गुवाहाटी, असम, भारत - २ फरवरी २०१४ - परम पावन आज प्रातः जब गुवाहाटी के नेहरू स्टेडियम के लिए मोटर गाड़ी से निकले तो बादल रहित नीले नभ में एक उजला गर्म सूर्य चमक रहा था। उन्हें शांति के प्रति एक मानवीय दृष्टिकोण पर प्रथम एल बी एस स्मारक व्याख्यान देने के लिए आमंत्रित किया गया था। जैसे ही उन्हें स्टेडियम की ओर ले जाया गया, उन्होंने अपने दोनों ओर लोगों की भीड़ देखी जो न केवल उनकी एक झलक पाने के लिए उत्सुक थे पर अपने मोबाइल फोन पर उनकी तस्वीर लेने का भी प्रयास कर रहे थे। वे अन्य गणमान्य व्यक्तियों के साथ बैठे, जब पारंपरिक संगीतकारों ने १५ सदी का एक असम 'बोरगीत' का गायन और वादन प्रस्तुत किया।
काशीनाथ हजारिका ने हाल ही में स्थापित बी एन और के एन दत्ता बरुआ के कार्यों के स्मारक के रूप में वकील के बुक स्टाल की स्थापना में एल बी एस फाउंडेशन तथा ट्रस्ट का वर्णन किया। प्रारंभ में बी एन दत्ता बरुआ ने यह कार्य प्रारंभ करने हेतु धन जुटाने के लिए अपनी पत्नी के आभूषण गिरवी रखे पर वे सब गँवा बैठे, जब वह गिरवी रखने की दुकान ही गायब हो गई। उनकी पत्नी तनिक भी विचलित नहीं हुई और उनसे कहा पुस्तकों की दुकान का फल एक सौ गुना रूप में वह राशि चुका देगी। वास्तव में अपने ७० वर्ष के अस्तित्व में इसने विशुद्ध प्रतिष्ठा और अपार सद्भावना आकर्षित की है। परम पावन और अन्य अतिथियों से एल बी एस के दोनों संस्थापकों को पुष्पांजलि अर्पित करने का अनुरोध करने के पश्चात हजारिका ने परम पावन से उन्हें सुनने आए वहाँ एकत्रित ५००० लोगों को संबोधित करने के लिए आमंत्रित किया। उनके लिए रखे आसन पर बैठने के बजाय पोडियम पर खड़े होकर परम पावन ने प्रारंभ किया:
"भाइयों और बहनों, मैं अत्यंत प्रसन्न हूँ कि मुझे यहाँ आपसे मिलने और बात करने का अवसर मिला है। मैं गुवाहाटी होकर कई बार गुज़रा हूँ, पर यह प्रथम अवसर है कि मुझे यहाँ लोगों से मिलने का अवसर मिला है। जब भी मैं इस तरह से अन्य लोगों से मिलता हूँ तो मैं अपने को ७ अरब जीवित मनुष्यंो में से एक समझता हूँ। इस मानवीय स्तर पर मुझे लगता है कि संवाद करना सरल है। पर यदि उसके स्थान पर मैं अंतर पर ज़ोर दूँ कि मैं तिब्बती हूँ, एक बौद्ध हूँ और यहाँ तक कि मैं परम पावन दलाई लामा हूँ, तो यह केवल मुझे आपसे दूर करेगा, और संभवतः दिखावा, अविश्वास और चिंता को जन्म देगा। यह स्वीकार करना अच्छा होगा कि मानसिक, शारीरिक और भावनात्मक रूप से हम एक ही हैं।"
"इसी तरह जब हम अंतरिक्ष से पृथ्वी के चित्र देखते हैं तो हम अपने बीच कोई सीमा नहीं देखते, मात्र यह नीला ग्रह, ऐसा स्थान जहाँ जलवायु परिवर्तन हम सभी को प्रभावित करता है, जहाँ वैश्विक अर्थव्यवस्था हम सबको एक साथ लाती है। अतीत में पहाड़ों से घिरा तिब्बत अपने एकांत को पोषित करता था जैसे मैं सोचता हूँ असम भी करता था, पर ऐसा अलगाव पुराना पड़ गया है। आज हमें संपूर्ण मानवता के कल्याण को ध्यान में रखना है और हमें इस ग्रह के स्वास्थ्य की रक्षा के लिए काम करने की आवश्यकता है।"
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परम पावन ने आगे कहा कि २१वीं सदी में वास्तविकता परिवर्तित हो गयी है, पर अभी तक हम आपस में एक दूसरे को 'वे' और 'हम' कहकर पुरानी सोच से जुड़े हुए हैं। हम 'अपने हित' के संदर्भ में सोचते हैं 'उनके' के संदर्भ में नहीं। इसी प्रकार का व्यवहार हम आज देखते हैं जो सीरिया जैसे स्थानों में हिंसा को भड़काती है जहाँ लोग एक दूसरे को खुल कर मारते हैं। अन्य स्थानों पर 'उन' और 'हम' की धारणा के कारण भय चारों ओर व्याप्त है। आत्मकेन्द्रितता, जो इसे जन्म देती है वह मानव स्वभाव के विपरीत चलती है। हम सामाजिक प्राणी हैं और जीवित करने के लिए एक दूसरे पर निर्भर रहते हैं, इसलिए केवल स्वयं के विषय में सोचना विरोधाभास है।
उन्होंने समझाया कि वैज्ञानिकों ने पाया है कि स्वार्थ में लिप्त रहना स्वास्थ्य के लिए बुरा है और संतोष का कारण नहीं है। अन्य वैज्ञानिकों ने करुणा के विचारों में प्रशिक्षण के प्रभाव का परीक्षण करने के लिए अनुसंधान कार्य प्रारंभ किया है। उन्होंने एक समूह का उनके रक्त चाप, तनाव के स्तर और अन्य तथ्यों का प्रारंभ में परीक्षण किया तथा उन खोजों की तुलना उस माप से की जो उस समूह द्वारा तीन सप्ताह की अवधि तक करुणा के प्रशिक्षण के बाद ली गई थी। उन्होंने पाया कि रक्तचाप और तनाव स्पष्ट रूप से कम हो गए थे और व्यक्तियों में अधिक संतुष्टि का भाव था। अन्य वैज्ञानिकों के पास प्रमाण हैं कि निरंतर भय, चिंता और क्रोध में हमारी प्रतिरक्षा प्रणाली को नष्ट करने का प्रभाव है।
"मनुष्य होने के नाते, सामाजिक प्राणी के रूप में, हम अपने माँ के वात्सल्य के आनंद में बड़े होते हैं। यह हमारा आम अनुभव है, जिसके प्रभाव हमारे बाद के जीवन में हमारे साथ बने रहते हैं। मैं प्रायः कहता हूँ कि बच्चों के रूप में जिन लोगों ने अपनी माँ, अपने माता पिता के स्नेह का आनंद उठाया है उनका स्वास्थ्य बेहतर, स्थिर चित्त होता है और वे वयस्क के रूप में दूसरों के प्रति स्नेह दिखाने अधिक सक्षम होते हैं। जो इस तरह के स्नेह से वंचित होते हैं उनकी आंतरिक गहराई में असुरक्षा की भावना होती है और वे दूसरों का पूरी तरह विश्वास करने में असमर्थ होते हैं। हम एक आगामी जीवन अथवा मुक्ति की अवस्था को लेकर विश्वास करें या न करें हम सभी को यहाँ अभी जीने के लिए, विश्वास और प्रेम पर आधारित आधारभूत मानव मूल्यों की आवश्यकता है। यहाँ तक कि वे लोग भी जो धर्म का विरोध करते हैं, उन्हें अपने कार्य को प्रभावशाली बनाने के िलए शांत चित्त और करुणा की आवश्यकता पड़ती है। सौहार्दता तथा करुणा सुखी परिवारों और समुदायों में रहने वाले सुखी मनुष्यों की कुंजी हैं।"
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"मानव जीवन की बहुत सारी समस्याएँ हैं। १९५९ में २४ वर्ष की आयु में जब पहली बार मैं असम होते हुए गुज़रा तो मैं पहाड़ चढ़ सकता था जो मैं अब करने में असमर्थ हूँ। इसी प्रकार वृद्धावस्था स्मृति में गिरावट लाता है जो समस्याएँ खड़ी करता है। साधारण लोग जो विवाहित हैं, चिंतित होते हैं यदि उनके बच्चे नहीं हैं। यदि उनके बच्चे हैं तो वे चिंता करते हैं। यदि उनके पास पर्याप्त पैसा नहीं तो वे चिंता करते हैं, यदि उनके पास बहुत धन, सत्ता और प्रभाव है तो वे चिंता करते हैं। इसी तरह यह जीवन पूरी तरह से परेशानियों से भरा रहता है। इसमें जोड़ें कि आसन्न जलवायु परिवर्तन प्राकृतिक आपदाओं की बढ़ती संख्या को प्रेरित करेंगे जो हम सब को प्रभावित करेगा। हमें चित्त में वैश्विक हितों का ध्यान रखते हुए स्थानीय समस्याओं का समाधान करने का प्रयास करना है।"
यह सलाह देते हुए कि अब हम बल प्रयोग से अपनी समस्याओं का समाधान और नहीं कर सकते, कि २१वीं सदी में बल का प्रयोग समय के अनुकूल नहीं है विशेषकर जबकि इसके साथ सदा अप्रत्याशित परिणाम आते हैं। परम पावन ने अहिंसा को काम में लाने पर ज़ोर दिया। उन्होंने तिब्बती समस्या के अहिंसक समाधान के लिए अपने लम्बे समय की वकालत दोहराई। एक ऐसा समाधान जो किसी एक पक्ष की विजय और दूसरे की पराजय की माँग नहीं कर रहा, एक पारस्परिक रूप से स्वीकार्य समाधान। उन्होंने कहा कि जहाँ तिब्बती चीन से अलग होने की माँग नहीं कर रहे हैं, अतीत अलग था। ७वीं सदी में, मध्य एशिया में तीन सम्राट, चीनी, मंगोलियाई और तिब्बती, सम्मान के पात्र थे। उन्होंने यूरोपीय संघ के प्रति अपनी प्रशंसा व्यक्त की जिसने अतीत में बड़ी क्रूरता से एक दूसरे से युद्धशील राष्ट्रों के बीच कार्य करने हेतु भागीदारी स्थापित की। यह उदाहरण है कि किस प्रकार सुलह संघर्ष का निराकरण कर सकता है। अहिंसा के प्रयोग की सफलता के लिए धर्मनिरपेक्ष नैतिकता, दूसरों के प्रति चिंता महत्त्वपूर्ण हैं।
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"दूसरों के प्रति चिंता धार्मिक अभ्यास नहीं है, यह एक सुखी समाज बनाने की दिशा में एक व्यावहारिक कदम है। यदि आपकी अपने पड़ोसियों के साथ कठिनाइयाँ हैं तो उसे सुलझाने का प्रयास करें। आज के वैरी को कल के िमत्र में परिवर्तित करना संभव है। इस विषय में सोचें, अपने मित्रंो के साथ इस पर चर्चा करें, और उसे प्रभावशाली बनाने का प्रयास करें।"
परम पावन ने प्रश्न पूछने के लिए दर्शकों को आमंत्रित किया। पहले का संबंध नैतिक मूल्यों की गिरावट से था यह पूछते हुए कि मानवीय अच्छाई में किस प्रकार विश्वास बनाए रखा जाए, जिसके उत्तर में परम पावन ने कहा कि कोई विकल्प नहीं है। परन्तु उन्होंने टिप्पणी की, कि आधुनिक शिक्षा मुख्यतः भौतिकवादी है, और इसीिलए वह धर्मनिरपेक्ष नैतिकता लाने का सुझाव दे रहे हैं।
यह पूछे जाने पर कि क्या वह पोताला भवन को याद करते हैं तो हँसते हुए उन्होंने कहा:
"बहुत अधिक नहीं, मैं ५४ वर्षों से भी अधिक आधुनिक सुविधाओं का आदी हो गया हूँ और पोताला में ढंग का बाथरूम नहीं था। मैं तिब्बत की कोमल, करुणाशील संस्कृति को याद करता हूँ। और जब धर्मशाला में मानसून की वर्षा बहुत भारी होती है तो ल्हासा की जलवायु की याद आती है और उसके साथ डेलफीनियम और डाहलिया जो नोर्बुलिंगका में उगते थे। यद्यपि धरमशाला में मैं ट्यूलिप्स, हयासिंथ और बेगोनिया उगा सकता हूँ जिनका ल्हासा में उगाना मुश्किल था।"
शिक्षा के बारे में एक प्रश्न के उत्तर में उन्होंने स्कूलों में धर्मनिरपेक्ष शिक्षा लागू करने की आवश्कता और यह कि ऐसे पाठ्यक्रम को तैयार करने के लिए काम चल रहा है को दोहराया। यह पूछे जाने पर कि क्रोध को किस प्रकार नियंत्रित करें, उन्होंने कहा कि हमें यह देखने की आवश्यकता है कि क्रोध समस्याओं को सुलझाने में किसी भी प्रकार से उपयोगी नहीं होता, परन्तु धैर्य तथा करुणा सहायक हैं। उन्होंने किसी कर्म के कर्ता, जो कोई अन्य मनुष्य है और उसके घृणास्पद कार्य में अंतर करने की प्रशंसा की। एक सुखी जीवन की कुंजी के बारे में पूछे जाने पर उन्होंने उत्तर दिया चित्त की शांति। यह पूछे जाने पर कि क्या वह भविष्य को लेकर आशावादी हैं, उन्होंने स्मरण किया कि २०वीं सदी के सभी महान विकास के बाद भी यह भयानक हिंसा से आक्रांत युग था। उन्हें पूरा विश्वास है कि इसके स्थान पर २१वीं सदी संवाद और अहिंसा की सदी बन सकती है।
अंत में, जलवायु परिवर्तन में तिब्बती पठार की भूमिका के प्रश्न पर परम पावन ने एक चीनी पर्यावरण वैज्ञानिक की खोजों की बात की, जिसकी टिप्पणी थी कि तिब्बत उतना ही महत्त्वपूर्ण है जितने उत्तरी और दक्षिणी ध्रुव। परिणामस्वरूप उसने तिब्बत को तीसरा ध्रुव कहा। उसने यह आशा व्यक्त की कि चीन के राष्ट्रपति और नई सरकार इस संबंध में एक अधिक यथार्थवादी दृष्टिकोण अपनाएगी।
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मध्याह्न के भोजनोपरान्त, परम पावन के साथ श्रीमंत शंकरदेव कलाक्षेत्र में पूर्वोत्तर भारत में आयोजित होने वाले प्रथम तिब्बत महोत्सव का उद्घाटन करने के लिए असम के मुख्यमंत्री तरुण गोगोई और निर्वाचित तिब्बती नेता डॉ. लोबसांग सांगे शामिल हुए। उन्होंने एक तिब्बती मक्खन दीप प्रज्ज्वलित किया। तवांग विहार के विहाराध्यक्ष, गुरू रिनपोछे ने प्रार्थना में भिक्षुओं के एक समूह का नेतृत्व किया। अरूणाचल प्रदेश सरकार में पर्यटन और ग्रामीण निर्माण विकास मंत्री पेमा खांडू ने परम पावन को वहाँ आकर पूर्वोत्तर लोगों के साथ तिब्बती कला और संस्कृति साझा करने के अवसर के लिए धन्यवाद ज्ञापित करते हुए एक परिचय दिया। उसके उत्तर में मुख्यमंत्री ने कहा कि असम में परम पावन का आगमन एक सम्मान की बात थी। उन्होंने उल्लेख किया कि एक संघर्ष त्रस्त विश्व में परम पावन के करुणा और सुलह के संदेश को सुनना एक वरदान था।
श्रोताओं को भाइयों और बहनों के रूप में संबोधित करते हुए, एक मानवीय परिवार की भावना के विकास की आवश्यकता पर बल देते हुए परम पावन ने अपने को सही किया और व्यक्त किया कि वे सोच रहे हैं कि क्या समय नहीं आ गया है कि पुराने संबोधन को उलट कर 'बहनों और भाइयों' कहा जाए।
"तिब्बत के इस महोत्सव का उद्घाटन करना मेरे िलए सम्मान की बात है, मैं इस बात को लेकर प्रसन्न हूँ कि मैं आ सका। मैं आयोजकों को बधाई देता हँू कि उन्होंने अपने स्वयं के निर्णय के आधार पर यह करने का निर्णय लिया।"
"पुरातात्विक खोजों के अनुसार पाषाण युग में हमारे पूर्वज तिब्बत में रहते थे। उत्तरी पूर्व तिब्बत में संकेत मिले हैं जो कि ३०,००० वर्ष प्राचीन हैं, जबकि केंद्रीय तिब्बत में मिले प्रमाण १०,००० वर्ष पुराने और अन्य स्थानों पर ७००० वर्ष पुराने हैं। इसमें कोई संदेह नहीं कि तिब्बती प्राचीन लोग हैं। ७वीं, ८वीं और ९वीं शताब्दी में तिब्बती सम्राट उनके मंगोलियाई और चीनियों के समकक्ष, सममूल्य थे। परन्तु तिब्बत में बौद्ध धर्म के आगमन से पूर्व उनका जीवन मंगोलिया के समान था। लोग खानाबदोश थे और उनके घोड़े तथा तलवार उनकी सबसे महत्त्वपूर्ण संपत्ति थे। उपाध्याय शांतरक्षित, आचार्य पद्मसंभव तथा धर्मराज ठिसोंग देचेन के बौद्ध धर्म को प्रतिस्थापित करने के पश्चात यह बदल गया।"
"शांतरक्षित, एक महान दार्शनिक और तर्कशास्त्री, नालंदा विश्वविद्यालय के एक प्रमुख विद्वान ने बौद्ध धर्म की एक परंपरा का प्रारंभ किया, जिसमें गहन अध्ययन शामिल था। तिब्बती संस्कृति में आमूल परिवर्तन आया और वह शांतिपूर्ण, अहिंसक और करुणाशील हो गई। इसने आंतरिक शक्ति और दूसरों के जीवन को मूल्यवान करने के विकास को प्रोत्साहित किया और दूसरों के जीवन के मूल्य में खेती के लिए प्रोत्साहित किया। फलस्वरूप जंगली जानवरों का शिकार निषिद्ध कर दिया गया।"
"मुख्यमंत्री ने तिब्बती ज्योतिष शास्त्र के प्रति अपने सम्मान का उल्लेख किया है, परन्त्ु यह ऐसा नहीं है जिसमें व्यक्तिगत रूप से मेरा बहुत विश्वास है। वास्तविक रूप से हमारे जीवन में दो महत्त्वपूर्ण तिथियाँ हैं, हमारा जन्म और हमारी मृत्यु और आम तौर पर हम ज्योतिषी से इन दोनों के विषय में परामर्श नहीं लेते। मेरे प्रमुख शिक्षक लिंग रिनपोछे हँसा करते थे कि उनका जन्म एक काले दिन में हुआ था, नौ अशुभ ग्रहों के दिन। फिर भी, यह परम्परा जो कालचक्र तथा चीन और स्थानीय तिब्बती ज्योतिष परंपरा के तत्वों को जोड़ती है उसका तिब्बती परंपरा में स्थान तथा मूल्य है। धन्यवाद।"
सांस्कृतिक कार्यक्रमों की एक श्रृंखला प्रारंभ हुई, जिसमें असम, अरुणाचल प्रदेश और तिब्बती कला प्रदर्शन संस्थान के नर्तकों ने अपने प्रदर्शन से दर्शकों को प्रसन्नता से भर दिया। तिब्बती संसद कर्मा येशी के धन्यवाद ज्ञापन के पूर्व मुख्यमंत्री को जाना पड़ा, जिसमें उन्होंने असम सरकार और अन्य लोगों के प्रति आभार व्यक्त किया जिन्होंने इस उत्सव को संभव बनाया था।
परम पावन ने होटल वापस लौटने से पहले थोड़े समय के लिए साथ चल रहे प्रदर्शनी का दौरा किया तथा कालीनों, मोमो, चिकित्सा और संगीत वाद्ययंत्र का निरीक्षण किया। कल वह शिलांग हिल स्टेशन तक की यात्रा के पहले इसी स्थल पर श्वेत तारा अभिषेक के लिए लौटेंगे।