नई दिल्ली, भारत – आज सुबह जब परमपावन दलाई लामा सभागार में पहुंचे तो गेशे लोब्ज़ाङ तेनज़िन नेगी ने उनका अभिवादन किया और उनसे पूछा कि क्या उन्हें नींद अच्छी आयी थी । दर्शकों की ओर मुड़ते हुये गेशे लोब्ज़ाङ तेनज़िन नेगी ने कहा कि सन् 2015 को जब परमपावन ने उन्हें सी-शिक्षण के प्रारूप तैयार करने का कार्य सौंपा तब वे और उनका दल घबराये हुये थे, कि इतना बड़ा दायित्व को वे निभा पायेंगे या नहीं । लेकिन, परमपावन की दूरगामी दृष्टि का ही प्रभाव था कि इस कार्य के लिए वे जितने भी लोगों के पास गये सभी ने उनका भरपूर सहयोग किया ।
उन्होंने आगे कहा कि वर्ष 2017 को उन्हें यह आभास हुआ कि उनके लिए उन सभी जगहों पर जाना सम्भव नहीं होगा जहां पर सी-शिक्षण प्रशिक्षण की आवश्यकता है । इसी को देखते हुये वे एक ऑनलाईन प्लेटफॉर्म स्थापित करने के लिए प्रेरित हुये जिससे सी-शिक्षण सामग्री दुनियां के सभी देशों में सबके लिए उपलब्ध हो सके । श्री लोब्ज़ाङ तेनज़िन नेगी ने कहा “यह एक नया कार्यक्रम है जिसके बहुविध लाभ होंगे, लेकिन इसे अभी परखा जाना शेष है । ऑनलाईन प्लेटफॉर्म की यही खूबी होती है ।”
डा. ब्रेंन्दा ओज़वा देसिल्वा ने सी-शिक्षण कार्यक्रम के बारे में जानकारी देते हुये कहा कि उन्हें इसलिए तकनीक का सहारा लेना पड़ा जिससे अधिक से अधिक लोगों तक पहुंचा जा सके । इससे ऑनलाईन प्रशिक्षण देने में सुगम होने के साथ-साथ सभी प्रकार की समस्याओं के समाधान मिलता है तथा अत्यधिक मांगो की पूर्ति भी हो पाता है ।
डा. टायराल्यन फराज़ीर ने कहा कि इसका मुख्य लक्ष्य शिक्षकों को तैयार करना और शिक्षा में सहयोग करना है । इसके पहले अनुखंड में उपयोगकर्ताओं को प्रारंभिक निर्देशन मिलेगा । इसके लिए उन्हें पंजीकरण कर एक स्वीकृति फॉर्म को पूरा करना होगा । इस अनुखंड में लोगों से अनुसंधान में योगदान देने का अनुरोध किया जाता है । दूसरा अनुखंड बच्चों को सशक्त करने के उद्देश्य से तैयार किया गया है । शिक्षकों को तीसरे अनुखंड के ढांचे में रखा गया है जहां पर जागरूकता का अर्थ, करुणा और प्रतिबद्धता के विषयों की चर्चा की गयी है । चौथा अनुखंड पाठ्यक्रम को समझने के लिए है । पांचवां अनुखंड छात्रों में उनकी दक्षता को परिपोषित करने से सम्बन्धित है जबकि छठवां अनुखंड शिक्षकों की दक्षता को परितोषित करने के लिए तैयार किया गया है । सातवें अनुखंड का नाम “यात्रा आरम्भ” और “मेरी योजना” है । जब ये सब पूर्ण हो जाते हैं तब उपयोगकर्ता पूरे कार्यक्रम को डाउनलोड कर पायेंगे और इसकी समाप्ति पर उन्हे एक प्रमाणपत्र भी प्राप्त होगा ।
परमपावन के आधार व्याख्यान के पूर्व डा. गेरी हॉक ने एमोरी विश्वविद्यालय की पृष्ठभूमि पर जानकारी दी । उन्होंने कहा कि जॉन वैसले की अनुयायियों ने 200 वर्ष पूर्व मन और हृदय को शिक्षित कर अपने अनुभव को व्यापकता प्रदान करने के उद्देश्य से इस विश्वविद्यालय की स्थापना की थी । सन् 1987 में प्रो. जॉन फेंटन के आमंत्रण पर परमपावन पहली बार इस विश्वविद्यालय में पधारे थे । परमपावन ने एमोरी में अनेक बार पधारकर उनके मित्रों को ज्ञान का प्रयोग मानव कल्याण हेतु करने के लिए प्रोत्साहित किया । डा. हॉक ने कहा कि वे उस प्रतिनिधि-मंडल के सदस्य थे जो परमपावन के समक्ष एमोरी-तिब्बत साझेदारी का प्रस्ताव लेकर गये थे । गेशे लोब्ज़ाङ तेनज़िन नेगी तब से एक प्रेरक शक्ति के रूप में कार्य कर रहे हैं । “आइये आरम्भ करते हैं और देखते हैं कि यह कहां जाता है”
परमपावन ने अपने उद्बोधन का आरम्भ करते हुये कहा “प्रिय भाईयों एवं बहनों, जैसेकि मैंने पहले कहा है, मैं, इसको देखकर प्रभावित और भावुक हूँ कि बहुत सारे लोग और संस्थान मनुष्य स्वभाव के अन्वेषण में रुचि दिखा रहे हैं । यह एक प्रोत्साहन का लक्षण है ।”
“सन् 1959 में हम शरणार्थी हो गये थे, लेकिन इसके साथ ही नये अवसरों का भी सृजन हुआ और अनेक लोगों से मिलना हुआ जिन्होंने नये-नये अनुभवों को साझा किया । सन् 1973 में जब मैं पहली बार युरोप में जाने के लिए तैयार हो रहा था तब बीबीसी के संवाददाता मॉर्कटली ने मुझसे पूछा कि मैं युरोप में क्यों जाना चाहता हूँ । और मैंने अपने जवाब में कहा कि मैं स्वयं को एक विश्व नागरिक मानता हूँ ।”
“युरोप पहुंचकर मैंने देखा कि वहां का समाज अत्यधिक विकसित था जिसे मैं एक बाह्य सफलता के लक्षण के रूप में देख रहा था । लेकिन वहां आन्तरिक तनाव और दुःख के भी लक्षण दिखाई दे रहे थे । तब मैंने वहां सुझाव दिया था कि अब हमें एक वैश्विक दायित्व का भाव अपनाने की आवश्यकता है और दूसरों के कल्याण के लिए चिंतन करने की ज़रुरत है । एक स्व-केन्द्रित रवैया हमें चिंतित और व्याकुल बनाता है । हम सब 7 अरब लोगों में से एक हैं, और यदि वे खुश रहते हैं तो हम भी खुश रहेंगे ।”
“आजकल जब हम टीवी में समाचार देखते हैं तो हमें हिंसा और परेशानियां ही दिखाई देती हैं । हम देखते हैं कि लोग और जीव-जंतु अनावश्यक ही परेशानियों से जूझ रहे हैं और वे अपने जीवन में अनेक प्रकार से संतप्त हैं । जब हमारे पड़ोस में रहने वाला व्यक्ति भूख से मर रहा हो तो हम कैसे अपने भोजन का आनन्द ले सकते हैं । यह मुझे सोचने पर मजबूर कर देता है कि ऐसा क्या अनर्थ हुआ होगा और कौन से ऐसे कारण होंगे जिससे आज यह स्थिति उत्पन्न हुयी है । मुझे लगता है कि एक वैश्विक दायित्व का भाव न होने से और मनुष्यों में एकात्मता का विचार न होने से इस प्रकार की दुर्गति दिखाई दे रही है ।”
“समय हमेशा निकलता जा रहा है, कोई भी उसे रोक नहीं सकता है । हम हमारे अतीत को बदल नहीं सकते हैं, लेकिन हमारा भविष्य को निश्चित रूप से सुधार सकते हैं । हम जितना दयालु होंगे उतना ही हम आन्तरिक शांति का अनुभव कर पायेंगे । हालांकि आज की शिक्षा इस प्रकार के मानव स्वभाव को बढ़ावा नहीं दे रही है । जैसे भी हो एक बेहतर भविष्य के लिए शिक्षा ही मुख्य आधार है ।”
“20वीं शताब्दी, जिसमें मार-काट और हिंसा अपने चरम पर थी, वह अब चला गया है । लेकिन हम अभी भी उससे सबक ले सकते हैं । वह एक ऐसा दौर था जब लोग हिंसा और बल प्रयोग पर अत्यधिक महत्त्व देते थे जिससे हथियारों को बनाने में समय और धन दोनों ही व्यर्थ चला गया । हिंसा कभी भी समस्याओं का समाधान नहीं करता है । ऐसे में बाह्य अशस्त्रीकरण की आवश्यकता तो है ही लेकिन उससे भी अधिक आन्तरिक अशस्त्रीकरण करना महत्त्वपूर्ण है । यदि हम यथार्थवादी नीतियों को अपनाते हैं तो 21वीं सदी एक शांतिमय युग के रूप में उभर सकता है । लेकिन इसे हमें अभी प्राप्त करना है, हमें और अधिक परिश्रम करने की आवश्यकता है ।”
परमपावन ने एक प्रतिभागी के प्रश्नों का उत्तर देते हुये कहा कि हमें किंडरगार्टन से लेकर विश्वविद्यालय स्तर तक की शिक्षा का पूनर्मूल्यांकन करना होगा । उन्होंने कहा कि हमें वर्तमान परिस्थिति से निराश न होकर एक व्यापक दृष्टिकोण रखते हुये नये उपायों को खोजने का प्रयास करना चाहिए और इन सबका लक्ष्य मन की शांति को प्राप्त करना होना चाहिए ।
परमपावन ने कहा “यदि परिस्थितियां पूर्व की भांति चलती रही तो यह एक गम्भीर समस्या की ओर ले जायेगा । लेकिन, यदि परिवर्तन सम्भव है तो चिंतित होने की आवश्यकता नहीं है । केवल परिवर्तन की दरकार है । मुझे विश्वास है कि परिस्थितियां बदलेंगी और समय के साथ दुनिया के 7 अरब लोग अधिक दयालु और शांतिप्रिय बनेंगे । केवल प्रार्थना करने से यह सम्भव नहीं होगा, इसके लिए एक अच्छे मनोभाव से कार्य करना होगा । किसी भी कार्य को करने से पूर्व उसके लाभ और हानि का परिक्षण करना ज़रुरी है और जब उसके लाभ दिखाई देते हैं तो उससे प्रेरित होकर कार्य सम्पादन करना चाहिए ।”
“मुझे विश्वास है कि यदि हम परिश्रम करते हैं तो हम उन्नती कर सकते हैं । लेकिन, जलवायु परिवर्तन एक वास्तविक खतरा है जिसके परिणाम हमारे नियंत्रण के बाहर होंगे । इसलिए, जब तक हम जीवित हैं, हमें आनन्दपूर्वक जीने का यत्न करना चाहिए । क्षणिक सुख और तात्कालिक लाभ के लिए दूसरों की हत्या करना अत्यंत ही भयावह है । हम जिस परिस्थिति से गुज़र रहे हैं यह गंभीर है ।”
पुनः परमपावन ने वहां से पैनलिस्ट और दूसरे आमंत्रित मेहमानों के साथ दोपहर भोजन के लिए प्रस्थान किया । परमपावन कल सुबह एक संक्षिप्त कार्यक्रम के बाद धर्मशाला लौट जायेंगे ।