परम पावन ने श्रोताओं के प्रश्नों के उत्तर दिए। उन्होंने स्पष्ट किया कि उन्होंने शांतिदेव के अध्याय ६ और ८ के सार की व्याख्या का चयन किया क्योंकि क्रोध से निपटने और एक परोपकारी दृष्टिकोण के उत्पाद के लिए वे जो सलाह दे रहे हैं वे सभी के लिए लाभकारी है, फिर चाहे वे किसी भी धर्म के हों। जब किसी अन्य ने अन्य धािर्मक समुदायों की मंशा और आचरण के बारे में चिंता व्यक्त की, तो परम पावन ने कहा कि केवल एक धर्म और एक सत्य का विचार, अतीत में उचित रहा होगा और आज एक व्यक्ति के लिए उचित हो सकता है। पर जहाँ तक समाज का संबंध है, हमें यह स्वीकारना होगा कि कई धर्म और कई सत्य हैं। उन्होंने कहा कि अंतर्धार्मिक संघर्ष अपर्याप्त संपर्क और समझ के कारण उत्पन्न होते हैं।
उन्होंने आगे कहा कि कुछ समस्याएँ जिनका हम आज सामना कर रहे हैं, और ३०-४० वर्षों के लिए बनी रहेगी, पर यदि हम उनमें संशोधन करने के िलए अभी कदम उठाएँ तो समय रहते स्थितियों में परिवर्तन होगा। यही कारण है कि वह धर्मनिरपेक्ष नैतिकता और इस धारणा को आधार मान कर कि हम सभी एक मानव परिवार से संबंध रखते हैं, सौहार्दता के महत्त्व के विचार को बढ़ावा देते हैं। इस संदर्भ में मतों में अंतर, जाति और राष्ट्रीयता के अंतर गौण हैं। अपने जीवन काल में बुद्ध ने सभी को बौद्ध धर्म में परिवर्तित करने का कोई प्रयास नहीं किया। हमें दूसरों का सम्मान करते हुए अपने स्वयं के धर्म को बनाए रखने की आवश्यकता है।
शिक्षा में धर्मनिरपेक्ष नैतिकता को प्रारंभ करने के पाठ्यक्रम के बारे में, जिसकी चर्चा परम पावन ने की थी, उन्होंने कहा कि वह अभी भी निर्मित हो रहा है। वैज्ञानिकों, शिक्षाविदों और संबद्ध लोग, अमरीका, यूरोप और दिल्ली में इस पर काम कर रहे हैं। उन्होंने पुष्टि की कि जब यह तैयार हो जाएगा तो इसे उपलब्ध कराया जाएगा और इसे स्कूलों में एक पायलट परियोजना के रूप में चलाया जा सकता है। यदि यह सफल हो जाए तो इसे अधिक व्यापक रूप से लागू किया जा सकता है।
मध्याह्न में परम पावन को दक्षिण मुंबई के सोमैय्या भवन में व्यापार जगत के नेताओं के एक समूह को संबोधित करने के लिए आमंत्रित किया गया। जैसा वे आमतौर पर करते हैं उसी तरह उन्होंने उनका अभिनन्दन करते हुए कहा:
"भाइयों और बहनों, आप सब से मिलना मेरे लिए एक सम्मान की बात है। हम मनुष्य के रूप में सभी एक समान हैं; हम में से प्रत्येक में एक सच्ची मुस्कान द्वारा विश्वास और खुशी को व्यक्त करने की क्षमता है। निश्चित रूप से आप एक कृत्रिम मुस्कान की शक्ति से भी परिचित होंगे। मैं आपको अपनी रुचियों और प्रतिबद्धताओं के बारे में बताना चाहूँगा।"
उन्होंने मानवीय मूल्यों को बढ़ावा देने की अपनी प्रतिबद्धता को समझाया जो कि हर किसी के एक सुखी जीवन जीने की इच्छा और हम में से प्रत्येक की मित्रों की आवश्यकता पर आधारित है। उन्होंने कहा कि दूसरों के हित के लिए चिंता की एक सच्ची भावना का विकास, उस विश्वास का आधार है जो सुख और मैत्री को संभव करता है। यह हमारे अपने स्वास्थ्य के लिए भी अच्छा है, क्योंकि वैज्ञानिकों ने पाया है कि निरंतर क्रोध, भय और संदेह हमारी प्रतिरक्षा प्रणाली को दुर्बल करता है। उन्होंने कहा:
"आपने अनुभव किया होगा कि यद्यपि आप के पास बहुत धन हो पर यदि आप द्वेष और अविश्वास से भरे हुए हों तो आप दुखी होंगे। दूसरी ओर एक परिवार जो निर्धन है, पर स्नेह से भरा हुआ है, वह संतुष्ट होता है। सौहार्दता और दूसरों के कल्याण की चिंता, सुख के लिए एक शर्त है, फिर चाहे आप धार्मिक हों या नहीं। मात्र एक मनुष्य के रूप में, मैं आप के साथ हमारे आपसी संबंधों में स्नेह के महत्त्व को साझा करना चाहता हूँ। दूसरी ओर एक बौद्ध के रूप में, मेरा विश्वास है कि दार्शनिक मतभेदों के बावजूद, सभी प्रमुख धार्मिक परंपराएँ प्रेम और करुणा का एक जैसा संदेश देती हैं और इसलिए हमारे सम्मान के योग्य हैं।"
उन्होंने सुझाव दिया कि व्यापार जगत के नेता समाज की बेहतरी के लिए एक महत्त्वपूर्ण योगदान कर सकते हैं। उन्होंने संकेत किया कि अभी भी बहुत अधिक लोग गरीबी में रह रहे हैं, कि हमारी भव्य इमारतों के बीच बस्तियों में रहने वाले लोग हैं, जो अभी भी हमारी तरह इंसान हैं। उन्होंने कहा कि धनवानों का गरीबों को शिक्षा और स्वास्थ्य के लिए सुविधाएँ प्रदान कर और सहायता करने का एक उत्तरदायित्व बनता है, पर साथ ही गरीबों का अपने स्वयं के विश्वास का निर्माण करने और कठोर परिश्रम करने का एक उत्तरदायित्व है।
परम पावन ने सुझाया कि चूँकि भारत एक कृषि प्रधान देश है, ग्रामीण क्षेत्रों का विकास उतना ही महत्त्वपूर्ण है जितना शहरी विकास। शहरों में, मोटर गाड़ियों की बढ़ती संख्या के साथ सड़कें और फ्लाईओवर निर्मित की जा रही हैं, पर ग्रामीण क्षेत्रों में अस्पतालों, स्कूलों और उद्योग का प्रावधान भी महत्त्वपूर्ण है। उन्होंने वहाँ उपस्थित लोगों से कहा कि उन्होंने जो कहा उसके विषय में सोचें ताकि वह मात्र एक इच्छाधारी सोच बनकर न रह जाए।
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यह पूछे जाने पर कि क्या लोभ मानव स्वभाव का एक अंग नहीं है और उसे कैसे परिवर्तित किया जाए, परम पावन ने कहा कि संतोष की आवश्यकता के विषय में जागरूकता उत्पन्न कर। उन्होंने ध्यानाकर्षित किया कि एक अरबपति की भी केवल दस उंगलियाँ होती हैं और उनमें से प्रत्येक में हीरे की अंगूठी पहनना अति और अजीब होगा। इसी तरह अमीर आदमी का पेट भिखारी के पेट से बड़ा नहीं है। प्रतिस्पर्धा के विषय में परम पावन ने कहा कि वह दो प्रकार की प्रतिस्पर्धा देखते हैं। प्रतिस्पर्धा, जो अपने प्रतिद्वंद्वियों और विरोधियों को नष्ट करने पर केंद्रित हो, जो अनिवार्य रूप से नकारात्मक है और ऐसी कामना से प्रेरित प्रतिस्पर्धा कि सभी सफल हों। उन्होंने सुझाया कि बुद्ध, धर्म और संघ में शरण लेने की बौद्ध प्रार्थना के संघ अनुभाग में एक प्रकार की प्रतिस्पर्धा और आपसी प्रेरणा शामिल है ताकि सभी को मुक्ति प्राप्त हो।
परम पावन ने सलाह दी कि एक बढ़ती वैश्विक आबादी, धनवानों तथा निर्धनों के बीच की बढ़ती खाई, प्राकृतिक संसाधनों में कमी का सामना करते हुए दूसरों के प्रति चिंता महत्त्वपूर्ण है। जीवन के उद्देश्य के बारे में पूछे जाने पर उन्होंने कहा कि यह सुख और संतुष्टि पाने में है।
यह स्मरण करते हुए कि तिब्बती पारम्परिक रूप से भारतीयों को अपना गुरु मानते हैं, परम पावन ने १४वीं सदी के एक तिब्बती आचार्य का उद्धरण दिया जिन्होंने एक छंद लिखा कि यद्यपि बर्फ की भूमि, तिब्बत का प्राकृतिक रंग श्वेत है, पर जब तक भारत से प्रकाश नहीं आया तिब्बत अंधकार में था। उन्होंने उल्लेख किया कि वह जहाँ भी जाते हैं, अहिंसा की भारतीय परम्परा और अंतर्धार्मिक सद्भाव में रहने वाले भारतीयों की प्रशंसा करते हैं। उन्होंने कहा कि वे प्रायः स्वयं को भारत के पुत्र के रूप में संदर्भित करते हैं क्योंकि उनका मस्तिष्क नालंदा परंपरा के ज्ञान से भरा है जबकि लगभग ५५ वर्षों से उनका शरीर भारतीय चावल, दाल और रोटी से पोषित हुआ है।
वहाँ उपस्थित कई लोगों के साथ अपनी तस्वीर खिंचवाने और उनके लिए पुस्तकों पर हस्ताक्षर करने के बाद परम पावन उसी भवन के सेंटर फॉर लर्निंग से जुड़े किताबों की दुकान पर गए और उसके बाद दिन के लिए अवकाश लिया। कल परम पावन धर्मनिरपेक्ष नैतिकता पर एक सार्वजनिक व्याख्यान देंगे और शांतिदेव के ग्रंथ के बचे भागों की व्याख्या पूरी करेंगे।