नई दिल्ली, भारत - ७ दिसंबर, २०१३ - आज प्रातः परम पावन दलाई लामा पारिस्थितिकी और पर्यावरण के अनुसंधान के लिए अशोक न्यास (अट्री) के अतिथि थे। उन्हें टी एन खोशू स्मृति पुरस्कार और व्याख्यान देने के लिए आमंत्रित किया गया था और आगमन पर डॉ. गणेश बालचंदर और टी एन खोशू के पुत्र श्री राजीव खोशू ने उनका स्वागत किया।
उन्होंने कहा कि हमें स्वयं से पूछना होगा कि हम जिस तरह जीते हैं, क्या वह स्थायी है। यह ध्यान में रखते हुए कि भारत और चीन की संयुक्त जनसंख्या २ अरब से अधिक है, उन्होंने अपने श्रोताओं से ऐसी कल्पना करने को कहा कि उन २ अरब में से प्रत्येक के पास अपने गाड़ी है। इसी तरह उन्होंने सुझाया कि हम जल्द से जल्द आने वाली पीढ़ी के लिए प्राकृतिक संसाधनों के संरक्षण के उपाय खोजें। इसके अतिरिक्त आज, धनवानों और निर्धनों के बीच की उपस्थित खाई नैतिक रूप और व्यावहारिक रूप से असमर्थनीय है।
"अभी हाल ही में एक धनी मुंबई परिवार मेरी सलाह लेने के लिए आया था और मैंने सलाह दी कि वे अपने धन का उपयोग निर्धनों की सहायता, जैसे कि उन्हें भोजन, स्वास्थ्य और शिक्षा सुविधाएँ प्रदान देने हेतु करें। इसी तरह, हिरोशिमा में नोबेल शांति पुरस्कार विजेताओं की बैठक में मैंने सुझाव दिया कि विश्व में शांति प्रार्थना से नहीं अपितु कार्य से आएगी।"
"इस बीच" उन्होंने आगे कहा,"भारत की प्राचीन सांस्कृतिक धरोहर जो कि वास्तव में चीन और प्राचीन मिस्र की सभ्यताओं जैसी प्राचीन है, वह दो सकारात्मक विषयों में अंतर रखती है जो आज के विश्व में परिवर्तन ला सकती है और जिसे लेकर आप वास्तव में गर्व का अनुभव कर सकते हैंः वे हैं धार्मिक सहिष्णुता और अहिंसा।"
श्रोताओं के प्रश्नों में परम पावन से पूछा गया कि वे किससे प्रभावित हैं। उन्होंने उत्तर दिया कि एक मनुष्य के स्तर पर उन्हें लगता है कि हम सभी समान हैं, हम सभी एक ही तरह से पैदा होते हैं, हम सभी माँ का दूध पीते हैं। सभी मनुष्य अनिवार्य रूप से कोमल और करुणाशील हैं। दूसरी ओर यदि हम आत्मकेन्द्रितता के काबू में आ जाएँ तो मोह से ग्रसित होकर हम और अधिक क्रोधित तथा हिंसक हो सकते हैं। और तो और आत्मकेन्द्रित भावना हमारे तथा दूसरों के बीच एक दूरी पैदा करती है जो शंका, भय और अंततः एकाकीपन को जन्म देती है।
यह पूछे जाने पर कि मानव समाज बेहतर या बदतर हो रहा है, परम पावन ने १९९६ में ब्रिटेन की राजमाता, जब वे ९६ वर्ष की थी, के साथ हुई एक बातचीत को उद्धृत किया। उन्होंने उनसे यही प्रश्न पूछा था और बिना किसी हिचकिचाहट के उन्होंने कहा कि २०वीं सदी में विश्व बेहतर हो गया था। उन्होंने मानव अधिकारों और स्वनिर्णय का उल्लेख किया, जिसे अब सार्वभौमिक रूप से स्वीकार किया जा रहा है पर जब वह छोटी थी तो उनके विषय में सोचा नहीं गया था। परम पावन ने आगे कहा कि पर्यावरण के प्रति चिंता एक और सकारात्मक विकास है जिसका अब चर्चा होती है।
दिल्ली के सड़क के बच्चों और अन्य राज्यों में से इसी तरह के गृहों, साथ ही मित्रों और समर्थकों के एक दर्शकों के सामने, हर्ष मंदर ने इस अवसर पर एक संक्षिप्त परिचय दिया। उन्होंने कहा कि वह विश्व के दो सबसे अधिक चहेते लोग, नेल्सन मंडेला और परम पावन का उल्लेख करने की तैयारी कर रहे थे, लेकिन दुख की बात है कि केवल परम पावन जीवित हैं। उन्होंने कहा कि संरक्षण गृह प्रेम और करुणा की भावना पर बना है और यह स्पष्ट किया कि परम पावन से अधिक कोई दूसरा इन मूल्यों का प्रतिनिधित्व नहीं करता। उन्होंने स्मरण किया कि ५४ वर्ष पूर्व परम पावन को उनके जन्म स्थान से विस्थापित किया गया था पर फिर भी मंडेला की तरह, उनके साथ जो भी हुआ उसके प्रति वे कोई क्रोध या कड़वाहट नहीं जताते। और तो और यद्यपि वे एक बौद्ध नेता हैं पर मंदर ने उन्हें कभी विशेष रूप से बौद्ध धर्म को बढ़ावा देते नहीं सुना है। अपितु वे अन्य धर्मों के गुणों की प्रशंसा करते हैं।
हर्ष मंदर ने घोषित किया:
"इस घर की प्रार्थना है कि किसी भी बच्चे को घर या संरक्षण का अभाव नहीं होना चाहिए। संरक्षण गृह के बच्चे कौन हैं? इनमें से अधिकतर बच्चों ने अपने परिवार की परेशानियों के कारण सड़क पर बहुत दुख झेले हैं। उन्होंने उनके जैसे अन्य बच्चों से सीखा है कि किस तरह जीवित रहा जाए। प्रमुख बात यह है कि उनके लिए एक घर बनाया जाए जो उन्हें सुरक्षा, प्रेम, शिक्षा और सम्मान दे सके। अब मैं परम पावन से अनुरोध करूँगा कि वे हमारे बच्चों और माताओं को संबोधित करें। यदि वे अंग्रेजी में बोलते हैं तो मैं उसका हिंदी में अनुवाद करूँगा।"
"मेरे प्यारे बड़े भाई", परम पावन ने हरमंदर सिंह को संबोधित करते हुए प्रारंभ किया, "ने मार्च १९५९ के अंत में मेरी बहुत सहायता की। मैंने उनके साथ कई दिन आराम करते हुए बिताए जब हर्ष मंदर बहुत छोटे थे। अब देखिए उनका सिर मेरे और उनके पिता के समान चमकदार हैं।"
"और मेरे युवा भाइयों और बहनों, इस घर में आपसे मिलकर मैं बहुत प्रसन्न हूँ जो आपने बसाया है और जहाँ आपको भोजन, आवास और शिक्षा मिलती है। इससे पहले आज मैं कुछ अन्य लोगों से कह रहा था कि, कल सड़क के भिखारियों को देख मेरा मन व्याकुल हो गया था। उनके चेहरे गरीब और निर्बल लग रहे थे, उनकी आँखें खोखली और पूरी तरह से हतोत्साहित थी। इसलिए यह घर जो आपको दिया गया है अत्यंत उत्साहजनक है। कल मैंने उदासी देखी थी आज आशा देखता हूँ।"
उन्होंने ७ अरब मनुष्यों को एक ही मानव परिवार का अंग होने की भावना को प्रोत्साहित करने की आवश्यकता की बात की।
"यदि हम उस पर ज़ोर दें तो युद्ध का, धौंस जमाने या धोखाधड़ी का कोई आधार न रह जाएगा। यदि हम दूसरों को 'हम' के हिस्से के रूप में देखें तो उनकी उपेक्षा के लिए कोई स्थान न होगा।"
"बच्चों, बेघर या असहाय अनुभव मत करो। गंभीरता से अध्ययन करो और अंततः उच्च शिक्षा के लिए जाओ। याद रखो कि तुम अकेले नहीं हो। तुम शिक्षा प्राप्त कर काम कर सकते हो तथा अपने जीवन का निर्माण कर सकते हो। आत्मविश्वास का विकास करो। हतोत्साहित का अनुभव करना विफलता का एक स्रोत है। तुम्हें आशा नहीं छोड़नी चाहिए। १९५९ के मार्च के अंत और अप्रैल के प्रारंभ में जब मैं और कई तिब्बती भारत पहुँचे तो हमने अपना आत्मविश्वास और दृढ़ संकल्प बनाए रखा, तुम्हें भी ऐसा ही करना चाहिए।"
जब वे आयोजकों से यह कहने के िलए मुड़े कि उन्हें अन्य शहरों में भी अपने कार्य का विस्तार करना चाहिए, तो उन्हें बताया गया कि पहले से ही छह राज्यों में ४५ गृह कार्य कर रहे हैं। परम पावन ने बताया कि जब उन्होंने राजस्थान के नंगे पांव कॉलेज (Barefoot College) का दौरा किया था तो वे उस कार्य में अपना योगदान कर खुश थे। उन्होंने समझाया कि दलाई लामा ट्रस्ट की स्थापना दलाई लामा के रूप में उनको भेंट की गई धन राशि और उनकी पुस्तकों से आई रॉयल्टी का प्रबंधन करने के िलए की गई है। यह कहते हुए कि, उन्हें दान करने में प्रसन्नता होगी उन्होंने दस लाख रुपये का एक चेक भेंट किया और कहा कि भविष्य में यदि किसी परियोजनाओं में सहायता की आवश्यकता होगी तो वे आशा करते हैं कि वे उनसे सहायता लेंगे।
"जब तक मेरे पास धन है मैं सहायता करने में खुश हूँ, और जब पैसा न होगा, तो मुझे ना करना होगा।"
"यदि आप हताश हों तो कोई प्रगति नहीं कर सकते। यदि आप कड़ी मेहनत करें, अपना आत्मविश्वास और दृढ़ संकल्प को बनाए रखें, तो आप जो भी करेंगे उसमें सफल होंगे। यदि दूसरे अब आप के प्रति स्नेह दिखाते हैं, आप जब बड़े हों तो बिना शोषण, धोखा या धौंस के दूसरों की सहायता करें तो आप स्वयं को मित्रों से घिरा पाएँगे। इसे ध्यान में रखें। मैं आपके साथ हूँ, कृपया मेरा विश्वास करें।"
अपने धन्यवाद के समापन शब्दों में, स्टाफ के सदस्यों में से एक ने परम पावन की शुभेच्छाओं और प्रोत्साहन को इन बच्चों की सहायता करते हुए इसे और आगे ले जाने का वादा किया। बच्चों, अभिभावकों और शुभचिंतकों के साथ फोटो खिंचवा कर और हाथ मिलाते हुए परम पावन अपनी गाड़ी की ओर गए।
अब से २१ दिसंबर तक वे पूरी तरह से विश्राम करेंगे।