढ़ाए हैं।
"परन्तु ग्रंथों के संरक्षण और बुद्ध धर्म की अनुभूति का केवल एक मार्ग अध्ययन और अभ्यास है। हमें शास्त्रों के पठन व अध्ययन तथा तीन अधिशिक्षाओं के अभ्यास की आवश्यकता है। अन्य कोई और मार्ग नहीं है। हमें जो बुद्ध ने पहले ही सिखाया है उस पर ध्यान देना होगा। मैं लगभग ८१ साल का हूँ, पर मैं अभी भी अपने को विद्यार्थी समझता हूँ। प्राचीन भारतीय परम्पराएँ, जिसने शमथ और विपश्यना के अभ्यासों का विकास किया, ने चित्त और भावनाओं के कार्यों की एक गहन समझ विकसित की है। विनाशकारी भावनाओं से किस प्रकार निपटा जाए और उनका कैसे विकास किया जाए, जो सकारात्मक हैं, ये सब कुछ ऐसे हैं जिन्हें हम आज दुनिया के साथ साझा कर सकते हैं। अतः मैं आपको सुझाता हूँ कि आप इस मंदिर को एक ऐसे केंद्र के रूप में बनाने पर विचार करें जहाँ कोई भी चित्त और भावनाओं के विषय में सीख सकता है और जहाँ अन्य आध्यात्मिक परम्पराओं के सदस्य मिल सकते हैं और एक दूसरे को जान सकते हैं।"
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मंदिर के अंदर परम पावन ने मंगल छंदों का पाठ करते हुए हवा में मुट्ठी भर पुष्प दल बिखेरे। वियतनामी मंत्र जप की गूँज सुनाई पड़ रह थी। उपस्थित तिब्बती भिक्षुओं ने पथ क्रम और हृदय सूत्र का पाठ किया, जिसके बाद पालि में मंगल सुत्त और कोरियाई में और पाठ हुए।
परम पावन ने बुद्ध शाक्यमुनि की वंदना छंद के साथ एक संक्षिप्त व्याख्यान प्रारंभ किया। उन्होंने उल्लेख किया कि वह अन्य बौद्ध परम्पराओं से इतने सारे भाइयों और बहनों को देख कितने प्रसन्न थे। वियतनामी मंत्राचार्य के हाथ में एक तिब्बती घंटे को देख, परम पावन ने कहा कि इसके साथ एक वज्र होना चाहिए जो कि करुणा का प्रतीक है, जबकि घंटा प्रज्ञा का प्रतिनिधित्व करता है। उन्होंने ध्यानाकर्षित किया कि घंटे की ध्वनि न केवल लटकते हुए भाग या किनारे द्वारा होती है। घंटा उसी समय बजता है जब वे एक साथ आते हैं।
"हम ने हृदय सूत्र का पाठ किया," उन्होंने कहा, "जो प्रज्ञापारमिता शिक्षाओं का एक संक्षिप्त प्रतिपादन है जो शून्यता को व्याख्यायित करता है। सूत्र का कथन है कि पाँच स्कंधों का स्वभाव भी स्वभाव सत्ता से हीन हैं, जो कि धर्म नैरात्म्य के साथ पुद्गल नैरात्म्य की भी घोषणा है। हृदय सूत्र का सार यह है कि 'सभी बुद्ध जो सम्यक रूप से तीन कालों में निवास करते हैं, प्रज्ञापारमिता पर आश्रित होकर सम्यक संबोधि प्राप्त करते हैं।' शून्यता की समझ जो बोधिचित्त से पूरित है वह प्रज्ञा पारमिता का आधार है।
शून्यता क्या है? रूप शून्यता है, शून्यता रूप है। यदि हम रूप का परीक्षण और विश्लेषण करें तो हम कुछ भी ऐसा नहीं पाते जो आंतिरक रूप से अस्तित्व रखता हो। यह अन्य कारकों पर निर्भर होकर अस्तित्व रखता है। दृश्य और शून्यता एक-दूसरे के पूरक हैं। प्रथम धर्म चक्र प्रवर्तन के दौरान पुद्गल नैरात्म्य की शिक्षा दी गई थी, परन्तु द्वितीय धर्म चक्र प्रवर्तन में धर्म नैरात्म्य, पञ्च मनोवैज्ञानिक स्कंध जो कि पुद्गल का आधार है, को भी प्रकट किया गया।
"परम पावन ने श्रोताओं के प्रश्नों के उत्तर दिए और मध्याह्म में भोजनोपरांत वियातनामी य़ुवाओं के एक समूह से उनकी बुद्धि का प्रयोग, सौहार्दता का विकास और करुणा के विकास से स्वयं उनके लाभ होने के विषय में बात की। उन्होंने आत्मविश्वास की आवश्यकता पर बल दिया पर कहा कि बुद्धिमानी होगी यदि हम अंधे न हों। उन्होंने आगे कहा कि मैत्री का आधार विश्वास है और विश्वास बढ़ता है जब आप दूसरों के लिए चिंता रखते हुए कार्य करते हैं। उन्होंने कहाः
"मनुष्य रूप में हम सभी समान हैं। मैं कुछ विशिष्ट नहीं हूँ। मैं बौद्ध दर्शन का एक छात्र हूँ और उन लोगों के लिए जो कुछ नहीं जानते मैं एक शिक्षक हो सकता हूँ, परन्तु शीर्ष विद्वानों के बीच मैं एक छात्र हूँ। प्रज्ञा पारमिता शिक्षाओं का उद्देश्य क्रोध जैसे विनाशकारी भावनाओं का अंत करना है। क्रोध के आधार की खोज और यह जांच करना कि क्या क्रोध से कोई लाभ होता है, प्रभावशाली है। विनाशकारी भावनाओं का मूल अविद्या है जो कि सत्य का भ्रांत रूप है और मात्र शून्यता की समझ उसका प्रतिकार कर सकती है।"
यह पूछे जाने पर कि विश्व में हिंसा के विरुद्ध खड़े होने के लिए युवा क्या कर सकते हैं, परम पावन ने उन देशों के युवाओं की बात की जो संघर्ष से प्रताड़ित हैं जिनसे उनकी भेंट हाल ही में धर्मशाला में हुई थी और किस तरह उनके कार्रवाई करने की दृढ़ता ने उन्हें प्रभावित किया था। एक युवक जिसने स्वीकार किया कि वह अतिचार के लिए जेल गया था, ने परम पावन को बताया कि उसने उनकी शिक्षाओं से कितना कुछ सीखा था और वह उनसे मिलकर कितना प्रसन्न था। परम पावन ने एक युवती को बताया, जिसने पूछा था कि क्या वे अंतिम दलाई लामा होंगे और क्या उसे भरने के लिए एक आध्यात्मिक अंतराल नहीं हो जाएगा, कि बुद्ध की शिक्षाएँ बुद्ध के अवतार बिना २६०० वर्षों से फली फूली हैं।
अंत में एक छोटे बच्चे ने पूछा कि बड़े होने पर परम पावन क्या बनना चाहते थे और उसकी नन्हीं बहन जानना चाहती थी कि वह कैसे प्रसिद्ध हो गए। परम पावन ने उत्तर दिया कि जब वे चार वर्ष के थे, तो दलाई लामा के रूप में चुने गए थे और उनके पास कोई विकल्प न था। पर बाद में उन्होंने पाया था दलाई लामा नाम का होना अन्य लोगों की मदद करने के प्रयास में उपयोगी हो सकता है, सो वह यही करने की कोशिश करते हैं।
निकट के गदेन शोलिंग केंद्र में, परम पावन ने कहा कि वह संस्थापक, खेंसुर रिनपोछे लोबसांग जमयंग को कई वर्षों से जानते थे और वह उनके केन्द्र आकर खुश थे। उन्होंने कहा कि बौद्ध धर्म आज प्रासंगिक बना हुआ है और विशेष रूप से नालंदा परम्परा कारण और बुद्धि के उपयोग को प्रोत्साहित करती है। उन्होंने सिफारिश की, कि केंद्र एक ऐसा स्थान हो जहाँ लोग सीखने के लिए आएँ, फिर आवश्यक नहीं कि वे बौद्ध हों। उन्होंने सुझाव दिया कि एक अन्य परियोजना, जो केंद्र अपने हाथों में ले सकता है वह कांग्यूर और तेंग्यूर के प्रमुख खंडों का वियतनामी में अनुवाद होगा।
लॉस एंजिल्स के आसपास के क्षेत्र में कई दिनों के बाद, कल परम पावन साल्ट लेक सिटी जाते हुए रास्ते में कैलिफोर्निया राज्य की राजधानी की यात्रा करेंगे।