टाशी ल्हुन्पो, बाइलाकुप्पे, कर्नाटक, भारत - २३ दिसम्बर २०१५- दिन के बोधिपथक्रम प्रवचन के प्रारंभ करने से पहले परम पावन दलाई लामा ने आज जब तिब्बती तीर्थ यात्रियों से भेंट की तो टाशी ल्हुन्पो महाविहार के चारों ओर की भूमि स्वर्णिम सूर्य की आभा से मंडित थी। उन्होंने उनसे कहाः
"हम सदा यह कहते हैं कि जो वहाँ रह रहे हैं वे वास्तव में तिब्बत के वास्तविक स्वामी हैं। पिछले ६० वर्षों में और विशेषकर सांस्कृतिक क्रांति के दौरान चीनियों ने इस प्रकार का व्यवहार किया मानो वे तिब्बती संस्कृति को पिछड़ा मानते थे। और फिर भी, कहा जाता है कि अब ४०० अरब चीनी बौद्ध हैं, उनमें से कई तिब्बती बौद्ध धर्म में रुचि रखते हैं। हम तिब्बतियों के लिए बौद्ध धर्म के बारे में जानना सरल है क्योंकि ग्रंथ जिनमें बुद्ध के शब्द तथा परवर्ती भारतीय आचार्यों के भाष्य हैं, वे हमारी अपनी भाषा में उपलब्ध हैं। इस परम्परा का संरक्षण कांग्यूर और तेंग्यूर के ग्रंथों को घर में रखने के लिए नहीं है पर यह पठन और अध्ययन के बारे में है। उदाहरण के लिए मैंने हिमालय क्षेत्र में लोगों से भेंट की है जो बौद्ध हैं, पर वे इस बात से पूर्णतया अनभिज्ञ हैं कि बुद्ध कौन हैं।
"मैंने उस समय अध्ययन प्रारंभ किया जब मैं छह वर्ष का था और जो मैंने सीखा उसने वास्तव में मेरी सहायता की। आज वैज्ञानिक भी इस में रुचि रखते हैं कि आंतरिक मूल्यों तथा चित्त और भावनाओं का ज्ञान रखते हुए बौद्ध धर्म क्या कहता है। तो, अध्ययन करें और जो आपने जीवन में सीखा है उसका उपयोग करें। कांग्यूर और तेंग्यूर के साथ तिब्बती आचार्यों की १०,००० रचनाएँ भी हैं। हमारा साहित्य सही अर्थ में समृद्ध है।
"इस बीच, हम सबके मस्तिष्क अद्भुत हैं। उनका उपयोग करें। यदि आपके पास पैसा है तो आप सोचेंगे कि उसका उपयोग न करना मूर्खता है। आप व्यापार करने में उसका निवेश करते हैं। आपको अपनी बुद्धि को भी इसी तरह एक परिसंपत्ति के रूप में सोचना चाहिए। चित्त और भावनाओं के बारे में सीखें। मैं भारतीयों से भी अध्ययन करने का आग्रह करता हूँ।"
इस बात पर समूह में से एक महिला ने उत्साहित होकर कहा "हम पढ़ रहे हैं, हम कर रहे हैं।" परम पावन मुस्कराए और उत्तर दिया "कि यह वास्तव में बहुत अच्छा है, और ऐसा केवल भिक्षुओं और भिक्षुणियाँ को ही नहीं, आम लोगों को भी अध्ययन कर शास्त्रार्थ करना चाहिए।" और पुनः उसी महिला की आवाज़ गूंजी, "हम करते हैं, हम करते हैं।" परम पावन ने आगे कहा:
"शिक्षा इतनी अधिक महत्वपूर्ण है। इसके बिना हम केवल पिछड़े रहेंगे। हमें अपने स्वयं की संस्कृति के ज्ञान की आवश्यकता है। हम तिब्बतियों और चीनियों के मजबूत संबंध हैं और यह उतना प्राचीन है जब हमारे राजा उनकी राजकुमारियों से विवाह करते थे। कभी कभी हम आपस में लड़े भी हैं पर हमारी दीर्घावधि की मैत्री भी रही है। हमें चीन के साथ मैत्री की आवश्यकता है। ७वीं, ८वीं तथा ९वीं सदी में हम पूरी तरह से स्वतंत्र थे, पर अब हम स्वतंत्रता की मांग नहीं कर रहे। ऐसा हो सकता है कि चीन, हमारी सहायता कर सकता है, विद्यालयों की स्थापना कर सकता है और अन्य रूपों से हमारी सहायता कर सकता है। यदि वे ऐसा करें तो हम अपने धर्म और संस्कृति का संरक्षण कर सकते हैं और उसका उपयोग कर सकते हैं जिससे चीन भी लाभान्वित हो। चीन में परिवर्तन हुआ है और आगे भी परिवर्तन आएगा। चिंतामुक्त हों और सुखी रहें।"
प्रातःकाल की गर्म आभा उस समय तक थी जब पथक्रम प्रवचनों के आयोजन के प्रमुख प्रेरक लिंग रिनपोछे, तथा अन्य उपाध्यायों ने मंदिर होते हुए प्रांगण में उनके आसन तक परम पावन का अनुरक्षण किया। प्रार्थनाओं का पाठ हुआ तथा चाय प्रस्तुत की गई।
एक अनुमान के अनुसार पथ क्रम प्रवचन के तीसरे सत्र में भाग लेने के लिए ३१,००० लोगों ने पंजीकरण किया है। उनमें २२,००० भिक्षु और भिक्षुणियाँ हैं। परम पावन दलाई लामा की सलाह का अंग्रेजी, फ्रेंच, हिन्दी, इतालवी, जापानी, कोरियाई, मंदारिन, मंगोलियाई, रूसी, स्पेनिश और वियतनामी में साथ साथ अनुवाद किया जा रहा है। इन अनुवादों में अंग्रेजी, हिंदी, कोरियाई, मंदारिन, मंगोलियाई, रूसी, और तिब्बती का सीधा वेब प्रसारण किया जा रहा है।
परम पावन पथ क्रम ग्रंथों का पठन संचरण दे रहे हैं, जिसका अर्थ है कि वह प्रत्येक शब्द को पढ़ते हैं और यदि आवश्यक हो तो वहाँ टिप्पणी देते हैं। आज उन्होंने अधिक पढ़ा और कम टिप्पणी की, पर उन्होंने नागार्जुन 'रत्नावली' मे जो कहते हैं, उसका संदर्भ देते हुए प्रारंभ किया:
"प्रबुद्धता प्राप्त करने के लिए हमें शून्यता तथा बोधिचित्त के विकास की समझ की आवश्यकता है। हमें यह मानव जीवन मिला है, हमारा धर्म से परिचय हुआ है। यदि हमारे पास अध्ययन करने तथा अभ्यास करने का इस तरह का एक अवसर मिला है, पर हम इसका उपयोग नहीं करते तो यह एक प्रकार की व्यर्थता होगी। दूसरी ओर यदि हम प्रयास करें तो हम कुछ प्राप्त करेंगे। उद्देश्य सभी सत्वों का हित करना है। नागार्जुन कहते हैं कि प्रबुद्धता प्राप्त करने के लिए हमें कारणों का विकास करना होगा। दिङ्गनाग कहते हैं कि मार्ग का अनुसरण करने पर ही हमें प्रबुद्धता प्राप्त होगी। महान करुणा बोधिचित्त का मूल है और यहाँ तक कि उचित रूप से शरण गमन के लिए भी शून्यता की अनुभूति आवश्यक है।"
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परम पावन ने ज़ामर पंडित के भाष्य को उस बिंदु पर लिया जहाँ भव अस्तित्व की प्रक्रिया समझाते हुए, यह व्याख्यायित किया गया है कि हम किस प्रकार मृत्यु को प्राप्त करते हैं और पुनः जन्म पाते हैं। पोतोवा ने कहा कि भव चक्र में हमारे इस आवागमन का कोई प्रारंभ नहीं है। मूल कारण अज्ञानता है। इस संदर्भ में प्रतीत्य समुत्पाद के द्वादशांग की बात करते हुए परम पावन ने महान क्षमता वाले व्यक्ति के पथ क्रम के प्रशिक्षण तक निरंतर पठन किया। यह इस कथन से प्रारंभ होता है महायान का एकमात्र प्रवेश द्वार बोधिचित्त है। बोधिचित्त के विकास के दो उपायों, कार्य कारण के सप्त बिंदु तथा परात्मसम परिवर्तन में परम पावन ने कहा कि वे पाते हैं कि उनके लिए दूसरा अधिक प्रभावी है।
मध्याह्न भोजन के पश्चात 'विमुक्ति हस्त धारण' की और जाते हुए परम पावन ने सप्तांग प्रशिक्षण को रेखांकित किया जिसमें सभी सत्वों की आपके मातृ सत्व के रूप में समझ, उनकी दया का स्मरण, उनकी दया का प्रत्युकार, प्रेम पर ध्यान, महाकरुणा, परोपकारिता और अंत में बोधिचित्त का विकास शामिल है। उन्होंने कहा कि वास्तव में पथक्रम साहित्य का मुख्य केन्द्र महान क्षमता वाला यह महान व्यक्ति है।
"चूँकि हम अंतरिक्ष के अंत तक सभी सत्वों के लिए काम करने हेतु समर्पित हैं, तो पुण्य न खोता है और न ही व्यर्थ होता है।"