टाशी ल्हुन्पो, बाइलाकुप्पे, कर्नाटक, भारत - २६ दिसम्बर २०१५- आज प्रातः प्रवचन से पूर्व शास्त्रार्थ में भाग ले रहे स्वर परिवर्तित थे, जब भिक्षुणियों ने भिक्षुओं के साथ शास्त्रार्थ प्रारंभ किया। परम पावन पधारे, वन्दना के छंद, हृदय सूत्र और बोधिपथ क्रम वंशज प्रार्थनाओं का पाठ हुआ और चाय प्रस्तुत की गई।
"दृष्टिकोणों में विभिन्नता हो सकती है," परम पावन ने प्रारंभ किया, पर हम सब सुख को ढूँढने और दुख से बचने की इच्छा करने में समान हैं। और हम जिस कारण इस इच्छा को पूरा नहीं कर पाते वह इसलिए कि हमारे चित्त नियंत्रित नहीं हैं। हम मोह और क्रोध जैसे क्लेशों से व्याकुल होते हैं। मात्र उपायकौशल ऐसी नकारात्मक भावनाओं को दुर्बल नहीं करता, ऐसा करने के लिए हमें शून्यता को समझने की आवश्यकता है। चूँकि उन्होंने शून्यता और प्रतीत्य समुत्पाद की शिक्षा दी, नागार्जुन बुद्ध को एक अतुलनीय मार्गदर्शक के रूप में संदर्भित करते हैं। प्रतीत्य समुत्पाद एक गहन अवलोकन है, क्योंकि सामान्य रूप से सब कुछ कारणों और परिस्थितियों पर निर्भर करता है। यदि हम राजनेताओं में प्रतीत्य समुत्पाद के प्रति रुचि जगा सकें तो उनके अन्यथा संकीर्ण चित्त व्यापक होंगे।"
"बुद्ध की शिक्षाओं का सबसे गहन ज्ञान प्रज्ञापारमिता सूत्र में निहित है। जिस प्रज्ञा को समझने की हमें आवश्यकता है जैसे शून्यता, प्रतीत्य समुत्पाद ये सब उन पुस्तकों प्रस्तुत हैं।
"आज हम ज़ामर पंडित के 'भाष्य' की विशिष्ट अंतर्दृष्टि खंड का पाठ प्रारंभ करने जा रहे हैं। जैसा मैंने कल उल्लेख किया, मैंने इन ग्रंथों का संचरण १९६० के दशक में डगपा ज्ञाछो नाम के एक गोलोग भिक्षु से प्राप्त किया। क्योंकि प्रारंभ में उसके पास विशिष्ट अंतर्दृष्टि के खंड का संचरण नहीं था। मैंने उससे उसे खोजने का प्रयास करने के लिए कहा। उसे तेनजिन ज्ञाछो नाम का ९० वर्ष की आयु का एक वृद्ध भिक्षु मिला जो उसे देने में सक्षम हुआ। इस वृद्ध भिक्षु ने तिब्बत में कठिन वर्षों के दौरान बहुत दुःख झेला था। जब उसके पास भोजन होता तो वह खाता अन्यथा वह पुष्पों का सार निकालने के अभ्यास के कारण जीवित रहा।
"हम मंजुश्री की प्रार्थना एक साथ करेंगे क्योंकि उनमें सभी अज्ञान को दूर करने की क्षमता है। शून्यता की समझ से हम न केवल अपने क्लेशों को दुर्बल करने और दुःख पर काबू पाने में सक्षम होंगे, जैसा कि अर्हतों ने किया है, हम ज्ञान के अवरोधों को भी समाप्त कर देंगे जैसा कि बुद्ध और बोधिसत्वों ने किया है और कर रहे हैं।"
परम पावन बराबर ग्रंथ का पाठ करते रहे, जो मार्ग निश्चित और अंतिम विचारों की झाड़ियों के होते हुए निकला और मध्याह्न के भोजन के ठीक पूर्व अपने पठन से समाप्त किया।
"शून्यता का अर्थ प्रतीत्य समुत्पाद है, प्रतीत्य समुत्पाद का अर्थ शून्यता है, चन्द्रकीर्ति का 'प्रसन्नपद' कहता है शून्यता प्रतीत्य समुत्पाद पर ज्ञापित है।" और पृष्ठ से दृष्टि ऊपर उठाते हुए परम पावन मुस्कुराए और टिप्पणी की, "यह काफी कठिन है, है न?"
मध्याह्न भोजन के पश्चात जब उन्होंने पुनः प्रारंभ किया तो पाठ में खोज थी कि किसे रद्द किया जाए और किसे नकारा जाए। जब सत्र के मध्य में चाय प्रस्तुत की गई तो परम पावन ने घोषणा की, कि वे परसों बोधिचित्तोत्पाद अनुष्ठानों का आयोजन करने तथा बोधिसत्वर संवर प्रदान करने की सोच रहे थे। उन्होंने कहा कि बोधिचित्तोत्पाद के लिए वे संभवतः चोंखापा के 'महान बोधि पथ क्रम' के दृष्टिकोण का पालन करेंगे। उन्होंने समझाया कि यद्यपि प्रतिमोक्ष तथा तांत्रिक संवरों को एक जीवित गुरु से लिया जाना चाहिए पर बोधिसत्व संवर बुद्ध की प्रतिमा के समक्ष लिए जा सकते हैं। परन्तु एक लामा के लिए यह भी संभव है कि वे जे रिनपोछे के 'बोधिसत्वभूमि' के नैतिकता अध्याय के भाष्य के आधार पर उन्हें दें। उन्होंने कहा:
"मैंने क्याब्जे लिंग रिनपोछे से मेरे लिए यही करने का अनुरोध किया था। उस समय सेरकोंग रिनपोछे भी मेरे साथ थे। मैं बहुत भावुक हो गया और रोने लगा। मुझे लगता है हम यह करेंगे।"
परम पावन ने सत्र के अंत तक अपना पठन जारी रखा, जब उन्होंने कहा :
"मैंने आज ५५ पृष्ठ समाप्त किए हैं। विश्लेषण करने के लिए बहुत कुछ है।"
मंत्राचार्य ने पथक्रम के समर्पण प्रार्थना का एक और उत्साह भरे पाठ का नेतृत्व किया और जब उसकी समाप्ति हुई परम पावन ने उन्हें सत्य के शब्दों का पाठ करने के लिए प्रेरित कियाः
इन प्रार्थनाओं के अच्छे फल शीघ्रता से अब प्रकट हों।
शून्यता और संवृति रूपों के गहन प्रतीत्य समुत्पाद के द्वारा
त्रिरत्न और उनके सत्य के शब्दों की प्रबल करुणा के साथ
और कर्म और उनके फल के अचूक नियम के बल से,
यह सच्ची प्रार्थना निर्बाध और त्वरित रूप से पूरी हों।