मुण्डगोड, कर्नाटक, भारत – आज सुबह परमपावन दलाई लामा ने डेपुङ गोमाङ मठ के सभागार में एक दर्जन से भी अधिक शास्त्रार्थकर्त्ताओं के शास्त्रार्थ का अवलोकन किया । किसी ने आचार्य नागार्जुन के ‘मूलमध्यमककारिका’ में उल्लेख अनात्मता और व्यक्ति और स्कन्धों के मध्य स्थापित सम्बन्ध पर शास्त्रार्थ की, तो किसी ने प्रतीत्यसमुत्पाद पर अपनी बुद्धिमत्ता का प्रदर्शन किया । परमपावन के सुझाव पर इस वर्ष के शास्त्रार्थ के दौरान शास्त्रार्थकर्त्ताओं को अपने सिद्धान्तों के स्थापन में आगम और सन्दर्भों पर आश्रित न होकर हेतुओं और तर्कों द्वारा विषय स्थापना करना था ।
शास्त्रार्थ के पश्चात् परमपावन डेपुङ लोसलिङ मठ में पधार गये जहां पर उनका पारम्परिक स्वागत किया गया । मठाधीश ने परमपावन को मठ के वरिष्ठ भिक्षुओं और टुल्कुओं का परिचय देते हुये सभागार के मंच तक ले गये । सिंहासन पर विराजमान होने से पूर्व परमपावन ने एक स्थानीय स्वामी से कुछ देर संवाद किया जो उनके दर्शन के लिए आये थे । उसके बाद वे गादेन ठीपा और गेलुक के प्रधान धर्माधिकारियों का अभिवादन करते हुये सिंहासन पर विराजित हुये । परमपावन ने सभा को सम्बोधित करते हुये कहा-
“यहां एकत्रित आप सभी का मैं धन्यवाद करता हूँ । लिंङ रिन्पोछे इसी मठ से हैं । वे पेन्छेन सोनम डाक्पा द्वारा विरचित ग्रन्थों को अत्यन्त महत्त्व देते थे जबकि शाकोर खेन रिन्पोछे गेन ञीम जामयाङ शेदपा के ग्रन्थों को । जैसा भी हो डेपुङ लोसलिङ ऐसा संस्थान है जहां से ऐतिहासिक तौर पर अनेक विद्वान निकले हैं । इस संस्था को सहयोग देने वाले आप सभी से कहना चाहता हूँ कि यहां पर आपका सहयोग देना कतई बर्बाद नहीं है । मैं आप सबके सहयोग और समर्थन के लिए धन्यवाद देता हूँ ।”
परमपावन उसके बाद सभागार के ऊपरी मंज़िल में विश्राम के लिए चले गये ।