बोस्टन, मैसाचुसेट्स, संयुक्त राज्य अमेरिका - १ नवंबर २०१४ - बोस्टन के तिब्बती एसोसिएशन ने परम पावन दलाई लामा के कार्यक्रम का अंतिम दिन शहर के टीडी गार्डन, जो कि, ब्रुइंस और सेल्टिक्स, बर्फ पर हॉकी और बास्केटबॉल टीमों का क्रमशः प्रदर्शन स्थल है, में एक सार्वजनिक व्याख्यान के रूप में आयोजित किया था। तेज़ आँधी और तूफान के पूर्वानुमान के साथ जब वह अपने होटल से गाड़ी से निकले तो सड़कें गीली थीं। एरीना के द्वार पर उनका पारंपरिक तिब्बती रूप से स्वागत किया गया और उन्हें अमेरिकी सीनेटर एलिजाबेथ वॉरेन, बोस्टन के मेयर मार्टिन जे वॉल्श और मेडफोर्ड मेयर मिशेल जे मैकग्लिन के साथ एक बैठक के िलए ले जाया गया।
सीनेटर वॉरेन परम पावन को मंच पर लेकर आए, जहाँ उनका स्वागत पूरे हर्ष व उल्लास के साथ हुआ। युवा तिब्बतियों ने यह कामना करते हुए, कि वह दीर्घ काल तक बने रहें, उनकी प्रशंसा में एक गीत का प्रदर्शन किया। टी ए बी के अध्यक्ष, पेमा छेवांग शास्त्री ने उनका परिचय कराने के लिए सीनेटर वॉरेन को आमंत्रित किया। उन्होंने परम पावन की प्रशंसा विश्व भर में सभी धर्मों के लोगों के लिए एक प्रेरणा के रूप में की और उन्हें उद्धृत करते हुए कहा :
"जब हममें चित्त की शांति है, तो हम अपने आसपास के लोगों के साथ शांत भाव रख सकते हैं। प्रेम और करुणा आराम की वस्तुएँ नहीं, अपितु हमारे अस्तित्व के लिए आवश्यक हैं।" उन्होंने श्रोताओं को आमंत्रित किया कि वे परम पावन तिब्बत के १४वें दलाई लामा के स्वागत में उनके साथ सम्मिलित हों। परम पावन ने कहा:
"सम्माननीय सीनेटर, आदरणीय वरिष्ठ भाइयों और बहनों और जनता में उपस्थित भाइयों और बहनों। सबसे पहले मैं उन प्रदर्शनकर्ताओं का धन्यवाद करता हूँ जिन्होंने अभी नृत्य तथा गीत प्रस्तुत किया। उन्होंने मुझे स्मरण कराया कि जब मैं भी ल्हासा में छोटा था, तो यद्यपि भिक्षुओं को ऐसा करने की अनुमति नहीं है, मैं इसी भाँति स्वयं गाता और नृत्य करता था। नोर्बुलिंगका में छः दिनों के लिए ओपेरा प्रदर्शन होता था, जिसका आनन्द मैं अपनी माँ के साथ लेता और अपनी कक्षाओं से बचता।"
"बोस्टन से किसी न किसी रूप में, मैं परिचित हो गया हूँ और यहाँ विगत कुछ दिन सार्थक रहे हैं। मैंने चित्त और भावनाओं और साथ ही पर्यावरण के बारे में कई उपयोगी चीजें सीखी हैं।"
उन्होंने कहा कि वह जहाँ भी जाते हैं, यह स्पष्ट कर देते हैं कि वक्ता और श्रोताओं के बीच कोई अंतर नहीं है। अन्य सभी ७ अरब मनुष्यों की तरह, वे समान हैं। सभी एक सुखी जीवन व्यतीत करना चाहते हैं, और सब को ऐसा करने का अधिकार है। इस में, सभी मनुष्य एक हैं। और चूँकि हम सब एक मानवीय धरातल पर समान हैं तो लड़ने और हत्या का कोई आधार नहीं हैं। उन्होंने कहा कि धर्म, जाति, राष्ट्रीयता और रंग के मतभेद मौजूद हैं पर वे गौण हैं। उन पर आवश्यकता से अधिक बल देना हमें हमारे बीच समस्याओं की ओर ले जाता है। वह हमें 'हम' और 'उन' के संदर्भ में सोचने की ओर ले जाता है, जो सहज ही संघर्ष की ओर जाता है।
"हम सब को एक सुखी जीवन जीने का अधिकार है, पर इसका अर्थ क्या है? क्या यह धन और शक्ति को लेकर है? नहीं, धन अपने आप में सुख नहीं लाता। मेरे धनवान मित्र हैं जो दुखी हैं। शांति और सुख का वास्तविक स्रोत हृदय और चित्त में है और हमें उसका विकास चित्त के अंदर करना है।"
जब परम पावन ने आँखों को छाया देने के िलए उनको दी गई ब्रुइन्स हॉकी टोपी पहनी तो एक बार पुनः सभागार हर्ष के स्वर से गूँज उठा।
"चैतसिक दुख से निपटने के लिए सही मार्ग भी चित्त के भीतर ही होना चाहिए। भावनात्मक स्तर पर, क्रोध, भय और चिंता दुख लाती है, वैज्ञानिकों की मान्यता है कि वे हमारी प्रतिरक्षा प्रणाली को समाप्त कर देते हैं। दूसरी ओर, हम स्नेह और दूसरों के हित के लिए एक करुणाशील चिंता से भी लैस हैं।"
"जब हम क्रोध और कलह को अपने ऊपर हावी होने देते हैं तो दूसरे दिन हम असहजता का अनुभव करते हैं। पर अन्य दिनों में जब हम दूसरों का साथ पाकर आनंद का अनुभव करते हैं तो अगले दिन हमारा हृदय हल्का लगता है।"
परम पावन ने समझाया कि एक मनुष्य के रूप में हम जैविक रूप से स्नेह का अनुभव करने और उसे अभिव्यक्त करने की क्षमता रखते हैं। जब हम अपनी माँ के गर्भ में होते हैं तो हम उसकी देखभाल और स्नेह से लाभान्वित होते हैं। हमारे जन्म के बाद के हफ्तों में, उसका स्पर्श हमारे दिमाग के उचित विकास के लिए महत्वपूर्ण है। इस प्रकार हमारा जीवन प्रारंभ होता है।
"करुणा और क्षमा के मूल्य धर्म के विषयों तक ही सीमित नहीं हैं। ये मानवीय मूल्य हैं, जिनकी हमें उपेक्षा नहीं करना चाहिए। हम उनका विकास एक धर्मनिरपेक्ष रूप से कर सकते हैं। भारतीय अर्थ में, धर्मनिरपेक्षता सभी धार्मिक परम्पराओं के साथ-साथ, जो किसी भी धर्म को न मानता हो, उसका भी सम्मान करना है। स्वतंत्रता के बाद, भारत, एक बहु-धार्मिक समाज, धर्मनिरपेक्ष संविधान के साथ, अपने पड़ोसियों की तुलना में स्थिर और सामंजस्यपूर्ण बन गया है। यह विश्व का सर्वाधिक जनसंख्या वाला लोकतांत्रिक राज्य भी है।"
"हमें सौहार्दता के विकास के लिए धर्मनिरपेक्ष तरीके ढूँढने की आवश्यकता है। हमें अपने आंतरिक मूल्यों के विषय में स्वयं को शिक्षित करने के लिए धर्मनिरपेक्ष तरीके की आवश्यकता है। एक सुखी जीवन का स्रोत हमारे अंदर है। इस विश्व में गड़बड़ी फैलाने वाले प्रायः भली भाँति शिक्षित होते हैं तो हमारे िलए मात्र शिक्षा की आवश्यकता ही पर्याप्त नहीं है। हमें आंतरिक मूल्यों पर ध्यान देने की जरूरत है।"
उन्होंने चेताया कि हमें रातों रात परिणामों की आशा नहीं करनी चाहिए। परिवर्तन के लिए दशकों का समय लग सकता है, परन्तु २१वीं शताब्दी के अंत तक हम एक अधिक सुखी अधिक शांतिपूर्ण विश्व बनाने में सक्षम हो सकते हैं। २०वीं शताब्दी हिंसा का युग था, पर हम इस युग को शांति का युग बना सकते हैं। जब हमें समस्याओं का सामना करना पड़ता है तो हमें एक मानवीय ढंग से, संवाद के माध्यम से उनका समाधान करना चाहिए। हमें पारस्परिक सहमति वाले समाधानों को खोजने की आवश्यकता है और हमें पर्यावरण की सुरक्षा के लिए भी उपाय ढूँढने होंगे।
"हमें एक धर्मनिरपेक्ष दृष्टिकोण की आवश्यकता है। हम व्यक्ति के रूप में स्वयं को परिवर्तित कर समाज को परिवर्तित कर सकते हैं, मानवता को बदल सकते हैं। आंतरिक मूल्यों का विकास कर हम अपने जीवन और हमारे परिवार के लोगों को बदल सकते हैं। इस प्रकार हम एक और अधिक शांतिपूर्ण विश्व का निर्माण कर सकते हैं।"
"मैं स्वयं को कुछ विशिष्ट रूप में नहीं सोचता। मैं अपने परम पावन दलाई लामा, होने पर बहुत चिंतन नहीं करता, जो मुझे दूसरों से अलग तथा अकेला कर देगा। मैं स्वयं को अन्य लोगों की तरह ही सोचता हूँ, जिससे मुझे उन लोगों के साथ संवाद करने में सरलता होती है। यदि आप जो मैंने कहा है उस पर चिन्तन करें और उसे उपयोगी पाएँ तो उसे कार्यान्वित करने का प्रयास करें। पर यदि आप पाएँ कि इसमें कोई रुचि नहीं है तो बस उसे भूल जाएँ। धन्यवाद ।"
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उसके पश्चात परम पावन ने श्रोताओं द्वारा प्रस्तुत प्रश्नों के उत्तर दिए। एक व्यस्त अमरीकीन जीवन में एक बीच का रास्ता ढूँढने के विषय में उन्होंने टिप्पणी की, कि उचित यही है कि अति विलास का जीवन न जिया जाए तथा अच्छा यह होगा कि और अधिक सार्थक रूप से पैसे खर्च किए जाएँ। तिब्बती रविवार स्कूल के बच्चों में से एक यह जानना चाहता था कि क्या उनके पास कोई पालतू जानवर है। उन्होंने कहा कि उनके पास एक बूढ़ी बिल्ली है। यह पूछे जाने पर कि क्या वे कभी क्रोधित होते हैं, वे हँसे और कहा, "हाँ", और न्यूयॉर्क स्तंभकार की कहानी सुनाई जो लगातार यह प्रश्न पूछ रहा था कि उनकी विरासत क्या है। धैर्यपूर्वक समझाने के बाद भी, कि एक बौद्ध भिक्षु के लिए इस प्रकार की सोच उचित नहीं है, तीसरी बार पूछे जाने पर वे अपना आपा खो बैठे।
एक अन्य प्रश्न था कि परम पावन अपना खाली समय किस प्रकार बिताते हैं। उन्होंने उत्तर दिया कि जब वह छोटे थे तो वह बागबानी और घड़ियों की मरम्मत करते थे, पर अब जब उनके पास समय होता है तो वे नालंदा के आचार्यों की रचनाओं का अध्ययन करते हैं। इस प्रश्न के उत्तर में कि तिब्बती मुद्दे के लिए अमरीकी क्या कर सकते हैं, उन्होंने पहले कहा कि तिब्बती मुद्दा एक न्यायपूर्ण मुद्दा है। उन्होंने कहा कि उनकी प्रमुख चिंता तिब्बती भाषा और लिपि का संरक्षण है, जो नालंदा परंपरा के ज्ञान के संप्रेषण का सबसे सटीक माध्यम है, जो संरक्षण योग्य है। उन्होंने उल्लेख किया कि, यहाँ तक कि शी जिनपिंग ने भी टिप्पणी की, कि चीनी संस्कृति को पुनर्जीवित करने में बौद्ध धर्म की एक भूमिका है।
"तिब्बत की यात्रा करें," उन्होंने सलाह दी। "वहाँ जाएँ और देखें कि वहाँ कैसा है और वहाँ आप जो पाएँ उसकी सूचना अपने मित्रों को दें। ७वीं, ८वीं और ९वीं शताब्दी में तिब्बती, चीनी और मंगोलियाई सम्राट वहाँ थे, परन्तु ९वीं शताब्दी के बाद तिब्बत विघटित हो गया। यूरोप और संयुक्त राज्य अमेरिका में जो फेडरेशन हम देखते हैं, मैं उसका प्रशंसक हूँ। चीनी संविधान भी तिब्बती क्षेत्रों को कुछ अधिकारों का प्रयोग करने की अनुमति देता है। हमारा मध्यम मार्ग दृष्टिकोण बस वही करना चाहता है।"
उसके बाद उन्होंने तिब्बतियों को अपनी ही भाषा में संबोधित किया। उनके समाप्त करने पर पेमा छेवांग ने धन्यवाद के कुछ शब्द कहने के लिए मंच पर रिचर्ड गेर को आमंत्रित किया। सभी का एक सौहार्दपूर्ण मुस्कान के साथ अभिनंदन करते हुए गेर ने कहा:
"यहाँ आकर मैं इतना खुश हूँ, इतना भाग्यशाली हूँ कि मुझे परम पावन दलाई लामा के साथ कुछ घंटे बिताने का अवसर प्राप्त हुआ है। वह हम सभी के एक निजी मित्र हैं। मैं याद कर रहा था कि अपने जीवन के बारे में महान स्कोरसीसी फिल्म 'कुनदुन' देखने के बाद, उन्होंने कहा कि जब उन्होंने तिब्बत छोड़ा और सीमा पार हुए तो खम्पा जो उनके साथ थे, अपने घोड़ों पर फिर से सवार हुए और तिब्बत लौटे। उन्होंने सोचा कि वह उन्हें फिर कभी न देख पाएँगे और उन्होंने उन्हें नहीं देखा। भारत की ओर देखते हुए उन्होंने कहा कि वहाँ केवल ऐसे लोग हैं, जिन्हें वे नहीं जानते थे। अब वे कहते हैं, "मैं जहाँ भी जाता हूँ मेरे मित्र हैं" और इस रूप में हम सभी बेहतर हैं। धन्यवाद।