लंदन, इंग्लैंड - १८ सितम्बर २०१५- आज कैम्ब्रिज से रवाना होने से पूर्व परम पावन दलाई लामा ने प्रेस को दो एक साक्षात्कार दिए। टाइम्स के फियोना विल्सन ने उनसे 'मैंने क्या सीखा है' पर बात की, उनके कुछ प्रश्न व्यक्तिगत और कुछ विषयों से संबंधित थे। जब उन्होंने पूछा कि वे यूरोप की शरणार्थियों की स्थिति के बारे में क्या पूछते हैं, तो परम पावन ने उत्तर दियाः
"यह बहुत अच्छी बात है कि कई देश शरणार्थियों को अपने देश में आश्रय दे रहे हैं, परन्तु दीर्घ काल में हमें वे जिस देश से आ रहे हैं उनके संघर्षों का एक शांतिपूर्ण समाधान खोजना होगा। हमें शांति लाने का प्रयास करना चाहिए।"
जब उनसे पूछा गया कि क्या धर्म के नाम पर हिंसा कभी भी न्यायोचित हो सकती है तो उन्होंने उत्तर दिया:
"कभी नहीं" और इस संबंध में, कि क्या युद्ध कभी न्यायोचित हो सकता है, उन्होंने कहा:
"यह कहना कठिन है। द्वितीय विश्व युद्ध में फ़ासिज़्म की पराजय लाभकर थी और कोरियाई युद्ध ने दक्षिण कोरिया को बचाया, परन्तु वियतनाम युद्ध के बारे में यह कहना मुश्किल होगा।"
अपनी प्रारंभिक स्मृतियों के बारे में पूछे जाने पर परम पावन ने कहा कि उन्हें स्पष्ट रूप से स्मरण है कि जब वे लगभग दो वर्ष के थे तो उनकी मां का स्नेह कितना प्रबल था।
यह पूछे जाने पर कि क्या धर्मनिरपेक्षता धर्म की शिक्षाओं की शक्ति को क्षीण कर देती है, उन्होंने कहा कि उनका विश्वास है कि यदि बुद्ध आज प्रकट हों तो वे धर्मनिरपेक्ष नैतिकता सिखाएँगे। यह पूछे जाने पर कि वह किन धार्मिक नेताओं के प्रशंसक हैं, उन्होंने पोप जॉन पॉल द्वितीय का उनके अंतर्धार्मिक सद्भाव को बढ़ावा देने के उनके कार्य के लिए उल्लेख किया।
सुश्री विल्सन ने पूछा "क्या आपको कभी क्रोध आता है," और उन्होंने उनसे कहा:
"हाँ, कभी कभी जब मेरे कर्मचारी गलती करते हैं, पर वह केवल एक पल के लिए रहता है।"
इस प्रश्न पर कि "आप सबसे अधिक खुश कब रहते हैं?" उन्होंने उत्तर दिया:
|
"प्रतिदिन मैं स्वयं को दूसरों की सेवा करने हेतु अपने आपको समर्पित करने की प्रार्थना करता हूँ।"
बिग इश्यु एक पत्रिका, जो बेघर तथा असहाय आश्रित लोगों द्वारा प्रकाशित और बेची जाती है, के स्टीवन मैकेंज़ी ने परम पावन का संदर्भ विश्व के सबसे विख्यात शरणार्थी के रूप में दिया। उन्होंने पूछा कि क्या परम पावन अभी भी विस्थापित अनुभव करते हैं, जिसके उत्तर में परम पावन ने कहा:
"हम तिब्बतियों में एक कहावत है: ‘जहाँ भी आप खुश हैं वह घर है, जो भी आपके प्रति दयालु है वह आपके माता-पिता की तरह है।’"
मैकेंज़ी, तिब्बत में लोगों के साथ संप्रेषण के बारे में भी जानना चाहते थे। परम पावन ने उन्हें बताया कि जिस समय से वे तिब्बत से बच निकले और १९७९ तक बहुत कम तिब्बती तिब्बत छोड़ने में सक्षम थे, पर १९७९-८० में देंग जियाओपिंग के सुधारों के परिणामस्वरूप कुछ आने जाने में सक्षम हुए।
इसके बाद परम पावन ने एक ऐसे समूह के सदस्यों के साथ भेंट की, जो अपने आपको एनकेटी में बचे हुए कह कर बुलाते हैं, वे लोग जिन्होंने नए धार्मिक आंदोलन, नव कदम्प परम्परा को छोड़ दिया है। उनकी बेचैनी के कई कारणों में से एक एनकेटी सदस्यों का विश्व भर के शहरों में परम पावन दलाई लामा के विरुद्ध द्वेषपूर्ण प्रदर्शनों में शामिल होना है। इन विरोध प्रदर्शनों का केंद्र दोलज्ञल या शुगदेन के रूप में जानी जाने वाली एक विवादास्पद आत्मा के बारे में मतभेद है। परम पावन ने प्रारंभ किया:
"मुझे लगता है कि आप जानते हैं कि इस आत्मा की कहानी लगभग चार सौ वर्ष पुरानी है। एक समय मैं भी इसकी तुष्टि करता था। मेरे वरिष्ठ अध्यापक लिंग रिनपोछे, जिन्होंने मुझे दीक्षा दी थी, का इसके साथ कुछ लेना देना नहीं था, पर मेरे कनिष्ठ अध्यापक, ठिजंग रिनपोछे इसका अभ्यास किया करते थे। ७० दशक के उत्तरार्ध में इसके विषय में कुछ संदेह होने पर मैंने कुछ विद्वानों से इस विषय पर शोध करने के लिए कहा। हमने पाया कि यह मामला ५वें दलाई लामा तक जाता था, जिन्होंने दोलज्ञल को एक दुरात्मा के रूप में वर्णित किया, जो विकृत प्रार्थनाओं के परिणाम स्वरूप उत्पन्न हुई थी।
"बाद में, ७वें दलाई लामा के अध्यापक के समय, ञवंग छोगदेन, जो गेलुग परंपरा के सिंहासन धारक या गेलुग परम्परा के प्रमुख गदेन ठिपा भी बने, कई उपाध्याय इस आत्मा की तुष्टि करते थे और गदेन महाविहार में एक मंदिर भी बनाया गया। ञवंग छोगदेन, जो कि प्रथम रडेंग रिनपोछे थे, ने इस मंदिर को ध्वस्त कर दिया और इसकी तुष्टि को प्रतिबंधित किया। उन्होंने कहा कि गेलुग परंपरा के संस्थापक, जे चोंखापा के जीवनकाल में गदेन महाविहार के परिसर के भीतर उनके 'जन्म देवता' के लिए भी मंदिर की अनुमति नहीं थी।
"बाद में भी १३वें दलाई लामा ने इस आत्मा से सम्बद्धित अभ्यास को प्रतिबंधित किया और फबोंगखा रिनपोछे को इस विषय पर यह कहते हुए लिखा कि जिस तरह से उनका इसके साथ व्यवहार है, वह बौद्ध शरण वचनों को तोड़ना है। मैंने पाया कि जब तक मैं नहीं आया था, किसी भी दलाई लामा का इस आत्मा के साथ कोई सम्बध नहीं था। शायद यदि ५वें और १३वें दलाई लामा अब पुनः प्रकट हों तो वे मुझे आमदो वापस भेज देंगे।
"जब एक बार मैंने अभ्यास को रोकने का निश्चय कर लिया, तो मैंने इसे अपने तक सीमित रखा। फिर गदेन जंगचे महाविहार ने मुझसे यह कहते हुए संपर्क किया कि वे दुर्भाग्य का सामना कर रहे थे और उन्होंने इसके बारे में ठिजंग रिनपोछे से पूछा था। उन्होंने उन्हें बताया कि यह उनके पारम्परिक रक्षक पलदेन ल्हामो के क्रोध का परिणाम था। उन्होंने मुझसे पूछा कि वे इस संबंध में क्या कर सकते हैं। मैंने एक 'आटा-गेंद भविष्यवाणी’ का आयोजन किया और पहले यह पूछा कि क्या उनकी समस्याओं का कारण पलदेन ल्हामो का क्रोध था। उत्तर था 'हाँ’। तब मैंने पूछा कि क्या क्रोध का कारण उनके द्वारा एक नया रक्षक स्वीकार करना था और पुनः उत्तर था "हाँ"। मैंने गदेन महाविहार के कुछ वरिष्ठ लामाओं को सूचित किया और उनसे निर्णय लेने को कहा कि क्या कार्रवाई की जानी चाहिए।
"क्रमशः इस सलाह का पता लग गया। तिब्बत के भीतर दोलज्ञेल के कुछ साधकों ने कहा कि दलाई लामा ये कदम इसलिए उठा रहे थे क्योंकि वे ञिङमाओं को प्रसन्न करने का प्रयास कर रहे थे, अतः मुझे बातें और अधिक सार्वजनिक रूप से समझानी पड़ी। इसके पहले मेरे वरिष्ठ अध्यापक, लिंग रिनपोछे भी, जिनका इस अभ्यास से कुछ लेना देना नहीं था, वे दोलज्ञल के नाम के कारण मेरी ञिङमा शिक्षा प्राप्त करने को लेकर चौकन्ने थे। एक बार जब मैंने इसकी तुष्टि बंद कर दी तो मुझे व्यक्तिगत राजनैतिक स्वतंत्रता मिल गई और पूर्व दलाई लामाओं की तरह मैं बौद्ध धर्म की एक दुनियावी, गैर सांप्रदायिक दृष्टिकोण का पालन करने में सक्षम हो गया। मैंने इस कार्य की पुष्टि अवलोकितेश्वर की एक प्रसिद्ध प्रतिमा के समक्ष एक और भविष्यवाणी के द्वारा की थी।
"इन सबके परिणाम स्वरूप दोलज्ञल के समर्थकों ने दिल्ली में एक समूह के रूप में स्वयं को स्थापित कर लिया। तत्पश्चात गेन लोबसंग ग्याछो की हत्या हुई। अपराधी, जिनकी पहचान हिमाचल प्रदेश पुलिस द्वारा की गई, वापस तिब्बत भाग गए जहाँ चीनी अधिकारियों द्वारा उनका स्वागत किया गया।
"जब मैं इस सबके बारे में समझाता हूँ, तो यह स्पष्ट कर देता हूँ, कि ऐसा करना मेरा कर्तव्य है। यदि लोग असहमत होते हैं और अभ्यास जारी रखते हैं तो यह उनका मामला है। परन्तु मैं उनके अगले जीवन के बारे में चिंतित हूँ। ये प्रदर्शनकारियों मुझसे नाराज हैं। मैं बोधिचित्तोत्पाद तथा शून्यता की समझ का विकास करने का प्रयास करता हूँ, मुझ पर क्रोध करने से उनका कुछ भला न होगा। जब मैं उन्हें देखता हूँ तो मुझे उनके लिए बहुत चिंता होती है।
"बौद्ध के रूप में हमें प्रामाणिक शिक्षाओं का पालन करना चाहिए जैसे कि १७ नालंदा के पंडितों की। इस तरह की आत्माओं पर निर्भरता धर्म के अभ्यास का अध: पतन है।
"तांत्रिक परम्परा के कारण हम 'गुरु योग’ पर और गुरु के वचनों के पालन पर बल देते हैं। यद्यपि बुद्ध ने स्वयं अपने अनुयायियों को सलाह दी कि उन्होंने जो कुछ कहा है उसे उसी तरह न मानते हुए, उसका परीक्षण करें, उसकी जाँच करें कि क्या उसका कोई अर्थ निकलता है। और अधिक व्यापक रूप से पढ़ें। नागार्जुन, चन्द्रकीर्ति और शांतिदेव की रचनाओँ का अध्ययन करें, साथ ही जे चोंखापा का 'महान पथक्रम' भी। यदि भूल हो गई है तो उसकी चिंता मत करो, १४वें दलाई लामा ने भी की थी।
"शांतिदेव के 'बोधिसत्वचर्यावतार' पर केलसंग ग्याछो का भाष्य अच्छा है। पर फिर भी चार प्रतिशरण पर ध्यान दो: व्यक्ति का प्रतिशरण न लो अपितु धर्म पर निर्भर रहो। शब्द पर निर्भर मत रहो अपितु अर्थ का प्रतिशरण लो। नेयार्थ पर नहीं अपितु नीतार्थ पर निर्भर रहो और अंत में विज्ञान पर नहीं अपितु ज्ञान पर निर्भर रहो। पुस्तकें पढ़ो, अपने मित्रों को इकट्ठा करो और जो तुमने सीखा है उस पर चर्चा करो। परस्पर आत्मविश्वास दो। मैं आपके साहस की प्रशंसा करता हूँ। सत्य और बुद्ध के प्रामाणिक शिक्षाओं में विश्वास करो।
"मैं केलसंग ग्याछो को जानता हूँ। वह एक आचार्य नहीं थे पर एक अच्छे विद्वान थे। जब मैं मसूरी में था तो उन्होंने मुझे गुंगथंग रिनपोछे के लेखन की एक प्रति दी, जिसके लिए मैं उनका आभारी था। लामा सोपा ने उन्हें इंग्लैंड में पढ़ाने के लिए आमंत्रित किया, पर बाद में उनमें झगड़ा हो गया। मैंने मध्यस्थता करने के प्रयास से एक अधिकारी को भेजा। १९८१ में वे मैडिसन विस्कॉन्सिन के डियर पार्क कालचक्र अभिषेक में आए, जो मैं उनके शिक्षक गेशे सोपा के अनुरोध पर दे रहा था। अब उन्होंने यद्यपि अपने स्वयं के शिक्षक को मेरे विरुद्ध कर दिया है, पर सुना है कि वे ज़ोर देते हैं कि उनके अपने छात्र केवल उनका पालन करें। आपको उन्हें आदरपूर्वक देखना चाहिए, फिर चाहे आप स्वयं से कहें कि अब आप बुद्ध और जे चोंखापा की प्रामाणिक शिक्षाओं का पालन करने का प्रयास कर रहे हैं।"
परम पावन ने समूह से खुशी का अनुभव करने के लिए कहा और यह कहा कि वे उन्हें स्मरण रखेंगे। उन्होंने उनसे पुनः कहा कि यदि उन्होंने कोई भूल की है तो वे चिंता न करें, वे स्वयं को याद दिला सकते हैं कि उन्होंने भी की थी।
मध्याह्न के भोजन के बाद, परम पावन ने न्यूटन प्रीपरेटरी स्कूल, बैटरसी देखने के लिए लंदन की यात्रा की। कैम्ब्रिज में दो दिन के विचार-विमर्श के बाद, इंस्पायर डायलोग फाउंडेशन ने स्कूल के बच्चों, २१वीं सदी की पीढ़ी, के साथ एक बैठक के लिए व्यवस्था की थी। उनके साथ लार्ड विलियम्स थे और द्वार पर उनका स्वागत स्कूल की मुख्य अध्यापिका एलिसन फ्लेमिंग ने किया। वे विद्यालय में जहाँ बच्चे पंक्तिबद्ध हो गा रहे थे, उनका अनुरक्षण करती हुईं उन्हें सभागार तक ले गईं।
एक आनन्द से भरे घंटे में लंदन के अलग अलग भागों के सात अलग-अलग समूहों के बच्चों ने मानव अधिकार, स्वतंत्रता और वे जिस प्रकार के विश्व में बड़े होना चाहते हैं उसकी कल्पना पर स्वनिर्मित प्रस्तुतियाँ सामने रखीं। कुछ ने नृत्य किया, कुछ ने गाया, कुछ ने कविता पाठ किया, अन्य कुछ बच्चों ने नाटक व छाया नाटक प्रदर्शित किया। प्रत्येक समूह के प्रदर्शन के अंत में वे परम पावन और लार्ड विलियम्स के चरणों के निकट बैठे और बातें की और एक दूसरे से प्रश्न पूछे।
मध्याह्न के अंत में, एलिसन फ्लेमिंग, कैमरून टेलर और लार्ड रूमी वर्जी के धन्यवाद के शब्दों के बाद, परम पावन ने दीवार के साइन की ओर संकेत किया जिस पर शांति का शब्द था। उन्होंने कहा:
"वह शब्द शांति - शांति हमारा लक्ष्य है। और शांति को चित्त की शांति के माध्यम से आना चाहिए। यदि विश्व शांतिपूर्ण तो यह हम सबके लिए अच्छा है। यदि हम सत्यनिष्ठा व पारदर्शिता से रहें तो विश्वास उभरेगा और विश्वास मैत्री को विकसित करेगा। मुझे यहाँ आमंत्रित करने के लिए धन्यवाद।"