न्यूयॉर्क, एन वाई, संयुक्त राज्य अमेरिका - ४ नवंबर २०१४ - आज सुबह ऐतिहासिक बीकन थियेटर में पहुँचने के पश्चात परम पावन दलाई लामा ने कोई समय व्यर्थ नहीं किया। उन्होंने बुद्ध को दंडवत प्रणाम किया, एक आरामदेह कुर्सी पर अपना स्थान ग्रहण किया और चोंखापा के 'सुभाषित सार' से कुछ अंश का पाठ पुनः प्रारंभ करने से पहले एक तीव्र गति से हृदय सूत्र का पाठ किया।
"अपनी ‘प्रतीत्य -समुत्पाद की स्तुति' में चोंखापा बुद्ध के विषय में कहते हैं कि आप ने जो कुछ भी शिक्षा दी वह प्रतीत्य समुत्पाद पर आधारित है। आपकी शिक्षाओं में ऐसा कुछ नहीं जो स्वतंत्रता में योगदान न देता हो। 'प्रतीत्य समुत्पाद' शिक्षण का एक प्रमुख तत्व है। यह हेतु फल के आधारभूत शिक्षण में निहित हैं, चार आर्य सत्य ।"
परम पावन ने इंगित िकया कि प्राचीन भारत की तीन गैर आस्तिक आध्यात्मिक परंपराएँ, जो हेतु को स्वीकार करते हैं, साख्य, जैन और बौद्ध धर्म, केवल बौद्ध धर्म ही अनात्मन की शिक्षा देता है। उन्होंने कहा कि द्वितीय धर्म चक्र प्रवर्तन में, प्रज्ञा पारमिता का शिक्षण, अनात्मा की धारणा को एक अन्य स्तर, हेतु और फल और प्रतीत्य समुत्पाद या प्रतीत्य ज्ञापन पर लाता है। फल हेतु पर निर्भर करता है, पर हेतु भी फल पर निर्भर है। पारस्परिक निर्भरता है, जैसा कि अंश और पूर्ण के बीच होता है। प्रतीत्य ज्ञापन के प्रयोग की भाषा में प्रतीत्य समुत्पाद सूक्ष्म रूप से निहित है।
प्रतीत्य समुत्पाद और उसके साथ शून्यता की समझ अभ्युदय, सद्गति और नैश्रेयस की प्राप्ति सुनिश्चित करता है। परम पावन ने चन्द्रकीर्ति के संस्कृततत्व का उद्धरण दिया, जो िकसी भी प्रकार की स्वभाव सत्ता की भावना को नष्ट करता है। उन्होंने कहा:
"आप सबको देखते हुए, मैं सहयोगियों को देखता हूँ जो इतने वास्तविक लगते हैं मानो आपका अस्तित्व स्वभावगत है। पर यदि जो मैं देख रहा हूँ उसे चन्द्रकीर्ति के मात्र संस्कृततत्व के संदर्भ में सोचूँ, तो मैं समझ सकता हूँ कि आपका अस्तित्व कई अन्य कारकों पर निर्भर है।"
"मैंने शून्यता की अनुभूति का दावा नहीं करता, पर मैं लगभग वहाँ हूँ। मैं आप को आश्वस्त कर सकता हूँ कि यदि आप अध्ययन, ध्यान और प्रयास करें तो उसमें परिवर्तन की शक्ति है। मैं स्वयं को मात्र एक मानव मानता हूँ, परम पावन दलाई लामा के रूप में नहीं, यदि आप भी प्रयास करें तो आपके लिए अपने चित्त के परिवर्तन का अवसर है।"
"शून्यता की समझ कठिन है, पर उस के लिए मुझसे शिकायत न करें, उसे बुद्ध के पास ले जाएँ। मैं आप के साथ अपना अनुभव साझा करना चाहता हूँ। शून्यता में मेरी रुचि उस समय से है जब मैं १७ या १८ वर्ष का था। मैं अपने एक शास्त्रार्थ सहायक एक मंगोलियाई ङोडुब छोगञी के अत्यंत निकट था। वह सेरा जे से था। मार्च १९५९ में अपनी अंतिम परीक्षा तक, मुझे भी कई ग्रंथों का अध्ययन करना था। मेरी योजना दक्षिणी तिब्बत की यात्रा करने की थी, वैसे ही जैसा १३वें दलाई लामा ने किया था, और मैंने सोचा कि उससे मुझे इस ग्रंथ 'सुभाषित सार' के अध्ययन करने का अवसर मिलेगा। पर १० मार्च की घटनाओं के बाद, सब कुछ पूरी तरह से बदल गया। हताशा की परिस्थिति के कारण हमने जाने का निश्चय किया।"
"भारत में मैंने इस ग्रंथ का पुनः अध्ययन किया और अन्य ग्रंथों के संदर्भ में इस पर मनन और अध्ययन किया। १९८० के आसपास जब क्याब्जे लिंग रिनपोछे जीवित थे, मैं उनसे मिला और उनके साथ मैं शून्यता की समझ का जितना विकास कर पाया था, उसका साझा किया। हमारे यहाँ शिक्षक के साथ अपनी समझ को साझा करने की एक प्रथा है। उन्होंने ध्यान से सुना और टिप्पणी की, कि 'तुम अंतरिक्ष के योगी बन जाओगे', जिसका अर्थ है कि तुम्हें शून्यता की अनुभूति होगी।"
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परम पावन ने शीघ्रता से िकसी परिवर्तन की अपेक्षा को लेकर आगाह किया कि इसमें ३० वर्ष भी लग सकते हैं, पर हमें निरंतर अभ्यास रत रहना चािहए। चूँकि हम पुनर्जन्म में विश्वास करते हैं, संभव है कि हमें पुनः अगली बार कोशिश करनी पड़े। परम पावन ने टिप्पणी की, कि उन्होंने ध्यान दिया है कि कई शीर्ष विद्वानों को वह समझना कठिन लगता है जो उनके िलए सरल हैं, जिसका कारण वे पूर्व जन्म में किए गए अध्ययन की मनोवृत्ति को मानते हैं। उन्होंने वयोवृद्धों को सलाह दी कि वे ऐसा न सोचें कि "अब मैं वृद्ध हो गया हूँ और अब अध्ययन करने का कोई अर्थ नहीं है।" उन्होंने कहा कि अंतिम साँस तक, अध्ययन करना उचित है। प्रयास करें अथवा नहीं वह व्यक्ति पर निर्भर है। यहाँ तक कि बुद्ध के समय में भी ऐसी कोई भावना न थी, कि हर कोई बौद्ध बन जाए। परन्तु प्रमुख बात एक अच्छा मानव होने की थी।
पाठ की ओर पुनः मुड़ते हुए उन्होंने कहा कि 'अक्षयमति सूत्र का शिक्षण' मध्यमकों के िलए इस बात पर अंतर करना, कि कौन सी शिक्षाओं की व्याख्या हो सकती है और कौन सी नीतार्थ हैं, एक प्रमाण जैसा है। संक्षेप में वे सूत्र जो सांवृितक सत्य के विषय में बताते हैं, उनकी व्याख्या की जा सकती हैं, वे शिक्षाएँ जिनका संबंध पारमार्थ सत्य से है, उदाहरण के लिए, त्रय विमोक्ष, शून्यता, संकेतहीनता और कामनाहीनता नीतार्थ हैं।
चोंखापा लिखते हैंः "नेयार्थ और नीतार्थ, सतही और परम के अनुरूप है जो(अनुरूपता) कि 'चरणों के तथ्य' के चार प्रतिशरणों ः अर्थ प्रतिशरणता न कि व्यंजन प्रतिशरणता, धर्म प्रतिशरणता न कि पुद्गल प्रतिशरणता, ज्ञान प्रतिशरणता न कि विज्ञान प्रतिशरणता और नीतार्थ प्रतिशरणता न कि नेयार्थ प्रतिशरणता, की घोषणा में स्पष्ट है।"
परम पावन ने हेतु फल की प्रक्रिया और फल के उत्पाद के साथ ही हेतु के निरोध जैसे िवषयों पर भी बात की। उन्होंने यह भी उल्लेख किया कि शून्यता मात्र एक निषेध है, बाहर करना है। एक गैर अर्थ सूचक निषेध कुछ संकेत नहीं देता जबकि एक अर्थ सूचक निषेध कुछ और का संकेत करता है।
उन्होंने उदाहरण दिया कि यदि आप कुछ चीज़ों से डरते हैं, जैसे कोई कहता है "कि यहाँ कोई सांप नहीं हैं" उसमें आपके डर को कम करने की शक्ति है। पर दूसरी ओर, वे कहें "यहाँ कोई सांप नहीं हैं, लेकिन ..." तो वह शक्ति चली गई क्योंकि कुछ और का संकेत दिया गया। स्पष्टतः सीधे निषेध में शक्ति है।
उत्पादन और विनाश के संबंध में, चोंखापा नागार्जुन का उद्धरण देते हैं जो चुनौती का उत्तर देते हैं "यदि सब कुछ शून्यता है तो कोई उत्पाद न होगा और कोई िवनाश न होगा और चार आर्य सत्यों के अस्तित्वहीनता का परिणाम अपरिहार्य रूप से आप के लिए होगा।" उन्होंने नागार्जुन का उद्धरण देते हुए आगे कहा, मुनि ने घोषित किया -'ये सभी बातें केवल चित्त हैं' कि सरल चित्त के लोगों का भय शांत हो सके।"
परम पावन ने उल्लेख किया कि बुद्ध स्पष्ट करते हैं कि ऐसा नहीं है कि शून्यता की समझ से रूप को शून्य बनाया जाता है। रूप को शून्यता की तरह समझा जाना चाहिए जैसा कि 'हृदय सूत्र' में आता हैः रूप शून्यता है, शून्यता रूप है।
ग्रंथ में चोंखापा ने चन्द्रकीर्ति के चार परिणामों द्वारा असाधारण निषेध के क्रियान्वयन का उद्धरण दिया। यह परिणाम कि आर्य समाधि वस्तु को नष्ट कर सकती है, यह परिणाम कि सांवृतिक सत्य विश्लेषण पर खरा उतर सकता है, पारमार्थ उत्पाद के गैर निषेध का परिणाम और ग्रंथ के कथन की अनुचितता कि वस्तुओं स्वभाव सत्ता का अभाव होता है। चन्द्रकीर्ति ने 'काश्यप अध्याय' का उद्धरण दिया कि "मध्यम मार्ग वस्तुओं की अंतर्दृष्टि का सच्चा मार्ग है, वह शून्यता द्वारा वस्तुओं को शून्य नहीं बनाता अपितु (उसे अनुभूत करता है) वही वस्तुएँ शून्यता हैं।"
जब वह अपने जटिल स्पष्टीकरण के अंत में पहुँचे, तो परम पावन ने दोहराया कि नागार्जुन की शिक्षाओं का केन्द्र प्रतीत्य समुत्पाद है। शून्यता की वास्तविक समझ प्रतीत्य समुत्पाद के संदर्भ में है। यह प्रतीत्य समुत्पाद है जो मध्यम मार्ग को अनुमति देता है। उन्होंने चोंखापा के निष्कर्ष का उद्धरण दिया;
मैं अपने हृदय की गहराई से श्रद्धान्वित होता हूँ
इन की सभी उत्कृष्ट व्याख्याएँ,
इस विश्व के मनीषियों के आभूषण
कौन है जो परम न मानेगा
नागार्जुन की सबसे उत्कृष्ट प्रणाली।
मेधावी जो ऐसे बुद्ध-सम्मान जीतना चाहते हैं
उन्हें इस स्पष्ट व्याख्या में स्वयं को डुबो देना चाहिए,
और उनकी बुद्धि के चक्षुओं को करके शुद्ध
दार्शनिक कारण के मार्ग के साथ
इस में परम पावन ने 'तीन प्रमुख आकार' के अंत से चेतावनी जोड़ी,
पुत्र, जब तुम 'तीन प्रमुख आकार' की
व्याख्या को अनुभूत कर लो
तो एकांत व सशक्त प्रयास पर निर्भर हो
त्वरितता से अंतिम लक्ष्य तक पहुँचो।
परम पावन हँसे और कहा:
"अब यह पूरा हो गया है। मैंने अपना उत्तरदायित्व निभा दिया है। अब अध्ययन, मनन और जो आपने सीखा है उसकी अनुभूति के उत्पाद का उत्तरदायित्व आपका है।"
बॉब थरमन धन्यवाद ज्ञापन के कुछ शब्द अर्पित करने के िलए आगे आए। सबसे पहले उन्होंने परम पावन को वहाँ आने तथा शिक्षा देने के िलए बहुत धन्यवाद दिया, उन्होंने अपने सह आयोजकों तिब्बती बौद्ध अध्ययन केंद्र, जो कि १९५८ में उन दोनों के गुरु, गेशे नवांग वंज्ञल द्वारा प्रतिस्थापित किया गया था, के जोशुआ और डाएन कटलर को धन्यवाद दिया। उन्होंने तिब्बत हाउस, तिब्बत के कार्यालय और बीकन थियेटर के परिश्रमी कर्मचारियों को धन्यवाद दिया। इन सब पर तालियाँ बजी, पर जब उन्होंने गेशे थुपतेन जिन्पा को परम पावन के प्रवचन का स्पष्ट रूप से अंग्रेजी में प्रतिपादित करने के लिए धन्यवाद दिया, तो थिएटर सराहना की गूँज से भर उठा।
कल, परम पावन भारत लौटने के लिए रवाना होंगे।