जनवरी १६, २०१५ - आज प्रातः परम पावन दलाई लामा ने शांति और करुणा पर व्याख्यान दिया और बहरपुर के बहाई पूजा भवन, जो आम तौर पर बहाई लोटस मन्दिर के नाम से जाना जाता है, में एक प्रार्थना सभा में भाग लिया। बहाई धर्म की स्थापना ईरान में बहाउल्लाह द्वारा एक शताब्दी पूर्व हुई और इसकी शिक्षा ईश्वर की एकता, मानव परिवार की एकता और धर्म की एकता है।
भारत में बहाई धर्म की महासचिव सुश्री नाज़नीन रोव्हानी तथा नेशनल फांउडेशन फॉर कम्यूनल हारमनी (एन एफ सी एच) के सचिव राजदूत अशोक सज्जनहार ने बड़े ही सौहार्दता से परम पावन का स्वागत किया।
सुश्री रोव्हानी ने परम पावन का परिचय श्रोताओं से, जिसमें दिल्ली के १४ विभिन्न स्कूलों के छात्र, राजनयिक, स्कूलों के प्रधानाचार्य तथा अन्य अतिथि शामिल थे, एक ऐसे प्रकाश के रूप में करवाया जो आध्यात्मिक परंपराओं की एकता को संकेतित करती है।
"मुझे साधारणतया औपचारिकताएँ पसंद नहीं है।" परम पावन ने प्रारंभ िकया, "क्योंकि हम सभी मानसिक भावनात्मक और शारीरिक रूप से एक समान हैं। हम सभी की शारीरिक और मानसिक समस्याएँ हैं। कोई भी बिना समस्याओं के नहीं है परन्तु शिक्षा हमें समस्याओं को देखने के िलए एक व्यापक परिप्रेक्ष्य देता है ताकि हम उनसे निपटने में सक्षम हो सकें।"
दर्शकों में कई स्कूली बच्चों को देखते हुए परम पावन ने कहा,
"आप मानवीयता के भविष्य के लिए बहुत ही महत्वपूर्ण हैं। आप इक्कीसवीं सदी की पीढ़ी के हैं। आप में िवश्व के लिए एक बेहतर भविष्य बनाने की आशा निहित है। बीसवीं सदी की मेरी पीढ़ी द्वारा निर्मित समस्याओं के समाधान करने का उत्तरदायित्व आप पर पड़ता है।"
परम पावन ने समझाया कि बीसवीं सदी की अत्यधिक हिंसा के उत्पन्न होने का बड़ा कारण अदूरदृष्टिपूर्ण तथा संकीर्ण सोच है, जब लोगों ने समग्र मानवता के विषय में न सोचकर केवल अपने वर्ग की संकीर्ण हितों के िवषय में सोचाः
"अपने आप को दूसरों की आवश्यकता से जोड़ो, समूचे मानवता की आवश्यकता से जोड़ो और आप में चित्त की शांति रहेगी। स्वार्थ हमारे तथा दूसरों के बीच दूरी पैदा करता है जो संदेह तथा अविश्वास की ओर ले जाता है जिसका परिणाम अंततः एकाकीपन होता है। दूसरों के कल्याण के िवषय में सोचो और आप सुखी होंगे।"
"युवा भाइयों और बहनों, और व्यापक दृष्टि से सोचें। सौहार्दता और करुणा हमारे शारीरिक तथा मानसिक स्वास्थ्य के िलए अनुकूल हैं, जबकि क्रोध, घृणा तथा भय नहीं। इसलिए कुछ वैज्ञानिक आज सौहार्दता की बात करते हैं जो एक 'स्वस्थ चित्त और स्वस्थ शरीर' सुनिश्चित करता है।"
"चूँकि मौजूदा शिक्षा प्रणाली भौतिक विकास के उद्देश्यों की ओर उन्मुख है, हमें सहिष्णुता, क्षमा, प्रेम तथा करुणा जैसे आंतिरक मूल्यों पर विशेष ध्यान देने की आवश्यकता है। यदि हमें इन्हें इस प्रकार प्रस्तुत करना हो जो सबको रुचिकर लगे, तो हमें धर्मनिरपेक्ष नैतिकता का विकास करना होगा। भारत में इस दृष्टिकोण का पालन हज़ारों वर्षों से अधिक समय से किया गया है पर जो आज भी प्रासंगिक बना हुआ है। भारत की गहन रूप से पैठी अहिंसा की परम्परा सभी धार्मिक परम्पराओं और उनके दृष्टिकोण के प्रति भी जिनकी कोई आस्था नहीं है, में परिलक्षित होती है।"
श्रोताओं द्वारा पूछे गए प्रश्नों में परम पावन से यह प्रश्न किया गया कि आतंकवाद के खतरे से किस प्रकार निपटा जा सकता है। उन्होंने उत्तर दिया हम आज जिनका सामना कर रहे हैं उनमें से कई हमारी पिछली गलतियों के लक्षण हैं। बल प्रयोग का सहारा अल्पावधि में चाहे कितना ही निर्णायक क्यों न प्रतीत हो, यह तारीख से बाहर है, क्योंकि हिंसा केवल और अधिक हिंसा की ओर ले जाता है। इसके बजाय जब कभी भी हम आपस में समस्याओं का सामना करें हमें उन का समाधान बल से नहीं अपितु संवाद द्वारा करना चाहिए।
उनके व्याख्यान के उपरांत वास्तविक लोटस मंदिर में एक सभा के दौरान, जिसमें परम पावन सम्मिलित हुए, हिन्दू, मुस्लिम, बौद्ध, ईसाई और बहाई प्रार्थनाओं के पाठ अंग्रेजी, हिंदी, अरबी और संस्कृत सहित कई भाषाओं में हुए।