मिनियापोलिस, मिनेसोटा, संयुक्त राज्य अमेरिका - १ मार्च २०१४ - परम पावन दलाई लामा जब कल लॉस एंजिल्स से मिनियापोलिस पहुँचे तो तापमान अत्यधिक सर्द था और जहाँ तक आँखे देख सकती धरती बर्फयु्क्त थी। नोबेल शांति पुरस्कार फोरम, जो नोबेल शांति पुरस्कार विजेताओं के कार्य की सराहना कर शांति को प्रेरित करती है, ने परम पावन को कार्यक्रम के प्रथम दिन लॉरियट संबोधन देने हेतु आमंत्रित किया।
"भाइयों और बहनों", उन्होंने प्रारंभ किया "मैं जहाँ भी जाता हँू, जिनसे भी मिलता हूँ, मैं स्मरण रखता हूँ कि शारीरिक, मानसिक और भावनात्मक रूप से हम सब समान हैं। मेरे अपने अनुभव से, जब मैं छोटा था, मैं जानता हूँ कि ऐसे अंतर पर ध्यान देना कि, मैं एक तिब्बती, एक बौद्ध और यहाँ तक कि दलाई लामा हूँ, चिंता उत्पन्न करता है। यह दिखावटीपन और पाखंड की ओर ले जा सकता है। क्रमशः मैंने यह अनुभव किया कि वास्तविकता के आधारभूत स्तर मनुष्य के रूप में हम सभी समान हैं। जब हम गौण मतभेद पर ध्यान केंद्रित करते हैं, जो हममें अंतर करता है तो हम तुरंत 'हम' और 'उन' की भावना से गिरावट लाते हैं जो बहुत सरलता से धोखा देने, शोषण करने, यहाँ तक कि आपस में एक दूसरे की हत्या करने की ओर ले जाता है। आज जीवित ७ अरब मनुष्यों में से प्रत्येक बाकी के मानव समाज पर निर्भर है। यदि मानव समाज सुखी और समृद्ध है तो प्रत्येक मनुष्य लाभान्वित होता है।"
उन्होंने आगे कहा कि हम सभी के समान मानव अधिकार है क्योंकि हम सभी सुखी रहना चाहते हैं, ऐसा कुछ जिस पर हम सभी का अधिकार है। हमारे मानव अधिकार मानवता की एकता से संबंधित हैं। मनुष्य के रूप में हममें सृजनात्मकता है। उसे काम में लाने कि िलए हमें स्वतंत्रता की आवश्यकता है, अतः हमें उन अधिकारों के संरक्षण की आवश्यकता है।
"हम सब हमारी माँ से आते हैं और उसके स्नेह की शरण में बड़े होते हैं, जिसका हम में से प्रत्येक ने आनंद उठाया है। जिनको ऐसा स्नेह प्राप्त होता है वे बड़े होकर सुखी होते हैं। दुर्भाग्यवश अवांछित बच्चों के संबंध में जिन्हें इस तरह स्नेह नहीं मिल पाता वे संदेह, भय और असुरक्षा के द्वारा बाधित होकर बड़े होते हैं। अनुभव सुझाता है कि जब हम युवा होते हैं, तो हम प्यार दया की आवश्यकता को समझते हैं, पर जैसे जैसे हम बड़े होते हैं यह कम होता जाता है। इसका आंशिक कारण यह है कि हमारी शिक्षा प्रणाली मानवीय मूल्यों के स्थान पर भौतिकता की ओर अधिक उन्मुख है, हमारे शिक्षा भौतिक सफलता पर केंद्रित है। आधुनिक समाज ने एक भौतिकवादी संस्कृति विकसित की है जिसमें हमारे सदगुण सुषुप्त हो जाते हैं।"
परम पावन ने मनुष्य को सामाजिक प्राणी कहा, जो चींटियों और मधुमक्खियों की तरह एक दूसरे के साथ सहयोग करके उनके समुदाय के कल्याण को सुनिश्चित करना है। उन्होंने कहा कि उन्हें मधुमक्खी इतने अच्छे लगते हैंं कि उन्हें उस रूप में पुनर्जन्म लेने की आशंका जताई। दुर्भाग्य से उनके चिकित्सकों ने मीठी खाने की वस्तुओं में कटौती करने की सलाह दी है, विशेष रूप से शहद, इसलिए अब उन्हें लगता है कि वह उस संकट से मुक्त हो चुके हैं।
शिक्षा के संबंध में, परम पावन के मित्र गंभीर चर्चा में लगे हैं कि आधुनिक शिक्षा प्रणाली में नैतिकता और मानवीय मूल्यों को किस प्रकार शामिल किया जाए।
यदि यह एक धार्मिक परंपरा पर आधारित हो तो वह सीमित हो जाता है। यद्यपि सभी धर्म प्रेम, दया, सहिष्णुता और क्षमा का एक जैसा संदेश संप्रेषित करते हैं पर उनके विभिन्न दार्शनिक विचारों के कारण उनमें से कोई भी एक सार्वभौमिक नहीं हो सकता। जिसकी आवश्यकता है वह है एक नई धर्मनिरपेक्ष प्रणाली, जो सार्वभौमिक रूप से स्वीकार्य हो। उन्होंने स्पष्ट किया कि वह धर्मनिरपेक्ष शब्द का प्रयोग भारतीय संदर्भ में करते हैं जो धर्म का अनादर अथवा बर्खास्तगी नहीं अपितु जिसका अर्थ सभी धर्मों और यहाँ तक कि जो किसी भी धर्म को नहीं मानते, उनके लिए पक्षपात रहित सम्मान है। एक धर्मनिरपेक्ष दृष्टिकोण, धर्मनिरपेक्ष शिक्षा के भीतर अधिक सुखी व्यक्ति, परिवार समुदाय तथा राष्ट्र को सुनिश्चित करने के लिए नैतिकता और गहरे मूल्यों को बढ़ावा देने के लिए उपयोगी है। भय, संदेह और अविश्वास, क्रोध की ओर ले जाते हैं जो हमारे शारीरिक स्वास्थ्य को हानि पहुँचाता है जबकि एक करुणाशील चित्त हमारी प्रतिरक्षा प्रणाली की सुरक्षा करता है।
समय, स्थान और जलवायु के अंतरों ने अलग अलग जीवन शैलियों, यहाँ तक कि विभिन्न मानसिक स्वभाव को जन्म दे दिया है। इसी कारण विभिन्न दार्शनिक विचार भी उत्पन्न हुए हैं। पर उनके उद्देश्य एक ही हैं: मानवीय मूल्यों को बढ़ावा देने और एक सुखी जीवन प्राप्त करना। अतः हमारी धार्मिक परम्पराओं के बीच आपसी प्रशंसा और सम्मान पर आधारित सामंजस्य आवश्यक है।
परम पावन ने कहा कि बस उन्हें यही कुछ कहना था और दर्शकों से प्रश्न आमंत्रित किए। एक ने पूछा कि वह निराशा से किस तरह उबरते हैं और उन्होंने कहा कि कोई विकल्प नहीं है। उन्होंने हँसी हँसी में कहा:
"यदि आप जल्दी मरना चाहते हैं तो निराशावाद पर ध्यान करें।"
एक अन्य प्रश्नकर्ता करुणा की पहचान जानना चाहता था और उन्होंने उसे बताया कि यह दूसरों के कल्याण के प्रति सच्चे रूप में चिंता थी। इस संदर्भ में उन्होंने स्पष्ट किया कि क्षमा दूसरों के अुनचित कार्यों को स्वीकार करना नहीं, अपितु यह स्मरण रखना है कि वह एक मनुष्य है। एक अन्य प्रश्न मिनेसोटा के मेयर का था जिसने परम पावन को यह टिप्पणी करने पर प्रेरित किया कि लोग गंदी राजनीति के विषय में बात करते हैं, परन्तु राजनीति अपने आप में गंदी नहीं है। वह केवल ऐसी बनती है जब कपटी लोग इसे काम में लाते हैं, जो अन्य गतिविधियों के लिए भी सच है, यहाँ तक कि धर्म के अभ्यास के लिए भी। यह पूछे जाने पर कि हम आशावादी कैसे बने रह सकते हैं, परम पावन ने ध्यानाकर्षित किया कि जहाँ २०वीं सदी अत्यधिक हिंसा का समय था २१वीं सदी संवाद का युग बन सकती है। आज के विश्व को एक शब्द में वर्णित करने के लिए पूछे जाने पर उन्होेंने कहा ः "जटिल", जिसे सुनकर दर्शक हँस पड़े। अंत में, किसी ने परम पावन को अपना आशीर्वाद देने हेतु आमंत्रित किया और उन्होंने उत्तर दिया कि एक बौद्ध के रूप में वह तथाकथित आशीर्वाद के संबंध में शंकालु हैं और यह अनुभव करते हैं कि सच्चा आशीर्वाद हमारी अपने सद्कार्यों, हमारी अच्छी प्रेरणा से मिलता है।
एशिया पेसिफिक मिनिसोटा के राज्य परिषद के सदस्यों से भेंट करते हुए और उनके प्रश्न लेते हुए परम पावन ने इस अवसर पर राजनैतिक उत्तरदायित्व से अपने संन्यास को स्पष्ट किया ः
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"अपने बाल्यकाल से ही मुझे लगता था कि मात्र कुछ लोगों के हाथ में शक्ति केंद्रित करना अनुचित था। मैंने तिब्बत में एक सुधार समिति का गठन किया जिसे सीमित सफलता प्राप्त हुई क्योंकि चीनी कोई भी सुधार अपने ढंग से करवाना चाहते थे। जैसे ही हम निर्वासन में आए, हम अपने व्यवस्था को प्रजातंत्रीय करने लगे। १९६० में हमने निर्वाचित प्रतिनिधियों की एक सभा की स्थापित की। इस प्रक्रिया का परिणाम २००१ में नेतृत्व हेतु प्रथम प्रत्यक्ष चुनाव के रूप में हुआ जिसके बाद मैं अर्द्ध सेवा निवृत्त हो गया। २०११ के नेतृत्व चुनाव के बाद, मैंने न केवल पूर्ण रूप से सेवानिवृत्त होने का निश्चय किया पर दलाई लामा की संस्था को भी भविष्य में किसी प्रकार की राजनीतिक भूमिका से सेवानिवृत्त करने का निर्णय लिया।"
अपने धन्यवाद ज्ञापन में, राज्य परिषद ने परम पावन को पुनः आने के लिए आमंत्रित किया।
टिब्बेटन अमेरिकन स्टूडेंट्स एसोसियेशन (टी ए एस ए) (तिब्बती अमेरिकी छात्र संघ) ने चीनी छात्रों के साथ एक बैठक आयोजित की थी जिसमें १३ कॉलेजों से ३३० से अधिक छात्र सम्मिलित हुए थे, िजनमें २५० से अधिक चीनी और ५० तिब्बती थे। उन्हें संबोधित करते हुए परम पावन ने कहा कि वे अपने आप को मात्र एक और मानव मानते हैं क्योंकि जब हम मानवता की एकता की सराहना करने में विफल होते हैं तो हम लोगों को 'उन' तथा 'हम' के संदर्भ में देखते हैं। इस प्रकार का एक संकीर्ण, अदूरदर्शी दृष्टिकोण संघर्ष का आधार है। खिलखिलाती हँसी के साथ उन्होंने कहा कि यदि वह अभी भी ल्हासा में पोतल भवन में रह रहे होते तो वे संभवतः यह न समझ पाते, और टिप्पणी की कि जहाँ तिब्बतियों पर दुर्भाग्य टूट पड़ा था, पर यह पूर्णतया बिना अवसर के न था।
"मानव समस्याओं का समाधान एक मानवीय दृष्टिकोण द्वारा किया जाना चाहिए", उन्होंने कहा, "और संवाद स्वीकार्य और पारस्परिक लाभ के समाधान खोजने का एक मार्ग है।"
उन्होंने कहा कि १९७४ के आसपास ही निर्वासन में रह रहे तिब्बतियों ने स्वतंत्रता की माँग न करने का निर्णय ले लिया था। चीनी संविधान काउंटियों, जिलों इत्यािदयों के लिए स्वायत्तता वर्णित करता है और धार्मिक स्वतंत्रता हेतु स्पष्ट रूप से शर्तें निर्धारित करता है। कठिनाइयाँ उस मौके पर स्थित संकीर्ण विचारधारा वाले अधिकारियों द्वारा इन प्रावधानों को क्रियान्वित करने की विफलता में है। परम पावन ने स्पष्ट किया कि १९८९ के तिनामेन स्कोएर घटना के बाद ही चीनियों ने तिब्बतियों के लिए समर्थन व्यक्त करना प्रारंभ किया। उन घटनाओं ने एक लंबे समय से चली आ रही भ्रांति दूर की, कि तिब्बती चीनियों के विरुद्ध थे। स्पष्ट है कि चीनी नेताओं को एक व्यापक दृष्टिकोण अपनाने की आवश्यकता है। परम पावन ने टिप्पणी की:
"पीपुल्स रिपब्लिक ऑफ चाइना में विश्व को योगदान देने की महान संभावना है, पर मुझे मलेशियाई नेता तंुकु अब्दुल रहमान की कही बात का स्मरण है कि चीन अपने पड़ोसियों में भय की भावना भरता है। इसमें परिवर्तन अपेक्षित है, चीन को और अधिक खुला और पारदर्शी बनने की आवश्यकता है। २१वीं शताब्दी आशा का स्रोत है। इस तरह हान भाइयों और बहनों के पास विश्व को बेहतर रूप में परिवर्तित करने का अवसर है। जहाँ तक तिब्बती प्रश्न की बात है, हमें एक शांतिपूर्ण समाधान खोजने की आवश्यकता है। धन्यवाद।"
दर्शकों की ओर से पहला प्रश्न एक युवक का था जिसके तीन मित्रों का हाल ही में निधन हो गया था। वह परा जन्म के विषय में जानना चाहता था। परम पावन ने उसे बताया कि यह निर्भर करता है कि उन्होंने अपना जीवन किस प्रकार जिया था, कि वे साधारणतया दूसरों के लिए अधिक सहायक थे या अहित करने वाले थे। जिस रूप में भी वे रहे हों एक मित्र के रूप में वह उनकी ओर से प्रार्थना कर सकता है। एक युवा चीनी महिला ने बताया कि उसने अनुभव किया है कि चीनियों की जानकारी कितनी गलत है, पर उसके तिब्बती मित्र बहुत भावुक हो सकते हैं। परम पावन ने उसे बताया कि तिब्बतियों के समर्थक जो जापान, ऑस्ट्रेलिया, न्यूजीलैंड, संयुक्त राज्य अमेरिका में हैं वे इतने अधिक तिब्बती समर्थक नहीं जितना न्याय समर्थक हैं। पर वे यह भी स्पष्ट करते हैें कि यदि तिब्बती संघर्ष अहिंसक न रहा तो उनका समर्थन न रहेगा। उन्होंने आगे कहा:
"आप युवा चीनियों को केवल वही नहीं सुनना चाहिए जो सरकार कहती है, आपकी दो आंखें और दो कान हैं, उनको काम में लाइए। १.३ अरब चीनी लोगों को यह जानने का अधिकार है कि वास्तव में क्या हो रहा है और उचित, अनुचित में अंतर करने की क्षमता है। इसलिए, सेंसरशिप नैतिक रूप और व्यावहारिक रूप से गलत है।"
तिब्बत में जो आत्मदाह हुए हैं, उनके संबंध में परम पावन ने अपने पूर्व कथन की पुनरावृत्ति की, कि वे अत्यंत दुखपूर्ण हैं और प्रारंभ से ही उनकी प्रभावशीलता के बारे में उन्होंने शंका व्यक्त की है परन्तु यह भी एक संवेदनशील राजनीतिक प्रश्न है और अब वे सेवानिवृत्त हो गए हैं, वे जो भी कहते हैं कट्टरपंथी उसमें हेराफेरी करने का प्रयास करते हैं।
शी जिनपिंग के विषय में, परम पावन ने जिस साहस के साथ वे भ्रष्टाचार से निपट रहे हैं तथा ग्रामीण लोगों की आवश्यकताओं और न्यायपालिका के कामकाज पर हाल ही में हुई तीसरी विस्तृत बैठक को स्वीकार किया। इस पर ध्यान आकर्षित करते हुए कि किस प्रकार अलग अलग नेताओं के कार्यकाल में चीन में परिवर्तन हुआ है, परम पावन ने उल्लेख किया कि सद्भाव के बारे में हु जिन्ताओ का नारा अच्छा विचार था, पर काफी हद तक अधूरा ही रह गया क्योंकि उसने गलत विधि अपनाई थी। बल प्रयोग केवल भय और व्यग्रता लाता है। दूसरी ओर सद्भाव को विश्वास पर आधारित होना चाहिए।
जब एक युवा चीनी महिला ने पूछा कि क्या बुद्ध और भगवान की प्रार्थना करना एक ही बात नहीं है, परम पावन ने सुझाया कि वह अध्ययन कर पता लगाए और उसे शांतिदेव की बोधिसत्वचर्यावतार की अंग्रेज़ी की प्रति दी। उन्होंने क्रोध पर सलाह के लिए ६ठा अध्याय, तथा आत्म केन्द्रितता और परोपकार के लिए ८वें अध्याय का सुझाव दिया। वे हँसे और उससे कहा कि ९वां अध्याय बहुत जटिल है और वह कुछ समय बाद उसे देख सकती है।
यह पूछे जाने पर कि आंतरिक शांति किस प्रकार निर्मित की जाए परम पावन ने आधे मजाक में कहा:
"अच्छा खाना और अच्छी नींद।" उन्होंने आगे कहा, "सौदार्दता महत्त्वपूर्ण है तथा दृश्य और यथार्थ के बीच की खाई को पाटने के लिए अध्ययन।"
परम पावन ने अपने श्रोताओं से कहा कि वह उनकी रुचि और उनके प्रश्नों की सराहना करते हैं। टी ए एस ए के एक प्रतिनिधि ने कहा कि वे अत्यंत गौरव का अनुभव करते हैं कि परम पावन ने उनकी पहली आयोजित कार्यक्रम में भाग लिया और उन्होंने आश्वस्त किया वे भविष्य में भी और ऐसी बैठकों का आयोजन करेंगे। उन्होंने परम पावन के दीर्घायु तथा उनकी सभी कामनाओं की पूर्ति के लिए प्रार्थना करते हुए कार्यक्रम का समापन किया।