वॉशिंगटन डी सी, अमेरीका - २० फ़रवरी २०१४ - परम पावन दलाई लामा आज प्रातः दो पैनल चर्चाओं में भाग लेने के लिए, अमेरिकन एंटरप्राइज इंस्टिट्यूट (ए ई आइ) लौटे, पहला जिसमें (ए ई आइ) के सदस्य थे और दूसरा जिसमें माइंड लाइफ इंस्टिट्यूट (एम एल आइ) के सदस्य शामिल हुए। ए ई आइ के अध्यक्ष आर्थर ब्रूक्स का प्रश्न आज के प्रातःकाल के लिए यह था कि, क्या हमारी परिस्थिति से निपटने के लिए मुक्त उद्यम प्रणाली सबसे श्रेष्ठ उपाय है। सबसे प्रथम उन्होंने परम पावन तथा अन्य पैनल के सदस्यों, कोलंबिया बिजनेस स्कूल के डीन, ग्लेन हुब्बर्ड, फंड मैनेजर, डैन लोएब और न्यूयॉर्क विश्वविद्यालय केप्रोफेसर जॉन हैइट का परिचय कराया। उन्होंने परम पावन से उनकेप्रारंभिक विचार पूछे। उन्होंने उत्तर दिया:
"अतीत में केवल मूल अमरीकी यहाँ रहते थे जब तक कि, बाहर से आप्रवासी लोग इस अद्भुत राष्ट्र का निर्माण करने आए। पर अब 'वे' और 'हम' के सोचने का ढंग आज की तारीख में कोई अर्थ नहीं रखता। पर इसके स्थान पर हमें संपूर्ण मानवता के विषय में सोचने की आवश्यकता है और स्मरण रखें कि यदि कोई अजीब भी है तो भी वे एक मनुष्य ही हैं। २०वीं सदी कई अर्थों में एक महत्त्वपूर्ण मोड़ था, पर यह हिंसा और युद्ध का युग था। इस सदी को शांति के एक युग के रूप में चिह्नित किया जाना चाहिए, प्रार्थना के परिणामस्वरूप नहीं पर कार्य के आधार पर। हमारे निजी विश्वास कुछ भी हों पर हम सभी में और अधिक करुणाशील होने की क्षमता है। यहाँ मेरे वैज्ञानिक मित्रों के पास इस विषय में कहने के लिए और अधिक है। मैं हमारी होने वाली चर्चा को लेकर उत्सुक हूँ।"
ग्लेन हबर्ड ने पूछा कि संपूर्ण विश्व धनवान क्यों नहीं है। उन्होंने सुझाव दिया कि मुक्त उद्यम गतिशीलता के बारे में है और टिप्पणी की कि काम करने के अवसर को आगे बढ़ाने के लिए एक मार्शल योजना की आवश्यकता है। उन्होंने आर्थर ब्रूक्स के विषय का अनुमोदन करते हुए कहा कि अर्जित सफलता एक महत्त्वपूर्ण लक्ष्य है। ब्रूक्स परम पावन की ओर यह पूछने के लिए मुड़े कि हम मुक्त उद्यम को अधिक प्रभावी कैसे बना सकते हैं। उन्होंने उत्तर दिया:
डैन लोएब ने तिब्बती लोगों के आध्यात्मिक नेता, परम पावन दलाई लामा तथा आधुनिक पूंजीवाद के आध्यात्मिक नेता ग्लेन हब्बर्ड के साथ एक ही मंच पर होने के िलए सम्मान की अपनी भावना व्यक्त की। उन्होंने कहा कि जब उन्होंने अपना कोष प्रारंभ किया तो उन्होंने अष्टांग योग का अभ्यास भी प्रारंभ किया, जिसने उन्हें चित्त की अस्थिरता के प्रति और स्वयं को कठिन स्थितियों के प्रति जागरूक करवाया। उन्हें यह दोनों, निर्णय लेने की प्रक्रिया में मिलते हैं और उनके संपूर्ण दिन का कार्य निर्णय लेने से सम्बद्ध है, लोगों, बाज़ार तथा स्टॉक के बारे में। उन्होंने कहा कि जब किसी के मन में यह विचार आता है कि उन्हें सहायता की आवश्यकता है और उनके लिए बिना किसी ऐसी प्रणाली के जो ऋण प्रदान करता है, बहुत कठिन है। अतः तरलता और कम लागत पूंजी की जरूरत है। उन्होंने कहा कि मुक्त उद्यम के अतिरिक्त कोई अन्य व्यवस्था नवीनता को धन नहीं दे सकती। इस संदर्भ में सबसे महत्त्वपूर्ण तत्व जो वह देखते हैं, वह शिक्षा है, उस के होते हुए निर्धन भी सफल हो सकता है।
आर्थर ब्रूक्स ने परम पावन से पूछा कि, और अधिक लोगों को गरीबी से बाहर निकालने के लिए क्या किया जा सकता है। उन्होंने कहा कि चँूकि वस्तुएँ पारस्परिक रूप से अन्योन्याश्रित हैं, हमें एक बड़े चित्र को देखने की आवश्यकता है। हमें शिक्षा की जरूरत है जो और अधिक यथार्थवादी हो। हमें एक अच्छी कानून प्रणाली के संरक्षण की आवश्यकता है और हमें विश्वास की जरूरत है। विश्वास को विकसित करने के लिए हमें ईमानदार, सच्चा और पारदर्शी होने की आवश्यकता है। उन्होंने इस बात पर बल दिया कि जब तक हम दूसरों की भलाई का ख्याल रखेंगे, धोखाधड़ी या शोषण का कोई स्थान न होगा। मानवता के कल्याण के लिए हमें वैश्विक उत्तरदायित्व की भावना की आवश्यकता है।
जॉन हेइट ने तीन प्रसंगों की बात की। पहले में, पूंजीवाद शोषक है। पूंजीवादी सभी संसाधनों को चूस कर और सभी का शोषण करता है। पर फिर भी व्यावसायिक लोग हमारे जीवन को समृद्ध करते हैं। दूसरे प्रसंग में सभी निर्धन थे जब तक कि ब्रिटेन और हॉलैंड में लोगों ने मुक्त बाजार पूंजीवाद का आविष्कार नहीं किया और गरीबी गायब हो गयी। इस प्रसंग में पूंजीवाद रक्षक हैं। तीसरे प्रसंग में, १९९० के दशक में पूंजीवाद की विजय हुई पर उसके पश्चात हम सभी कभी भी सुखपूर्वक नहीं रहे। हमें समस्याओं का सामना करना पड़ा। अमीर और गरीब के बीच खाई बढ़ गयी। धनवानों ने प्रभाव खरीदा। जलवायु परिवर्तन ने अपना सिर उठाया। इन सब बातों से हमें ऐसा अनुभव हुआ, मानो हमने कुछ खो दिया हो। उन्होंने यह अपील करते हुए समाप्त किया कि वाम तथा दक्षिण की अंतर्दृष्टि से लेकर एक नई कहानी लिखी जानी चािहए।
आर्थर ब्रूक्स ने टिप्पणी की कि जहाँ पूंजीवाद एक महान उपलब्धि प्रदान कर सकता है पर यह बिना संकट के नहीं है। उन्होंने परम पावन से सुझाव माँगा कि हम आज जिस पूंजीवादी व्यवस्था का आनंद ले रहे हैं गरीबों द्वारा उसका लाभ लेने के लिए उनकी किस प्रकार सहायता की जाए।
"मैं नहीं जानता", उन्होंने उत्तर दिया। "प्रत्येक दिन मैं स्व और पदार्थों की प्रकृति के व्यापक विश्लेषण में संलग्न होता हूँ। हम आत्मकेन्द्रित और स्वार्थी हैं, पर हमें बुद्धिमत्ता से स्वार्थी होना चाहिए, मूर्खता से नहीं। यदि हम दूसरों की उपेक्षा करते हैं, तो हमें भी खोना पड़ता है। हमें दूसरों को सहयोग देना चाहिए। यह सभी प्रमुख धार्मिक परंपराओं का आम संदेश है। क्योंकि लोभ खतरनाक है, अतः ये परंपराएँ सदा हमारे दैनिक जीवन में संतोष की सलाह देती है। हम लोगों को शिक्षित कर सकते हैं कि उनके अपने हितों को पूरा करने के लिए सबसे अच्छा उपाय दूसरों के कल्याण के बारे में चिंतित होना है। पर इसमें समय लगेगा।"
आर्थर ब्रूक्स ने जो कुछ भी सीखा गया उसका संक्षेपीकरण किया। ७ अरबों के बीच हम में से प्रत्येक सिर्फ एक है, पर हमारे साझा हितों को समझना आशीर्वाद का एक स्रोत है, इसे नैतिक जीवन पर आधारित करना होगा, नैतिक जीवन एक अभ्यास है और भाईचारा और भगिनीचारे के निर्माण की संभावना हमारे हाथ में है। उन्होंने बैठक की सफलता के लिए उन सभी का धन्यवाद किया जिन्होंने उसमें योगदान दिया था।
जब दूसरी पैनल चर्चा प्रारंभ हुई, तो आर्थर ज़ाजोंक ने विस्तार से बताया कि माइंड एंड लाइफ इंस्टिट्यूट, विज्ञान और एशिया के चिंतन परंपराओं के बीच एक मिलन बिंदु का कार्य करती है। इसका विकास ३० वर्ष के काल में हुआ है, जिसके दौरान २७ प्रमुख बैठकें और प्रकाशनों की सम्पादन हुई हैं। आज, एम एल आइ शैक्षिक रणनीतियों तथा मस्तिष्क का मानचित्र तैयार करने की परियोजना में सक्रिय रूप से संलग्न है।
उन्होंने कहा कि जब हम एक अभ्यास शुरू करते हैं, तो हम अपनी प्रेरणा निश्चित करते हैं, हम प्रश्न करते हैं, "हमारा उद्देश्य क्या है" और उत्तर है, "हमें एक दूसरे का ध्यान रखना है।"
रिचर्ड डेविडसन जिन्होंने परम पावन को वस्तुतः माइंड एंड लाइफ इंस्टिट्यूट के प्रारंभ से जाना है, ने अपनी प्रस्तुति प्रारंभ की। उन्होंने कहा कि वैज्ञानिक, सुख और खुशहाली के बीच के अंतर में भेद करने लगे हैं। उन्होंने आनुवंशिकी और उन खोजों की, कि २०/४० % हमारी खुशहाली की भावना की हमारी समझ आनुवंशिक कारकों से प्राप्त हो जाती है, का उल्लेख किया। ऐसा कहने के बाद, एपिजेनिटिक्स का अध्ययन बताता है कि जीन में मात्रा नियंत्रण की तरह कुछ होते हैं जो पर्यावरणीय कारकों के प्रति संवेदनशील होते हैं, अतः उनका प्रभाव निश्चित नहीं होता।
आर्थर ब्रूक्स द्वारा सुझाए गए कल्याण के लिए चार कारकों विश्वास, परिवार, समुदाय और काम की भूमिका का पुनः स्मरण करते हुए डेविडसन ने कहा कि आधुनिक अनुसंधान स्पष्ट करता है कि उदारता और शुद्ध अंतःकरण भी महत्त्वपूर्ण हैं। शिक्षा के माध्यम से इन कारकों को बढ़ाने के संबंध में, अनुसंधानों ने स्पष्ट किया है कि ऐसी अवधि होती है जब मस्तिष्क प्रशिक्षित करने के लिए विशेष रूप से संवेदनशील होता है। उन्होंने यह कहते हुए समाप्त किया कि स्वस्थ रहना सीखा जा सकता है। मस्तिष्क प्रारंभिक विकास के दौरान मस्तिष्क लचीला होता है इसलिए उसे उदारता और शुद्ध अंतःकरण में शिक्षित करने के लिए कार्यक्रम तैयार किए जा सकते हैं। इस तरह के प्रारंभिक निवेश शिक्षा के माध्यम से एक अच्छी वापसी लाता है।
परम पावन ने हँसी में कहा कि उनके पुराने मित्र ने उल्लेख किया था कि ४ और ७ वर्ष की आयु के बीच मस्तिष्क प्रशिक्षण के लिए विशेष रूप से संवेदनशील होता है, हँसते हुए समझाया कि अपनी किशोरावस्था तक वे एक अनिच्छुक और उत्सुक छात्र थे। परन्तु, उन्होंने कहा कि उनका प्रशिक्षण तो उनकी २०वें, ३०वें और ४०वें वर्ष तक जारी रही। उनका अनुभव था कि जब तक मस्तिष्क सक्रिय रहता है, परिवर्तन किए जा सकते हैं।
बाल्यकाल में शिक्षा और प्रशिक्षण के संबंध में आर्थर ज़ाजोंक ने ध्यान रखने के तीन प्रकारों का उल्लेख किया: देखभाल प्राप्त करना, स्वयं की देखभाल करना और दूसरों की देखभाल।
डायना चेपमेन वाल्श ने वहाँ उपस्थित होने को लेकर अपनी प्रसन्नता व्यक्त की और कहा कि वह उत्साहपूर्ण पूछताछ की भावना से वहाँ आई थी। ए ई आइ के तीन प्रतिनिधियों को उनकी प्रस्तुतियों के लिए धन्यवाद करते हुए उसने यह पूछते हुए प्रारंभ किया कि सुख का भुगतान किस मूल्य पर करते हैं जब हम स्वयं पर बहुत अधिक ध्यान देते हैं। व्यक्तिगत सुख के प्रति हमारी रुचि आत्मकेन्द्रिता का कितना प्रक्षेपण है? उन्होंने सुझाव दिया कि यदि हम अपनी सामना करते समस्याओं को संबोधित करें तो हमें एक विभिन्न प्रकार के नेतृत्व की आवश्यकता होगी, ऐसे लोग जो करुणापूर्ण ढंग से नेतृत्व करने में कुशल हों। लोग जो भीतर से नेतृत्व कर सकें। उन्होंने कहा कि हमें पूछना होगा कि हम किस प्रकार के लोगों द्वारा नेतृत्व करवाना चाहते हैं हमें उनसे क्या अपेक्षाएँ हैं। उन्होंने कहा कि उनके समय वेलेस्ले कॉलेज के अध्यक्ष के रूप में उन्होंने सीखा था कि नेतृत्व का एक पहलू दूसरों को अपने लक्ष्यों को खोजने की अनुमति देना था। विविधता का एक मूल्य है। हमारे सुख का मार्ग दूसरों और स्वयं में श्रेष्ठ ढूँढने तथा जगाने की क्षमता पर जोर देना है। नेतृत्व पर अपने ही चिंतन को लेकर परम पावन ने कहा:
ओटो शारमर ने नेतृत्व, नई खोज और परिवर्तन के संमिलन के बारे में बोलते हुए सीखने के दो विभिन्न स्रोतों का उल्लेख किया, अतीत से सीखना और उभरते भविष्य से सीखना। उन्होंने पर्यवेक्षण, एकांतवास तथा मनन और एक उन्मुक्त चित्त, एक खुले हृदय और खुली इच्छा शक्ति के विकास की सराहना की। उन्होंने परम पावन के विचारों के साथ सहमति जताई कि सब कुछ अन्योन्याश्रित है और इस तरह दूसरों का ध्यान रखना एक अर्थ में अपना ध्यान रखना है। कोई भी हमारे अकेले सामना करती हुई समस्याओं का समाधान नहीं निकाल सकता। हितधारकों को एक साथ लाने की आवश्यकता है।
सीखने के दो स्रोतों के अतिरिक्त नेताओं को एक खुले चित्त, जागरूकता के समान, एक खुले हृदय - करुणा और एक उन्मुक्त चित्त जो उन्हें कार्य करने में सक्षम करेगा, की आवश्यकता है। नेतृत्व चुनौतियों का प्रथम समूचे के साझे जागरूकता की ओर हित को मोड़ना है। परम पावन के लिए उनका प्रश्न था कि व्यक्तियों पर जागरूकता के प्रभाव को देखने के पश्चात उसे एक पूरी प्रणाली पर किस तरह लागू किया जा सकता है? परम पावन का उत्तर था:
"आप मुझसे बेहतर जानते हैं। पर हमें शिक्षा को लेकर अपने नए दृष्टिकोण को प्रारंभ से शुरू करना होगा, बचपन से।"आर्थर ज़ाजोंक ने अपने तथा अपने सहयोगियों की प्रतिभागिता को एक आनंद और सम्मान के रूप में मानते हुए चर्चा की समाप्ति की। उन्होंने आर्थर ब्रूक्स और उनके कर्मचारियों को उस अवसर तथा परम पावन की उपस्थिति के लिए धन्यवाद दिया।