नई दिल्ली, भारत – आज सी-शिक्षण प्रमोचन समारोह के पूर्व परमपावन दलाई लामा ने भारतीय प्राध्यापकों के एक समूह से मुलाकात की जो प्रो. समदोङ् रिनपोछे एवं प्रो. ङवङ् समतेन के साथ मिलकर एक ऐसे पाठ्यक्रम के प्रारूप पर कार्य कर रहें हैं जो भारत की प्राचीन ज्ञान परम्परा पर केन्द्रित है । इस अवसर पर प्रो. ङवङ् समतेन ने विगत कार्यों का विवरण प्रस्तुत करते हुये कहा कि वे भारतीय परम्परागत छह दर्शनों पर आधारित एक ऐसे पाठ्यक्रम की संरचना कर रहे हैं जो न केवल उनके दर्शन पक्ष पर ध्यान देती है बल्कि तर्क का प्रयोग और उनके द्वारा भावनाओं का विनियमन करने की विधियों को प्रदर्शित करती है ।
“मै अब लगभग 84 साल का हो गया हूँ” परमपावन ने उनसे कहा “और मेरा जीवन कठिनाईयों से भरा रहा है, लेकिन, जीवन के एक निश्चित समय पर मुझे ज्ञात हुआ कि मैंने जिस नालंदा परम्परा का ज्ञानार्जन किया है उस ज्ञान से मेरे मन को शांत रखने में अत्यंत ही सहयोग मिला है । मुझे, विश्लेषण द्वारा मेरी बुद्धि को तीक्ष्ण बनाने में भी उस ज्ञान ने सक्षम बनाया है । हमारे दैनिक जीवन में एक ऐसे शांत मन का होना अत्यंत ही लाभप्रद है जो दुर्भावनाओं से अल्पतर प्रभावित होता हो । मुझे पूर्ण विश्वास है कि हम शिक्षा के माध्यम से ऐसे परिवर्तन ला सकते हैं जिसमें सम्पूर्ण मानवता के कल्याण के लिए भारतीय प्राचीन ज्ञान परम्परा का योगदान हो । लेकिन, भारतीय प्राचीन ज्ञान परम्परा एक धार्मिक परम्परा के साथ घनिष्ट रूप से जुड़ा हुआ है । आज हमें जिसकी आवश्यकता है वह धार्मिक अनुष्ठान और प्रार्थना नहीं हैं बल्कि एक ऐसी शिक्षा जो सही मायने में धर्मनिरपेक्ष संगत हो ।”
“महात्मा गांधी ने अहिंसा को आधार कर भारतीय स्वतंत्रता संग्राम का मुहिम चलाया था जिसे कुछ लोगों ने उसे उनकी दुर्बलता के अर्थ में व्याख्या की थी । मैं, अहिंसा के पथ पर चलने को एक शक्ति का प्रतीक मानता हूँ । मुझे आशा है कि आप सब विद्वान हमें यह बतायेंगे कि किस तरह इसे किंडरगार्टन से विश्वविद्यालय तक आधुनिक शिक्षा के साथ संजोजित किया जाये । चीन, जो ऐतिहासिक रूप से एक बौद्ध देश है, यदि भारत के उदाहरण का अनुसरण करता है तो दोनों देशों में दो अरब लोग आन्तरिक शांति का उपार्जन करेंगे । इस तरह दुनिया में बहुत ही बड़ा बदलाव आ सकता है ।
लगभग 20 वर्षों से भी अधिक समय से मैं भारत सरकार को प्रोत्साहित करते आ रहा हूँ कि उन्होंने जिस प्रकार सन् 1956 को 2500वीं बुद्ध जयंति का समारोह आयोजित किया था ठीक वैसे ही अन्तर्राष्ट्रीय धार्मिक सम्मेलन आयोजित करने का प्रयास करें । यदि इस तरह का आयोजन होता तो सभी धर्मों के धार्मिक गुरु एक साथ मिलकर एक दूसरे को बेहतर समझ पाते । इसी तरह साधक भी चर्चाओं में भाग लेकर एक दूसरे से ज्ञानार्जन कर पाते और तीर्थ स्थलों में जाने के लिए तीर्थ यात्रा का आयोजन किया जा सकता था ।”
सी-शिक्षण के विश्वव्यापी प्रमोचन समारोह के संचालक श्री रवि गुलाटी ने कार्यक्रम का आरम्भ करते हुये कहा कि हमारी वर्तमान शिक्षा में बहुत बड़ी खाई है जिसे सी-शिक्षण कार्यक्रम परिपूर्ण करेगा । दलाई लामा न्यास के प्रतिनिधि श्री तेनपा छ़ेरिङ ने इस अभूतपूर्व सी-शिक्षण कार्यक्रम, जिसका परमपावन जी के सहयोग से एमोरी विश्वविद्यालय में संरचना हुयी है, के प्रमोचन में उपस्थित सभी प्रतिभागियों का स्वागत किया ।
उन्होंने अपना अवलोकन पेश करते हुये कहा “आज भौतिक निर्माण और संचार के क्षेत्र में बहुत ही ज़्यादा विकास हुआ है, लेकिन क्या हम पूर्व की अपेक्षा अधिक खुश हैं या फिर अधिक सन्तुष्ट हैं ? इसके ठीक विपरीत आज मनुष्यों में अधिक तनाव, हिंसा और लालच दिखाई देती है । संचार के माध्यमों का विकसित होने से दुनिया छोटी हो गयी है और एक दूसरे पर अधिक निर्भर हुये हैं, लेकिन क्या हम अधिक करुणावान हैं?
परमपावन जी यह मानते हैं कि मनुष्य का वास्तविक स्वभाव एक दयालु और करुणावान है । आज की आधुनिक शिक्षा ऐसे गुणों को आत्मसात करने के लिए न ही प्रोत्साहित करती है और न ही यह संतुलित है । इसका समाधान यह होगा कि हृदय और मन को एक संतुलित शिक्षा दी जाये ।”
वाना फॉउंडेशन के प्रतिनिधि श्री वीर सिंह ने सभा को सम्बोधित करते हुये कहा “परमपावन जी स्वयं को भारत देश के पुत्र स्वरूप मानते हैं । एक भारतीय होने के नाते मैं उनके प्रति आभारी हूँ कि उन्होंने हमें हमारे प्राचीन विरासत का स्मरण कराया है, जिससे तथागत बुद्ध की भांति नैतिक गुणों को आत्मसात करते हुये मन को प्रशिक्षित किया जा सके । सी-शिक्षण पाठ्यक्रम सामयिक एवं समयोचित है ।”
एमोरी विश्विद्यालय के डीन एमेरीटस, डा. रॉबर्ट पॉल ने एमोरी विश्विद्यालय के अध्यक्ष क्लेयर स्टर्क के शुभकामनाओं को प्रस्तुत करते हुये कहा कि उन्हें अत्यंत ही गर्व एवं खुशी का अनुभव हो रहा है । उन्होंने कहा कि आज जब दुनिया कई प्रकार के उतार-चढ़ाव के युग में प्रवेश कर रहा है ऐसे में सी-शिक्षण कार्यक्रम लोगों को प्रेरणा देगी । यह हमारे बच्चों तथा उनके बच्चों के लिए जीवन जीने का एक स्रोत होगा । उन्होंने सी-शिक्षण कार्यक्रम परियोजना में उत्कृष्ट नेतृत्व के लिए डा. लोब्ज़ाङ तेनज़िन नेगी की सराहना की ।
डा. लोब्ज़ाङ तेनज़िन नेगी ने अपने वक्तव्य में परमपावन जी की अनन्य दूरगामी दृष्टि एवं मार्गदर्शन का उल्लेख करते हुये कहा “हमें अत्यंत ही गर्व का अनुभव हो रहा है कि परमपावन जी इस पाठ्यक्रम के अनावरण के लिए साक्षात उपस्थित हैं । उन्होंने हमें इस कार्य के लिए सतत प्रेरणा और दृष्टि प्रदान की है । आज जिस सी-शिक्षण कार्यक्रम प्रमोचन का समारोह हम मना रहे हैं उसका श्रेय परमपावन जी को जाता है जिन्होंने शिक्षा में मूलभूत परिवर्तन के लिए दशकों तक प्रयास किया । परमपावन जी ने सन 1998 में एमोरी-तिब्बत साझेदारी का उद्घाटन किया तथा आश्वासन दिया था कि लोगों को आत्मीयता के विकास में शिक्षित किया जा सकता है । तब से लेकर एमोरी विश्वविद्यालय आधुनिक विज्ञान को तिब्बती मठों में पढ़ाने का भी कार्य करता आ रहा है ।”
“सन् 2015 में परमपावन जी ने हमें इस पाठ्यक्रम की संरचना का कार्य सोंपा था । हम लोगों ने परमपावन द्वारा रचित पुस्तक “नयी सहस्राब्दी के लिए नैतिकता” और “धर्म के पार” तथा डेनियल गोलमन और पिटर सेंजे के “त्रिकेन्द्रित” से उद्धरण लेकर इसका निर्माण किया है । इसके निर्माण में गेशे थुपतेन जिन्पा का भी हमें प्रेरणा मिली है । इस कार्य में अनवरत सहयोग के लिए मैं, परमपावन जी, एमोरी के अध्यक्ष एवं डीन्स का हृदय से आभार व्यक्त करता हूँ जिनके आश्रय के बिना हम सफल नहीं हो पाते ।” मनीष सिसोदिया एवं कैलाश सत्यार्थी के संग परमपावन ने चार भागों का पाठ्यक्रम का अनावरण किया ।
दिल्ली सरकार के उप-मुख्यमंत्री श्री मनीष सिसोदिया ने अपने सम्भाषण में कहा “एक मनुष्य होने के नाते मैं कह सकता हूँ कि यह सी-शिक्षण कार्यक्रम मानवता के लिए महान उपहार है ।
हम समस्याओं को सुलझाने का प्रयास कर रहे हैं और हमें इस सी-शिक्षण के द्वारा समाधान मिल गया है जिसकी हम सबको आवश्यकता है । हम नियम-कानून को थोपकर और हथियारों का इस्तेमाल कर शांति स्थापित करने का प्रयास करते आ रहे हैं, लेकिन हिंसा और घृणा का वास्तविक समाधान सामाजिक, भावनात्मक तथा नैतिक शिक्षण के ज्ञान द्वारा ही सम्भव है । पिछले वर्ष हम लोगों ने दिल्ली के स्कूलों में इसी प्रकार का एक हैप्पीनेस पाठ्यक्रम का प्रारम्भ किया था जिसका बहुत ही सकारात्मक परिणाम दिखाई दे रहे हैं । मैं, इस सी-शिक्षण पाठ्यक्रम को तैयार करने वाले दल तथा उनके समर्थकों को बधाई देता हूँ । यह एक व्यवहारिक योगदान है ।”
इस समारोह में अगले वक्ता के रूप में नोबेल पुरस्कार विजेता श्री कैलाश सत्यार्थी ने परमपावन को एक महान गुरु, उपदेशक एवं मित्र के रूप में प्रशंसा की । उन्होंने परमपावन से बच्चों के सकारात्मक गुणों को निर्दिष्ट करते हुये कहा “बच्चे अत्यंत ही निष्कपट एवं पारदर्शी होते हैं । मुझे आशा है कि यह सी-शिक्षण कार्यक्रम शिक्षा के प्रति मेरे दृष्टिकोण को बदलेगा । बच्चे जन्मकाल में निर्मल होते हैं लेकिन शिक्षा के माध्यम से वे मान्यताओं को सीख लेते हैं जो मानवता को विभाजन की ओर ले जाता है । बच्चे सीमाओं का निर्माण नहीं करते हैं । हमें बच्चों को करुणा का ज्ञान देने की आवश्यकता नहीं है बल्कि हमें उनसे करुणा का पाठ पढ़ने की ज़रुरत है । आज दुनिया का यह हाल इसलिए हुआ है क्योंकि यहां करुणा का अभाव है । प्रिय मित्रों, मुझे आशा है कि इस प्रकार के कार्यक्रमों के माध्यम से करुणा का भाव हमारे जीवन जीने का तरीका बन जायेगा । इसे हमारे जीवन का अंश होना होगा । व्यापार और राजनीति में करुणा की आवश्यकता है । आप अपने राजनेताओं से करुणावान बनने के लिए आग्रह करें ।”
परमपावन ने अपने उद्बोधन इस प्रकार आरम्भ किया “सम्मानित भाईयों एवं बहनों, मैं विश्व के 7 अरब लोगों में से एक हूँ और यह जनसभा मानवता की भलाई के लिए है । अनेक प्रकार की स्तनधारी प्रजातियों में मनुष्य ही सबसे ज़्यादा शातिर है । दूसरे प्राणियों में क्रोध, राग और अहं के भाव हो सकते हैं लेकिन उनके कार्य का दायरा सीमित है । हम मनुष्य अत्यंत ही विनाशकारी हो सकते है । दूसरी ओर यदि हम अपनी बुद्धिमत्ता का प्रयोग रचनात्मक ढ़ंग से करते हैं तो हम अनन्त हित साध सकते हैं ।”
“एक अच्छा और करुणावान बनना बुनियादी मानव स्वभाव है । यहां उपस्थित रिचार्ड मूरे इसका जीता-जागता उदाहरण हैं । जब उनकी आंखे चली गयी तब उनका पहला मनोभाव क्रोध नहीं था, अपितु उन्हें दुःख इस बात की हो रही थी कि अब वे अपनी मां के चेहरे को कभी नहीं देख पायेंगे । उन्होंने उस फौजी के प्रति क्रोध को संग्रहित होने नहीं दिया जिसने उन्हें गोली मारी थी, बल्कि वे एक अच्छे मित्र बन गये ।”
“जैसे ही बच्चे शिक्षा व्यवस्था में आ जाते हैं, वहां उन्हें मानवीय मूल्यों के विषय में कुछ पढ़ने को नहीं मिलता है । उन्हें भौतिक लक्ष्योन्मुखी बनाया जाता है और उनके अच्छे गुण सुप्तावस्था में पड़ी रहती है । शिक्षा ऐसी होनी चाहिए जो हमें अपनी बुद्धिमत्ता का प्रभावी रूप से प्रयोग करने में सहयोग करे अर्थात् तार्किक बनना सिखाये । तब जाकर हम अल्पकालिक और दीर्घकालिक हित के मध्य भेद कर पायेंगे । हमारी बुद्धिमत्ता का उचित प्रयोग करने से हमें यथार्थवादी बनने में सहायता मिलती है, जबकि क्रोध हमें अदूरदर्शी बनाता है । विनाशकारी भावनाएं प्रायः आभासित विषयों को यथार्थ मानने से उत्पन्न होती हैं, जबकि हम अपनी बुद्धिमत्ता का प्रयोग कर गंभीरतापूर्वक यह जान सकते हैं कि यथार्थ और आभास के मध्य एक खाई है ।”
“इस सी-शिक्षण कार्यक्रम और पाठ्यक्रम का परिणाम अगले सप्ताह दिखाई नहीं देंगे, बल्कि आने वाली पीढ़ियों में हम आनन्दित व्यक्ति और परिवार तथा अधिक करुणावान मनुष्यों को देख पायेंगे । चूंकि जलवायु परिवर्तन एक भयंकर समस्या है, इससे निपटने के लिए हमें हमारे भीतर एक विश्व समुदाय के रूप में तीव्र भावना का जागृत करना अत्यावश्यक है और यह भावना तब आयेगी जब हम हमारे बीच के मतभेदों को अमुख्य मानते हुये सभी मनुष्यों को समभाव से देखेंगे । हम सब मनुष्य हैं और इस पृथ्वी पर समान रूप से रहते हैं जो हमारा एक मात्र घर है । इसलिए हम सबको मिलकर इसका अच्छी तरह देखभाल करना होगा । हमें करुणा का उत्पन्न न केवल मनुष्यों के प्रति अपितु जीव-जन्तुओं के प्रति भी करुणा का भाव रखना चाहिए जो इस पृथ्वी में हस सब के साथ निवास करते हैं । धन्यवाद ।”
उसके बाद परिचर्चा सत्र आरम्भ हुआ जिसमें डेनियल गोलमन ने एक विडियों सन्देश के माध्यम से कहा कि सेल-कार्यक्रम उनकी रचना “भावनात्मक बुद्धिमत्ता” पर आधारित है और इसी प्रकार इस सी-शिक्षण में भी उनकी रचना का विकासात्मक योगदान रहा है । किम्बरली शॉनर्ट राईचि ने घोषणा करते हुये कहा कि सेल-कार्यक्रम को अब तक 37 देशों ने अपनाया है । उन्होंने आगे कहा कि सामाजिक और भावनात्मक कौशल को सिखाया जा सकता है । पहले यह समझा जाता था कि समानुभूति को सिखाया या सीखा नहीं जा सकता है, लेकिन अब यह स्पष्ट हो गया है कि यह सम्भव है । अब यह भी स्पष्ट है कि जो छात्र सेल-कार्यक्रमों में भाग लेते हैं उनकी शैक्षणिक सफलता में 11%
प्रतिशत की बढ़ोतरी हो रही है । रॉबर्ट रुसर ने अपना मत रखते हुये कहा कि करुणा न केवल उनके लिए लाभकारी है जिन्हें सहयोग प्राप्त हो रहा है अपितु इसके अभ्यास से सहयोग करने वाले को भी लाभ मिलता है । यहां परमपावन ने अंतःक्षेप करते हुये ध्यान आकर्षित किया कि हममें स्वभाविक रूप से अपने रिश्तेदारों और दोस्तों के प्रति करुणा का भाव होता है जो मुख्यतः आसक्ति पर आधारित है । यह अपने विस्तार में सीमित होता है लेकिन यह बुद्धिमत्ता के विकास में एक बीज का कार्य कर सकता है । एक व्यापक करुणा का भाव केवल अभ्यास से ही विकसित होती है जो अपरिचित व्यक्ति के प्रति, यहां तक की अपने शत्रु के प्रति भी उत्पन्न होता है ।
डा. ब्रेंन्दा ओज़वा देसिल्वा ने करुणा का वैज्ञानिक अर्थ बताते हुये सी-शिक्षण कार्यक्रम के प्रारूप को रेखांकित किया । उन्होंने वैज्ञानिक दृष्टिकोण रखते हुये दुःख के स्वभाव को पहचानने, दूसरों के दुःखों को समझकर उन्हें उनसे मुक्ति दिलाने के लिए प्रेरित होने तथा उन दुःखों का किस प्रकार निराकरण किया जा सकता है इसे जानने के बारे में विस्तारपूर्वक कहा । उन्होंने अपनी प्रस्तुति से सपष्ट किया कि विभिन्न जागरूकता के आयाम, करुणा और प्रतिबद्धता को सम्मिलत करते हुये सी-शिक्षण किस प्रकार व्यक्तिगत, सामाजिक और प्रशासनिक व्यवस्था के क्षेत्र को प्रभावित करता है ।
अन्त में, कैवल्य शिक्षा संस्था के संस्थापक श्री आदित्य नटराज ने कहा कि उन्हें और उनके सहयोगियों से प्रायः यह पूछा जाता था कि अध्ययन का तात्पर्य क्या है और उन्होंने इसका निष्कर्ष यह निकाला है कि अध्ययन करना अधीनस्थ विचारों से मुक्ति पाना है । उन्होंने आगे कहा कि बच्चों के साथ कार्य करते हुये उन्हें यह सीख मिली है कि प्रायः समस्याएं बच्चों के साथ नहीं बल्कि वयस्कों के साथ होती है । इसलिए, सर्वमान्य आवश्यकता यह है कि अध्यापकों और शिक्षाविदों को करुणा का भाव जागृत करने में सहयोग किया जाये ।
परमपावन ने इस पर टिप्पणी करते हुये कहा “भारतीय शास्त्रीय परम्परा में यह निर्दिष्ट किया गया है कि जो भी कारण और प्रत्ययों पा आधारित हैं वे सब परिवर्तनशील हैं और इसलिए स्वभाविक तौर पर मनुष्य भी परिवर्तनशील है । और एक सुस्पष्ट परिवर्तन जिसे हम अभी अनुभव कर सकते हैं, वह यह कि जब हम इस सभा में आये थे तो हमारा पेट भरा हुआ था लेकिन अब यह खाली है ।”
परमपावन ने वहां से पैनलिस्ट और दूसरे आमंत्रित मेहमानों के साथ दोपहर भोजन के लिए प्रस्थान किया ।