इसके पूर्व कि किसी भी प्रकार के भाषण दिए जाएँ, उन्हें तिब्बती पेछा के प्रारूप में 'गुह्यसमाज पर महान भाष्य' तथा पुस्तक के प्रारूप में 'पंचक्रम प्रकाश दीप' के नए प्रकाशनों का विमोचन करने के लिए आमंत्रित किया गया। अतिथियों के बीच प्रतियाँ वितरित की गईं।
अपने परिचयात्मक भाषण में ग्युतो के विहाराधीश ने अपनी प्रसन्नता व्यक्त की कि, परम पावन दलाई लामा, गदेन ठि रिनपोछे और अन्य गेलुगपा आचार्य इसमें सम्मिलित हो सके और उन सबका अभिनंदन किया। उन्होंने उल्लेख किया कि बुद्ध शाक्यमुनि ने बोधिचित्तोत्पाद किया, बोधिसत्व के अभ्यासों में लगे रहे और प्रबुद्धता प्राप्त की। इसके बाद उन्होंने शिक्षा दी, जिसमें गुह्यसमाज तंत्र के १७ अध्याय भी शामिल हैं। ये शिक्षाएँ मूल रूप से मरपा लोकचक्षु द्वारा तिब्बत लाई गईं। बाद में जे चोंखापा ने, जैसी बुद्ध द्वारा भविष्यवाणी की गई थी उसे जे शेरब सेंगे की देखरेख में उन्हें सौंप दिया। विहाराधीश ने टिप्पणी की, कि परम पावन ने इस परंपरा मे अभिषेक, शिक्षा तथा भाष्य दिए हैं और इस प्रकार इसे जीवंत रखा है। उन्होंने आगे कहा कि जब से ग्युतो महाविहार की भारत में पुनर्स्थापना हुई, भिक्षु अपना अभ्यास व परम्परा बनाए रखने में ही नहीं अपितु उनमें कुछ सुधार लाने में भी सक्षम रहे हैं। उन्होंने घोषणा की कि ग्युतो के भिक्षु, विशुद्ध रूप से जे चोंखापा की परम्परा का पालन करते हैं, कोई भी विवादास्पद दोलज्ञेल आत्मा की तुष्टि नहीं करता।
धार्मिक और संास्कृतिक मामलों के कलोन (मंत्री) श्री पेमा छिंजोर ने अपने संबोधन में उल्लेख किया कि १९५९ के बाद से चीनी नेताओं ने उपेक्षाजनक रूप से तिब्बतियों के अंधविश्वास की बात की है और तिब्बती बौद्ध धर्म को समाप्त करने का प्रयास किया है। ऐसे संकटों के समक्ष तिब्बतियों ने न केवल अपनी परंपरा को संरक्षित किया है अपितु संपूर्ण विश्व के सम्मान और रुचि आकर्षित करने का कारण भी बना है। इसके लिए कुछ नवीन उपायों का अपनाया जाना शामिल है, जिसमें उन्होंने उल्लेख किया कि परम पावन द्वारा विज्ञान में रुचि को बढ़ावा देना और महिलाओं को अध्ययन के लिए प्रोत्साहित करना है, जिसके परिणामस्वरूप शीघ्र ही प्रथम २५ गेशेमा स्नातक स्तर की शिक्षा पूरी करेंगी। गदेन ठि रिनपोछे और चोंखापा के सिंहासन के वर्तमान उत्तराधिकारी, रिज़ोंग रिनपोछे ने घोषणा की कि बौद्ध परंपरा का अस्तित्व शास्त्रों के अध्ययन और आध्यात्मिक अनुभूति पर निर्भर करता है, यदि उनमें गिरावट आ जाए तो परंपरा में भी गिरावट आती है।
परम पावन ने गदेन ठि रिनपोछे, जंगछे और शरपा छोजे, महाविहाराध्यक्षों और पूर्व महाविहाराध्यक्षों और केन्द्रीय तिब्बती प्रशासन के कर्मचारियों की उपस्थिति को स्वीकार करते हुए अपना मुख्य भाषण प्रारंभ किया।
"बुद्ध शाक्यमुनि की शिक्षाएँ २६०० वर्षों से बनी हुई हैं," उन्होंने कहा। उनमें उतार चढ़ाव आए हैं जैसे कि तक्षशिला, विक्रमशील और नालंदा विश्वविद्यालयों की वर्तमान स्थितियाँ स्पष्ट करती हैं। पर तिब्बत में नागार्जुन जैसे महान आचार्यों के लेखन की प्रतियाँ हैं तथा अध्ययन और विश्लेषण के माध्यम से उनका अर्थ स्थापित करने की प्रथा है। तिब्बती बौद्ध धर्म एक पूर्ण शिक्षण का प्रतिनिधित्व करता है। मैं यह कभी नहीं कहता कि बौद्ध धर्म सबसे अच्छा धर्म है क्योंकि यह एक औषधि के समान है जो किसी एक के रोग के निदान हेतु पर्याप्त है, पर दूसरे की चिकित्सा के लिए अपर्याप्त है। पर यह जिस दर्शन की व्याख्या करता है, वह गहन है।"
"कांग्यूर संग्रह के कुछ ग्रंथ चीनी से अनूदित हुए हैं, पर अधिकांश का उद्गम पालि और संस्कृत जैसी भारतीय भाषाओं से हुआ। बुद्ध की शिक्षा चित्त को मुक्ति की ओर ले जाने के लिए है, चित्त को क्लेशों से मुक्त करने के लिए है। इसमें निर्देश शामिल हैं कि किस तरह चित्त को वश में िकया जाए, अनुशासित िकया जाए, बुद्ध मात्र अपनी अनुभूति को स्थानांतरित नहीं कर सकते, आपको इसे स्वयं विकसित करना है। आपको अपना स्वामी स्वयं बनना है।"
परम पावन ने सुझाया कि जहाँ कांग्यूर के ग्रंथों को विज्ञान, दर्शन और धर्म से संबंधित रूप में वर्गीकृत किया जा सकता है, विज्ञान और दर्शन का अनुसरण किसी के द्वारा भी किया जा सकता है। उन्होंने कहा कि वह प्रायः आधुनिक स्कूल के पाठ्यक्रम में धर्मनिरपेक्ष नैतिकता को प्रारंभ करने के विषय में बोलते हैं। यदि इसी के साथ, बौद्ध विज्ञान में निहित मनोविज्ञान का भी अध्ययन किया जाए तो यह व्यापक लाभ की ओर ले जा सकता है।"
"तंत्र के संबंध में, अपने लेखन की स्पष्टता में जे चोंखापा ने हमारे अध्ययन हेतु इसे सरल बनाया। आज ग्युतो तांत्रिक महाविद्यालय इसका स्मरणोत्सव मना रहा है जो सराहनीय है। तांत्रिक महाविद्यालयों में चार भाष्य की परंपरा जीवित रखी गई है।"
परम पावन ने गंभीर दृष्टि परम्परा और वैपुल्य चर्या परम्परा की भूमिका का उल्लेख किया और प्रश्न किया कि तीसरे 'अनुष्ठानाभिषिक्त परम्परा' का क्या अर्थ है। इसके अतिरिक्त उन्होंने सेज्ञु परम्परा और वेनसापा का 'कर्णतन्त्र' का उल्लेख किया और इस बात की सराहना की कि उसे बनाए रखा गया है। उन्होंने कहा कि संभार, प्रयोग, दर्शन इत्यादि पंच मार्ग चित्त पर आधारित हैं। जब आप यह समझ जाते हैं कि निरोध क्या है और इसे प्राप्त किया जा सकता है तो आप देखते हैं कि, मार्ग भी संभव है और इसका अभ्यास कुछ अर्थ रखता है। उन्होंने उल्लेख किया कि जे चोंखापा ने महान शिक्षा अपनाई और अभ्यास में लगे रहे। उन्होंने अष्ट लोक धर्मों का पूर्ण रूप से परित्याग िकया अपने जीवन को सार्थक बनाया।
"यदि हम जे रिनपोछे की प्रशंसा करते हैं तो हमें उनके उदाहरण का अनुसरण करना चाहिए। यही उनके ऋण चुकाने का मार्ग है।"
ग्युतो महाविहाराधीश ने फिर चर्चा प्रारंभ की जिसके दौरान एकत्रित विद्वान- सिद्धों ने प्राण वायु तथा और माया काय की उत्पत्ति के विभिन्न पहलुओं की भूमिका पर बात की। परम पावन ने बीच में कहा:
"हम नैदानिक मृत्यु होने के पश्चात ध्यान में बैठे हुए लोगों के बारे में बात करते हैं। जब से हम निर्वासन में आए हैं तब से ३० लोगों के 'थुगदम' में रहने के मामले सामने आए हैं। चूँकि यह कुछ ऐसा है जो प्रत्यक्ष रूप से घट रहा है, हमने वैज्ञानिकों के साथ इस घटना पर चर्चा की है। हम चित्त के संदर्भ में इसे समझाने में सक्षम हैं, लेकिन वे नहीं। हम कहते हैं कि जब तक चित्त उपस्थित है, शरीर ताजा रहता है। एक बार चित्त चला गया तो शरीर गलने लगता है। हमें इसके परीक्षण की आवश्यकता है कि क्या यह बात है कि जब चित्त बना रहता है तो शरीर का क्षय नहीं होता, व्यापी वायु ऊर्जा, जिसकी आप अभी बात कर रहे थे, की क्या भूमिका है।
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जब कुछ वर्षों पूर्व थुबतेन रिनपोछे का िनधन न्यूजीलैंड में हुआ, यद्यपि अस्पतालों में आम तौर पर मृत शरीर को रखने की अनुमति नहीं है, पर चूँकि उनका शरीर ताजा बना हुआ था, उसे रखने की अनुमति मिल गई। उनके निधन के चौथे दिन उनके हाथ पहले जिस स्थिति में थे, ऐसा पाया गया कि वे हिल गए हैं और उनके बाएँ हाथ ने दाहिने हाथ की अनामिका उँगली को कसकर पकड़ा है। ऐसा उसी समय संभव है जब व्यापक वायु-ऊर्जा अभी भी बनी हुई हो, पर अभी अभी प्रस्तुतियों में से एक बल देता है कि मृत्यु पर यह छूट जाती है। हमें इस पर गौर करने की आवश्यकता है।"
इस उद्घाटन सत्र के दौरान विद्वानों ने अपनी प्रस्तुतियों के मुख्य बिंदुओं का सारांश प्रस्तुत करना जारी रखा। जब उनका संक्षिप्त समय पूरा हो गया तो उन्हें एक घंटे की गूँज द्वारा सूचित किया जा रहा था। परम पावन ने पुनः टिप्पणी की कि किसी विषय के संबंध में निश्चितता प्राप्त करने के लिए साधारणतया हम विश्लेषण का माध्यम चुनते हैं। तथापि तंत्र में जैसे महासुख का अनुभव बढ़ता है, चित्त और सूक्ष्म हो जाता है। और सूक्ष्मता में वृद्धि के साथ निश्चितता में वृद्धि होती है। अत: अनुत्तर योग तंत्र में, स्पष्टता में सुधार करने के िलए विश्लेषण के प्रयोग की कोई आवश्यकता नहीं है।
सभी अतिथियों द्वारा मध्याह्न के एक पौष्टिक भोजन का आनंद लेने के पश्चात विचार विमर्श पुनः प्रारंभ हुआ। समापन पर, लामा उमज़े ने धन्यवाद के शब्द प्रस्तुत किए। उन्होंने परम पावन और गदेन ठि रिनपोछे को आने के निमंत्रण को स्वीकार करने के लिए आभार व्यक्त किया। उन्होंने सभी विद्वानों और भिक्षुओं, जिन्होंने विचार विमर्श में भाग लिया और अन्य सभी अतिथियों और समर्थकों के प्रति आभार व्यक्त किया।
"परम पावन ही ऐसे हैं जिन पर धर्म का अस्तित्व निर्भर करता है।" उन्होंने कहा। "हमें उनसे बार बार शिक्षा प्राप्त करने का अवसर मिले। इस महाविहार के भिक्षु अपने अध्ययन और अभ्यास में बाधा मुक्त हों।"
सत्र का समापन गुंगथंग तेनपे डोनमे द्वारा जे चोंखापा के शिक्षा के फलने फूलने की प्रार्थना तथा गुह्यसमाज के मंगल छंदों के सस्वर पाठ से हुआ।