नई दिल्ली, भारत - २० जनवरी २०१५- निदेशक डॉ प्रोफेसर एच कार और संकाय के सदस्यों के आमंत्रण के उत्तर में परम पावन दलाई लामा ने आज डॉ राम मनोहर लोहिया अस्पताल का दौरा किया । इसके पूर्व विलिंगडन अस्पताल के रूप में जाना जाता हुआ इसे मूल रूप से २०वीं सदी में ब्रिटिश राज के दौरान सरकारी कर्मचारियों का इलाज करने हेतु स्थापित किया गया था। आगमन पर निदेशक ने परम पावन का स्वागत िकया और वे उन्हें एक खचाखच भरे सभागार में ले गए, जहाँ ४०० से अधिक डॉक्टर, नर्स और अन्य चिकित्सा कर्मचारी उन्हें सुनने की प्रतीक्षा कर रहे थे।
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डॉ कार के परिचय के उपरांत परम पावन ने कहा कि यह उनके िलए एक महान सम्मान का िवषय है कि उन्हें डॉक्टरों, नर्सों और अन्य कर्मचारियों से बात करने का अवसर मिला है जो रोगियों और जरूरतमंद लोगों के लिए अपने जीवन को समर्पित करते हैं। "करुणा और नैतिकता" विषय पर अपनी टिप्पणी में उन्होंने आंतरिक मूल्यों, हम जो भी करें उसमें एक अच्छी प्रेरणा और धर्मनिरपेक्ष नैतिकता के बारे में जागरूकता पैदा करने की आवश्यकता के महत्व पर बल िदया। उन्होंने मानवीय मूल्यों और अंतर्धार्मिक सद्भाव के प्रति जागरूकता फैलाने के लिए अपनी ही प्रतिबद्धताओं का संदर्भ दिया।
"हम सब एक समान हैं शारीरिक, मानसिक और भावनात्मक रूप से," उन्होंने अपने श्रोताओं को बताया। "अन्य प्राणियों की भाँति हम सुख चाहते हैं। और हम सब को एक सुखी जीवन जीने का अधिकार है। परन्तु जो हमें जानवरों से अलग करती है वह हमारी मेधा है। हमारी बुद्धि तथा हमारा अधिक शक्तिशाली दिमाग हमें अपने साथ दूसरों को सुखी करने की क्षमता देता है। पर फिर भी जब हम अपनी बुद्धि का उपयोग नकारात्मक या विनाशकारी अर्थों में करते हैं तो हम संगठित या यंत्रीकृत हिंसा, जो युद्ध है, जैसी समस्याएँ निर्मित करते हैं। यही कारण है कि हमें अपनी बुद्धि का उपयोग और अधिक सकारात्मक रूप से कर स्वयं को अन्य सात अरब लोगों के बीच एक और अन्य मानना चाहिए।"
"मैं प्राचीन भारत के िवचारों का बड़ा प्रशंसक हूँ। अहिंसा ने व्यापक सहिष्णुता तथा धर्मनिरपेक्षता की एक प्रबल भावना को जन्म दिया, जिसका भारत में अर्थ है धार्मिक आस्था रखने वाले उन सभी के िवचारों और उन लोगों के प्रति भी जिनकी कोई आस्था नहीं, सम्मान की भावना का विकास करना। पश्चिम में धर्मनिरपेक्षता शब्द कुछ लोगों द्वारा नास्तिकता के सम माना जाता है, जहाँ किसी भी धर्म के प्रति कोई सम्मान नहीं है। प्राचीन भारतीय दर्शन और मनोविज्ञान गहरे तथा गहन थे। यदि हम आज प्राचीन भारतीय मनोविज्ञान की तुलना पाश्चात्य मनोविज्ञान के साथ करें तो पाश्चात्य मनोविज्ञान मात्र प्रारंभिक अवस्था में है।"
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"भारत एक ऐसा देश भी है जहाँ विश्व के प्रमुख धर्म लंबे समय से साथ साथ रहे हैं। कुछ सामयिक दुर्भाग्यपूर्ण घटनाओं के अतरिक्त अधिकांश रूप से यहाँ धार्मिक परंपराओं के बीच महत्वपूर्ण सद्भाव रहा है। यह मेरी दूसरी प्रतिबद्धता के साथ जुड़ता है ः अंतर्धार्मिक सद्भाव को बढ़ावा देना। चूँकि सभी धार्मिक परंपराएँ प्रेम, करुणा तथा क्षमा की बात करती हैं, उन सब के लिए सम्मान और सद्भाव से एक साथ रहना संभव होना चाहिए। इस प्रकार की समझ मानवता के लिए अत्यंत सहायक होगी।"
"एक सौहार्दपूर्ण हृदय तथा एक सकारात्मक प्रेरणा का विकास बहुत महत्वपूर्ण हैं। एक तिब्बती उक्ति है कि यह चिकित्सक बहुत विद्वान है पर उसकी दवा इतनी प्रभावी नहीं है, जबकि वह डॉक्टर यद्यपि इतना शिक्षित नहीं है पर वह अधिक प्रभावी दवा बनाता है क्योंकि उसमें सौहार्दता है। यदि आपके मन में दूसरों के लिए चिंता की वास्तविक भावना है तो आपका उपचार अधिक सफल होगा। मुस्कान और अपने व्यवहार में सौहार्दपूर्ण होना ही कुंजी है। कड़ा चेहरा िलए चिकित्सक अपने रोिगयों को ठीक करने की मशीनों से अधिक कुछ नहीं मानता जबकि वह डॉक्टर जो मुस्कुराता है, अपने रोगी को आराम देने के महत्व को समझता है। डॉक्टर और नर्स दूसरों की सहायता करने के अपने प्रयासों में सही अर्थों में सराहनीय हैं। मैं सरलता से करुणा के विषय में बोलता हूँ, पर आप लोग उसे कार्यान्वित करते हैं। बहुत खूब।"
परम पावन ने श्रोताओं के कई प्रश्नों के उत्तर दिए। यह पूछे जाने पर कि डॉक्टरों के बीच प्रतिस्पर्धा अच्छी है अथवा नहीं, परम पावन ने उत्तर दिया कि यह प्रेरणा पर निर्भर करता है।
"यदि यह प्रेरणा अधिक प्रभावी ढंग से दूसरों की सहायता करने के लिए है तो यह अच्छा है। पर यदि उद्देश्य अपने स्वार्थी हितों के शीर्ष पर पहुँचने के लिए है तो यह अधिक सहायक नहीं है।"
इस प्रश्न पर िक क्या हम एक सत्य, एक आस्था को स्वीकार करें कि कई को मानें, उन्होंने कहा कि एक धर्म और एक सच्चाई की धारणा व्यक्ति के स्तर पर उपयोगी हो सकती है, परन्तु व्यापक समुदाय के संदर्भ में हमें कई धर्मों और कई सत्यों का अस्तित्व स्वीकार करना होगा। उन्होंने यह भी समझाया कि चित्त की प्रकृति विशुद्ध है तथा क्लेश और उद्विग्न करती भावनाएँ चित्त की प्रकृति नहीं हैं। उन्होंने कहा कि सुख, आंतरिक शांति और अच्छे स्वास्थ्य की प्राप्ति के लिए हमें चित्त को प्रशिक्षित करने की आवश्यकता है। श्रोताओं ने स्पष्ट रूप से परम पावन के व्याख्यान का आनंद उठाया और अपनी सराहना अंत में तालियों की गड़गड़ाहट से व्यक्त की।