वाशिंगटन डीसी, संयुक्त राज्य अमेरिका - ५ फरवरी २०१५ - परम पावन दलाई लामा आज नेशनल प्रेयर ब्रेकफास्ट, जो वाशिंगटन डीसी में फरवरी में पहली गुरुवार को मनाया जाने वाला कार्यक्रम है, में एक विशेष अतिथि के रूप में सम्मिलित हुए। मीडिया के प्रतिनिधियों के लिए कक्ष में उनकी उपस्थिति ध्यान का मुख्य केन्द्र प्रतीत हो रही थी। पीठासीन सीनेटर ने परम पावन का परिचय देना प्रारंभ किया, राष्ट्रपति ओबामा ने उनकी ओर देखा, अपने हाथ जोड़े और सिर के एक इशारे और एक मुस्कान के साथ उनका अभिनन्दन किया। उसके पश्चात अपनी टिप्पणी में उन्हें संबोधित करते हुए वे बोले ः
"मैं एक अच्छे मित्र का विशेष रूप से स्वागत करता हूँ, परम पावन दलाई, जो कि इस बात के प्रबल उदाहरण हैं कि करुणा के अभ्यास करने का क्या अर्थ है, वे हमें सभी मनुष्यों की स्वतंत्रता और गरिमा की बात करने के लिए प्रेरित करते हैं। मैंने व्हाइट हाउस में उनका स्वागत किया है। ऐसे अवसर कम ही होते हैं जो परम पावन दलाई लामा तथा डेरेल वालट्रिप को एक ही कक्ष में साथ साथ लाएँ।"
इस बात पर हँसी और जोशपूर्ण तालियाँ बजीं। व्हाइट हाउस के प्रमुख सलाहकार वैलेरी जैरेट परम पावन के साथ टेबल पर बैठे जबकि राष्ट्रपति बोल रहे थे। राष्ट्रपति ने आगे उन लोगों की निंदा की जो हिंसा अपनाने के लिए आधार के रूप में धर्म का उपयोग करते हैं। उन्होंने सभी धर्मों के लोगों से अपने विश्वासों के बारे में विनम्रता दिखाने और इस धारणा को छोड़ने, कि "ईश्वर केवल हमसे बात करता है और दूसरों से बात नहीं करता।" के लिए कहा।
नाश्ते के बाद परम पावन ने कई कांग्रेसी पुरुष तथा महिलाओं के साथ निजी तौर पर भेंट की।
मध्याह्न के भोजन के पश्चात परम पावन ने यू एस इंस्टिट्यूट ऑफ पीस (शांति के लिए अमेरीकी संस्थान) के एक दल से भेंट की जिसका भवन स्टेट विभाग से सड़क के उस पार है। उन्होंने नैन्सी लिंडबोर्ग, जो केवल तीन दिन पहले संस्थान की पांचवें अध्यक्ष बनी थीं से कहा,
"शांति निर्माण के प्रयास में, हमें आंतरिक शांति के विकास की आवश्यकता है। कबूतर को स्वतंत्र करने, यहाँ तक कि ईश्वर से प्रार्थना करने या बुद्ध से प्रार्थना करने जैसे संकेतों से यह नहीं हो सकता। हमें लोगों को आंतरिक शांति को विकसित करने के लिए शिक्षित करने की आवश्यकता है। यह एक लंबी प्रक्रिया है। यदि हमने इसे अभी यहाँ प्रारंभ भी कर दिया तो भी मैं अपने जीवन काल में अंतिम परिणाम नहीं देख सकता। परन्तु सीरिया और इराक जैसे स्थानों में स्थिति अब इतनी कठोर है कि हमें संघर्षरत् लोगों को निकट लाने के लिए नए उपाय ढूँढने होंगे। इसमें एक महान दृढ़ संकल्प लगेगा।"
सुश्री लिंडबोर्ग ने कि क्या उनके पास विशिष्ट व्यावहारिक सलाह थी और परम पावन ने उनसे कहा कि विश्व के अन्य भागों में यू एस इंस्टिट्यूट फॉर पीस (शांति के लिए अमेरीकी संस्थान) की शाखाओं की स्थापना करना सहायक हो सकता है। उन्होंने सुझाव दिया कि दक्षिण अफ्रीका में एक शाखा अफ्रीकियों के साथ अधिक निकटता से संबंध स्थापित कर सकती है, जॉर्डन में एक अन्य मध्य पूर्व के लोगों के साथ काम कर सकती है। फिर, उसकी आँखों में एक चुलबुलेपन के साथ उन्होंने कहा:
"और हाँ, अंत में मास्को और चीन में, चीन में परिवर्तन हो रहा रहा है, लेकिन इसमें कुछ समय लगेगा।"
इसके बाद परम पावन संक्रमण में समाज के लिए विकास संगठन (डेवलपमेंट ऑरगनाइज़ेशन फॉर सोसाइटीज़ इन ट्रांसिशन) - दोस्त, द्वारा आयोजित एक पैनल चर्चा में सम्मिलित हुए। परम पावन तथा अमेरिकी मुस्लिम समुदाय के बीच एक संवाद के रूप में बुलाई गई का विषय था 'सेवा मे कार्य'(एक्शन इन सर्विस)। पैनल के सदस्यों में महान ग्रैंड अयातुल्ला सैयद अली अल-सिस्तानी के प्रतिनिधि और न्यूयॉर्क में अल-खोई फाउंडेशन के प्रमुख शेख अल सहलानी, सुश्री मनल ओमर, यू एस इंस्टिट्यूट फॉर पीस (शांति के लिए अमेरीकी संस्थान) में मध्य पूर्व और अफ्रीका केंद्र के लिए कार्यकारी उपाध्यक्ष,श् री इस्लामिक रिलीफ, संयुक्त राज्य अमेरिका के एक मूल सदस्य, अनवर खान, सुश्री हुमेरा खान, मुफलेहुन, कट्टरता को रोकने और हिंसक उग्रवाद का मुकाबला करने के थिंक टैंक की कार्यकारी निदेशक शामिल थे। चर्चा सुश्री एम्बर जमील दोस्त की उपाध्यक्ष द्वारा प्रारंभ की गई और दोस्त के कार्यकारी निदेशक श्री जॉन पिन्ना द्वारा संचालित की गई।
संवाद को प्रारंभ करने के िलए आमंत्रित िकए जाने पर परम पावन ने कहा ः
"११ सितंबर के एक वर्ष बाद मैं यहाँ वॉशिंगटन में था और मुझे नेशनल कैथेड्रल में स्मारक सेवा में शामिल होने के लिए आमंत्रित किया गया था। उस समय मैंने स्पष्ट कर दिया था कि केवल इसलिए कि कुछ मुसलमान पृष्ठभूमि वाले व्यक्तियों ने कुछ भयानक किया है, हम एक पूरे समुदाय को कलंकित करने की अनुमति नहीं दे सकते। मैंने कहा कि कुछ शरारती तत्वों के कार्यों के आधार पर १ अरब आस्था रखने वालों का सामान्यीकरण करना एक गलती है। मैंने कहा कि मैं एक मुसलमान नहीं हूँ, मैं एक बौद्ध हूँ, परन्तु इस्लाम विश्व के महत्वपूर्ण धर्मों में से एक है।"
"मुस्लिम मित्रों ने मुझे आश्वस्त किया है कि एक अच्छे मुसलमान को अल्लाह के सभी प्राणियों के लिए प्यार बाँटना चाहिए। दूसरी ओर जो खूनखराबी करता है वह सच्चा मुसलमान बना नहीं रह सकता। और जहाँ तक 'जिहाद' शब्द का संबंध है, जो यह वास्तविक अर्थ संदर्भित करता है कि वह अपनी विनाशकारी भावनाओं का मुकाबला करने की लड़ाई है। इसलिए ऐसा प्रतीत होता है कि मुझ जैसे लोग हर दिन 'जिहाद' में लगे हुए हैं।"
उन्होंने इस्लाम को लेकर जो गलतफहमी पैदा हुई है उसे स्पष्ट करने की जरूरत पर बल दिया। उन्होंने यह भी सूचित किया कि सितम्बर ११ के एक दिन बाद उन्होंने राष्ट्रपति बुश को एक पत्र िलखा था, जिन्हें वह एक निजी मित्र के रूप में देखते हैं, और अपनी संवेदना व्यक्त की, पर साथ ही यह आशा भी कि त्रासदी का प्रत्युत्तर अहिंसक होना चाहिए। उन्होंने कहा कि इराक में लोकतंत्र लाने के लिए प्रेरणा अच्छी थी, पर इसे लाने के लिए हिंसक बल प्रयोग गलत दृष्टिकोण था। अंतिम परिणाम यह हुआ है कि और अधिक लोग पीड़ित हुए हैं। उन्होंने सुझाया कि लोग जिस प्रकार से इस्लाम और मुसलमानों को देखते हैं उसमें समस्याएँ हैं और उसमें परिवर्तन आना चाहिए।
"यह सही नहीं हो सकता है," उन्होंने कहा, "कि लोग शेख को देखें, यहाँ पगड़ी है और सोचें कि वह एक खतरनाक आदमी है।"
शेख अल - सहलानी ने सहमति व्यक्त की और कहा कि इस्लाम दया का धर्म है और दया की इस भावना का एक पहलू दूसरों के लिए सहायक होने की इच्छा है। उन्होंने कहा:
"मैं मूल रूप से इराक का हूँ, पर अब इराक आतंक का एक स्थान बन गया है। जो इस्लाम के नियमों का उल्लंघन करते हैं, नाममात्र में, वे इस्लाम के सबसे बड़े दुश्मन हैं।"
परम पावन एक मित्र, एक भारतीय पत्रकार की रिपोर्ट का स्मरण करने के िलए प्रेरित हुए, जो क्रांति और अयातुल्ला खुमैनी की वापसी के बाद ईरान में था। जहाँ बाहरी विश्व चिंता से भरा देख रहा था, वह मुल्क के अंदर स्वयं यह देखकर प्रभावित था कि किस तरह मुल्ला अमीरों से दान स्वीकार कर रहे थे और गरीबों में धन बाँट रहे थे।
श्री अनवर खान ने इस विषय को उठाया और पैनल को बताया कि किस प्रकार ११ सितंबर के बाद लोग उन जैसे मुसलमानों को मारना चाहते थे पर फिर भी जहाँ वे कर सकते थे, उन्होंने खून दिया और मदद की। उन्होंने कहा कि
"इंसाफ के दिन पर, ईश्वर पूछेगा 'तुमने अपने समय के साथ क्या किया, अपने पैसे के साथ क्या किया?' इसलिए मैं अपने दोस्तों से कहता हूँ, 'मेहरबानी से हमें इस दुनिया को एक बेहतर जगह बनाने के लिए एक मौका दीजिए।'
परम पावन राजी हुए कि जिस प्रकार के धर्मार्थ कामों की बात हो रही है, वे खबरें नहीं बनतीं। जब भी उन्हें मौका मिलता है वे मीडिया के सदस्यों को न केवल सनसनीखेज कहानियों को आगे बढ़ाने में, पर साथ ही अच्छी खबरों की सूचना देने के लिए भी प्रोत्साहित करते हैं, क्योंकि अकसर अच्छी खबरें इतनी गंभीरता से ली नहीं जातीं। उन्होंने इस तरह की बैठकों की अन्य स्थानों पर भी नियमित रूप से आयोजित करने की सिफारिश की।
सुश्री हुमेरा खान ने आस्था के संरक्षण, धर्म की स्वतंत्रता का संरक्षण, जीवन की सुरक्षा, विचारों की सुरक्षा और संपत्ति के संरक्षण की आवश्यकता ताकि लोग सुरक्षा से जीवन जी सकें, की बात की। उन्होंने एक सकारात्मक संदेश, जैसे एक अच्छा जीवन व्यतीत करने की हर किसी की आवश्यकता पर बल दिया।
'जिहाद' के वास्तविक अर्थ के बारे में जनता को फिर से शिक्षित करने के बारे में एक सवाल के जवाब में सुश्री मनल ओमर ने उत्तर दिया कि ज़रूरत है, मुस्लिम समुदाय की मदद क्योंकि ऐसा करने का सबसे अच्छा तरीका उदाहरण द्वारा दिखाना होगा। अभिव्यक्ति की स्वतंत्रता पर सीमाओं के विषय पर एक अन्य सवाल के जवाब में, श्री अनवर खान ने कहा, कि केवल इसलिए कि तुम्हारे पास दूसरों का अपमान करने की स्वतंत्रता है, इसका मतलब यह नहीं कि आप ऐसा करें। और इसी को आगे बढ़ाते सुश्री मनल ओमर ने जोड़ाः
"जब कोई कुछ बुरा करता है, तो हमें एक बेहतर तरीके से जवाब देना चाहिए।"
श्री जॉन पिन्ना ने बैठक को समाप्त किया और श्रोताओं को बताया कि तिब्बती और इस्लामी रीति-रिवाजों के एक मिश्रण के रूप में, शेख अल-सहलानी परम पावन दलाई लामा के अच्छे स्वास्थ्य और लंबे जीवन के लिए और मुस्लिम समुदाय की भलाई के लिए एक प्रार्थना करने जा रहे थे। समापन पर बैठक के एक स्मृति चिन्ह के रूप में परम पावन को सभी पैनल सदस्यों द्वारा हस्ताक्षरित प्रमाण पत्र और एक बाल्टी टोपी प्रदत्त की गई।
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इसके तुरन्त बाद परम पावन गाड़ी से वाशिंगटन डलेस अंतरराष्ट्रीय हवाई अड्डे गए और ज्यूरिख के लिए एक उड़ान में सवार हुए। सर्दियों की ठंडी धूसर सुबह में आकर वह राजसी राइन के किनारे स्थित हिमाच्छादित स्विस परिदृश्य बासेल के शहर होते हुए गए। जब वे अपने होटल पहुँचे तो एक हजार से अधिक तिब्बतियों ने संगीत, गान, नृत्य, लहराते ध्वजों और खिले मुस्कान लिए सौहार्दपूर्ण रूप से उनका स्वागत किया। उन्होंने प्रसन्नता से हाथ जोड़कर उनके अभिनन्दन का उत्तर दिया और इसके बाद बचे दिन में आराम के लिए उन्होंने विदा ली। कल वे निकट के सेंट जेकोबशैले में नागार्जुन के 'बोधिचित्तविवरण' और गेशे लंगरी थंगपा के 'चित्त शोधन के अष्ट पदों' पर प्रवचन देंगे।