"मेरे प्रिय तिब्बती भाइयों और बहनों," परम पावन ने उत्तर दिया ,"आज जब आप सब लोगों से मिलने अवसर मिला है तो एक क्षण के िलए मुझे लग रहा था कि क्या मैं कहीं वापस तिब्बत में या दक्षिण भारत की बड़ी आवास बस्तियों में तो नहीं हूँ। आप सभी अपनी तिब्बती पहचान और भावना को बनाए रखने के लिए कड़ा परिश्रम कर रहे हैं और मैं आपका धन्यवाद करता हूँ। यहाँ इस नई धरती पर, प्रतीत होता है कि आप ने कई बच्चे भी बनाए हैं। सुनिश्चित करें कि वे तिब्बतियों के रूप में बड़े हों। वे संभवतः त्रिशरण के छंदों का पाठ करना सीख जाएँगे पर वह पर्याप्त नहीं है। आप एक तोते को भी मंत्र पाठ की शिक्षा दे सकते हैं। नोर्बुलिंगका राजभवन में हमारे पास एक तोता था जो अच्छी तरह से अपना सिर हिलाते हुए 'मणि' का जाप कर सकता था। बच्चों को अध्ययन करने और यह जानने की आवश्यकता है कि धर्म क्या है। साष्टांग, मंत्र जाप तथा प्रदक्षिणा अच्छे हैं, पर वे मुख्य अभ्यास नहीं हैं। आप को यह जानने की आवश्यकता है कि किस तरह चित्त में परिवर्तन लाया जाए।"
उन्होंने आगे कहा कि तिब्बती बौद्ध परंपरा, जो नालंदा परंपरा से आई है तथा प्रभावशाली है। यह शांति की संस्कृति है, जो प्रतियोगिता और संघर्ष से विखंडित विश्व में अपना योगदान दे सकता है। आज, उन्होंने कहा, यहाँ तक कि वैज्ञानिक भी इसके चित्त और भावनाओं के ज्ञान में रुचि लेते हैं। चित्त की शांति महत्वपूर्ण है और मात्र जाप से उसे प्राप्त नहीं किया जा सकता।
परम पावन ने कांग्यूर तथा तेंग्यूर की विषय सामग्री को विज्ञान, दर्शन और धर्म के विषय के आधार पर पुनर्वर्गीकरण को लेकर उनकी आशा की बात की। उन्होंने इस ओर ध्यानाकर्षित किया कि चित्त मात्र और मध्यमक परम्पराएँ कई रूपों में क्वांटम भौतिकी के दृष्टिकोण के साथ मेल खाती हैं और किसी के लिए भी रुचिकर हो सकती हैं, जबकि चार आर्य सत्य जैसे विषयों में मुख्य रूप से बौद्धों की रुचि होती है। इन स्रोतों से विज्ञान के दो संस्करण हाल ही में तिब्बती में प्रकाशित किए गए हैं और शीघ्र ही इनका अनुवाद अंग्रेजी, चीनी और अन्य भाषाओं में उपलब्ध होगा।
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तिब्बत में बौद्ध धर्म के आने के बाद समाज के सामूहिक मूल्य अधिक करुणाशील हो गए। तिब्बतियों की अपनी बोलचाल की और लिखित भाषा है, और यह बौद्ध मार्ग को अभिव्यक्त करने के लिए जिसमें तंत्र, तर्क और ज्ञान-मीमांसा शामिल हैं, श्रेष्ठ भाषा है। परम पावन ने भिक्षु विहारों और भिक्षुणी िवहारों में भी, बौद्ध शास्त्रीय ग्रंथों के अध्ययन को प्रोत्साहित किया है, जहाँ पहले मात्र मंत्र जाप का अनुष्ठान होता था। आजकल ऐसी भिक्षुणियाँ हैं, जिन्होंने भली भाँति अध्ययन किया है, तथा गेशे मा की उपाधि प्राप्त करने के अत्यंत निकट हैं। वे व्यक्ति जो बौद्ध धर्म में रुचि रखते हैं, उन्हें अध्ययन की आवश्यकता है। लद्दाख में आम लोगों ने इसे प्रोत्साहित करने के लिए चर्चा समूहों का गठन किया है और परम पावन ने कहा कि उन्होंने तिब्बत में लोगों को ऐसा करते हुए सुना है। किसी लामा को उसका अंग होने की आवश्यकता नहीं है। इसी तरह तिब्बती धर्म और संस्कृति की रक्षा की जा सकती है।
"मैंने अपनी में परम्परा में अध्ययन किया है और मैं जिनसे भी मिलता हूँ, जहाँ भी हूँ, मुझ में गर्व और विश्वास है। मैं सभी प्रमुख धार्मिक परंपराओं का सम्मान करता हूँ, पर मैं इसके प्रति जागरूक हूँ कि सभी महान धार्मिक गुरुओं में यह केवल बुद्ध थे, जिन्होंने अपने अनुयायियों को सलाह और प्रोत्साहन दिया कि उन्होंने जो शिक्षा दी उसे जाँचे और उसका परीक्षण करें।"
विषयातंरण करते हुए, कि तिब्बत में क्या हो रहा है, को लेकर परम पावन ने कहा:
"तिब्बत के ६ लाख तिब्बती हमारे सच्चे गुरु हैं। तिब्बत में चीनी अधिकारियों द्वारा अपनाई गई कठोर नीतियों के कारण वे कठिन समय से गुजर रहे हैं। पर फिर भी तिब्बतियों ने अपनी भावना और चरित्र नहीं खोया। जिस प्रकार चीनियों को अपनी संस्कृति पर गर्व है और वे उसके प्रति समर्पित हैं, उसी प्रकार हम तिब्बती भी हैं। तीन प्रांतों के लोग तिब्बतियों के रूप में एकता की एक प्रबल भावना का अनुभव करते हैं और हम जो निर्वासन में रह रहे हैं, हमें उन्हें अपना समर्थन देना चाहिए।"
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"जब भी संभव होता है, मैं चीनियों से मिलता हूँ। कई साल पहले मैंने चीन-तिब्बत मैत्री संघ की स्थापना को प्रोत्साहन दिया और वे काफी प्रभावी रहे हैं। आज, लगभग ४०० अरब चीनी हैं, जो स्वयं को बौद्ध कहते हैं, और जिनमें से कइयों की तिब्बती बौद्ध धर्म में रुचि है। दूसरों ने स्वयं को तिब्बत के प्राकृतिक पर्यावरण और पारिस्थितिकी संरक्षण के साथ संबद्धित िकया है। साधारण चीनियों के साथ संबंधों में सुधार हुआ है। तिब्बती मुद्दा बंदूक, बल प्रयोग, और सत्य के बीच एक संघर्ष सा लगता है। ऐसा प्रतीत हो सकता है कि अल्पावधि के िलए बंदूक अधिक प्रभावी है पर फिर भी अंततः सत्य ही अभिभावी होगा।"
"जब मैं ल्हासा में छोटा था तो सेवक मुझे सूचना दिया करते थे। मैं भी कुछ चन्द हाथों में बहुत अधिक सत्ता की कमियों से परिचित हो गया। सब कुछ इस पर निर्भर था कि आप किसे जानते हैं। मैं इसमें परिवर्तन करना चाहता था, पर मेरे सुधार लाने के प्रयास नाकाम रहे। हमने १९६० में लोकतंत्रीकरण करना प्रारंभ किया और जब २०११ में एक नया नेतृत्व का चयन हुआ तो मैं सेवानिवृत्त हो गया। इसमें समय लगा पर अंततः हम एक ऐसे बिंदु पर पहुँच गए हैं, जहाँ हमारे नेता चुने जाते हैं।"
परम पावन ने समझाया कि विनय भी लोकतांत्रिक आधार पर कार्य करता है। इस का एक उदाहरण महिलाओं की पूर्ण प्रवज्यता है, जिसका वह सम्पूर्ण रूप से समर्थन करते हैं। बहुत सारे लोग, विशेष रूप से पश्चिम के लोग उनसे इसके विषय में एक अध्यादेश जारी करने के लिए कहते हैं, और कहते हैं कि चूँकि वे ऐसा नहीं कर रहे, वे विकास में बाधक हैं। वास्तव में, विनय से संबंधित परिवर्तन को वैध बनाने के लिए कम से कम पाँच योग्य व्यक्तियों के एक समूह की आवश्यकता होती है।
परम पावन ने दोलज्ञल के विषय पर विस्तार से बात की। उन्होंने कहा:
"मैं डोमो में था, नेचुंग और गदोंग हमारे साथ नहीं थे, पर वहाँ एक माध्यम था, जो यद्यपि अनपढ़ था पर अपने अच्छी भविष्यवाणियों के लिए प्रतिष्ठित था। इस प्रकार दोलज्ञल के साथ मेरा संबंध प्रारंभ हुआ। मैं फबोंगका परम्परा का भी संरक्षक हूँ, इसलिए १९५० - ७० तक मैंने दोलज्ञल की तुष्टि की। ६० के दशक में नेचुंग ने उल्लेख किया कि आवारा, असे खेनपो को तुष्ट करना अच्छा नहीं। मैंने चुप रहने के लिए कहा था और वह चुप रहे और मैंने अभ्यास जारी रखा।"