टाशी ल्हुन्पो, बाइलाकुप्पे, कर्नाटक, भारत - २२ दिसम्बर २०१५- आज प्रातः प्रवचन के प्रारंभ होने से पूर्व परम पावन दलाई लामा ने १५० से अधिक चीनियों के साथ भेंट की। उन्होंने उनसे कहा कि अधिकांश धार्मिक परम्पराएँ प्रेम और करुणा की बात करती हैं। यद्यपि लोग जो ईश्वर में विश्वास रखते हैं वे सहायतार्थ उसकी प्रार्थना करते हैं, जबकि बुद्ध धर्म स्वयं के लिए कुछ करने पर केन्द्रित है।
"मैंने सुना है कि इस समय चीन में ३०० अरब से भी अधिक बौद्ध हैं", उन्होंने कहा। "यदि आप अपने आपको बुद्ध के शिष्य के रूप में मानते हैं तो आपको अध्ययन करना चाहिए। बार बार अमिताभ के नाम का जाप करना पर्याप्त नहीं है। आपको ध्यान देना चाहिए कि योग्य शिक्षक कई प्रकार के भेंट की प्राप्ति को लेकर चिंतित नहीं होते। यह भी स्मरण रखें कि राष्ट्रपति शी ज़िनपिंग ने पेरिस और दिल्ली में टिप्पणी की कि चीनी संस्कृति को बहाल करने में बौद्ध धर्म का एक महत्वपूर्ण योगदान है।
"हमारे अधिकांश दुःख मोह, क्रोध और अज्ञानता के कारण जन्म लेते हैं जिनमें से बुद्ध ने कहा कि अज्ञान दुःख का स्रोत है। हम इन पर किस तरह काबू पा सकते हैं? प्रार्थना अथवा बुद्ध के आशीर्वाद से नहीं अपितु त्रिशिक्षा से संबंध रखते हुए जिसमें प्रज्ञा सबसे महत्वपूर्ण है। प्रज्ञा का संबंध नैरात्म्य से है और आप उसे श्रवण अथवा व्याख्याओं से, उस पर चिंतन कर और भावना करने से और जो आपने समझा है उससे अपने चित्त को परिचित करने से समझ सकते हैं।
"शून्यता की व्याख्या यह नहीं कहती कि वस्तुएँ अस्तित्व नहीं रखतीं, बल्कि यह कि वस्तुएँ केवल नामित रूप में अस्तित्व रखती हैं और कार्य करती हैं। हम कहते हैं कि रूप शून्यता है, शून्यता रूप है क्योंकि दोनों अन्योन्याश्रित हैं। हम कहते हैं कि वस्तुएँ शून्य हैं क्योंकि उनमें स्वभाव सत्ता का अभाव है। आप इसे नागार्जुन के 'प्रज्ञा मूल' जो कि मंदारिन में उपलब्ध है और चन्द्रकीर्ति के ‘प्रसन्नपद’, जिसका इस समय में ताइवान में अनुवाद किया जा रहा है, में पढ़ सकते हैं।
"१९५४-५५ में मैंने बीजिंग में ६ महीने बिताए और माओत्से तुंग से कई बार भेंट की। उन्होंने मुझमें रुचि ली और मुझे तिब्बत में तिब्बतियों के कल्याण को बढ़ावा देने के बारे में सलाह दी। उस समय उनकी एक सकारात्मक दृष्टि थी और यदि उसका पालन किया गया होता तो तिब्बत को बाद में आई समस्याओं का सामना नहीं करना पड़ता। उन्होंने कहा कि मेरा चित्त वैज्ञानिक प्रवृत्ति का था, पर फिर यह भी जोड़ा कि धर्म विष था। मुझे लगता है कि यदि वह आज यहाँ होते और नालंदा परंपरा से परिचित होते तो संभवतः वह अलग ढंग से सोचते।"
चीनी तीर्थयात्रियों को प्रश्न पूछने के लिए प्रोत्साहित करते हुए, पहला प्रश्न शून्यता पर था। दूसरा एक अर्हत और एक बोधिसत्व के बीच के अंतर को लेकर था। परम पावन ने उत्तर दिया कि एक अर्हत वह है जिसने पुद्गल नैरात्म्य की अनुभूति कर क्लेशों पर काबू पा लिया है। एक बोधिसत्व ने इसके अतिरिक्त उसके बोधिचित्तोत्पाद के परिणामस्वरूप एक विशाल पुण्य संभार के कारण धर्म नैरात्म्य की अनुभूति कर प्रत्यक्ष की बाधाओं पर काबू पा लिया है।
जब वह बैठक से निकल रहे थे तो परम पावन ने सुझाव दिया कि यदि चीन में बौद्ध धर्म के लिए सकारात्मक दृष्टिकोण का विकास होता रहे तो विगत सप्ताह सेरा महाविहार में हुई माइंड एंड लाइफ बैठक के समान बौद्धों और वैज्ञानिकों की एक बैठक बुलाना संभव है।
मंदिर के बरामदे पर एक बार पुनः बैठ कर परम पावन ने बुद्ध का संदर्भ एक विश्वसनीय व्यक्ति के रूप में दिया, जिन्होंने हमें दिखाया था कि किस तरह नकारात्मक कार्यों से बचा जाए और क्लेशों पर काबू पाया जाए जो मुक्ति में बाधक हैं। अपने 'महान पथक्रम' में जे चोंखापा कहते हैं कि चार आर्य सत्य आवश्यक हैं और जिन शिक्षाओं की भी व्याख्या की जाए शिष्यों को उनके माध्यम से बताया जाना चाहिए। इसी आधार पर हम इस जीवन और आगामी जीवन के साथ अपनी अति व्यस्तता को दुर्बल कर सकते हैं।
ज़ामर पंडित के 'भाष्य' की ओर मुड़ते हुए परम पावन ने टिप्पणी की कि अपने व्यवहार में परिवर्तन लाना महत्वपूर्ण है। गेशे बेन गुंगज्ञेल प्रत्येक दिन सफेद और काले कंकड़ के साथ अपने कुशल और अकुशल कार्यों की गणना करते थे और तदनुसार अपने व्यवहार में सुधार करते थे।
बुद्ध ने कहा "दुःख को जानो।" ग्रंथ में अनिश्चितता, असंतोष, बार बार अपने शरीर को त्यागना, गर्भ में आकर बार बार जन्म लेना, बार बार ऊपर से नीचे की ओर आना तथा किसी संगी के न होने के दुःख की सूची दी गई है।
दुःख की वास्तविकता और उस पर काबू पाने के संबंध में, परम पावन ने नागपुर के पास बाबा आमटे के आश्रम जाने का स्मरण किया जहाँ उन्होंने एक समुदाय को एकत्रित किया था जो कुष्ठ रोग से पीड़ित थे। उन्होंने उन्हें विभिन्न कौशल में प्रशिक्षित किया था ताकि अपने विकलांग होने के बावजूद वे काम कर सकें। वे जो करने में सक्षम थे उसे लेकर अत्यधिक आत्मविश्वास और गर्व प्रकट कर पा रहे थे। आगंतुकों का स्वागत करते हुए वे वास्तव में खुश थे। परम पावन ने कहा कि जब उन्हें नोबेल शांति पुरस्कार से सम्मानित किया गया, तो उन्होंने उस राशि का एक भाग आश्रम को समर्पित किया था।
"हाल ही में मेरे घर को भूकंप से बचाने हेतु मजबूत करने के लिए कुछ काम किया गया था," परम पावन ने आगे कहा। "छत्तीसगढ़ और बिहार से आने वाले जो मजदूर थे वे प्रारंभ में रूखे थे। पर एक बार जब मैंने उनसे मैत्री कर ली तो उसके बाद, वे रोज़ और हँसमुख होकर काम पर आने लगे। तथ्य यह है कि हर किसी के पास शिकायत करने के लिए कुछ है। राजा, रानियों से लेकर सड़क के भिखारियों तक, ऐसा कोई नहीं है जिसकी कोई समस्या नहीं है।"
परम पावन ने उल्लेख किया कि किस प्रकार मृत्यु और मृत्यु की प्रक्रिया पर चिंतन जिसे वह दिन में कई बार करते हैं, साहस का एक बड़ा स्रोत हो सकता है।
ब्रह्माण्ड विज्ञान के संबंध में उन्होंने दोहराया कि वे प्रायः कहते हैं कि बुद्ध हमारे बीच विश्व को मापने के लिए प्रकट नहीं हुए। शास्त्रों में ब्रह्माण्ड विज्ञान के कई विवरण तारीख से बाहर हैं। उन्होंने ल्हासा में उनके पास एक दूरबीन के होने का स्मरण किया जिससे उन्होंने चंद्रमा की सतह पर छाया देखी। जिसने उन्हें यह भी दिखाया कि चांद का अपना कोई प्रकाश नहीं था।
मध्याह्न भोजन के पश्चात परम पावन ने आत्म प्रवृत्त पीड़ा के बारे में एक कहानी सुनाई। जब वह ल्हासा में थे तो उनके पास तीन मोटरें थीं, जो १३वें दलाई लामा की थीं। उनकी देखरेख एक चालक करता था जो गंजा और गुस्सैल था। परम पावन ने स्मरण किया कि एक दिन वे उसे उनमें से किसी एक के नीचे काम करता देख रहे थे और जैसे ही उसने अपने आपको नीचे से बाहर निकाला उसका सिर गाड़ी से टकराया। इस पर उसे इतना क्रोध आया कि उसने फिर से अपने सिर को गाड़ी पर दे मारा।
"जब हम क्रोध के कारण जल्दबाजी में कार्य करते हैं तो यह अनिवार्यतः अच्छे से अधिक नुकसान लाता है। हमारी वाणी कटु होती है और हम बुरी तरह से व्यवहार करते हैं। और तो और चिकित्सा जांचकर्ताओं ने स्थापित किया है कि क्रोध और शंका हमारे स्वास्थ्य के लिए खराब हैं।
"आधुनिक शिक्षा प्राथमिक रूप से चित्त के विकास पर नहीं अपितु भौतिक विकास पर केंद्रित है। हम बौद्ध शिक्षाओं में पाए जाने वाले मनोविज्ञान को ले सकते हैं और एक धर्मनिरपेक्ष रूप से उसे उपयोग में ला सकते हैं। यदि हम और अधिक जानते कि हमारी विभिन्न भावनाएँ किस तरह कार्य करती हैं तो संभवतः समझ पाएँ कि क्रोध कभी कभी करुणा से प्रेरित किया जा सकता है। ऐसी स्थिति में यह विनाशकारी नहीं है। यह यहाँ और अब हमारे जीवन के लिए प्रासंगिक है। अतः इन दिनों हम संयुक्त राज्य अमेरिका, कनाडा और भारत में स्कूलों में धर्मनिरपेक्ष नैतिकता को प्रारंभ करने के उपाय देख रहे हैं।"
ग्रंथ में आगे नकारात्मक भावनाओं की चर्चा से प्रेरित, परम पावन ने अहंकार और गर्व के बीच के अंतर को स्पष्ट किया। अहंकार उस समय होता है जब आप दूसरों को नीचा दिखाते हैं जबकि गर्व वह संतुष्टि है कि आपने क्या किया है और कर सकते हैं। उन्होंने 'चित्त शोधन के अष्ट पदों' में से दूसरे को उद्धृत किया:
किसी अन्य के संग व्यवहार करते हुए
मानूँ स्वयं को निम्नतम
और अपने हृदय की गहराइयों से,
सम्मान से मानूँ अन्य को श्रेष्ठ
उनकी दिन के अंतिम टिप्पणी का संबंध ज़ामर पंडित के 'भाष्य' से था कि जिन कर्मों का आपने निर्माण नहीं किया है उनसे आपका सामना नहीं होगा। उन्होंने कहा कि संबंधियों में रक्त संबंध के कारण जब परिवार में किसी की मृत्यु हो जाती है और जो रह जाते हैं, यदि वे उनकी ओर से कुछ शुभ करें तो लाभ हो सकता है। उसी प्रकार गुरु और शिष्य के बीच बंधन के कारण एक के कुशल अभ्यास दूसरे की सहायता कर सकते हैं।
बोधिपथक्रम प्रवचन कल जारी रहेंगे।