ओसाका, जापान, ९ मई २०१६ - आज प्रातः परम पावन दलाई लामा धूसर आकाश के तले ओसाका की घंटे भर की लंबी उड़ान के लिए नारिता से हनेड़ा हवाई अड्डे के लिए गाड़ी से रवाना हुए। घने बादलों से उतरते हुए विमान घनघोर बारिश में इटामी हवाई अड्डे पर उतरा। परम पावन मध्याह्न भोजन के लिए समय पर अपने होटल पहुँच गए। उसके तुरंत बाद उन्होंने एनएचके, जापान के राष्ट्रीय सार्वजनिक प्रसारण संगठन के संवाददाताओं, मकोटे ओड़ा तथा एइसुके ताकाहाशी को एक साक्षात्कार दिया।
उन्होंने तिब्बत की वास्तविक स्थिति के बारे में पूछते हुए प्रारंभ किया और परम पावन ने उन्हें बताया कि बेहतर होगा कि वे जापानी पत्रकारों को स्वयं पता लगाने के लिए शहरों, गाँवों और घुमंतू डेरों की यात्रा करने के लिए भेजें।
"सांस्कृतिक क्रांति की तुलना में तिब्बत और चीन में वस्तु स्थिति बेहतर है, परन्तु तिब्बत में कट्टरपंथी अधिकारी हैं जिनकी नीति तिब्बत के बारे में कुछ भी अनूठा देखने पर, फिर चाहे वह हमारी भाषा, संस्कृति या धार्मिक परम्परा हो, उसे चीन से अलगाव के भय के रूप में देखती है। इस भय से वे और भी अधिक कठोर नियंत्रण डालते हैं। विद्यालयों में तिब्बती भाषा के शिक्षण पर या तो प्रतिबंध लगा दिया है या प्रतिबंधित है। जो छात्र अपने तिब्बती अध्ययन में उत्कृष्ट होते हैं उन्हें रोक लिया जाता है, जबकि जो लोग चीनी अध्ययन में कुशल होते हैं उन्हें सरलता से नौकरी मिलती है या वे और अधिक सरलता से विश्वविद्यालय पहुँचते हैं। ८० के दशक के मध्य के बाद से तिब्बतियों ने अनुभव किया है कि एक अर्द्ध-सांस्कृतिक क्रांति लगाई गई है। इसी ने २००८ के संकट को और अधिक किया। पीकिंग स्थानीय अधिकारियों पर बहुत अधिक निर्भर करता है जो संकीर्ण दिमाग के हैं और बहुत अधिक नियंत्रण लागू करते हैं।
"भौतिक विकास के संबंध में शहरों में आवास और दुकानों में सुधार हुआ है, पर जहाँ तक तिब्बती बौद्ध धर्म का संबंध है, एक उचित प्रशिक्षण हेतु एक उचित शिक्षक के साथ २०-३० वर्ष अध्ययन की आवश्यकता है। यह तिब्बत में मिलना कठिन है। अधिकांश विद्वान आचार्य या तो भारत पलायन कर गए या जेल में उनकी मृत्यु हो गई। बहुत कम बचे रहते हैं। इस बीच भिक्षुओं की संख्या में तेजी से गिरावट आई है। उदाहरणार्थ डेपुंग महाविहार में, जहाँ दूसरे दलाई लामा उपाध्याय थे, जब मैंने १९५८-५९ में अपनी अंतिम परीक्षा दी तो वहाँ ८००० भिक्षु थे। अब वहाँ ४०० हैं। महाविहार समूचे तिब्बत और उस पार से भिक्षुओं को समायोजित करता था। अब अधिकारी उन लोगों को जो दूर से आए हैं, उन्हें घऱ लौटा देते हैं। जो भिक्षु दाखिल होते हैं उन्हें पुनः राजनीतिक शिक्षा दी जाती है।
"पार्टी का दावा है कि सब कुछ गौरवशाली है, पर वहाँ न तो अभिव्यक्ति की स्वतंत्रता है न ही मीड़िया की स्वतंत्रता। सरकार सेंसरशिप थोपती है जो केवल एक तरफा जानकारी की अनुमति देता है।"
२००९ से १४० से अधिक आत्मदाह होने के विषय में पूछे जाने पर परम पावन ने कहा कि हर एक घटना बहुत ही दुख की बात थी। उन्होंने उन लोगों के साहस के प्रति सराहना व्यक्त की, कि ऐसा करते हुए उन्होंने दूसरों को किसी भी तरह की हानि नहीं पहुँचाई। उन्होंने स्मरण किया कि उन्होंने बीबीसी के एक संवाददाता से यह कहा था कि जब ऐसे कठोर कार्य पहले पहल प्रारंभ हुए थे और जोड़ा कि उन्हें संदेह था कि ऐसे कठोर कार्रवाई से तिब्बती समस्या को किसी तरह की सहायता मिलेगी।
तिब्बत की स्थिति के बारे में उन्होंने कहा:
"हम स्वतंत्रता की मांग नहीं कर रहे। यद्यपि चीनी इतिहास की पुस्तकों में तीन अलग और समान साम्राज्यों के अस्तित्वों का उल्लेख है, चीन मंगोलिया और तिब्बत - ७, ८, ९वीं सदी में। परन्तु वह अतीत है। अब हम भविष्य की ओर देख रहे हैं। मैं यूरोपीय संघ की भावना की प्रशंसा करता हूँ, जिसमें सदस्य राष्ट्रीय संप्रभुता से अधिक, साझे हित के लिए और अधिक महत्व दिया जाता है। हमें तिब्बत और चीन में और अधिक भौतिक विकास की आवश्यकता है, बशर्ते हम अपनी भाषा और परम्पराओं को जीवित रख सकें।
"तिब्बतियों ने नालंदा परम्परा की सबसे विस्तृत प्रस्तुत बनाए रखी जिसमें कंठस्थ करना, अध्ययन तथा शास्त्रार्थ शामिल हैं। तिब्बती बौद्ध धर्म का अस्तित्व न केवल ६ लाख तिब्बतियों के लिए, पर साथ ही ४०० करोड़ों चीनी बौद्धों और जापान के बौद्धों के लिए भी रुचि रखता है। आज, वैज्ञानिक भी पहचान रहे हैं कि यदि व्यक्ति, परिवार और राष्ट्र सुखी होना चाहते हैं तो चित्त की शांति महत्वपूर्ण है। प्रौद्योगिकी और भौतिक विकास अपने आप में पर्याप्त नहीं हैं। सुख हमारी भावनाओं से संबंधित है, अतः जिस तरह हम शारीरिक रूप से स्वस्थ रहने के लिए शारीरिक स्वच्छता का पालन करते हैं, उसी तरह मानसिक रूप से स्वस्थ और सुखी रहने के लिए हमें एक प्रकार की भावनात्मक स्वच्छता का पालन करने की आवश्यकता है। तिब्बती बौद्ध परम्परा में किस तरह अपनी भावनाओं से निपटा जाए, के संबंध में बहुत अधिक ज्ञान सन्निहित है। हमें इसके संरक्षण का अधिकार है, पर निश्चित रूप से यह दूसरों के लिए भी हितकारी हो सकता है।"
चीन की पीपुल्स गणराज्य के साथ सुलह की संभावनाओं के बारे में, परम पावन ने ८० के दशक में देंग जियाओपिंग द्वारा अपने दूत को बताए जाने पर कि स्वतंत्रता के अतिरिक्त अन्य सब कुछ चर्चा के लिए था, संपर्क स्थापित करने का स्मरण किया। ९० के दशक में ये सम्पर्क बंद हो गए। पर जियांग जेमिन के समय में उन्हें पुनर्जीवित किया गया, परन्तु २०१० में पुनः समाप्त हो गए। उन्होंने टिप्पणी की, कि वह दलाई लामा नाम रखते हैं और ५वें दलाई लामा ने पीकिंग की यात्रा की थी। इस बीच एक ओर तो लाखों चीनी बौद्ध धर्म उन्हें सुनने के लिए उत्सुक प्रतीत होते हैं और दूसरी ओर एक कम्युनिस्ट नेता, शी जिनपिंग ने पेरिस में कहा और दिल्ली में दोहराया कि चीनी संस्कृति में बौद्ध धर्म की एक महत्वपूर्ण भूमिका है। परम पावन ने हाल ही में चीनी में १००० लेखों का उल्लेख किया जिसमें तिब्बती मध्यम मार्ग दृष्टिकोण के प्रति समर्थन व्यक्त हुआ है और चीनी सरकार के रुख की आलोचना हुई है।
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परम पावन ने यह भी टिप्पणी की, कि अधिनायकवादी शासन का तंग नियंत्रण आज की तारीख से बाहर है। एक और अधिक उदार दृष्टिकोण चीनी लोगों और उनकी सरकार दोनों के हित में होगा। उन्होंने कहा कि १.३ अरब चीनियों को वास्तविकता जानने का अधिकार है और उस आधार पर वे गलत और सही के बीच अंतर करने में सक्षम हैं। ऐसे संदर्भ में पूरी तरह से सेंसरशिप अनैतिक और गलत है। उन्होंने उस अवसर पर यह जोड़ने का प्रयास किया कि उनका अर्थ यह नहीं था कि वे इस तरह पूर्णरूपेण मार्क्सवाद के विरोध में थे। वह पूरी तरह से धन और अवसर के समान वितरण के विचार के समर्थन में हैं, परन्तु लेनिन जो कठोर उपाय लेकर आए, जिसने अंततः उसे बिगाड़ दिया, का विरोध करते हैं।
इस प्रश्न पर कि अगले दलाई लामा कौन होंगे, परम पावन ने उत्तर दिया, "कौन जानता है?" उन्होंने आगे कहा कि वे न केवल स्वेच्छा से राजनीतिक उत्तरदायित्व से सेवानिवृत्त हुए हैं, पर साथ ही उन्होंने गर्व तथा स्वेच्छा से, आध्यात्मिक भूमिका के अतिरिक्त राजनीतिक विषयों में भी दलाई लामा की पारंपरिक भागीदारी को समाप्त कर दिया है। परिणामस्वरूप भविष्य के दलाई लामा सक्या ठिज़िन और करमापा की तरह केवल एक धार्मिक व्यक्ति होंगे। दूसरी ओर उन्होंने कहा कि यदि भविष्य में कोई दलाई लामा न हो तो इससे कोई समस्या नहीं होगी। उन्होंने कहा कि बुद्ध अथवा नागार्जुन के कोई अवतार नहीं हुए पर फिर भी उनके जीवन काल की शताब्दियों के पश्चात भी उनकी शिक्षाएँ बनी हुई हैं।
उन्होंने स्पष्ट किया कि अहिंसा उनका अपना निजी झुकाव नहीं है, पर समस्याओं के समाधान का उचित तरीका है। उन्होंने कहा कि यह देखने के लिए आपको केवल यह देखने की आवश्यकता है कि मध्य पूर्व में क्या हो रहा है, और जोर देते हुए कहा कि कोई भी हिंसा और हत्या को बनाए रखना नहीं चाहता।
परम पावन ने सुझाव दिया कि आधुनिक शिक्षा भौतिक लक्ष्यों पर केंद्रित हो और आंतरिक मूल्यों के प्रति एक उपेक्षा लिए हुए, अपूर्ण है। हमारे चित्त और भावनाओं के कार्यो के बारे में जानने की आवश्यकता है। उन्होंने धर्मनिरपेक्ष नैतिकता को सामान्य शिक्षा प्रणाली में लाने के लिए हाल के एक पाठ्यक्रम का मसौदा तैयार करने का उल्लेख किया, जिस पर वे बड़ी आशा लगाए हुए हैं।
"मैं एक अधिक करुणाशील विश्व को जन्म लेता हुआ देखने के लिए जीवित नहीं रहूँगा," उन्होंने कहा, "पर यदि हम जो आज युवा हैं उनको आंतरिक मूल्यों में शिक्षित करने का प्रयास करते हैं तो वे भविष्य में एक अलग, शांतिपूर्ण, अधिक करुणाशील विश्व देखेंगे। मनुष्यों द्वारा निर्मित समस्याओं का समाधान मनुष्यों द्वारा किया जाना चाहिए। आधारभूत मानव स्वभाव करुणाशील है और यह हमारी आशा का स्रोत है।
"मैत्री भी महत्वपूर्ण है। यदि आप दूसरों के प्रति चिंता और उनके अधिकारों के प्रति सम्मान व्यक्त करेंगे तो आप विश्वास स्थापित करेंगे, और विश्वास मैत्री का आधार है। मैं बीबीसी में यह सुनकर बहुत प्रोत्साहित हुआ कि आज बढ़ती संख्या में युवा स्वयं को वैश्विक नागरिक के रूप में मानते हैं। यह एक सकारात्मक विकास है।"
इन अटकलों के बारे में उनके विचार पूछे जाने पर कि, राष्ट्रपति ओबामा इस महीने के अंत में हिरोशिमा यात्रा कर सकते हैं, उन्होंने कहा कि यह बहुत अच्छी बात होगी। उन्होंने आगे कहा कि वह अक्सर टिप्पणी करते हैं कि वह किस तरह प्रभावित हैं कि जर्मनी और जापान द्वितीय विश्व युद्ध की राख से खड़े हुए और उनके साथ जो हुआ उसके विषय में वे कोई विद्वेष व्यक्त नहीं करते।
इस संबंध में कि, किस तरह हर कोई चीनी दबाव के समक्ष झुकता है, जो उनके लिए वस्तुओं को और अधिक कठिन बना सकते हैं, परम पावन ने उत्तर दिया कि सत्य का बल बंदूक की शक्ति से आगे बढ़कर चलता है। उन्होंने कहा कि कई विदेशी नेता मूलतः तिब्बत और तिब्बतियों की समस्या के साथ सहानुभूति रखते हैं और तिब्बती, अहिंसा के लिए पूर्ण रूपेण प्रतिबद्ध हैं। यह बताते हुए कि मानव प्रकृति मूल रूप से अच्छी है उन्होंने कहा कि लगभग ८१ वर्ष की आयु में वह आशावादी बने हुए हैं।
कल परम पावन लगभग २७०० श्रोताओं, जिनमें अधिकांश रूप से ताइवान से चीनी, पर साथ ही कुछ मुख्य भूमि से, कोरियाई, मंगोलियाई, रूसी और जापानी श्रोताओं के लिए शांतिदेव के 'बोधिसत्वचर्यावतार' का प्रवचन प्रारंभ करेंगे।