लेह, लद्दाख, जम्मू और कश्मीर, भारत - ६ जुलाई, २०१४ - कालचक्र अभिषेक की तैयारी करने की प्रक्रिया के प्रारंभ के दिनों से, नमज्ञल विहार के भिक्षुओं ने भूमि नृत्य प्रदर्शित किया है और रेत मंडल का निर्माण प्रारंभ किया है। परम पावन दलाई लामा ने सम्बद्धित प्रार्थना में प्रातः और दोपहर को भाग लिया। कल जम्मू और कश्मीर के राज्यपाल श्री एन एन वोहरा भी शिवाछेल के उनके निवास पर उनसे मिलने गए।
आज परम पावन का ७९वां जन्मदिन था और जैसे ही वह मंडप की ओर निकले, जहाँ वह प्रवचन देने वाले थे, मार्ग पर कई लोगों ने उन्हें बधाई और शुभकामनाएँ अर्पित की। एक और अधिक औपचारिक समारोह के लिए, जो गणमान्य व्यक्ति एकत्रित हुए थे, उनमें सबसे प्रथम वक्ता केन्द्रीय तिब्ब्ती प्रशासन के धार्मिक एवं सांस्कृतिक मामलों के मंत्री पेमा छिंजोर थे। तिब्बत में तथा अन्य स्थानों पर तिब्बतियों की ओर से उन्होंने परम पावन की टिप्पणी का स्मरण किया कि वे ११३ वर्ष की आयु तक रह सकते हैं और उनसे ऐसा करने का अनुरोध किया। उन्होंने परम पावन द्वारा तिब्बती लोगों की दयापूर्ण देख - रेख और निर्वासन में तिब्बती भाषा, धर्म और संस्कृति के संरक्षण के उनके प्रयासों की सफलता का उल्लेख किया। उन्होंने कहा कि तिब्बत के तिब्बती उनके प्रति प्रतिबद्ध हैं जो इस बात से प्रदर्शित होता है कि १३० से अधिक उनकी वापसी के लिए आग्रह, साथ ही तिब्बत की स्वतंत्रता के लिए आत्मदाह कर चुके हैं।
परम पावन को शांति का अग्रणी बताते हुए केन्द्रीय तिब्ब्ती प्रशासन के संसद के अध्यक्ष पेनपा छेरिंग ने उल्लेख किया कि उनका जन्म जे चोंखापा के जन्मस्थान के समीप के एक गाँव में हुआ था। उन्होंने प्रार्थना की, कि परम पावन दीर्घायु हों और उनकी इच्छाएँ पूरी हों। इस अवसर पर उन्होंने तिब्बतियों को सहायता देने के लिए भारत और जम्मू एवं कश्मीर की सरकारों और साथ ही लद्दाख के लोगों का धन्यवाद किया।
स्थानीय मुस्लिम नेताओं सैफ उद्दीन और अशरफ अली ने इस शुभ दिवस पर परम पावन को शुभकामनाएँ देते हुए अपनी बात भी कही। उन्होंने टिप्पणी की, कि न केवल बौद्ध, पर सभी लद्दाखी परम पावन और उनकी सलाह का सम्मान करते हैं। लद्दाखी पर्वतीय विकास परिषद के मुख्य कार्यकारी पार्षद रिगज़िन पलबर ने परम पावन के लंबे जीवन की प्रार्थना की और उनके द्वारा लद्दाख में तीसरी बार कालचक्र अभिषेक देने के लिए सराहना अभिव्यक्त की। जम्मू और कश्मीर सरकार के शहरी विकास मंत्री, रिगज़िन जोरा ने लेह के १९७६ और जांस्कर में १९८८ में कालचक्र अभिषेकों का बिंदु उठाते हुए कहा कि इन घटनाओं ने एक लद्दाखी पुनर्जागरण का प्रारंभ किया था। उन्होंने कहा कि शांति और सद्भाव के एक प्रकाश स्तंभ के रूप में जो स्थान महात्मा गांधी का २०वीं सदी में था वही परम पावन का २१वीं सदी में है। लद्दाख बौद्ध संघ के अध्यक्ष डॉ. तुनडुप छेवांग ने घोषणा की, कि १०८,००० लोगों ने अब तक कालचक्र अभिषेक में भाग लेने के लिए पंजीकरण किया है। उन्होंने सभी आयोजकों का धन्यवाद किया और प्रार्थना की, कि परम पावन की दीर्घायु हो और तिब्बती लोग जो स्वायत्तता चाहते हैं, वह उन्हें प्राप्त हो।