रीगा, लातविया, ४ मई २०१४ - परम पावन दलाई लामा कल जब यूरोप की यात्रा के लिए विमान में सवार हुए तो मध्य रात्रि में भी दिल्ली तप रही थी। फ्रैंकफर्ट, जहाँ का तापमान ० डिग्री सेल्सियस था, में एक छोटे पड़ाव के पश्चात और एक आरामदायक उड़ान के बाद, वे वह रीगा, लातविया पहुँचे जो कि तीन बाल्टिक राज्यों में से एक है। रीगा का नभ मेघाच्छादित था और सड़कें हाल ही में हुई वर्षा से गीली थी, पर हवाई अड्डे पर 'सेव तिब्बत - लातविया' (तिब्बत बचाओ - लातविया) और 'सेव तिब्बत - रशिया' (तिब्बत बचाओ - रूस) के सदस्यों और उनके आध्यात्मिक निदेशक तेलो टुल्कु द्वारा हार्दिक स्वागत किया गया।
प्रेस के सदस्यों ने परम पावन से पूछा कि यह देखते हुए कि आज स्वतंत्रता दिवस की बहाली का दिन, क्या उन्हें कुछ टिप्पणी करनी है। ४ मई १९९० को लातविया के गणराज्य की स्वतंत्रता बहाल की गई थी, जिसे मूलतः १९१८ में स्वतंत्र घोषित किया गया था। उन्होंने उत्तर दिया:
"मैं आपको अाप लोगों के प्रति अभिनन्दन और बधाई व्यक्त करना चाहता हूँ। मुझे लगता है कि २०वीं शताब्दी के प्रारंभिक तथा बाद में हुए परिवर्तन प्रोत्साहजनक हैं। १९९६ में मैं ब्रिटन की राजमाता से मिला था, जो उस समय ९६ वर्ष की थी और इस कारण उन्होंने अपने जीवन के दौरान लगभग पूरी २०वीं शताब्दी को देखा था। मैंने उनसे पूछा कि वे क्या अनुभव करती है, कि क्या विश्व वैसे का वैसा है, अधिक बिगड़ गया या कि फिर सुधर गया है। बिना किसी हिचकिचाहट के उन्होंने कहा कि विश्व बेहतर हो गया था। उन्होंने कहा कि जब कि जब वे युवा थी तो आत्मनिर्णय या मानव अधिकार जैसी कोई धारणा न थी पर फिर भी आज इन्हें सार्वभौमिक रूप में स्वीकार किया जा रहा है। विश्व के कई भागों में अधिक स्वतंत्रता है। परन्तु फिर भी, ७ अरब मनुष्यों के परिवार के भीतर हमें मानव अधिकार के प्रति सम्मान को सुधारने के प्रयास की आवश्यकता है, फिर चाहे हमारे बीच कोई भी सतही मतभेद क्यों न हों। और इस संबंध में मेरा यह विश्वास है कि बाल्टिक राज्य जैसे छोटे देश और अधिक प्रभावी हो सकते हैं और नेतृत्व कर सकते हैं ।"
विशालकाय लेखक और दार्शनिक अर्निस रिटुप्स, जिनसे वे पहले मिल चुके हैं, की ओर देखते हुए परम पावन ने पूछा कि वे कैसा अुनभव कर रहे थे। रिटुप्स ने उत्तर दिया कि वे कमज़ोरी का अनुभव कर रहे थे। और जब परम पावन ने कारण पूछा तो उन्होंने उत्तर दिया क्योंकि उनमें इतने मूर्ख विचार हैं।
"मैं मानता हूँ", परम पावन ने उत्तर दिया, "हम प्रायः अदूरदर्शिता में उलझ रहे हैं", हमें एक अधिक दूरगामी दृष्टिकोण अपनाने की आवश्यकता है। हम अपने आधारभूत मानव मूल्यों को भूल जाते हैं। यदि हम एक बेहतर विश्व में रहना चाहते हैं तो आपको क्या लगता है कि इसे कौन लेकर आएगा? केवल हम मनुष्य। इस प्रकार का परिवर्तन सरकार या संयुक्त राष्ट्र कार्रवाई के परिणाम स्वरूप नहीं, अपितु व्यक्तियों की पहल पर होगा । हमें आत्मविश्वास और दृढ़ संकल्प की आवश्यकता है।"
परम पावन 'हृदय सूत्र' और 'बोधिसत्व के ३७ अभ्यास' पर दो दिन के प्रवचन के लिए रीगा में हैं, जो कल किपसला अंतर्राष्ट्रीय प्रदर्शनी केन्द्र में प्रारंभ होगा।