सेंडाइ, जापान - ८ अप्रैल २०१४ - कल की शुद्धिकरण प्रार्थना और परम पावन के सार्वजनिक व्याख्यान के औपचारिक वातावरण के बाद, उनके तथा आज जीवन के कई क्षेत्रों से आए शिंतो अनुयायियों के बीच सरल संवाद का एक अवसर था। संक्षिप्त परिचयात्मक भाषणों के बाद एक वयोवृद्ध व्यक्ति ने परम पावन को शांति के लिए जापानी अक्षर के एक सुलेख के साथ एक फ्लायर प्रस्तुत किया, जिसको लेकर उसने कहा कि वह शांति को बढ़ावा देने के िलए वितरित करता आ रहा है।
अपने प्रारंभिक उत्तर में परम पावन ने सभा को बताया कि शिंतो समुदाय के सदस्यों से मिलकर वे सम्मानित अनुभव कर रहे हैं और बहुत प्रसन्न हैं। उन्होंने आगाह किया कि उनके पास कहने के लिए कुछ विशिष्ट नहीं था, पर उन्होंने अपनी तीन प्रतिबद्धताओं को समझाना प्रारंभ किया।
"एक मनुष्य के रूप में, मैं यह मानता हूँ कि हम में से प्रत्येक में दूसरों के लिए और इस ग्रह के लिए कुछ चिंता होनी चाहिए। मैं भी अंतर्धार्मिक सद्भाव को बढ़ावा देने के लिए भी समर्पित हूँ। मैं जहाँ भी जाता हूँ, अन्य धार्मिक परंपराओं के सदस्यों के साथ चर्चा करने का प्रयास करता हूँ, क्योंकि उनके विषय में जानना महत्त्वपूर्ण है। ऐसे लोगों से मिलना महत्त्वपूर्ण है, जो वास्तव में इन विभिन्न परंपराओं का अभ्यास गंभीरता से लेते हैं। इसलिए मैं शिंतो परम्परा के विषय में और अधिक जानने में रुचि रखता हूँ, जो कि जापान में बौद्ध धर्म से पूर्व थी। चलिए अब, हम कुछ प्रश्न और संवाद करें।"
प्रश्नोत्तर सत्र के आगे बढ़ने से पूर्व कार्यक्रम के आयोजक ने एक वियतनामी बौद्ध का परिचय कराया, जो उस समूह के प्रतिनिधि थे, जो परम पावन से मिलने के लिए आने वाला था। पर हाल ही में वियतनामी बौद्ध संघ के प्रथम परम धर्मगुरु थिच त्रि तिह्न के निधन के कारण उनका उद्देश्य पूरा न हो सका। परम पावन ने टिप्पणी की कि उन्होंने विभिन्न वियतनामी दलों से भेंट की है, जो फ्रांस जैसे विभिन्न देशों में बसे हैं और उन्होंने उनके बौद्ध अभ्यास और सांस्कृतिक परंपराओं को बनाए रखने के उत्साह को देखा है। अभी हाल ही में उनसे मिलने के लिए वियतनाम से दलों ने भारत की यात्रा करना भी प्रारंभ कर दिया है।
"विगत कुछ वर्षों में मैंने प्रायः जापानी दलों से भेंट की है। मैंने 'हृदय सूत्र', सिखाया है जिसका यहाँ व्यापक रूप से पाठ होता है, फिर उसे ठीक से समझा गया हो अथवा नहीं। यहाँ आप में से अधिकांश शिंतो अनुयायी हैं और मुझे जो अनुभूति हुई है वह यह कि यह परंपरा प्रकृति के प्रति गहरा सम्मान रखती है। यह बहुत अच्छी बात है क्योंकि आधुनिक जीवन बहुत अधिक यंत्रीकृत बन गया है। प्रतीत होता है कि हम ऐसा सोच रहे हैं कि हम प्रकृति को नियंत्रित कर सकते हैं और उस पर हावी हो सकते हैं। शिंतो और मूल अमेरिकियों जैसी प्राचीन परंपराओं में प्राकृतिक विश्व के प्रति सम्मान, हम सभी के लिए एक महत्त्वपूर्ण शिक्षा है।"
एक महिला, जिसने अपना परिचय फ्लोरिस्ट कहते हुए किया, ने समझाया कि जैसे जैसे उनकी आयु बढ़ रही है पुष्पों को लेकर उनके कौशल में गिरावट आई है और वह यह जानना चाहती थी कि उसे अपने जीवन में सबसे महत्त्वपूर्ण क्या मानना चाहिए। परम पावन ने उत्तर दिया कि सामान्यीकरण करना सरल नहीं है, पर हमारे पक्षपाती शिक्षा प्रणाली के कारण आज जीवित ७ अरब मनुष्यों में से अधिकांश लोग केवल भौतिक मूल्यों के संदर्भ में सोचते हैं, आंतरिक मानवीय मूल्यों के संदर्भ में नहीं। जैसे जैसे पारंपरिक धर्म की रुचि में गिरावट आती है, उन्होंने कहा, कि हमें अपने भीतर की दुनिया का और साथ ही जिस प्राकृतिक विश्व में हम जी रहे हैं उसका ध्यान रखने की आवश्यकता है।
"कई लोगों के लिए ठोस मूल्य केवल पैसा है। और निश्चित रूप से पैसे का अपना एक स्थान है, परन्तु एक करुणाशील व्यवहार का विकास बहुत अधिक प्रभावी है। एक फ्लोरिस्ट के रूप में आपके कार्य में दूसरों को सुख देना शामिल है। जब हम केवल भौतिक मूल्यों पर ध्यान देते हैं तो दूसरों के लिए चिंता या आपसी सम्मान के लिए बहुत कम स्थान रह जाता है। यूरोप और अमेरिका में मेरे कुछ दोस्त बहुत धनवान हैं, पर फिर भी वे दुखी और एकाकी हैं। उनका धन उन्हें स्थायी सुख देने में विफल रहा है। हमारी भौतिक सुविधाएँ और हमारी आधुनिक शिक्षा के कई पक्षों में बहुत सुधार हुआ है पर फिर भी तनाव और एकाकीपन बना हुआ है।"
परम पावन ने सभा के वयोवृद्ध सदस्यों को चित्त की शांति को विकसित करने के उपायों के विषय में बात करने और यह बताने के लिए कि क्या जब वे युवा थे तो उन्हें प्रभाव में लाना सरल था, जानने के िलए आमंत्रित किया। उन्होंने पूछा कि क्या वे अनुभव करते हैं कि आज जीवन आज अधिक तनावपूर्ण हो गया है। उस बुज़ुर्ग व्यक्ति, जिसने आरंभ में उन्हें 'शांति' का सुलेख प्रस्तुत किया था, ने उत्तर दिया। उन्होंने कहा कि जो उन्होंने देखा है कि जब वे लड़के थे तो वे वह नदियों में कूदते थे, पेड़ों पर चढ़ते थे और तरह तरह की छोटी मोटी वस्तुएँ जमा करते थे। बच्चों के खेल में कुछ जोखिम और खतरे शामिल थे, पर बच्चे सावधानी से सीखते थे कि वे क्या कर सकते हैं और क्या नहीं। वे स्वयं की देख - रेख करना सीखते थे और साथ साथ प्रकृति के प्रति एक उचित सम्मान भावना भी अर्जित करते थे। आजकल बच्चे अनुभव से सीख नहीं सकते क्योंकि वे अपने घरों से बाहर नहीं जाते। वे खतरे मोल नहीं लेते क्योंकि वे बहुत अधिक सुरक्षित हैं।
परम पावन ने इसमें जोड़ा कि आधुनिक समाज में शारीरिक स्वास्थ्य को लेकर एक चिंता के कारण, हम शारीरिक शुचिता के महत्त्व के विषय में सीखते हैं। जिन समस्याओं का सामना हम करते हैं, उनमें से कई हमारे अपने बनाए हुए हैं। उन्होंने अपने क्लेशों से निपटने के लिए, जो हमारी चित्त की शांति भंग करते हैं, भावनात्मक शुचिता की आवश्यकता का भी प्रस्ताव रखा। उन्होंने कहा:
"हमारे लिए यह जानना आवश्यक है कि हमारे चित्त की शांति को क्या समर्थित करता है तथा क्या नष्ट करता है। बौद्ध विज्ञान और आधुनिक विज्ञान के बीच हुए संवाद ने एक संस्था को जन्म दिया है जो माइंड एंड लाइफ इंस्टिट्यूट के नाम से जानी जाती है, जो कि चित्त की शांति का परीक्षण कर रही है और वस्तुनिष्ठ रूप से संबंधित अनुसंधान कर रही है। अधिक से अधिक जापानी वैज्ञानिक और बुद्धिजीवी इस काम में भी रुचि ले रहे हैं। अगले सप्ताह हम क्योतो में माइंड एंड लाइफ की एक बैठक आयोजित कर रहे हैं।"
"मुझे लगता है कि आज की हमारी भावनाएँ लगभग वैसी ही हैं, जो कुछ हजार वर्ष पहले थी। बौद्ध विज्ञान में, उन पर किस प्रकार नियंत्रण किया जाए और उन्हें हमारी चित्त की शांति को नष्ट करने से कैसे रोका जाए, सिखाने के लिए बहुत कुछ है। जब मैं बौद्ध विज्ञान की बात करता हूँ तो मेरा वास्तव में अर्थ 'चित्त का विज्ञान' है। यह ऐसा विषय है, जिसके प्रति आधुनिक वैज्ञानिक अधिक रुचि दिखा रहे हैं।"
आज मध्याह्न परम पावन सेंडाइ से ओसाका, जो केइहेनशिन महानगर का सबसे बड़ा भाग है, जिसमें क्योतो भी शामिल है, के लिए उड़ान भरेंगे, जहाँ वह अगले कई दिन व्यतीत करेंगे।