थेगछेन छोएलिङ, धर्मशाला, हि. प्र - आज सुबह परमपावन दलाई लामा व्यापारिक नेताओं और पेशेवरों के साथ मिले, जिसमें भारत के 35, वियतनाम के 45 और रूस के 18 लोग थे । परमपावन ने उनसे कहा:
“व्यक्तिगत तौर पर हमारे जीवन का उद्देश्य जहां तक हो सके दूसरों की अधिकाधिक सेवा करना है । मैं प्रतिदिन अपने शरीर, वाणी और मन की क्रियाओं को दूसरों के कल्याण के लिए समर्पित करता हूँ । यही धर्म का अर्थ है, और यह लंबे समय से चली आ रही अहिंसा और करुणा की भारतीय परम्पराओं को दर्शाता है । मैंने बचपन से ही प्राचीन भारतीय परम्पराओं का अध्ययन किया है, जिसमें मुझे शास्त्रीय ग्रन्थों को याद करना, उनके शब्दशः व्याख्याओं को समझना और जो मैंने सीखा है उसकी परीक्षा करने के लिए वाद-विवाद में तर्क और हेतुओं का उपयोग करना होता था । मैं दृढ़तापूर्वक आप लोगों को प्राचीन भारतीय तर्क शिक्षा का उपयोग करने की सलाह देता हूँ । नालन्दा परम्परा के एक शिष्य के रूप में मैंने इसे मन की शांति बनाये रखने के लिए वास्तव में अत्यंत ही उपयोगी पाया है।”
परमपावन ने एक आगंतुक के प्रश्न का उत्तर देते हुये कहा “हालांकि चतुरतापूर्वक निर्णय लेना कभी-कभी सफलता की ओर ले जाता है, लेकिन ईमानदार होना अधिक विश्वसनीय है क्योंकि यह अन्य लोगों का विश्वास जीत लेता है । यदि हमें एक शांतिपूर्ण समाज का निर्माण करना है तो हमें नैतिक सिद्धांतों की आवश्यकता है । शिक्षा के क्षेत्र में मन की शांति प्राप्त करने और उसे बनाए रखने के निर्देशों को शामिल करना चाहिए । इससे यह होगा कि हम हमारी विनाशकारी भावनाओं से निपटना जान जायेंगे । भारत में शमथ और विपश्यना साधना द्वारा मन और भावनाओं की कार्यशैली के विषय में गहरी समझ उत्पन्न हुयी है ।”
“भारत दुनिया की महान सभ्यताओं में से एक है, जिसमें करुणा से प्रेरित अहिंसा का आचरण एक महत्वपूर्ण भूमिका निभाते आ रहा है । मैं, प्राचीन भारतीय ज्ञान चित्त और भावनाओं के विषय में लोगों की अभिरुचि को पुनर्जीवित करने के लिए प्रतिबद्ध हूँ । मेरा मानना है कि दुनिया में यही एकमात्र ऐसा देश है जो आधुनिक शिक्षा के साथ इस प्राचीन ज्ञान के संयोजन का सफलतापूर्वक नेतृत्व कर सकता है । दक्षिण भारत के कर्नाटक में स्थित हमारे मठों में 10,000 भिक्षु और 1000 भिक्षुणियां इस प्राचीन भारतीय ज्ञान में प्रशिक्षित तथा इसको सिखाने में योग्य हैं ।”
एक प्रतिभागी ने परमपावन से ‘बुरी नज़र' से बचाव के बारे में पूछा । उन्होंने उत्तर में कहा कि यह केवल एक अंधविश्वास है और आज के समय अंधविश्वास का कोई स्थान नहीं है । आज वैज्ञानिक तरीके से सोचना अधिक बेहतर है ।
बुद्धत्व के बारे में एक प्रश्न का उत्तर देते हुए परमपावन ने बताया कि बुद्धत्व को विभिन्न प्रकार से परिभाषित किया जा सकता है । बौद्ध दर्शन के संदर्भ में हमारे चित्त का स्वाभाविक रूप से शुद्ध होना ही बुद्धत्व है । उन्होंने कहा, कि अधिकांश समय हम मन की शांति को प्राप्त करने के उपाय ढूंढने की अपेक्षा इन्द्रियग्राही चेतना के विषय में चिंतित रहते हैं । इन्द्रियग्राही चेतना मन की अपेक्षा स्थूल अवस्था है । स्वप्न अवस्था और गहरी नींद की अवस्था, जो इन्द्रियग्राही घटकों से अछूता है, वह सूक्ष्म अवस्था है, जबकि मन की अतिसूक्ष्म अवस्था मृत्यु के समय स्पष्ट होती है । परमपावन ने आगे कहा कि चेतना के स्थूल और सूक्ष्म स्तर को ध्यानावस्था में भेद किया जा सकता है । मन अपने सूक्ष्म अवस्था में अज्ञानता या किसी अन्य दोषों के अधीन नहीं होता है ।
अहिंसा और करुणा के विषय पर लौटते हुए परमपावन ने कहा कि हथियारों का उपयोग केवल हत्या और युद्ध करने के लिए किया जा सकता है । यदि हम शांति में रुचि रखते हैं तो हमें एक असैन्य विश्व की स्थापना करनी चाहिए । समस्याओं को हल करने के लिए बल का उपयोग गलत है । दूसरे लोगों को 'वे' और 'हम' के संदर्भ में देखने की दृष्टि हमें हिंसा की ओर अग्रसर करती है । मनुष्य के रूप में हम एक ही समुदाय के हैं, इसलिए हमें एक-दूसरे को भाइयों और बहनों के रूप में सम्मान करना चाहिए ।
अंत में, परमपावन ने पारम्परिक रूप से बौद्ध देश वियतनाम के आगंतुको को और रूस, जिसका तिब्बत और नालंदा परम्परा के साथ सम्बन्ध है, के लोगों को मन और भावनाओं के बारे में अध्ययन करने के लिए प्रोत्साहित किया । उन्होंने वैज्ञानिक दृष्टिकोण अपनाने और अध्ययन करने की आवश्यकता को दोहराया ।