जनवरी ३१, २०१४ - नोएडा, एन सी आर, भारत - ३१ जनवरी २०१४ - नई दिल्ली यमुना पार नोएडा का स्टेप बाय स्टेप स्कूल, आज परम पावन दलाई लामा का मेजबान था। यह विद्यालय, जिसका प्रारंभ वर्षों पूर्व १९९२ में एक नर्सरी स्कूल के रूप में हुआ था, का वर्ष २००८ से एक ऐसे स्कूल के रूप में विकास हुआ है जिसमें प्रायमरी, जूनियर और सीनियर शिक्षा दी जाती है और जिसका उद्देश्य ऐसे छात्रों को प्रशिक्षित करना है जो स्पष्ट चिंतन, विश्वास से भरे हुए, सामाजिक रूप से उत्तरदायी और स्कूल से बाहर आने पर उनके समक्ष आने वाली चुनौतियों के लिए तैयार नैतिकता से भरे युवा हैं। स्टेप बाय स्टेप स्कूल, जो स्पष्ट रूप से एक संवेदनशील, स्वस्थ और चुनौतीपूर्ण वातावरण देने के लिए प्रयासरत है, में इस समय १८६० से अधिक छात्र हैं और २८० कर्मचारियों के साथ १ से ८ का एक उल्लेखनीय छात्र शिक्षक अनुपात है। स्कूल की प्रार्थना है बुद्धिम् देहि नमोस्तुते - हमारे मन को प्रबुद्ध करें।
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परम पावन दलाई लामा अपनी यात्रा के सम्मान में पौधारोपण के पश्चात स्टेप बाय स्टेप के छात्रों व कर्मचारियों के साथ, नोएडा, एन सी आर, भारत - ३१ जनवरी २०१४ चित्र/जेरेमी रसेल/ओ एच एच डी एल
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परम पावन को स्टेप बाय स्टेप और दिल्ली और श्रीनगर के अन्य स्कूलों के छात्रों से मिलने और उन्हें संबोधित करने हेतु आमंत्रित किया गया, जो विस्कॉम्प (विमेन इन सेक्यूरिटि, कॉनफ्ल्क्टि मेनेजमेंट) एक दक्षिण एशियाई अनुसंधान और प्रशिक्षण की पहल जो शांति, सुरक्षा और अंतरराष्ट्रीय मामलों के क्षेत्र में महिलाओं के नेतृत्व का संयोजन करती है, द्वारा आयोजित कार्यशालाओं में भाग ले रहे हैं।
परम पावन के आगमन पर, संस्थापकों सुश्री रितु सूरी और श्री रमेश सूरी ने उनका स्वागत किया तथा कर्मचारियों और शिक्षकों से उनका परिचय कराया। एक छात्र प्रतिनिधि ने उनकी यात्रा के उपलक्ष्य में एक पौधारोपण करने के लिए उन्हें आमंत्रित किया। मध्याह्न के भोजन के पश्चात परम पावन को स्कूल से होते हुए एक खुले सभागार में ले जाया गया जहाँ वे वक्तव्य देने वाले थे। मार्ग में उद्घाटन हेतु दीप प्रज्ज्वलन के लिए छात्र उनके साथ हो लिए। छात्रों के एक दल ने गायन के साथ मंच पर उनका स्वागत किया।
"आदरणीय बड़े भाई और बहनों और विशेष रूप से मेरे छोटे भाइयों और बहनों", उन्होंने प्रारंभ किया, "मेरे िलए यहाँ होना और आपके साथ बातचीत करना एक खुशी और सम्मान की बात है। इसके दो कारण हैंः एक तो यह कि इस ग्रह, एशिया तथा भारत का भविष्य आपके हाथों में है। दूसरा यह कि युवा लोगों के साथ मिलकर मैं भी युवा अनुभव करता हूँ, जबकि मैं बुज़ुर्गों से मिलता हूँ तो मैं इस सोच में पड़ जाता हूँ कि हममें से कौन पहले विदा लेगा।"
उन्होंने कहा कि उन्होंने स्कूल का एक संक्षिप्त इतिहास सुना था और किस तरह बिना किसी सरकारी सहायता के एक परिवार ने उसका उत्तरदायित्व उठाया था। इससे उन्हें मुंबई के एक धनी परिवार का स्मरण हुआ जो एक बार उनसे मिलने तथा उनका आशीर्वाद लेने आया था। उन्होंने उनसे कहा कि उनके पास उन्हें देने के लिए ऐसा कुछ नहीं है, पर धनवान होने के नाते वे धन कमा सकते हैं तथा निर्धनों, निराश्रयों, भिखारियों तथा सड़क के बच्चों जो मुंबई में बड़ी संख्या में हैं, की सहायता के लिए काम में ला सकते हैं। उन्होंने कहा कि ऐसे लोग भी मनुष्य हैं, वे समुदाय का एक अंग हैं उनका भी सुख पर वैसा ही अधिकार है जितना हम सब का। जहाँ ग़रीबंों को अपनी सहायता करने में कठिनाई का अनुभव हो रहा है, जो बेहतर अवस्था में हैं, वे यही कर सकते हैं और उन्होंने उनसे कहा कि वही आशीर्वाद का उचित तथा सही स्रोत है। उन्होंने स्कूल के निर्माण को लेकर उनके प्रयासों की सराहना की। छात्रों को संबोधित करते हुए उन्होंने कहा:
"आज की युवा पीढ़ी के रूप में भविष्य के प्रति आपका एक उत्तरदायित्व है। मेरी पीढ़ी पिछली सदी के अंतर्गत आती है और हमारा समय चला गया है। जब मैं मुड़कर देखता हूँ, तो प्रतीत होता है कि मैं एक लंबी हिंसा और विनाश की सदी में रहा हूँ, पर ऐसे संकेत हैं कि लोग हिंसा से तंग आ चुके है और शांति के लिए बोलने की आवाजें अधिक हो रही है। ऐसी भी भावना है कि हिंसा में केवल शारीरिक बल ही शामिल नहीं है। भ्रष्टाचार, शोषण, धोखाधड़ी और धमकाना भी हिंसा के रूप हैं।"
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परम पावन दलाई लामा स्टेप बाय स्टेप तथा दिल्ली और श्रीनगर के छात्रों को स्टेप बाय स्टेप स्कूल में संबोधित करते हुए, नोएडा, एन सी आर, भारत - ३१ जनवरी २०१४ चित्र/जेरेमी रसेल/ओ एच एच डी एल
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"भारत, अहिंसा की एक लंबे समय से चली आ रही परंपरा का देश है। उन्होंने संग्राम के दौरान इसे अपनाया है, जब महात्मा गांधी ने स्वतंत्रता संग्राम के लिए इसे अपनाया तो उनका पालन करते हुए मार्टिन लूथर किंग, नेल्सन मंडेला और बिशप डेसमंड टूटू के वे आदर्श बन गए। और इस परंपरा के संबंध में यहाँ सहिष्णुता पनपी जिसके परिणाम स्वरूप विश्व की सभी धार्मिक परंपराएँ यहां शांति और सद्भाव से एक साथ रहती है। यह भी अन्य लोगों द्वारा पालन करने का एक महत्त्वपूर्ण उदाहरण है।"
"मैं प्रायः अपने भारतीयों मित्रों को इस तथ्य को लेकर छेड़ता रहता हूँ कि जहाँ भारतीय बहुत धार्मिक विचार वाले हैं पर वे भ्रष्टाचार को स्वीकार करने हेतु तैयार जान पड़ते हैं। ऐसा कैसे हो सकता है? यह मुझे आश्चर्य में डाल देता है। और जब मैं सोचता हूँ कि कौन इस परिस्थिति को साफ करेगा तो मुझे लगता है कि ये आप हैं जो आज के युवा हैं। यही कारण है कि आपको अपना जीवन ईमानदारी और सच्चाई से जीना प्रारंभ करना होगा। यह विश्वास पैदा करेगा जो आगे मैत्री की ओर ले जाएगा। यह महत्त्वपूर्ण है क्योंकि हम सभी को मित्रों की आवश्यकता होती है।"
परम पावन ने अपने श्रोताओं को बताया कि एक बौद्ध भिक्षु होने के नाते वे स्वयं को नालंदा परम्परा का एक छात्र मानते हैं। विगत ३० वर्षों से वे आधुनिक वैज्ञानिकों के साथ विचार विमर्श में लगे हुए हैं, जिनमें से कई प्राचीन भारतीय चिंतन में उपयोगी ज्ञान पा रहे हैं। उदाहरण के लिए ऐसे निर्देश हैं कि क्रोध और लोभ जैसे भावनाओं से कैसे निपटा जा सकता है और आंतरिक शांति कैसे उत्पन्न की जा सकती है।
"आप को भारत और उसकी धरोेहर पर गर्व होना चाहिए। कठोर परिश्रम करें। वस्तुओं की साधारण स्थिति को देखकर संतुष्ट न हों, उच्चतम गुणवत्ता को लक्ष्य बनाएँ। विशेषज्ञता का विकास करें। अपने आप को केवल स्थानीय स्तर तक की सोच रख सीमित न करें। अपनी राष्ट्रीय सीमाओं यहाँ तक कि एशिया से भी परे देखें। मानवता की एकता और उसकी आवश्यकताओं को लेकर जागरूकता का विकास करें। आम रूप से अच्छा करने के लिए और अधिक ध्यान दें।"
"अब, मैंॆ नालंदा का एक छात्र हूँ, जिसका अर्थ हुआ कि यद्यपि मैं अत्यंत आलसी हूँ पर मैंने तर्क का अध्ययन किया है और मैं तर्क करने में प्रशिक्षित हूँ। मुझे आपके चुनौतीपूर्ण प्रश्नों की प्रतीक्षा है।"
पहला सवाल यह था कि आज के विश्व में करुणाशील होना इतना कठिन क्यों है। परम पावन ने उत्तर दिया कि मनुष्य और अन्य जानवर स्वाभाविक रूप से अपने ही हित के पीछे भागते हैं, परन्तु आत्मकेन्द्रिता बहुत सीमित करती है। जब आप दूसरों के कल्याण को लेकर चिंतित होते हैं तो धमकाना और शोषण समाप्त हो जाते हैं। उन्होंने करुणा के दो स्तरों की बात की, एक तो वह जो अधिक रूप से जैविक वृत्ति होती और दूसरा जो चेतना के विकास उत्पन्न होता है। केवल करुणाशील होने की इच्छा करना अथवा यह कहना कि ईश्वर अथवा बुद्ध चाहते हैं कि हम और करुणाशील बनें बहुत प्रभावी नहीं होता। हम शिक्षा और प्रशिक्षण से दूसरों के प्रति अपनी चिन्ता बढ़ाते हैं।
एक अन्य छात्र ने पूछा कि हम उनके प्रति करुणा कैसे िदखाएँ जो हमारा अहित करते हैं और परम पावन ने कहा कि हमें करुणा के गुणों और लाभ के विषय में सोचना चाहिए और क्रोध की कमियों पर चिंतन करना चाहिए। इसी भाव को रखते हुए उनसे पूछा गया कि धार्मिक परंपराओं के बीच में इतनी विभाजन की भावना क्यों है जब वे सभी प्रेम तथा करुणा की बात करते हैं। उन्होंने उत्तर दिया कि उत्तर नैतिकता की भावना के होने में है। जब नैतिकता का अभाव होता है तो धार्मिक परंपराएँ भी केवल दूसरों के शोषण का कारण बन सकती है। हमारे साधारण अनुभव से कि हमने माँ से जन्म िलया है और उसकी देख रेख में रहे हैें, हम दूसरों के प्रति प्रेम के मूल्य को समझते हैं। यह चित्त की शांति को जन्म देता है। इसी तरह हम लोगों को सिखा सकते हैं कि धर्मनिरपेक्ष नैतिकता के आधार पर किस प्रकार सुखी रहा जाए और कि करुणाशील चित्त लाभदायक और कल्याणकारी होता है तथा पूरी तरह से धर्म निरपेक्ष होता है।
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परम पावन दलाई लामा के स्टेप बाय स्टेप स्कूल की यात्रा के दौरान एक छात्र प्रश्न करते हुए, नोएडा, एन सी आर, भारत - ३१ जनवरी २०१४ चित्र/जेरेमी रसेल/ओ एच एच डी एल
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उनके सबसे बड़े भय और वह उससे कैसे निपटते हैं, के विषय में पूछे जाने पर परम पावन ने उल्लेख किया कि उडान भरते समय हवा का भारी अशांत रूप। उसी समय मानों बलों की शक्तिओं पर ज़ोर देने के िलए वातावरण ऊपर उड़ते हवाई जहाज के शोर के कारण भर गया। इस प्रश्न पर कि वह सकारात्मक और आशावादी कैसे बने रहते हैं परम पावन ने कहा कि वे सदैव एक और अधिक समग्र दृष्टिकोण लेने का प्रयास करते हैं। उदाहरण के िलए यद्यपि उन्होंने अपने जीवन में कई कठिनाइयों का सामना किया है, जैसे कि अपनी स्वतंत्रता का अधिकार खोना, और अपना देश खोना, पर वह स्वीकार करते हैं कि भारत में रहते हुए उन्हें स्वतंत्रता और सीखने के महान अवसर प्राप्त हुए हैं।
करुणा की भावना को बनाए रखने के संबंध में, परम पावन ने इस संबंध में एक अमेरिकी वैज्ञानिक पॉल एकमैन से हुई बातचीत का स्मरण किया। स्पष्टतः इस नतीजे के रूप में पहले एक गुस्सैल स्वभाव वाला वह व्यक्ति कई महीनों तक क्रोधित न हुआ जैसा कि उसकी पत्नी और बेटी ने बताया।
"करुणा पर और अधिक ध्यान दें और आप पाएँगें कि आप और अधिक सुखी हैं। यह इतना व्यावहारिक और सरल है।"
धन्यवाद की संक्षिप्त अभिव्यक्ति के बाद, परम पावन ने विदा लेते हुए हाथ हिलाया और जैसे ही गायकों ने फिर एक बार फिर गाया, कई दर्शकों ने मुस्कुराते हुए तालियाँ बजाकर उनकी ओर हाथ हिलाया।
वे कल, गुवाहाटी, असम के लिए उड़ान भरेंगे।