लेह, लद्दाख, जम्मू एवं कश्मीर, भारत, १७ अगस्त २०१६ - आज परम पावन दलाई लामा का प्रथम सार्वजनिक कार्यक्रम लेह में इस्लामी पब्लिक हाई स्कूल का दौरा था, जहाँ स्कूल के चेयरमैन जनाब अब्दुल कायुम तथा प्रधानाचार्य़ा श्रीमती रेणु कपूर ने उनका स्वागत किया।
सभा में सबके बैठ जाने पर एक छात्र ने कुरान का पाठ किया और एक छात्रा ने जो पढ़ा गया था उसका अंग्रेज़ी में पाठ किया। जनाब अब्दुल कायुम ने परम पावन के आगमन के लिए उन्हें धन्यवाद दिया। उन्होंने समझाया कि स्कूल शिक्षा के लिए एक बहु-भाषीय दृष्टिकोण अपनाता है और अपने छात्रों को सामाजिक मूल्य प्रदान करने की सोच रखता है। उन्होंने परम पावन को दलाई लामा ट्रस्ट के माध्यम से तीन छात्रों को, जो इस समय जॉर्डन में उच्च शिक्षा ग्रहण कर रहे हैं, के लिए धन्यवाद व्यक्त किया तथा भविष्य में और छात्रों को भेजने की आशा व्यक्त की।
परम पावन को एक डिजिटल कुरान प्रस्तुत किया गया, जो उसे अरबी या अंग्रेजी में प्रस्तुत कर सकता है।
सभा को "आदरणीय बड़े भाइयों और बहनों और युवा भाइयों और बहनों" के रूप में संबोधित करते हुए परम पावन ने कहा, "यदि हम सही अर्थों में अपने को 'भाइयों और बहनों' के रूप में मानें, तो हम तत्काल ही एक दूसरे के साथ सामीप्यता का अनुभव कर पाते हैं जबकि अधिक औपचारिकता हमारे बीच दूरी पैदा करती है"।
इस्लामिया स्कूल से, परम पावन कलसंग लिंग पर लद्दाख नन एसोसिएशन के भिक्षुणी विहार गए। छुछोट योकमा में उन्होंने शिक्षा के महत्व पर संक्षेप में उन लोगों के साथ बात की, जो मार्ग के एक ओर के प्रार्थना मणि चक्र के समीप एकत्रित हुए थे। इमाम बरगाह मस्जिद में शिया और सुन्नी मौलवियों ने उनका स्वागत किया, जबकि उस अवसर पर हजारों की संख्या में जनता उन्हें देखने इकट्ठी हुई थी।
परम पावन को बताया गया कि मस्जिद ५०० वर्ष प्राचीन है और लद्दाख में दीर्घ काल से बौद्धों और मुसलमानों के बीच सद्भाव बना हुआ है। एक शिया मौलवी ने दुःख व्यक्त किया कि मरहूम मोहम्मद अली के कहने के बावजूद कि इस्लाम का मतलब अमन है, आज व्यापक विश्व में इस्लाम को ठीक ढंग से प्रस्तुत नहीं किया जा रहा है। लेह के मुस्लिम समन्वय समिति के एक सुन्नी, शेख सैयिउद्दीन ने घोषित किया, "परम पावन ने लद्दाख में मुस्लिम और बौद्ध समुदायों के बीच सद्भाव को मजबूत किया है"।
परम पावन ने बताया कि किस प्रकार एक शताब्दी पूर्व नागरिक बिना कोई प्रश्न किए संघर्ष में शामिल हुए थे जब उनकी सरकारों ने युद्ध की घोषणा की। परन्तु वियतनाम युद्ध के पश्चात जब मोहम्मद अली ने अमेरिकी सेना में शामिल होने से इनकार किया, और जब से इराक युद्ध से पहले समूचे विश्व में आक्रमण का विरोध करने के लिए सैकड़ों हजारों की संख्या में लोग सड़कों पर उतर आए, व्यवहार में एक परिवर्तन हुआ है। यह सकारात्मक परिवर्तन कि लोगों में हिंसा नहीं अपितु शांति के प्रति इच्छा है, आशा का एक संकेत है।
उन्होंने कहा कि समकालीन वैज्ञानिक निष्कर्ष में इस तरह का एक और संकेत है जो बताता है कि आधारभूत मानव स्वभाव करुणाशील है। इसलिए, उन्होंने कहा:
"हमें इन सिद्धांतों पर आधारित एक और अधिक शांतिपूर्ण और सामंजस्यपूर्ण समाज के निर्माण हेतु लोगों को शिक्षित कराने और मानव करुणा तथा प्रेम को पोषित करने हेतु कार्य करना चाहिए।"
प्रश्नोत्तर सत्र के दौरान परम पावन से लोगों में अच्छे और बुरे तत्वों के बारे में पूछा गया। उन्होंने उत्तर दिया कि अच्छा होने के लिए सौहार्दता की भावना एक महत्वपूर्ण कारक है, जबकि स्वार्थ और एक आत्म केन्द्रित व्यवहार आधारभूत मानव अच्छाई के विपरीत है।
एक अन्य प्रश्नकर्ता ने प्रश्न उठाया कि चंद्र कैलेंडर के अनुसार ८वें और १५वें दिनों में लद्दाख में मांस की बिक्री प्रतिबंधित है। परम पावन ने स्पष्ट किया कि चूँकि यह बौद्ध अभ्यास है इसका संबंध मुस्लिम भाइयों और बहनों से नहीं है। परन्तु उन्होंने सुझाव दिया है कि वे इसका सम्मान बौद्ध संस्कृति के एक पक्ष के रूप में कर सकते हैं, ठीक उसी तरह जिस तरह त्योहारों के दौरान मुसलमान आधी रात को नमाज का प्रसारण करते हैं। परम पावन ने सिफारिश की कि इस तरह की किसी भी बातों को लेकर किसी गलतफहमी को दो समुदायों के बीच बैठकों तथा विचार-विमर्श में उठाया जा सकता है।
मांस खाने के संबंध में, परम पावन ने समझाया कि विहारों के अनुशासन के नियम, विनय में बुद्ध ने भिक्षुओं के मांस खाने का निषेध नहीं किया था। परम पावन ने श्रीलंकाई भिक्षुओं से हुई एक चर्चा को उद्धृत किया जिसमें उन्होंने बताया था कि बौद्ध भिक्षु न शाकाहारी हैं और न ही मांसाहारी, क्योंकि जब वे भिक्षाटन करते हैं तो उन्हें जो भी भिक्षा में दिया जाए उसे स्वीकार करना चाहिए।
अंत में, परम पावन ने मध्याह्न भोजन हेतु उन्हें आमंत्रित करने के लिए, उनके मेजबान और सभी समुदाय के सदस्यों को धन्यवाद दिया और बताया कि वे उस अवसर की मैत्री भावना की कितनी सराहना करते हैं।