एक बुनियादी स्तर पर, मनुष्य होने के नाते हम सब एक समान हैं, हम में से हर एक सुख की आकांक्षा रखता है और हम में से प्रत्येक दुख नहीं झेलना चाहता। इसलिए जब भी मुझे अवसर मिलता है तो मैं लोगों का ध्यान जिस ओर आकर्षित करना चाहता हूँ वह यह कि मानव परिवार के सदस्यों के रूप में हमारी समानता और हमारे अस्तित्व और कल्याण की गहन अन्योन्याश्रित प्रकृति।
आज, बढ़ती मान्यता, साथ ही ठोस वैज्ञानिक प्रमाण हैं जो हमारी चित्त की स्थिति और सुख के बीच घनिष्ठ संबंध की पुष्टि करता है। एक ओर हममें से कई ऐसे समाजों में रहते हैं जो भौतिक रूप से बहुत विकसित हैं, पर फिर भी हमारे बीच कई ऐसे हैं जो बहुत सुखी नहीं हैं। समृद्धि के सुन्दर धरातल के नीचे एक प्रकार की मानसिक अशांति है, जो निराशा, अनावश्यक झगड़े, नशीली दवाइयों या शराब पर निर्भरता, और सबसे बुरी स्थिति में आत्महत्या है। ऐसी कोई गारंटी नहीं है कि केवल धन आपको आनंद अथवा जो तृप्ति आप चाहते हैं वह दे सकता है। यही आपके मित्रों के संबंध में भी कहा जा सकता है। जब आप क्रोध या घृणा की एक तीव्र अवस्था में होते हैं तो एक बहुत अंतरंग मित्र भी आपको एक प्रकार से ठंढा, सर्द, अलग और कष्टदायी प्रतीत हो सकता है।
परन्तु, मनुष्य के रूप में हमें यह अद्भुत मानव बुद्धि की भेंट मिली है। इसके अतिरिक्त, सभी मनुष्यंों में दृढ़ संकल्प और उस दृढ़ता को वे जिस किसी दिशा में चाहें निर्धारित करने की क्षमता होती है। जब तक हम यह स्मरण रखें कि हमारे पास मानव बुद्धि की अनोखी भेंट है और दृढ़ता के विकास की क्षमता है और उसका उपयोग सकारात्मक ढंग से करते हैं, हम अपने अंतर्निहित मानसिक स्वास्थ्य की रक्षा कर पाएँगे। यह अनुभव कि हममें यह महान मानव क्षमता है हमें आधारभूत शक्ति देता है। यह मान्यता ऐसे तंत्र के रूप में कार्य कर सकती है जो हमें बिना आशा खोए अथवा कम आत्म सम्मान की भावना में डूबे, किसी भी कठिनाई से निपटने के लिए क्षमता प्रदान करती है, फिर चाहे हम किसी भी प्रकार की परिस्थिति का सामना क्यों न कर रहे हों।
मैं एक ऐसे व्यक्ति के रूप में यह लिख रहा हूँ जिसने १६ वर्ष की आयु में अपनी स्वतंत्रता खो दी, तत्पश्चात २४ वर्ष की आयु में अपना देश खो दिया। परिणामस्वरूप मैं ५० वर्ष से अधिक निर्वासन में रहा हूँ जिस दौरान हम तिब्बतियों ने तिब्बती अस्तित्व को जीवित रखने और हमारी संस्कृति और मूल्यों के संरक्षण के लिए अपने आप को समर्पित कर दिया है। अधिकांश दिनों में तिब्बत से आ रहे समाचार हृदयविदारक होते हैं पर फिर भी इन में से किसी भी प्रकार की चुनौतियाँ हार मानने का आधार नहीं देती। एक दृष्टिकोण जो मैं निजी तौर पर लाभदायक मानता हूँ वह इस विचार को विकसित करना है ः यदि कोई स्थिति अथवा समस्या ऐसी है जिसका समाधान है, तो उसको लेकर चिंता की कोई आवश्यकता नहीं। दूसरे शब्दों में, यदि कठिनाई से निकलने का कोई समाधान अथवा मार्ग है तो आपको उसे अपने ऊपर हावी नहीं होने देना चाहिए। उचित कार्य उसके समाधान को ढँूढना है। तब स्पष्ट रूप से यह अधिक बुद्धिमानी है कि समस्या के विषय में चिंता न करते हुए आप अपनी ऊर्जा समाधान पर केन्द्रित करें। वैकल्पिक रूप से यदि कोई हल, समाधान संभव नहीं है तो भी उसके विषय में चिंता करने से कोई लाभ नहीं क्योंकि ऐसे भी आप उसके विषय में कुछ नहीं कर सकते। ऐसी अवस्था में आप जितनी शीघ्रता से इस तथ्य को स्वीकार करेंगे, आप के लिए उतना ही सरल होगा। यह सूत्र निस्सन्देह सीधे समस्या से भिड़ने और एक यथार्थवादी दृष्टिकोण लेने का संकेत करता है। नहीं तो आप यह पता लगाने में असमर्थ होंगे कि समस्या का समाधान है अथवा नहीं।
एक यथार्थवादी दृष्टिकोण लेते हुए और एक उचित प्रेरणा का विकास करते हुए भी आप अपने को भय और चिंता की भावनाओं के विरुद्ध बचा सकते हैं। यदि आप एक शुद्ध और सच्ची प्रेरणा का विकास करें, यदि आप दया, करुणा ,और सम्मान के आधार पर सहायता करने की इच्छा से प्रेरित हैं , तो आप कम भय अथवा चिंता के साथ और अधिक प्रभावी ढंग से किसी भी क्षेत्र में किसी भी प्रकार का कार्य कर सकते हैं तथा इस प्रकार का भय नहीं होता कि दूसरे आप के विषय में क्या सोचेंगे या क्या आप अंततः अपने लक्ष्य में सफल हो पाएँगे । यदि आप अपने लक्ष्य को प्राप्त करने में विफल भी हो गए तो आप यह सोचकर अच्छा अनुभव कर सकते हैं कि आपने प्रयास किया । पर एक बुरा प्रेरणी के साथ, लोग आप की प्रशंसा कर सकते हैं या आपलक्ष्यों को प्राप्त कर सकते हैं , पर फिर भी आप सुखी नहीं होंगे ।
फिर,हम कभी कभी हमें लग सकता है कि हमारा पूरा जीवन असंतोषजनक है , हमें लगता है कि हम उस मोड़ पर हैं जब कठिनाइयाँ हमें अभिभूत कर रही हैं । यह हम सबके साथ समय समय पर विभिन्न स्तरों पर होता है। जब ऐसा होता है तो यह महत्त्वपूर्ण है कि हम अपने मनोबल को उठाने का हर संभव प्रयास करें। हम ऐसा अपने अच्छे भाग्य को याद करके कर सकते हैं। उदाहरण के लिए हम, किसी के द्वारा प्राप्त स्नेह से कर सकते हैं, हम में कुछ प्रतिभा हो सकती है, हमें एक अच्छी शिक्षा प्राप्त हुई हो सकती है, हमारी बुनियादी आवश्यकताओं की पूर्ति हुई हो सकती है - खाने के लिए भोजन, पहनने के लिए वस्त्र, रहने का स्थान, संभव है कि हमने अतीत में कुछ परोपकारी कार्य किए हों। हमें अपने जीवन के छोटे से छोटे सकारात्मक पहलू को भी ध्यान में रखना चाहिए। यदि हम स्वयं को उठाने के किसी मार्ग को खोजने में असफल हो जाएँ तो और असहाय स्थिति में पड़ने का हर संभव खतरा है। यह हमें इस भावना से भर सकता है कि हममें कुछ भी अच्छा करने की क्षमता नहीं है। इस प्रकार हम निराशा की ही स्थितियाँ उत्पन्न करते हैं।
एक बौद्ध भिक्षु के रूप में मैंने सीखा है कि जो मुख्यतः हमारे आंतरिक शांति को भंग करते हैं वे क्लेश हैं। वे सभी विचार, भावनाएँ और मानसिक स्तर जो एक नकारात्मक अथवा करुणाहीन चित्त की स्थिति को प्रतिबिम्बित करते हैं। अंतत ः आंतरिक शांति की हमारी अनुभूति को दुर्बल कर देते हैं। हमारे सभी नकारात्मक विचार और भावनाएँ - जैसे घृणा, क्रोध, अहंकार, वासना, लालच, ईर्ष्या इत्यादि कठिनाइयों के स्रोत परेशान करने वाले माने जाते हैं। नकारात्मक विचार तथा भावनाएँ सुखी रहने और दुख से बचने की हमारी सबसे आधारभूत प्रेरणा को बाधित करते हैं। जब हम उनके प्रभाव में कार्य करते हैं, तो हम दूसरों पर अपने कार्यों के प्रभाव को लेकर अनजान बन जाते हैं : इस तरह वे हमारे दूसरों के प्रति और स्वयं अपने प्रति विनाशकारी व्यवहार का कारण हैं। हत्या, घोटाले और छल सभी का उद्भव क्लेशों से होता है।
यह अनिवार्य रूप से इस प्रश्न को जन्म देता है - क्या हम चित्त का शोधन कर सकते हैं? ऐसा करने के कई उपाय हैं। इनमें, बौद्ध परंपरा में, चित्त शोधन कहलाया जाने वाला विशेष निर्देश है जो दूसरों के प्रति चिंता के विकास तथा कठिन परिस्थितियों को लाभ की ओर मोड़ने पर केंद्रित है। विचारों का यह रूप, समस्याओं को सुख में परिवर्तित करने की, ने तिब्बतियों को कठिन परिस्थितियों में भी अपनी गरिमा और उत्साह बनाए रखने में सक्षम किया है। निस्संदेह अपने जीवन में मुझे यह सुझाव व्यावहारिक रूप से लाभकर लगा है।
चित्त शोधन के एक बड़े आचार्य ने एक बार टिप्पणी की कि चित्त का सबसे अनोखे गुणों में से एक यह है कि उसे परिवर्तित किया जा सकता है। मुझे इसमें कोई संदेह नहीं कि जो अपने चित्त शोधन का प्रयास करते हैं, वे अपने क्लेशों पर काबू पाते हैं और आंतरिक शांति की भावना प्राप्त करते हैं और समय रहते लोगों और घटनाओं के प्रति अपने मानसिक दृष्टिकोण और प्रतिक्रियाओं में परिवर्तन पाएँगे। उनके चित्त और अधिक अनुशासित और सकारात्मक हो जाएँगे। और मेरा विश्वास है कि वे जैसे ही दूसरों के अधिक सुख के लिए योगदान देंगे वे अपनी सुख की भावना को बढ़ता पाएँगे। मैं प्रार्थना करता हूँ कि प्रत्येक जो इसे अपना लक्ष्य बनाएगा उसे सफलता का आशीर्वाद प्राप्त होगा।
दलाई लामा
३१ दिसंबर २०१०
मूल रूप से हिन्दुस्तान टाइम्स में प्रकाशित, भारत - ३ जनवरी २०११