लिवोर्नो, टसकेनी, इटली - १५ जून २०१४ - परम पावन दलाई लामा ने अपनी इटली की यात्रा का अंतिम दिन अवलोकितेश्वर दीक्षा हेतु प्रारंभिक अनुष्ठान करने के लिए मोदिग्लिआनी फोरम पर शीघ्र पहुँच कर किया। तैयारी पूरी करने के पश्चात परम पावन ने लिवोर्नो के बिशप सिमोन गियुस्टि का मंच पर स्वागत किया।
"मेरे यहाँ बुद्ध की शिक्षाओं पर प्रवचन से पूर्व, एक प्रमुख धार्मिक परंपरा से एक आध्यात्मिक भाई की उपस्थिति महान सम्मान की बात है। मैं सदा उल्लेख करता हूँ कि सभी धर्म एक ही संदेश, प्रेम के व्यवहार की शिक्षा देते हैं। दार्शनिक स्तर पर हमारे धर्मों के बड़े अंतर हैं, पर उद्देश्य एक ही है - सभी को नैतिकता के साथ एक बेहतर मानव बनाना" परम पावन ने कहा।
परम पावन ने अपनी अगली इतालवी यात्रा के दौरान एक ईसाई प्रार्थना सेवा में भाग लेने की इच्छा व्यक्त की, उन्होंने कहा कि यह इस यात्रा में ऐसा करना संभव नहीं होगा क्योंकि वे अगले दिन प्रातः निकल रहे थे। उन्होंने पुनः एक बार इटली के बौद्ध समुदाय की ओर से बिशप सिमोन गियुस्टि के प्रति अपना सौहार्दपूर्ण स्वागत तथा गहरी सराहना व्यक्त की।
बिशप सिमोन गियुस्टि ने उनके शब्दों और स्वागत के लिए परम पावन का धन्यवाद दिया और कहा कि वे परम पावन की उपस्थिति में समान रूप से खुश और सम्मानित हैं। उन्होंने कहा कि इस विश्व में कई ऐसे लोग हैं, जो अपनी दिशा खो चुके हैं और जिनके लिए परम पावन का प्रेम और करुणा का संदेश नई आशा लाता है। उन्होंने पुनः परम पावन का धन्यवाद किया। अपनी पूरी बातचीत के दौरान और मंच से जाते हुए भी परम पावन बिशप सिमोन के हाथों को थामे रहे।
तत्पश्चात परम पावन ने अवलोकितेश्वर की दीक्षा दी। मध्याह्न में परम पावन करुणाशील नैतिकता पर एक सार्वजनिक व्याख्यान देने के लिए मोदिग्लिआनी फोरम में लौटे, जिसमें ६००० से अधिक लोगों ने भाग लिया।
उन्होंने मंच पर आते हुए तिब्बती राष्ट्रीय ध्वज पर हस्ताक्षर करने के बाद, उसके विषय पर बोलना प्रारंभ किया। उन्होंने १९५४ - ५५ की अपनी चीन यात्रा के दौरान पेकिंग में अध्यक्ष माओ से हुए अपने वार्तालाप का स्मरण किया, जिस दौरान चीन के अध्यक्ष माओ ने परम पावन से कहा था कि यदि उनके पास हो तो उन्हें तिब्बतीय राष्ट्रीय ध्वज को प्रदर्शित करना चाहिए। परम पावन ने कहा कि उस समय के चीनी नेता समर्पित लोग थे और वे उनके प्रशंसक थे। उन्होंने आगे कहा कि जहाँ तक एक सामाजिक आर्थिक सिद्धांत का संबंध था वे स्वयं को एक मार्क्सवादी मानते हैं।
परम पावन ने कहा कि उन्होंने अपनी इतालवी यात्रा का आनंद लिया। जब भी वे साधारण जनता से िमले तो उन्होंने परम पावन के प्रति सच्ची मानवीय भावना दिखाई और उन्होंने प्रत्येक को प्रेम के लिए धन्यवाद दिया। उन्होंने कहा कि उन्हें मात्र एक शिकायत थी, और वह थी गर्मी, जो कि हर किसी के नियंत्रण से बाहर है।
नैतिकता पर बोलते हुए, परम पावन ने कहा, कि वे उन सभी कार्यों को, जो दूसरों के कल्याण और लाभ के लिए हैं, नैतिक मानते हैं। उन्होंने लोगों को दूसरों के कल्याण के लिए सोच की भावना विकसित करने का सुझाव दिया। अंततः यह स्वयं के हित में होगा। उन्होंने कहा कि यह बुद्धिमत्ता भरा स्वार्थ है। सच्चे रूप में दूसरों के हित की सोच में दूसरों को धमकाने, धोखा देने या अहित के लिए कोई स्थान नहीं रह जाता। उन्होंने कहा कि यह हमारे लिए लाभकारी है क्योंकि हमारा चित्त और अधिक सुखी होगा जो एक सुखी जीवन की ओर ले जाएगा।
जन्म के समय एक बच्चा कोई शब्द अथवा भाषा नहीं जानता, पर अपनी माँ के प्रेम तथा स्नेह पर पूरी तरह से निर्भर रहता है। वैज्ञानिकों ने अध्ययन के माध्यम से जाना है कि एक नवजात शिशु के लिए जन्म के पश्चात प्रारंभिक कुछ सप्ताह में मस्तिष्क के समुचित विकास के लिए माँ का स्पर्श बहुत महत्त्वपूर्ण है। परम पवन ने कहा कि जीवन की प्रारंभिक अवस्था में माँ का स्नेह बहुत महत्त्वपूर्ण है।
उन्होंने अपने व्याख्यान को समाप्त करते हुए कहा कि दूसरों के प्रति करुणा दिखाने से सबसे पहला लाभ जिस व्यक्ति को मिलता है वह स्वयं है। "अतः कृपया प्रेम और करुणा का अभ्यास करें" उन्होंने कहा।
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प्रश्नोत्तर का सत्र लगभल ७ वर्ष के बच्चों के साथ प्रारंभ हुआ। साथ ही एक किशोर ने परम पावन को बताया कि उसके समान यूरोप में कई किशोर हैं जो अपने भविष्य को लेकर चिंतित हैं, और उनसे सलाह माँगी।
परम पावन ने कहा कि वह २१वीं सदी के युवाओं की नई पीढ़ी पर बड़ी आशाएँ रखे हैं और उससे कहा कि जिस प्रकार का परिवर्तन वह देखना चाहते हैं उसका नेतृत्व करें। उन्होंने उससे वर्तमान शिक्षा प्रणाली पर और उससे अधिक आंतरिक मूल्यों और नैतिकता पर अधिक ध्यान देने के लिए कहा। उन्होंने कहा कि वह अपने व्याख्यानों और अन्य दिखाई दे रहे कार्यों द्वारा एक संदेश भेज रहे हैं कि २१वीं सदी को एक और अधिक शांतिपूर्ण और करुणाशील सदी बनाने के उनके प्रयासों में वे उनके साथ हैं।
एक प्रश्न, पिछले दो दिनों से शुगदेन समर्थकों द्वारा किए जा रहे आयोजित प्रदर्शनों के विषय पर था। एक व्यक्ति ने पूछा कि इस संबंध में कर्ता और कार्य के बीच क्या अंतर है और उन जैसे बौद्धों का उन प्रदर्शनकारियों के प्रति क्या व्यवहार होना चाहिए।
परम पावन ने उत्तर दिया कि शुगदेन समस्या लगभग ४०० वर्ष साल पुरानी है तथा महान ५वें दलाई लामा और १३वें दलाई लामा ने इस आत्मा को हानिकारक माना तथा इसकी पूजा का विरोध किया। उन्होंने कहा कि वे शुगदेन पूजा को मात्र एक आत्मा की पूजा के रूप में देखते हैं, धर्म के रूप में नहीं। परम पावन ने आगे कहा कि यह अभ्यास अत्यंत साम्प्रदायिक है, जबकि वे सदा गैर साम्प्रदायिकता का समर्थन करते हैं। उन्होंने कहा कि यहाँ तक कि अज्ञान के कारण उन्होंने भी १९५१ - ७० तक इस आत्मा की पूजा की थी। परन्तु पूरी तरह से जांच और प्रयोगों के बाद उन्होंने इसे बहुत सांप्रदायिक पाया क्योंकि इसने उन्हें अन्य बौद्ध संप्रदायों से शिक्षा लेने में प्रतिबंधित किया। उन्होंने कहा कि इस अभ्यास को रोकने के बाद वे अन्य बौद्ध परम्पराओं, ञिड्गमा, काग्यु और सक्या से शिक्षा लेने में स्वतंत्र हो सके और इस तरह वास्तव में धर्म की स्वतंत्रता प्राप्त कर सके तथा शुगदेन अनुयायियों के निराधार आरोपों का खंडन कर सके कि परम पावन उनके धार्मिक स्वतंत्रता को प्रतिबंधित करते हैं।
नेतृत्व के बारे में एक प्रश्न का उत्तर देते हुए परम पावन ने कहा कि अध्ययन बताते हैं कि जैविक रूप से स्त्रियाँ दूसरों के कल्याण और भलाई के प्रति अधिक संवेदनशील होती हैं। उन्होंने समर्थन किया कि महिलाएँ नेतृत्व में एक अधिक सक्रिय भूमिका निभाती हैं। इस कथन का स्वागत ज़ोरदार तालियों से हुआ। उन्होंने बुद्ध द्वारा भिक्षुओं और भिक्षुणियों को समान अधिकार दिए जाने की भी बात की। परम पावन ने उल्लेख किया कि किस तरह भारत की तिब्बती आवासी बस्तियों के बौद्ध विहारों में उन्होंने भिक्षुओं और भिक्षुणियों दोनों के लिए एक समान शिक्षा का समर्थन किया है और वह खुश हैं कि भारत के तिब्बती भिक्षु तथा भिक्षुणी विहारों में उनका कार्य़ान्वयन हो रहा है।
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एक घंटे से अधिक प्रश्नों के पश्चात लामा सोपा रिनपोछे ने चोंखापा संस्थान को अपनी उपस्थिति से आशीर्वचित करने के लिए परम पावन का धन्यवाद किया, उन्होंने परम पावन की यात्रा को सफल बनाने के लिए सभी सम्बन्धित लोगों के प्रति भी धन्यवाद व्यक्त किया। लामा चोंखापा संस्थान के निदेशक श्री फिल्लिपो ने प्रवचनों, अवलोकितेश्वर दीक्षा तथा करुणाशील नैतिकता पर सार्वजनिक व्याख्यान के लिये परम पावन को धन्यवाद दिया। उसके बाद परम पावन ने लामा सोपा रिनपोछे, श्री फिल्लिपो और सभी दुभाषियों को दुपट्टे प्रदान किए।
स्थल से जाने से पहले, परम पावन ने अपना विदाई सम्बोधन दिया।
"मेरी इटली की यात्रा बहुत ही स्मरणीय रही। अब विदा कहने का समय आ गया है, न केवल इटली को, पर साथ ही इस गर्मी को भी। हम इस समय के लिए अलग हो रहे हैं पर भावना में हम एक साथ हैं। हम अपनी मृत्यु तक मित्र बने रहेंगे। कृपया हर कोई इस बात की अनुभूति करे कि हमारे सुख का परम स्रोत हमारे अपने भीतर है और वह बाहरी स्रोतों पर निर्भर नहीं करता। अतः आंतरिक नैतिक मूल्यों के प्रति अधिक ध्यान दें। इसे ध्यान में रखें।"
जैसे ही उन्होंने वह उस स्थान से निकले, ६००० से अधिक जनसमूह ने तालियों की गड़गड़ाहट से उन्हें एक भावुक विदाई दी। कल परम पावन भारत के लिए रवाना होंगे।