वैंकूवर, कनाडा - २१ अक्टूबर २०१४ - जापान के रास्ते, भारत से वैंकूवर तक की एक लंबी यात्रा के बाद, इस शहर में अपनी चौथी यात्रा पर, आज परम पावन दलाई लामा का पहला सार्वजनिक कार्यक्रम जॉन ओलिवर स्कूल में था। उन्होंने दो कक्षा के प्रदर्शनों को देखा।
पहले में अवर कक्षा के छात्र शामिल थे, जिनकी चर्चा कृतज्ञता पर केन्द्रित थी। एक वृत्ताकार में बैठे, उनमें से प्रत्येक ने ऐसा कुछ व्यक्त किया, जिसके िलए वे कृतज्ञ थे। जब उनसे पूछा गया कि कृतज्ञता किस तरह हमारे जीवन में सहायक है, परम पावन ने कहा:
"कृतज्ञता कुछ ऐसा है, जो आप दूसरों के संदर्भ में दिखाते हैं।"
उन्होंने शिक्षक के साथ सहमति व्यक्त की कि सुख खुशी फैलाता है और हमें दूसरों के प्रति शांत अनुभव करने में सहायता करता है।
वरिष्ठ छात्रों का दूसरा वर्ग अपने बीच में से एक छात्र को देख रहे थे, जिस पर ध्यान देने तथा मस्तिष्क के प्रकार्य के िलए निगरानी रखी जा रही थी। प्रत्येक बार जब वह अपना ध्यान पुनः केन्द्रित करना चाहती, वह अपने न्यूरॉन्स को सक्रिय कर रही थी, एक छात्र ने समझाया। ये पूछे जाने पर कि किस तरह हर दिन केंद्रित और खुश रहा जाए परम पावन ने उत्तर दिया:
"जब एक विमान उड़ान भरता है, तो हज़ारों भाग और प्रक्रियाएँ शामिल रहती हैं। इसी तरह हमारे चित्त में भावनाएँ हैं, उनमें से कई उद्विग्न करने वाली हैं पर उनमें से कुछ उपयोगी। एक शांत चित्त बनाए रखने के लिए हमें यह समझने की आवश्यकता है कि चित्त और भावनाएँ कैसे कार्य करती हैं, हमें चित्त के नक्शे की आवश्यकता है। वह ज्ञान हम अपने चित्त पर व्यवहारित कर सकते हैं। एक बार हम यह देख लें कि किस तरह खीज और क्रोध हमारे चित्त की शांति को भंग कर सकते हैं, हम उनका सामना करने के िलए उपाय काम में ला सकते हैं। आकुल करने वाली भावनाएँ हमारे चित्त की शांति के लिए हानिकारक हैं; वे हमें तनाव देती हैं और हमारा रक्तचाप बढ़ाती हैं। वे हमारी नींद खराब करती हैं और हमारे स्वप्नों को परेशान करती हैं। समय के चलते भय और क्रोध हमारे स्वास्थ्य के लिए बुरे हैं। और तो और, यदि चित्त नकारात्मक भावनाओं से भरा हुआ हो तो हम मित्र नहीं बना पाएँगे। ऐसा करने के लिए हमें विश्वास की आवश्यकता है, और विश्वास स्नेह से संबंधित है।"
स्कूल जिम (व्यायामशाला) में, १४०० के छात्र, शिक्षक और अभिभावक, छात्रों के एक पैनल के साथ हृदय को शिक्षित विषय पर परम पावन की चर्चा सुनने के िलए एकत्रित हुए थे। उन्होंने ध्यानाकर्षित किया कि एक सुखी जीवन जीना धनवान होने अथवा एक अच्छे परिवार से संबंधित होने पर निर्भर नहीं करता। उन्होंने कहा कि धन या शक्ति प्रायः अपने साथ चिंता और तनाव लाते हैं।
"यहाँ २१वीं सदी में, हम अपने आसपास जो समस्या और हिंसा देखते हैं वे न केवल मानव निर्मित हैं, परन्तु शिक्षित लोगों द्वारा की गई है। यह दिखाता है कि हमारी मौजूदा शिक्षा प्रणालियों में नैतिक सिद्धांतों का अभाव है। हम नैतिक सिद्धांतों को किस प्रकार ला सकते हैं? हम सरकार से ऐसा करने की अपेक्षा नहीं कर सकते और न ही संयुक्त राष्ट्र से। धर्म से कुछ सहायता मिल सकती है, पर वह आज जीवित सभी ७ अरब मनुष्यों तक नहीं पहुँच पाएगी। एक ही मार्ग शिक्षा के माध्यम से है। परन्तु वर्तमान में अधिकांश शिक्षा आंतरिक मूल्यों के महत्व पर नहीं अपितु भौतिक वस्तुओं पर केंद्रित है। हमें इसी को परिवर्तित करने की आवश्यकता है।"
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इस परियोजना में सबसे महत्वपूर्ण जरूरी हमारे विभिन्न संस्कृतियों और भाषाओं पर ध्यान केंद्रित करना नहीं है, अपितु मानवता की एकता पर है, यह भावना कि हम सब एक मानव परिवार के हैं। परम पावन ने समझाया कि वे ३० वर्षों से भी अधिक वैज्ञानिकों, चिकित्सा और मस्तिष्क विशेषज्ञों से बात कर रहे हैं और वे अब प्रमाण प्रस्तुत कर रहे हैं कि सौहार्दता तनाव, रक्तचाप कम करता है और चित्त में शांति लाता है। साथ ही वे बता रहे हैं कि निरंतर भय, क्रोध और शंका हमारी प्रतिरक्षा प्रणाली को खा डालता है।
धैर्य की भूमिका के विषय पर पूछे जाने पर, परम पावन ने टिप्पणी की, कि हमारे अद्भुत मानव बुद्धि के प्रयोग से हम यह समझ सकते हैं कि हम दूसरों पर कितने निर्भर हैं। उस संदर्भ में, धैर्य और क्षमा का प्रकार्य हमारे अपने हितों की रक्षा करना है। जब एक अन्य छात्र ने हमारी अपनी माँओं की भूमिका के महत्व के बारे में पूछा तो परम पावन ने स्वस्थ विकास में स्नेह के महत्व को उजागर करने के लिए अपने स्वयं का अनुभव व्यक्त िकया। डॉ किम शोनेर्ट रेशल ने प्रमाणों का उल्लेख किया, दूसरों को स्वैच्छिक सहायता करने से हृदय रोग के जोखिम कम होते हैं। अतः हृदय को शिक्षित करना, शारीरिक हृदय के स्वास्थ्य का सहायक है। परम पावन यह कहते हुए सहमत हुए:
"करुणा, हमारे शारीरिक स्वास्थ्य के लिए हितकारी है, जबकि क्रोध, भय और अविश्वास हमारे अच्छे स्वास्थ्य के लिए हानिकारक हैं। इसलिए, जिस तरह हम शारीरिक स्वास्थ्य के लिए शारीरिक स्वच्छता के महत्व के विषय में सीखते हैं, एक स्वस्थ चित्त को सुनिश्चित करने के लिए हमें भावनात्मक स्वच्छता सीखने की आवश्यकता है।"
जब चर्चा का अंत हो गया तो परम पावन ने टिप्पणी की कि जहाँ उनका कार्य बस आकर बोलना है, वह यह जानकर प्रभावित हुए हैं कि वे जितना कह रहे हैं ब्रिटिश कोलंबिया के स्कूल उन्हें कारगर बनाने का प्रयास कर रहे हैं।
लिफ्ट द चिल्डर्न फाउंडेशन द्वारा प्रायोजित, ३०० समुदाय के नेताओं तथा दलाई लामा सेंटर के न्यासियों और प्रायोजकों के साथ मध्याह्न के भोजन मे सम्मिलित होते हुए, परम पावन को तीन मानवीय पुरस्कार देने के लिए आमंत्रित किया गया। इस कार्यक्रम का परिचय सरे की मेयर, डाएन वाट्स द्वारा दिया गया। शांति और शिक्षा के लिए दलाई लामा केंद्र के सी ई ओ फियोना डगलस-क्रैम्प्टन ने उसकी कुछ गतिविधियों की व्याख्या की और उदाहरणात्मक रूप से एक कलात्मक वीडियो दिखाया। विक्टर चैन, जो परम पावन साथ दलाई लामा केंद्र के सह-संस्थापक हैं, ने बताया कि किस प्रकार ४० वर्ष पूर्व वे उनसे संयोग से िमले थे। एक संक्षिप्त संबोधन में परम पावन ने कहा:
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"प्रिय भाइयों और बहनों, आज मैं तीन अच्छे मनुष्यों को पुरस्कार देने जा रहा हूँ। यह एक ऐसे समय में है जब हमारी शिक्षा प्रणाली अधिकांश रूप से भौतिक वस्तुओं के प्रति समर्पित है और मानव प्रेम को लेकर थोड़ा कम ही सोचा जाता है। नैतिक सिद्धांतों की कमी के कारण भ्रष्टाचार और दूसरों के लिए तिरस्कार पनपता है पर फिर भी मेरा विश्वास है कि िबना कुछ छिपाए ईमानदारी और पारदर्शी रूप से जीना संभव है। दूसरों के कल्याण की चिंता की भावना आंतरिक शांति का सबसे अच्छा स्रोत है और उदाहरण के लिए यदि आप भगवान में विश्वास करते हैं तो उनकी सेवा करना सबसे श्रेष्ठ उपाय है।"
श्रोताओं के प्रश्नों के उत्तर देते हुए, परम पावन ने समझाया कि ध्यान के माध्यम से चित्त की शांति विकसित करने का इस बात की पहचान से प्रारंभ होता है कि आंतरिक शांति का विध्वंसक कुछ बाहरी शत्रु नहीं है पर हमारे अन्दर है। अतः समाधान भी हमारे भीतर है। परन्तु उन्होंने सचेत किया कि आंतरिक परिवर्तन तत्काल नहीं होता, जैसे कि हम एक प्रकाश के लिए स्विच दबाते हैं अपितु सप्ताह, महीने और सालों लग जाते हैं। बच्चों को सिखाने के लिए सबसे महत्वपूर्ण बात पूछे जाने पर उन्होंने उत्तर दिया:
"उन्हें स्नेह दिखाओ।"
जब कोई और यह जानना चाहता था कि एक हिंसक विश्व में िकस प्रकार शांति लाई जा सकती है परम पावन ने यह स्वीकार िकया कि यह बहुत कठिन है और जहाँ वे अपने जीवनकाल में एक वास्तविक शांतिपूर्ण विश्व देखने की आशा नहीं कर रहे, पर वे आशा करते हैं कि वह शांति भविष्य में आ जाएगी।
परम पावन ने तीन लोगों को पुरस्कार प्रदान किए, जिन्होंने अपनी दृष्टि और नेतृत्व के कारण एक ऐसी मानवीय भावना का उदाहरण दिया है जिसने जीवन परिवर्तित कर दिए हैं। वे थे फ्रैंक ग्युस्त्रा, जॉन वोलकेन तथा जवाद मोवाफागियन। उनमें से प्रत्येक ने विनम्र भाव से अपनी स्वीकृति अभिव्यक्त की और मोवाफागियन ने यह इच्छा व्यक्त की वे परम पावन को तिब्बत में स्वतंत्र रूप से रहता हुआ देख सकें।
मध्याह्न में लगभग ३००० श्रोताओं के समक्ष, परम पावन हृदय की शिक्षा का िवज्ञान पर चर्चा मंच में सम्मिलित हुए। जैसे ही उन्होंने वैंकूवर कन्वेंशन सेंटर के सभागार में प्रवेश किया, सेंट जेम्स संगीत अकादमी के बच्चे आनन्द के गीत गा रहे थे। फियोना डगलस-क्रैम्प्टन ने कार्यक्रम का परिचय दिया, जिसका मुख्य विषय था बी द विलेज (ग्राम बनो) उन्होंने बी द विलेज चुनौती के पाँच दिशा निर्देशों का उल्लेख किया है - दूसरों के साथ निभाना; करुणाशील और दयालु होना; सुरक्षित और शांत अनुभव करना और सतर्क तथा लगे रहना। ज्योफ प्लांट ने परम पावन का परिचय दिया और उनसे किस प्रकार हृदय को शिक्षित करना सुख की ओर ले जाता है, पर बोलने के लिए कहा। परम पावन ने प्रारंभ किया:
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"प्रिय भाइयों और बहनों, आप मुझे कुछ विशिष्ट रूप में न समझें, और न ही अपरिचित रूप में। यदि हम उस समय की सोचें जब हम युवा थे, तो हम किसी की पृष्ठभूमि या सामाजिक स्थिति की चिन्ता नहीं करते थे। हमारे लिए यदि कुछ अर्थ रखता, तो उनके स्नेह की भावना थी। जैसे हम बड़े होते हैं यह सरल विचार छूट जाता है या कम प्रासंगिक हुआ प्रतीत होता है। हम हमारे बीच के गौण मतभेदों पर अधिक बल देते हैं।
"हममें से कोई भी परेशानी या समस्या नहीं चाहता पर फिर भी हम समस्याओं से घिरे हैं, जिसको अधिकांश रूप से हमीं ने निर्मित किया है। हम अपनी बुद्धि और संसाधनों का उपयोग अत्यधिक विनाशकारी शस्त्र बनाने के लिए करते हैं, जो मात्र दुख को जन्म देता है। यह विचार कि हम बल द्वारा समस्याओं का समाधान निकाल सकते हैं, अब पुराना हो गया है। इसका मात्र यह अर्थ है कि निर्दोष, महिलाएँ और बच्चे सबसे अधिक पीड़ित होते हैं।
"हमें यह समझना है कि हम ऐसे िवश्व में जी रहे हैं जो अन्योन्याश्रित है। जो दूसरों को प्रभावित करता है वह हमें भी प्रभावित करता है। उदाहरण के लिए जलवायु परिवर्तन के िलए राष्ट्रीय सीमाओं को लेकर कोई सम्मान नहीं है। पर फिर भी हम अन्य ७ अरब मनुष्यों के लिए चिंता अनुभव नहीं करते, क्योंकि हम उन्हें मानव परिवार के एक अंग के रूप में नहीं देखते। हम इस लापरवाही को कैसे दूर कर सकते हैं? कानून द्वार , मीडिया के माध्यम से, या धर्म के माध्यम से? स्नेह, समुदाय की भावना और दूसरों के लिए चिंता की भावना कोई सुख का साधन नहीं हैं। वे मानवता के अस्तित्व के विषय से संबधित हैं। सुख का परम स्रोत हमारे अंदर है; वह शांत चित्त जो हमें तनावमुक्त करता है, हमारे स्वास्थ्य को सुधारता है और सुखी परिवार और समुदाय बनाता है।"
शेन पोइंटे, एक मुसक्युएम बुज़ुर्ग ने सबसे हाथ जोड़ने के लिए आमंत्रित किया जब वह पाठ कर रहे थे। शेन कोयज़ान, एक मौखिक शब्द कलाकार ने एक कविता का पाठ किया जो डेविड सुजुकी कनाडा के पर्यावरण कार्यकर्ता ने उनसे इस विषय पर लिखने को कहा था कि पृथ्वी इतनी मूल्यवान क्यों है। डॉ किम शोनर्ट - रेशल ने समझाया कि किस प्रकार परम पावन तथा दलाई लामा केंद्र ने ब्रिटिश कोलंबिया में शिक्षा को प्रभावित किया है जहाँ सामाजिक तथा भावनात्मक शिक्षा (एसईएल) तथा शिक्षा में आत्म नियमन में एक उल्लेखनीय वृद्धि हुई है। वाई डब्ल्यू सी ए की जेनेट ऑस्टिन समानता को बढ़ावा देने के प्रयासों की बात की । वेनसिटी की सी ई ओ, तमारा व्रूमन ने यह पूछते हुए कि लोग अपने जीवन में घर और कार्य क्षेत्र में अलग अलग मूल्य क्यों अपनाते हैं, करुणा के विकास में व्यापारिक समुदाय की भूमिका की बात की। परम पावन ने टिप्पणी की, कि यही परिणाम आता है जब समाज आंतरिक विकास के स्थान पर भौतिक वस्तुओं पर बहुत अधिक ध्यान केन्द्रित करता है। उन्होंने िटप्पणी की कि दूसरों के कल्याण के प्रति चिंता रखना अपने स्वयं के हितों को पूरा करने का श्रेष्ठ मार्ग है।
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पीटर सेंगे, जो नेतृत्व के विषय पर लिखते और सिखाते हैं, ने प्रश्न किया कि हम कोयला जलने से उत्पन्न बिजली का उपयोग अपने मोबाइल फोन चार्ज करने के लिए एक नैतिक मुद्दे के रूप में क्यों नहीं सोचते। उन्होंने पूछा कि हम किस प्रकार करुणा की एक व्यापक समझ का विकास कर सकते हैं। परम पावन ने उत्तर दिया कि हमें मनुष्य की एकता के प्रति सम्मान विकसित करने की आवश्यकता है, यह भावना कि हम सभी एक मानव परिवार के हैं। और, उन्होंने कहा, यह अत्यंत आवश्यक है क्योंकि कई बार पर्यावरण को जो हानि हम पहुँचा रहे हैं, उसके प्रति उसी समय सचेत होते हैं जब उसे रोकने में बहुत देर हो चुकी होती है। हमें शिक्षा की आवश्यकता है और हमें सुख की आवश्यकता है, ठीक उसी तरह जैसे हमें स्वच्छ हवा की आवश्यकता होती है।
कार्यक्रम का समापन धन्यवाद शब्दों, यह विचार कि ब्रिटिश कोलंबिया अपनी शिक्षा में हृदय - चित्त में संतुलन रखने की परम पावन की सलाह को क्रियान्वित करने का संभवतः प्रथम स्थान होगा और सेंट जेम्स संगीत अकादमी के बच्चों के आनन्दमय गायन के साथ संपन्न हुआ।