थेगछेन छोलिंग, धर्मशाला, हि. प्र., भारत, आज प्रातः परम पावन दलाई लामा के चुगलगखंग आगमन तथा आसन ग्रहण करने के उपरांत प्रातः के संचालक डेन गोलमेन ने पूछा कि वे किस तरह सोए थे। परम पावन ने उत्तर दिया कि वे किंचित थकान का अनुभव कर रहे थे, पर वे अच्छी तरह सोए। "निस्सन्देह" उन्होंने टिप्पणी की," जब मैं सो रहा होता हूँ तो स्वप्न के समय मैं विश्लेषण करता हूँ। जहाँ तक मेरा संबंध है विचारहीनता की शिथिल अवधि हमारे मस्तिष्क की क्षमता को व्यर्थ करती है।"
गोलमेन ने उन्हें सूचित किया कि रॉबर्ट रॉसेर, मैथ्यू रिकार्ड तथा सोना दिमिद्जिन शिक्षा के क्षेत्र में नैतिकता और करुणा के संबंध में हो रहे कुछ शोधों के बारे में बात करेंगे। परन्तु सर्वप्रथम गोलमेन ने परम पावन के धर्मनिरपेक्ष नैतिकता का पक्ष स्वीकार किया तथा पूछा कि इसका क्या अर्थ है और यह २१वीं सदी के लिए इतना महत्वपूर्ण क्यों है?
परम पावन ने उत्तर दिया, "विश्व कई समस्याओं का सामना कर रहा है, जिनमें से कई हमने निर्मित किए हैं। जो लोग समस्याएँ उत्पन्न करते हैं, ये आवश्यक नहीं कि जब वे बच्चे थे तो समस्याएँ खड़ी करते थे। वास्तव में, वैज्ञानिकों का कहना है कि उन्होंने देखा है कि आधारभूत मानव प्रकृति करुणाशील है। पर यदि ऐसा है तो हम अपने लिए इतनी सारी समस्याएँ क्यों निर्मित करते हैं?
" एक कारण यह है कि हमारा दृष्टिकोण समग्र नहीं है, हम मात्र एक संकीर्ण परिप्रेक्ष्य से वस्तुओं को देखते हैं। यदि हम व्यापक दृष्टिकोण अपना लें तो जिन समस्याओं का हम सामना कर रहे हैं, वे इतने महत्वपूर्ण प्रतीत नहीं होंगे। तब हम कम चिढ़चिढ़े तथा क्रोधित होंगे। हमें यह भी समझने की आवश्यकता है कि अगर हम इस तरह से या उस तरह से कार्य करें तो उनके परिणाम होंगे। संकीर्ण विचारधारा वाले लोग अपने व्यवहार के परिणामों के बारे में कुछ नहीं सोचते। और हमें इस बात की सराहना करने की आवश्यकता है कि हम सभी अन्योन्याश्रित हैं।
"बौद्ध धर्म हमें बताता है कि विनाशकारी भावनाओं का मूल अज्ञान है। वे कारण से समर्थित नहीं हैं। दूसरी तरफ सकारात्मक भावनाएँ कारणों पर आधारित हैं। और तो और, नकारात्मक भावनाएं उस प्रज्ञा के साथ सह अस्तित्व नहीं रख सकतीं जो यथार्थ को जस का तस देखता है। मैं बौद्ध हूँ, पर मैं कभी नहीं कहता कि बौद्ध धर्म सर्वश्रेष्ठ है; मैं इसकी आलोचना भी कर सकता हूँ। अतीत के महान व्यक्तित्व जैसे बुद्ध, मोहम्मद और यीशु मसीह ने जब वे अपने अनुभव से शिक्षा दी तो उनका उद्देश्य भविष्य में झगड़ों और विवादों को खड़ा करना नहीं था। चाहे बौद्ध धर्म कितना ही आकर्षक क्यों न प्रतीत हो वह आज जीवित सभी ७ अरब मनुष्यों के लिए कभी भी आकर्षक नहीं होगा।
"शांतिदेव ने लिखा कि लोक में जो कुछ भी दुःख हैं, वह आत्म-केंद्रितता के कारण है। हम सामाजिक जीव हैं और हमारा अस्तित्व मात्र दूसरों पर निर्भर करता है। जब हम जलवायु परिवर्तन के प्रभावों को देखते हैं तो हम पाते हैं कि यदि हम सुख का जीवन जीना चाहते हैं तो साथ मिलकर कार्य करना तत्कालिक आवश्यकता है। मानवता संकट में है। जो कुछ समय हमारे पास बचा है वह अच्छी तरह से काम में लाया जा सकेगा, यदि हम सद्भावपूर्वक जीवन बिताएँ।
"जब हम अपने बीच अंतर देखते हैं तो हमें इस पर ज़ोर देने के बजाय कि हम सही हैं, उनका सम्मान करना चाहिए। मैंने प्रायः कहा है कि इस शताब्दी को संवाद का युग होना चाहिए। हमें एक साथ रहना है। हम सभी मानव हैं। हमें अपने बीच के अंतर पर कम ध्यान देना चाहिए तथा एक-दूसरे के साथ संवाद में संलग्न होना चाहिए।
"हम यहाँ जो करने का प्रयास कर रहे हैं वह लोगों को शिक्षित करना है, उन्हें यह दिखाना है कि जिस तरह हम वास्तविक रूप में सुखी व्यक्ति बनने वाले हैं जो सुखी परिवारों तथा समुदायों में रहते हैं, वह एक दूसरे के प्रति अधिक सौहार्दपूर्ण होना है। हमें और अधिक प्रेम व दया की आवश्यकता है। यहाँ तक कि हम जानवरों के बीच भी देख सकते हैं कि यह प्रभावी है, कि शांत कुत्ते के अधिक साथी हैं और भौंकने वाला आक्रामक अकेला है।
"स्वयं को कुछ खास मानना हमें एकाकी कर देता है। मैं अपने दलाई लामा होने पर नहीं सोचता। मैं स्वयं को एक अन्य इंसान के रूप में सोचता हूँ। और जब मैं किसी अन्य से मिलता हूँ तो मैं उनका एक भाई या बहन के रूप में अभिनन्दन करता हूँ, जो मुझे आनन्द देता है। शान्तिदेव इस ओर संकेत करते हुए सही हैं, कि स्वयं-केंद्रितता, अपने आप के प्रति अति मोह मात्र दुःख देता है।
"यदि हम सार्वभौमिक परोपकार की भावना को गंभीरता से लें तो वैरियों के लिए फिर स्थान कहां है? हमारे असली शत्रु और मानवता के शत्रु, क्रोध तथा विद्वेष जैसी नकारात्मक भावनाएँ हैं। वास्तव में जिन पर शक्तिशाली नकारात्मक भावनाएँ हावी हैं, वे हमारी करुणा की वस्तु होना चाहिए।
"हमें असीम परोपकार के महत्व की सराहना करने और सत्य को जस का तस रूप में समझने की आवश्यकता है। अज्ञान इतने संकटों का स्रोत है कि यथार्थ को समझना महत्वपूर्ण है और हमें केवल काले और श्वेत के संदर्भ में वस्तुओं को देखने की प्रवृत्ति पर अंकुश लगाने की आवश्यकता है।"
परम पावन डेन गोलमेन की ओर मुड़े और पूछा कि क्या वे बहुत लम्बा बोले। उनसे यह कहते हुए कि जहाँ एक ओर वे थके होते हैं, पर एक बार जब वे अपना मुँह खोलते हैं तो उनके लिए बोलना बंद करना कठिन हो जाता है, वे हँस पड़े।
विकासशील, शैक्षिक मनोवैज्ञानिक के रूप में अपने शोध की समीक्षा करते हुए रॉबर्ट रोसेर ने पूछा है कि क्या दयालुता जैसे गुण स्वाभाविक रूप से उभरते अथवा उन्हें विकसित करना पड़ता है और क्या वे हमारे जीवन के दौरान बदलते हैं। वे पूछते हैं कि वे जैविक कारक क्या हैं जो इनको लेकर हमारे अनुभव को बदल सकते हैं। उन्होंने नैतिकता के विभिन्न वर्गों की बात की - न्याय की नैतिकता, देखभाल की नैतिकता और संयम की नैतिकता।
रोसेर ने निष्कर्ष निकाला है कि अल्पायु से ही हममें नैतिक संवेदनाएँ हैं और उदाहरण दिया कि जब नवजात शिशु पास ही किसी अन्य शिशु का रोना सुनते हैं तो वे रोने लगते हैं, पर उनके सक्रिय होने में समय लगता है। दुर्भाग्यवश, कुछ लोग संसक्त नैतिक संहिता या लोक में होने के तरीके का विकास नहीं करते, इसी कारणवश धर्मनिरपेक्ष नैतिकता उपलब्ध कराना बहुत महत्वपूर्ण है। मनुष्य करुणा के बीज के साथ जन्म लेते हैं, पर हमें उस करुणा की भावना को दूसरों तक विस्तृत करना सीखना होगा। दूसरों को 'हम' और 'उन' के संदर्भ में देखा जाना परिवर्तित किया जा सकता है यदि हम उन्हें 'मुझ सम' के रूप में देखें।
प्रेम संबंध, सकारात्मक भूमिका के आदर्श, सहयोग, जो हमसे विभिन्न हैं उनके साथ मिलना और हमारी सामान्य मानवता को समझना, परिवर्तन के प्रबल शैक्षिक उपकरण हैं।
दयालुता और अन्य गुणों की सराहना कर बोलते हुए बच्चों की एक छोटी वीडियो क्लिप ने परम पावन को यह कहने के लिए प्रेरित किया कि हम सभी जानते हैं कि बच्चे मित्र चाहते हैं। मित्र बनाने का मुख्य कारक स्नेह दिखाना है। क्रोध उन्हें दूर कर देता है।
"अन्य प्राणियों की तरह, मनुष्य अपने बच्चों की उस समय तक देखभाल करते हैं, जब तक कि वे स्वयं की देखभाल न कर सकें। उस बिन्दु पर जब उन्हें देखभाल करने की आवश्यकता नहीं होती, हमें उन्हें शिक्षित करना होगा, क्योंकि वे अब भी समुदाय के सदस्य हैं, मानवता का अंग हैं।
"इस शताब्दी को विसैन्यीकरण विश्व बनाने के लिए भी कार्य करने का हमारा साझा उत्तरदायित्व है। और हमें राष्ट्रीय सीमाओं के महत्व पर अपना जोर कम करने की आवश्यकता है। उदाहरणार्थ हम तिब्बती स्वतंत्रता की मांग नहीं कर रहे क्योंकि हमें चीनियों के साथ एक जुड़ाव की आवश्यकता है। पर क्या यह स्थापित किया जा सकता है, वह हमारे पारस्परिक सम्मान के साथ जीने की सक्षमता पर निर्भर करता है। लगभग सभी लोगों को चीनी खाना अच्छा लगता है और वे हमें शारीरिक भोजन प्रदान कर सकते हैं, पर हम उन्हें चित्त के लिए भोजन दे सकते हैं।"
अपनी प्रस्तुति, जिसमें हिमालय में कई वर्षों से ली गईं सुंदर तस्वीरें भी सम्मिलित हैं, में मैथ्यू रिकार्ड ने धर्मनिरपेक्ष नैतिकता में करुणा की भूमिका पर चर्चा की। उन्होंने निष्पक्षता के महत्व के बारे में बताया कि किस तरह पक्षपाती व्यवहार क्रोध को जन्म दे सकता है। उन्होंने उल्लेख किया कि नैतिकता की आवश्यकता है कि हम जो कुछ करें उसके लघु व दीर्घकालिक प्रभावों के बारे में सोचें और यह करुणा मुख्य रूप से अन्य लोगों के हित की कामना के विषय में है। इसमें दुख से बचने और सुख प्राप्त करने का प्रणिधान सम्मिलित है, पर इसमें दुखों के हेतुओं को समझने की प्रज्ञा भी शामिल होनी चाहिए।
उन्होंने सुझाया कि हम नैतिकता का संक्षेपीकरण इस रूप में करना चाहेंगे, कि जिस तरह मैं पीड़ित नहीं होना चाहता, उसी तरह अन्य भी नहीं। यह मात्र कुछ नियम नहीं है, अपितु इसमें विश्व का व्यापक दृष्टिकोण शामिल है। उन्होंने परोपकार को ऐसी कामना के रूप में परिभाषित किया कि दूसरों को सुख तथा सुख के कारण प्राप्त हों, जबकि करुणा का इस इच्छा से संबंध है कि अन्य दुःख तथा दुःखों के कारणों से मुक्त हों। उन्होंने उनके क्लेशों के पक्षों की बात की, दूसरों के दुःख से अवगत होने और इस संबंध में कुछ करने का साहस रखने के बारे में। संज्ञानात्मक पक्ष भी हैं जिसमें दुख के कारणों, विशेषकर अज्ञान, जो यथार्थ का विकृत रूप है, का विश्लेषण भी जुड़ा है। इन गुणों में उन्होंने सहानुभूति को जोड़ा, जिसे उन्होंने दूसरों के साथ प्रभावी अनुनाद के रूप में परिभाषित किया।
चाय के अंतराल के उपरांत, सोना दिमिद्जिन ने करुणा में संक्षिप्त प्रशिक्षण के प्रभावों पर चर्चा की जिसे मोबाइल फोन ऐप के रूप में उपलब्ध कराने के लिए बनाया गया है। प्रतिभागी प्रतिदिन कई मिनटों तक इससे संलग्न होते हैं और करुणा के लाभ और जब यह नहीं होता है तो इसकी हानियाँ दिखाई जाती हैं। उसके बाद प्रशिक्षण प्राप्त करने वालों तथा एक नियंत्रण समूह को आमंत्रित किया गया कि वे संकटग्रस्त लोगों को सुनें और उनकी प्रतिक्रियाओं पर निगरानी रखी गई विशेषकर उनकी सहायता के लिए धर्मार्थ परियोजनाओं में आर्थिक रूप से योगदान करना। जिन लोगों ने करुणा प्रशिक्षण लिया था, वे इस तरह के समर्थन प्रदान करने की इच्छा में स्थिर थे, जबकि नियंत्रण समूह के सदस्य कोई रूचि बनाए रखने में असमर्थ थे।
परम पावन की टिप्पणी को उद्धृत करते हुए कि "प्रेम और करुणा आवश्यकताएँ हैं, विलासिता नहीं। उनके बिना मानवता जीवित नहीं रह सकती," दिमिद्जिन ने बलपूर्वक कहा कि जिस तरह सुस्वास्थ्य की प्राप्ति एक तत्कालिक सार्वजनिक स्वास्थ्य की आवश्यकता है, इसी तरह स्वार्थ का आमूल विनाश भी है।
भयंकर तूफान जो आज प्रातः से ही था, जो अपने साथ मेघाच्छादित नभ, हवा और बारिश लेकर आया था निरंतर उस समय तक था जब परम पावन मंदिर से नीचे उतरकर गाड़ी तक पैदल गए जो उन्हें उनके निवास ले जाने वाली थी। उन्होंने शुभचिंतकों का अभिनन्दन करने के लिए समय निकाला जो उन्हें देखने के लिए सीढ़ियों के नीचे एकत्रित हुए थे। वह कल प्रातः सम्मेलन के आखिरी सत्र के लिए लौटेंगे।