मैं लद्दाख ग्रुप के इंटरनेशनल एसोसिएशन फॉर रिलीजियस फ्रीड़म (आईएआरएफ) द्वारा आयोजित धार्मिक सद्भाव, सहअस्तित्व और सार्वभौमिक शांति के संरक्षण पर इस अंतर्धार्मिक संगोष्ठी में सम्मिलित होते हुए अत्यंत प्रसन्न हूँ। एसोसिएशन के इतिहास, गतिविधियों, उद्देश्यों और वर्तमान सदी में उनकी प्रासंगिकता के विस्तृत विवरण के लिए बहुत बहुत धन्यवाद। पूर्व वक्ताओं ने जो कुछ कहा है उसमें और कुछ जोड़ने के लिए मेरे पास कहने को कुछ नहीं है। पर मैं कुछ बातें कहना चाहूँगा।
हम इस समय बीसवीं सदी में हैं। हमें कृतज्ञ होना चाहिए कि प्रौद्योगिकीय उन्नति और मानव बुद्धि में अत्यधिक विकास के कारण आंतरिक और भौतिक विश्व पर शोध की गुणवत्ता बहुत उच्च स्तर पर पहुँच गई है। परन्तु जैसा कि कुछ वक्ताओं ने पहले कहा, विश्व भी कई नई समस्याओं का सामना कर रहा है, जिनमें से अधिकांश मानव निर्मित हैं। इन मानव निर्मित समस्याओं का मूल कारण मनुष्यों द्वारा अपने उत्तेजित चित्त को नियंत्रित करने की असमर्थता है। इस तरह के चित्त को किस प्रकार नियंत्रित किया जाए, यह इस विश्व के विभिन्न धर्मों द्वारा सिखाया जाता है।
मैं एक धार्मिक अभ्यासी हूँ, जो बौद्ध धर्म का अनुपालन करता है। एक हजार से अधिक वर्ष बीत चुके हैं जब विश्व के महान धर्म फले फूले थे जिसमें बौद्ध धर्म भी शामिल है। उन वर्षों के दौरान, विश्व कई संघर्षों का साक्षी रहा, जिनमें विभिन्न धर्मों के अनुयायी भी शामिल थे। एक धार्मिक अभ्यासी के रूप में, मैं इस तथ्य को स्वीकार करता हूँ कि विश्व के विभिन्न धर्मों द्वारा कई समाधान दिए गए हैं कि उत्तेजित चित्त को किस तरह नियंत्रित किया जाए। इसके बावजूद, मुझे अभी भी लगता है कि हम अपनी पूरी क्षमता का अनुभव नहीं कर पाए हैं।
मैं सदैव कहता हूँ कि इस धरती पर हर व्यक्ति को धर्म का अभ्यास करने अथवा न करने की स्वतंत्रता है। दोनों ही ठीक हैं। पर एक बार जब आपने धर्म को स्वीकार कर लिया तो उस पर अपने चित्त को केंद्रित करना तथा अपने नित्य प्रति के जीवन में शिक्षाओं का अभ्यास अत्यंत महत्वपूर्ण है। हम सभी देख सकते हैं कि हम अपने उत्तेजित चित्त को नियंत्रित करने के प्रयास करने के स्थान पर धार्मिक पक्षपात करते हुए कहते हैं कि "मैं इस अथवा उस धर्म से जुड़ा हूँ।" हमारे उत्तेजित चित्त के कारण धर्म का यह दुरुपयोग भी यदा-कदा समस्याएँ जनित करता है।
मैं चिली के एक भौतिक विज्ञानी को जानता हूँ, जिसने मुझसे कहा कि एक वैज्ञानिक के लिए विज्ञान के प्रति अपपने प्रेम और उत्कट इच्छा के कारण उसके प्रति पक्षपाती होना उचित नहीं है। मैं बौद्धाभ्यासी हूँ तथा बुद्ध की शिक्षाओं को लेकर मुझमें बहुत विश्वास और सम्मान है। पर यदि मैं बौद्ध धर्म के लिए अपने प्रेम व लगाव को अलग नहीं रखता तो मेरा चित्त इसके प्रति पक्षपाती हो जाएगा। एक पक्षपाती चित्त, जो कभी भी सम्पूर्ण चित्र नहीं देखता, यथार्थ को नहीं पकड़ सकता। और चित्त की ऐसी स्थिति से उत्पन्न होने वाला कोई भी कार्य यथार्थ के साथ मेल नहीं खाएगा। ऐसे ही इससे कई समस्याएँ जन्म लेती हैं।
बौद्ध दर्शनानुसार, सुख एक प्रबुद्ध चित्त का परिणाम है, जबकि दुःख एक विकृत चित्त के कारण होता है। यह बहुत महत्वपूर्ण है। एक प्रबुद्ध चित्त के विपरीत, एक विकृत चित्त ही है जो यथार्थ से मेल नहीं खाता।
कोई भी समस्या जिनमें राजनीतिक, आर्थिक और धार्मिक गतिविधियाँ शामिल हैं, जिससे इस विश्व में मानव जुड़ते हैं, उन्हें अपनी ओर से कोई निर्णय सुनाए जाने के पूर्व भली भांति समझा जाना चाहिए। अतः कारणों को जानना बहुत महत्वपूर्ण है। समस्या जो भी हो, हमें सम्पूर्ण चित्र को देखने में सक्षम होना चाहिए। इससे हमें पूरी कहानी को समझने में सहायता मिलेगी। बौद्ध धर्म में दी गई शिक्षाएँ तर्क पर आधारित हैं और मुझे लगता है कि बहुत उपयोगी हैं।
आज यहाँ विभिन्न धार्मिक पृष्ठभूमि के बहुत सारे लोग उपस्थित हैं। हर धर्म में, इतर बातें हैं जो हमारे चित्त तथा वाक् की पकड़ से बाहर हैं। उदाहरणार्थ ईसाई धर्म और इस्लाम में ईश्वर की अवधारणा और बौद्ध धर्म में धर्म काय आध्यात्मिक हैं, जो हम जैसे साधारण व्यक्ति द्वारा अनुभव करना संभव नहीं है। यह एक सामान्य कठिनाई है जिसका सामना प्रत्येक धर्म करता है। इसकी शिक्षा प्रत्येक धर्म में दी जाती है कि परम सत्य आस्था से प्रेरित है, जिसमें ईसाई, बौद्ध, हिंदू और इस्लाम धर्म शामिल हैं।
मैं इस बात पर बल देना चाहता हूँ कि अभ्यासियों के लिए अत्यंत महत्वपूर्ण है कि वे अपने-अपने धर्मों में ईमानदारी से आस्था रखें। साधारणतया मैं कहता हूँ कि "एक धर्म में आस्था" और "कई धर्मों में आस्था" के बीच अंतर करना बहुत महत्वपूर्ण है। पहले वाला दूसरे के ठीक विपरीत है। अतः हमें इन विरोधाभासों का दृढ़तापूर्वक समाधान करना चाहिए। यह प्रासंगिक संदर्भों में सोचकर ही संभव है। एक संदर्भ में एक विरोधाभास अन्य में समान नहीं हो सकता। एक व्यक्ति के संदर्भ में, एक सत्य शरण के एक स्रोत से निकट रूप से जुड़ा है। यह अत्यधिक आवश्यक है। परन्तु समाज या एक से अधिक व्यक्ति के संदर्भ में शरण, धर्म और सत्य के विभिन्न स्रोत आवश्यक हैं।
अतीत में यह एक बड़ी समस्या नहीं थी, क्योंकि राष्ट्र अपने विशिष्ट धर्म रखते हुए एक - दूसरे से अलग होकर जी रहे थे। परन्तु आज के घनिष्ठ और अन्योन्याश्रित विश्व में विभिन्न धर्मों में बहुत अंतर हैं। हमें स्पष्ट रूप से इन समस्याओं को हल करना होगा। उदाहरण के लिए, भारत में पिछले हजार वर्षों में बहुत सारे धर्म हुए हैं। इनमें से कुछ बाहर से आए जबकि कुछ भारत में ही विकसित हुए हैं। इसके बावजूद, तथ्य यह है कि ये धर्म सह अस्तित्व रखने में सफल हुए हैं तथा इस देश में अहिंसा का सिद्धांत वास्तव में फला फूला है। आज भी, इस सिद्धांत का प्रत्येक धर्म पर एक प्रबल प्रभाव है। यह अत्यंत मूल्यवान है और भारत को इस पर गर्व करना चाहिए।
कई शताब्दियों से लद्दाख मुख्य रूप से बौद्ध क्षेत्र रहा है। पर अन्य धर्म जैसे इस्लाम, ईसाई धर्म, हिंदू धर्म और सिख धर्म भी यहाँ विकसित हुए हैं। यद्यपि लद्दाख के लोगों के लिए यह स्वाभाविक है कि उनके मन में अपने धर्मों के प्रति प्रेम है पर फिर भी इस स्थान का वातावरण बहुत ही शांतिपूर्ण है जिसमें धार्मिक असहिष्णुता की कोई बड़ी समस्या नहीं है। लद्दाख की मेरी पहली यात्रा के दौरान, मैंने वरिष्ठ मुसलमानों को अपने वक्तव्यों में "संघ के समुदाय" वाक्यांश का प्रयोग करते सुना। यद्यपि इस प्रकार के वाक्यांशों के संदर्भ इस्लाम में नहीं मिलते, पर इस तरह के संदर्भ बौद्धों के बीच बहुत विश्वास उत्पन्न करते हैं। अतः लद्दाख के विभिन्न धार्मिक पृष्ठभूमि के लोग एक-दूसरे के बहुत निकट हैं और सद्भाव से रहते हैं।
जहाँ तक मुसलमानों का संबंध है, उनके लिए यह जायज़ है कि वे मस्जिदों में इबादत करते समय अल्लाह के लिए पूरी अक़ीदत रखें। यह बौद्धों के लिए भी समान है कि जब वे बौद्ध मंदिरों में प्रार्थना करते हैं तो बुद्ध के प्रति पूर्ण रूपेण समर्पित होते हैं। एक समाज, जिसमें कई धर्म हैं, में कई अवतार तथा शरण के स्रोत होने चाहिए। ऐसे समाज में विभिन्न धर्मों और उनके अभ्यासियों के बीच सद्भाव और सम्मान होना बहुत महत्वपूर्ण है। हमें आस्था और सम्मान के बीच अंतर करना चाहिए। विश्वास का संबंध सम्पूर्ण आस्था से है, जो आपको अपने धर्म के प्रति होना चाहिए। पर साथ ही आपको अन्य सभी धर्मों के लिए सम्मान रखना चाहिए। अपने धर्म में आस्था और दूसरों के प्रति सम्मान करने की यह परम्परा लद्दाख में आपके पूर्वजों के काल से अस्तित्व रखती आई है। इसलिए आपको इसका आविष्कार नहीं करना है। इस समय सबसे महत्वपूर्ण बात इस परम्परा को बनाए रखने और इसे बढ़ावा देने की है। मैं आप सबको इस ओर कड़ी मेहनत के लिए धन्यवाद देना चाहूँगा और भविष्य में ऐसा करते रहने के लिए आपसे अनुरोध करना चाहूँगा।
यदि आज के बहु-जातीय, बहु-धार्मिक और बहु-सांस्कृतिक विश्व में समाजों और धार्मिक मान्यताओं के बीच एक सामंजस्यपूर्ण संबंध स्थापित किया जा सके तो निश्चित रूप से यह दूसरों के लिए एक बहुत अच्छा उदाहरण रखेगा। पर यदि सभी पक्ष लापरवाह हो जाएँ तो आसन्न समस्याओं का संकट होगा। बहुसंख्यक समाज में सबसे बड़ी समस्या बहुसंख्यक व अल्पसंख्यक के बीच की है। उदाहरणार्थ राजधानी लेह में, बौद्ध अधिकांश बहुसंख्यकों के रूप में हैं, जबकि मुसलमान अल्पसंख्यक समुदाय से संबंधित हैं। बहुसंख्यकों को चाहिए कि वे अल्पसंख्यकों को अपने आमंत्रित अतिथियों के रूप मानें। दूसरी ओर, अल्पसंख्यकों को बहुसंख्यकों के प्रति संवेदनशील होना चाहिए। दूसरे शब्दों में, दोनों पक्षों को सद्भावपूर्वक रहना चाहिए। इस सामंजस्य को बनाए रखने के लिए, दोनों पक्षों को अपने बीच के संवेदनशील मुद्दों को हल्के फुल्के रूप से नहीं लेना चाहिए। निश्चित रूप से बहुसंख्यकों को अल्पसंख्यकों के विचारों और राय की ओर ध्यान देना चाहिए और सराहना करनी चाहिए। दोनों ही पक्षों को इसके बारे में चर्चा करना और स्पष्ट रूप से व्यक्त करना चाहिए कि वे दूसरों के विचार तथा दृष्टिकोण और राय के विषय में क्या सोचते हैं। दूसरी ओर अल्पसंख्यकों को सावधान रहना चाहिए कि बहुसंख्यकों के संवेदनशील मुद्दों क्या हैं और यदि उनके मन में उसे लेकर कोई शंकाएँ हों तो उन्हें व्यक्त करना चाहिए। यदि इस तरह अनुकूल रूप से समस्याओं का समाधान हो तो दोनों पक्षों को लाभ होगा। एक-दूसरे के प्रति शंका दोनों समुदायों का मात्र अहित ही करेगा। अतः सद्भावपूर्वक रहना और विश्लेषण करना कि अन्य के क्या विचार हैं बहुत महत्वपूर्ण है। ऐसा करने का सबसे अच्छा उपाय है बातचीत में संलग्न होना, संवाद और संवाद।
लद्दाख ग्रुप के इंटरनेशनल एसोसिएशन फॉर रिलीजियस फ्रीड़म द्वारा आयोजित अंतर्धार्मिक संगोष्ठी में परम पावन दलाई लामा द्वारा दिए गए संबोधन के अंश, लेह, लद्दाख, जुलाई २५, २०१७