टाशी ल्हुन्पो, बाइलाकुप्पे, कर्नाटक, भारत - ३० दिसम्बर २०१५- आज प्रातः जब परम पावन टाशी ल्हुन्पो महाविहार के प्रांगण में आए तो हवा में ठंड थी। वे कदम के १६ तिलक के अभिषेक के लिए तैयारियाँ प्रारंभ करने वाले थे। भोर की सूर्य की किरणें १६ तिलक को चित्रित करती थंका के समक्ष सजाई गईं आनुष्ठानिक प्रसादों को आभा मंडित कर रही थीं। जैसे जैसे तैयारियाँ आगे बढ़ीं श्रोताओं ने आकर अपने स्थान ग्रहण किए। एक बार सिंहासन पर उनके सम्मुख अपना स्थान ग्रहण करने के पश्चात परम पावन ने प्रवचन का संदर्भ समझाया।
ङोग लेगपे शेरब, डोमतोनपा और अतीश येरपा में ल्हारी के पर्वत पर थे। ये देखते हुए कि डोम सदैव विनम्र व्यवहार वाले हैं, ङोग ने अतीश को डोम के पूर्व जन्मों के विषय में बताने के लिए कहा। डोम ने आपत्ति जताई कि, वे किस प्रकार वे भवचक्र में चक्कर काट रहे थे यह सुनकर कि उन्हें कुछ बहुत नहीं मिलने वाला है। ङोग ने अपनी टोपी हटाई और कहा, 'मैं इस अवस्था में हूँ कि बाल सफेद और सिर गंजा हो रहा है, कृपया गुरु को मेरे अनुरोध पर उत्तर देने से न रोकें।' जैसे ही अतीश ने कहानी सुनाना प्रारंभ किया, वे और डोम प्रेरणा से भर गए। अपने उस आनंदोत्साह में डोम अदृश्य हो गए और उन्हें एक छबि दिखी जो १६ तिलकों से संबंधित थी।"
परम पावन ने कहा कि कई पीढ़ियों तक वह शिक्षा गुह्य बनी रही। फुछुंगवा वंशधर बन गए और उन्होंने स्पष्ट रूप से उसे आगे बढ़ाया। उन्होंने आगे कहा कि चूँकि यह विशेष रूप से तिब्बत से संबंधित था, तो सत्य के शब्दों के पाठ से प्रारंभ करना अच्छा होगा।
"अभिषेक एक विशुद्ध दृष्टि से आता है। ञिङमा परम्परा में सुदूर शिक्षाएँ, जो बुद्ध के साथ अस्तित्व में आई हैं, निकट की शिक्षाएँ, जो निधियों से निकली हैं और विशुद्ध दृष्टि की गहन शिक्षाओं को संदर्भित करने का एक मार्ग है। डोमतोनपा और उनके शिष्यों ने महायान और आधारभूत यानों में समान शिक्षणों को धारण किया जो व्यापक आचरण के वंशज और गहन प्रज्ञा के वंशज दोनों से संबंधित थे। कुछ लोग आशीर्वाद वंशज की बात करते हैं पर उपरिलिखित वंशजों से अतिरिक्त और क्या है? संभवतः हम कह सकते हैं कि कुछ ऐसे निर्देश हैं जो साधारणतया सुलभ हैं और अन्य जो विशिष्ट व्यक्तियों या समूहों के लिए अनुकूल हैं।
"जो 'बोधिपथ प्रदीप' का अनुपालन करते हैं वे ऐसे लोग हैं जिन्होंने तीन प्रकार की क्षमता रखने वाले लोगों के अनुकूल अभ्यास, तीन शीलों - नैतिकता, ध्यान व प्रज्ञा का प्रशिक्षण जो कि विनय, सूत्र तथा अभिधर्म के तीन शास्त्रीय संग्रहों में निहित है, को एकीकृत किया।"
परम पावन ने उल्लेख किया कि वे बोधिसत्व संवर प्रदान करेंगे, पर चूँकि अभिषेक का खुले रूप में वेब प्रसारण किया जा रहा है वे इस अवसर पर तांत्रिक संवर नहीं देंगे। उन्होंने स्पष्ट किया कि उनसे पूछा गया था कि क्या इंटरनेट पर अभिषेक प्राप्त करना संभव था और उनका उत्तर था कि यदि लोगों की प्रेरणा अच्छी हो तो यह संभव होना चाहिए और वे भावना का पालन कर सकते थे। उन्होंने कहा कि उन्होंने चिन्तन किया है कि यदि पत्र द्वारा प्रव्रर्ज्या संभव है तो एक वेब प्रसारण अभिषेक भी संभव होना चाहिए।
उन्होंने उल्लेख किया कि उन्हें क्याब्जे ठिजंग रिनपोछे से अभिषेक प्राप्त हुआ था जिन्होंने उसे प्रदान करने हेतु एक विशेष एकांतवास किया था। परम पावन ने कहा कि उन्होंने भी आवश्यक एकांतवास किया था। उन्होंने यह आशा संजोई थी कि जब वे पहले अभिषेक देने आएँ तो वे ठिजंग रिनपोछे के पुनर्जन्म को यह प्रदान कर पाएँगे। इसी कारण लॉस एंजिल्स में यद्यपि गेशे छुलठिम ज्ञाछो ने बार बार उनसे देने का अनुरोध किया था, उन्होंने उनसे प्रतीक्षा करने को कहा था। अंत में वह अवसर नहीं आया और तब से वे ग्यूमे तांत्रिक महाविहार और थेगछेन छोलिंग धर्मशाला में दे चुके हैं।
डेपुंग लोसेलिंग महाविहार के उपाध्याय ने मंडल और काय, वाक और प्रबुद्ध चित्त के प्रतीक समर्पित किए।
परम पावन ने समझाया कि यह प्रथागत है कि अभिषेक देने वाला गुरु आत्म संबोधन के रूप में डोमतोनपा रचित ‘श्रद्धा का वृक्ष' का पाठ करे जो कि मार्ग के समस्त रूपों को प्रकट करता है। उन्होंने कहा कि चूँकि प्रतियाँ मुद्रित और वितरित की गई हैं जिसमें अंग्रेज़ी अनुवाद भी शामिल है, सब साथ मिलकर पाठ कर सकते हैं। ऐसा करने के पश्चात उन्होंने बोधिसत्व संवर प्रदान किए। उसके बाद उन्होंने १६ तिलक का अभिषेक प्रारंभ किया और पहले दस समाप्त किएः
अचिन्तनीय बाह्य व्यूह का तिलक
त्रिसाहस्र सहा व्यूह का तिलक
तिब्बत के लोक का तिलक
ऊरु दक्षिण के तिलक
प्रज्ञापारमिता मातृ का तिलक
उनके पुत्र बुद्ध शाक्यमुनि का तिलक
अवलोकितेश्वर का तिलक
प्रज्ञा तारा का तिलक
उनके रौद्र रूप का तिलक
उनकी अपरिवर्तनीय प्रकृति अचल का तिलक
दिन के लिए उस बिंदु पर रोकते हुए परम पावन ने कहा कि वे कल अभिषेक सम्पन्न करेंगे। हरित तारा से सम्बधित तिलक के सम्बध में परम पावन ने तिब्बत के लोगों से उनके विशेष संबंध का उल्लेख किया और यह कि प्रथम दलाई लामा ज्ञलवा गेदुन डुब ने उनकी स्तुति की रचना की थी जिसका अंत इस प्रकार होता है।
हमें सदा विगत जन्मों का स्मरण रहे और
कभी बुद्धत्व के विचार से विलग न हों
नदी के प्रवाह की तरह दृढ़ता से लगे रहें
सभी बोधिसत्वों के व्यापक उपायों के अनुपालन में।
मात्र स्वयं के हित की आशा न रखते हुए,
हम केवल दूसरों के लिए महान मार्ग में संलग्न होने का व्रत लेते हैं
और उन सिद्धियों में लगे रहें जो वास्तव में हितकारी है
जैसे रहस्यवादी दृष्टि, अतीन्द्रिय दृष्टि, धैर्य और कौशल।
हम अनंत क्षेत्रों में आगे बढ़ने में क्षीण न हों
जिनों की पवित्र शिक्षाओं,
और निरंतर सत्वों की आवश्यकताओं को पूरा करने हेतु,
हम त्वरित तथा सहजता से बुद्ध की अवस्था प्राप्त करें।