लुईविल, के वाई, संयुक्त राज्य अमरीका, 21 मई, 2013 – लुईविल की यात्रा के अपने अंतिम दिन परम पावन दलाई लामा की पहली भेंट सहज शांत वियतनाम के बौद्ध संघ के साथ थी।
उन्होंने कहा, “चलिए हम वियतनामी भाषा में आपके द्वारा हृदय सूत्र के पाठ से प्रारंभ करें। जब आप ऐसा कर रहे हों तो अपने समक्ष बुद्ध की कल्पना करें जो कि भारतीय आचार्य जैसे नागार्जुन और असंग आदि से घिरे हैं और वे भी जो बुद्ध धर्म को वियतनाम लेकर आए। और याद करें कि किस तरह बुद्ध हमें बताने के लिए कि किस तरह बोधिचित्त तथा शून्यता को समझने वाली प्रज्ञा को साथ रखते हुए हम भी निर्वाण को प्राप्त कर सकते हैं, कल्पों तक अभ्यास करते रहे।”
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“सबसे पहले, जैसा कि मैंने कल कहा था, बुद्ध शाक्यमुनि के विद्यार्थियों के रूप में ऐतिहासिक स्तर पर हम तिब्बती आप से छोटे हैं। आधुनिक विश्व में भौतिक क्षेत्र में बहुत विकास हुआ है। इसमें कोई संदेह नहीं कि यह बहुत लाभकारी है पर यह आवश्यक नहीं कि यह आंतरिक शांति लाता हैः अपितु यह उसके स्थान पर लोभ तथा प्रतिस्पर्धा लाता है। दूसरी ओर, बुद्ध की शिक्षाएँ हमें आंतरिक शांति देती हैं जिसे हम स्वयं जाँच सकते हैं, क्योंकि बुद्ध ने अपने अनुयायियों को इस बात के लिए प्रोत्साहित किया था कि उन्होंने जो भी कहा वे उस पर ऐसे ही विश्वास न कर लें पर उसे जाँचें, परखें।”
“बौद्ध धर्म की संस्कृत परम्परा में ऐसा समझाया गया है कि सभी सत्त्वों में तथागतगर्भता है, अर्थात बुद्ध बनने की क्षमता और हम अपनी करुणा उन सभी तक बढ़ाते हैं।”
परम पावन ने स्पष्ट किया कि यह बौद्ध शिक्षाओं का लक्षण है कि वे असंगत से जान पड़ते हैं क्योंकि उन्होंने विभिन्न समयों व स्थानों पर श्रोताओं की मानसिक स्थितियों के अनुसार शिक्षा दी। उन्होंने सुझाव दिया कि अन्य धार्मिक परम्पराओं को भी विशिष्ट लोगों, समय और स्थान की आवश्यकतानुसार देखा जा सकता है और इस तरह वे हमारे सम्मान के पात्र बन सकते हैं।
उन्होंने विश्व के अन्य भागों में वियतनामी संघ से भेंट का उल्लेख किया और कहा कि जिस प्रकार वे अपनी भाषा, बौद्ध परम्पराएँ और श्रमण चीवर की गरिमा बनाए रखते हैं, उससे वे अत्यंत प्रभावित हैं। उन्होंने बताया कि तिब्बती भी प्रतिकूल परिस्थितियों में अपनी संस्कृति और धर्म के संरक्षण का प्रयास कर रहे हैं। यह प्रश्न पूछे जाने पर कि परम पावन किस तरह तिब्बत में स्वतंत्रता आता देखते हैं, उन्होंने उत्तर दिया कि यद्यपि वे पूर्ण स्वतंत्रता की माँग नहीं कर रहे, पर तिब्बतियों की भाषा और संस्कृति है, साथ ही सुरक्षा के लिए एक नाज़ुक पर्यावरण है जो तिब्बती ही सबसे अच्छी प्रकार कर सकते हैं। और उसके लिए उन्हें सच्ची स्वायत्तता आवश्यक है।
केंटकी सेंटर में एक अन्य स्थान पर परम पावन लुईविल क्षेत्र के माध्यमिक तथा उच्च श्रेणी के विद्यालयीन छात्रों से मिले। उन्होंने यह कहते हुए प्रारंभ किया कि कुछ लोगों में यह गलत धारणा है कि प्रेम और करुणा जैसे जीवन मूल्यों का संबंध धर्म से है, जबकि उनका मानना है कि जैविक स्रोत पर आधारित वे मानवीय जीवन के स्वाभाविक अंग हैं। उन्होंने बताया कि हम सभी का जन्म अपनी माओं से हुआ है और जीवित रहने के लिए हमें दूसरों पर निर्भर होना पड़ता है। उन्होंने स्वीकार किया कि बच्चों के ऐसे उदाहरण हैं जहाँ उनकी उपेक्षा की गई है या दुर्व्यवहार किया गया है जिसके कारण उनके बाद के जीवन में असुरक्षा तथा दुःख की भावना आती है।
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“हमें न केवल ऐसा नहीं सोचना चाहिए कि मानवीय जीवन मूल्य केवल धार्मिक अभ्यास तक सीमित हैं, पर यह सोचना भी भूल होगी कि करुणा केवल दूसरों के लिए लाभकारी है और उससे हमें कोई लाभ नहीं मिलता। अशिक्षित और पढ़ी लिखी न होने के बाद भी मेरी माँ निरंतर लोगों के प्रति दयालु और करुणाशील थी और वह सदा प्रसन्न भी रहती थी। बाद में मैं जब करुणा के बौद्ध प्रशिक्षण के सम्पर्क में आया तो वह मुझे अपेक्षाकृत सरल लगा क्योंकि मेरी माँ ने मुझ में करुणा के बीज बो दिए थे।”
परम पावन ने पुष्टि की कि जहाँ तक उनका संबंध है कि सभी 7 अरब मनुष्य भाई बहनों के समान हैं। उन्होंने कहा कि वे जब किसी से मिलते हैं तो सोचते हैं “यह एक और मनुष्य है ।” जो व्यक्ति करुणा और क्षमा का अभ्यासी है उसमें बहुत अधिक आंतरिक शक्ति होती है , जबकि आक्रात्मकता साधारणतया दुर्बलता का संकेत है। उन्होंने कहा कि इसी तरह जब दो व्यक्तियों में कोई विवाद छिड़ता है तो देखा गया है कि जिस व्यक्ति में अधिक विवेकशीलता है उसके क्रोधित होने के अवसर कम हैं। अपनी बुद्धि के प्रयोग द्वारा हम अपनी करुणा भावना को सुदृढ़ कर सकते हैं।
“यदि कोई आपके साथ नकारात्मक व्यवहार करता है, तो यह स्मरण रखना बहुत सहायक होगा कि वे भी आपकी ही तरह मनुष्य हैं। किसी कार्य और वह व्यक्ति जो कर रहा है के बीच के अंतर को समझ को स्मरण रखना भी सहायक होगा। यदि आप को किसी के द्वारा किए जा रहे हानिकारक कार्य के प्रत्युत्तर में कुछ करने की आवश्यकता है तो अशांत चित्त के बदले शांत चित्त से करना हमेशा बेहतर है। यदि हम क्रोध से कार्य करें तो हमारे मस्तिष्क के सबसे अच्छा भाग उचित रूप से कार्य करने में असफल होता है। याद रखें, करुणा दुर्बलता का संकेत नहीं है।”
छात्रों ने कुछ प्रश्न तैयार किए थे और पहले का प्रश्न था कि पीछे मुड़कर देखने पर वह अपने 13 वर्ष आत्म को क्या सलाह दे सकता है, जबकि एक दूसरे का प्रश्न था कि उसे कौन से ऐसे कार्य करने में आनंद आता है जो कुछ लोगों को आश्चर्य में डाल दे। परम पावन ने उत्तर दियाः
“मुझे कुछ पछतावा है कि वह समय जो कि पढ़ने के लिए आदर्श था तो उसके स्थान पर मैं खेल में लगा रहा। वह समय तो निकल गया और उसे खोने का मुझे पश्चात्ताप है। जब मैं छोटा था तो मुझे बागबानी करना बहुत अच्छा लगता था। मुझे वे खिलौने भी अच्छे लगते थे जो चलते थे। मैं उनके साथ थोड़ी देर खेलता और उसके बाद उन्हें खोल देता, यह देखने के लिए कि वे किस तरह काम करते हैं। इसी कौतूहल भावना से मैं दूरबीन से चन्द्रमा को देखता और पहाड़ों की छाया देख मैंने अनुभव किया कि वे सूर्य की किरणों से होती हैं और चन्द्रमा का अपना कोई प्रकाश नहीं होता। विज्ञान के प्रति मेरी रुचि का यह प्रारंभ था, जिसके प्रति मैंने तिब्बतियों को प्रोत्साहित किया है। गत वर्ष, भारत में हमारे तिब्बती विहारों में औपचारिक रूप से विज्ञान को उनके शैक्षिक कार्यक्रम में सम्मिलित कर लिया गया है। ”
यह पूछे जाने पर कि शांत रहने और क्रोध से बचने के लिए अमरीकी युवाओं को किस प्रकार के उपाय अपनाने चाहिए, परम
पावन ने यह कहते हुए कि उन्हें अपने क्लेशों का सामना करना चाहिए, साथ में यह भी कहा कि यदि उनकी आधारभूत मानसिक स्थिति शांत है तो भड़कते क्रोध का सामना करना सरल हो जाता है। उन्होंने सुझाव दिया कि भौतिक स्वास्थ्य विज्ञान के साथ हमें मानसिक स्वास्थ्य विज्ञान को भी प्रोत्साहित करना चाहिए। जब हमारा चित्त शांत होता है तो हमारे भय, क्रोध और संदेह कम हो जाते हैं। इसे पाने का एक रास्ता पूरी जागरूकता के साथ 20 निश्वास और प्रश्वास को गिनते हुए अपने श्वास पर ध्यान देना है। वह हमारे क्रोधित होने की प्रवृत्ति को कम कर देगा।
इस प्रश्न के उत्तर में कि वर्तमान हिंसा से कैसे निपटा जाए, परम पावन ने कहा कि यह समस्या केवल यहीं की नही है पर कई स्थानों की है। उन्होंने कहा कि यह हमारी शिक्षा प्रणाली में मानवीय मूल्यों की पुनर्स्थापना का एक और संकेत है, जिसे वे धर्म निरपेक्ष नैतिकता का नाम देना पसंद करते हैं।
एक और छात्र जानना चाहता था कि क्या परम पावन में भय की भावना है और उन्होंने बताया कि किस प्रकार उन्हें एक कुत्ते ने काटा था और उसके बाद उन्हें बताया गया कि वह एक पागल कुत्ता था। उन्होंने पोलैंड के यहूदियों के कॉनसेंट्रेशन कैम्प और उनके विनाश के स्थानों की यात्रा की भी चर्चा की और बताया कि किस तरह भट्टियों ने उनके मन में एक प्रबल भय की भावना भर दी। उनका यह उत्तर जापान में नागासाकी और हिरोशिमा के उत्तर जैसा ही था, जहाँ आणविक अस्त्रों का उपयोग किया गया था।
“दूसरी ओर यह समाचार कि कार्बन डाइआक्साइड उत्सर्जन 400 पी पी एम की खतरनाक सीमा पार कर चुका है वह एक अन्य प्रकार के भय का कारण है।”
विद्यार्थियों और शिक्षकों ने उनके आगमन के लिए परम पावन के प्रति कृतज्ञता व्यक्त की, एक ने उनसे कहा, “ आप हमें हमारी अच्छाइयो का स्मरण कराते हैं।”
मेयर गेरी फिशर और उनकी टीम से मिलकर परम पावन ने इस बात पर बल दिया कि आप जो भी करें उसमें आपकी प्रेरणा ही वास्तव में महत्त्वपूर्ण है। उन्होंने नगर के लिए करुणा को लेकर किए जा रहे उनके कार्यों की प्रशंसा की और सुझाव दिया कि उनके नेतृत्व में धर्म निरपेक्ष नैतिकता के अंतर्गत मानवीय जीवन मूल्यों का विकास संभव हो पाएगा।
सबसे अंत में संयोजक और स्वयंसेवक, जिन्होंने लुईविल कार्यक्रम को सफल बनाने के लिए बहुत मेहनत की थी, परम पावन जी के साथ तस्वीर खिंचवाना चाहते थे। उन्होंने उनके साथ तस्वीर खिंचवाई, उनके द्वारा किए गए कार्यों के लिए धन्यवाद दिया, और उनके द्वारा किए गए काम के कारण संचित पुण्य की सराहना की और उन्हें बताया कि वे सदा अपने पुण्य, सत्त्वों के बुद्धत्व की प्राप्ति के लिए समर्पित करते हैं और उनसे भी ऐसा ही करने को कहा ।
परम पावन लुईविल से शिकागो और वहाँ से यूरोप होते हुए भारत के लिए रवाना हुए।