थेगछेन छोलिंग, मैक्लिओड़ गंज, धर्मशाला, हि. प्र., भारत, परम पावन दलाई लामा ने अपने आवास से जुड़े चुगलगखंग के प्रांगण में दक्षिण एशिया के विभिन्न हिस्सों से आए लगभग १००० लोगों से भेंट की, जिसमें भारत, उत्तरी अमेरिका, दक्षिण अमेरिका, यूरोप, रूस और इज़राइल के लोग शामिल थे। सबसे पहले उन्होंने उनके साथ सामूहिक तस्वीरों के लिए पोज़ किया, जो समूह भौगोलिक क्षेत्र के अनुसार व्यवस्थित किए गए थे।
अपना सम्मान अभिव्यक्त करने हेतु कालचक्र मंदिर और चुगलगखंग जाकर परम पावन ने तिब्बतियों का अभिनन्दन किया, जो उस महीने का उत्सव मनाने, जिसमें बुद्ध का जन्म, बुद्धत्व तथा निर्वाण हुआ था और प्रार्थना तथा अवलोकितेश्वर मंत्र ऊँ मणि पद्मे हुँ का जाप करने हेतु एकत्रित हुए हैं।
मंदिर के प्रांगण में वापस लौटकर, उन्होंने अंतर्राष्ट्रीय आगंतुकों को संबोधित किया:
"मैं आशा करता हूँ कि यह बैठक हमें पारस्परिक व्यवहार का अवसर देगी, मैं आपके प्रश्नों को सुनने का इच्छुक हूँ।
"अतीत में, यद्यपि हम तिब्बती परम्परागत रूप से सभी सत्वों के कल्याण के लिए प्रार्थना करते थे, पर पर्वतों से घिरे होने के कारण एकाकी थे और हम वास्तव में विश्व के बाकी हिस्सों में जो भी हो रहा था, उससे इतने चिंतित न थे। परन्तु आज यथार्थ यह है कि हम सभी इतने अन्योन्याश्रित है कि इस तरह के एकाकीपन को बचाए रखना अनुचित और पुराना है। इसके बजाय हमें मानवता की एकता के बारे में सोचने की आवश्यकता है।
"अन्य मनुष्यों को अपने भाई व बहनों की तरह मानना हमारे जीवनों को और अधिक सुखी और सार्थक बना सकता है। कुछ लोग सोचते हैं कि जब हम दूसरों के लिए करुणा और स्नेह विकसित करते हैं तो केवल उन्हें लाभ होता है, पर वास्तव में ऐसे आचरण से हम स्वयं भी बहुत लाभ और संतुष्टि प्राप्त करते हैं।
"ब्रह्मांड के अन्य भागों में जीवित प्राणी हो सकते हैं, पर हम उनके लिए कुछ भी नहीं कर सकते। यद्यपि हम इस ग्रह को अनंत पक्षियों और अन्य प्राणियों के साथ साझा करते हैं, पर वास्तव में केवल इंसान हैं जिन्हें हम लाभान्वित कर सकते हैं और जिनके साथ सम्प्रेषण कर सकते हैं।
परम पावन ने कहा कि ६० वर्षों में वह भारत में निर्वासन में रहने के दौरान, वह यह देख कर प्रभावित हुए हैं कि कैसे विश्व की प्रमुख धार्मिक परम्पराएँ सद्भाव के साथ एक साथ रहती हैं। उन्होंने इसकी बाकी विश्व के लिए एक उदाहरण के रूप में प्रशंसा की। विभिन्न दार्शनिक दृष्टिकोणों को बनाए रखने के बावजूद, ये सभी परम्पराएँ मानवता के बीच सुख का एक ही संदेश देने के लिए समर्पित हैं। यह उनका आम लक्ष्य है।
श्रोताओं के कई प्रश्नों के उत्तर देते हुए परम पावन ने उल्लेख किया कि विगत ३० वर्षों में आधुनिक वैज्ञानिकों के साथ, जो उन्होंने उसे कितना मूल्यवान माना है जिसमें उन्होंने ब्रह्मांड विज्ञान, न्यूरो-जीवविज्ञान, भौतिकी और मनोविज्ञान पर बात की है। उन्होंने समाप्त करते हुए कहा:
"यदि आप के मन में मेरे लिए कुछ सम्मान है तो कृपया जो मैं कह रहा हूँ तो इस बारे में सोचें और देखें कि आप इसे अपने जीवन में कैसे कार्यान्वित कर सकते हैं। आप जहाँ रहते हैं, मानवता की एकता की भावना को बढ़ावा देने के साथ-साथ हमारी विभिन्न धार्मिक परम्पराओं के बीच पारस्परिक सम्मान तथा सराहना विकसित करें। पर यदि आपको लगता है कि मैंने जो कहा है, वह आपके लिए कोई प्रासंगिकता नहीं रखता, तो ठीक है, आप इसे भूल जाइए।"
जब परम पावन अपने निवास लौट रहे थे तो जनमानस में बहुत से लोगों के चेहरे मुस्कान से खिले थे, परम पावन से भेंट कर वे खुश थे।