बोधगया, बिहार, भारत, आज प्रातः जब परम पावन दलाई लामा ने तिब्बती मंदिर से कालचक्र मैदान तक की एक छोटी दूरी तय की तो नभ शीतल व धूमिल था पर कुछ समय के बाद ही सूरज निकल आया। अनुमानतः ३०,००० लोग, जिनमें भिक्षु तथा भिक्षुणियाँ शामिल थी, परम पावन की प्रतीक्षा कर रहे थे। मंच पर आते हुए उन्होंने लोगों का अभिनन्दन किया जहाँ से उन्होंने सामने बाएँ फिर दाईं ओर के जनमानस का अभिनन्दन किया। शीघ्र ही वे सिंहासन पर आसीन हुए।
केन्द्रीय उच्च तिब्बती शिक्षा संस्थान, सारनाथ के छात्र, युवा पुरुष तथा महिलाएँ, साधारण तथा भिक्षु समुदाय ने पालि में मंङ्गल सुत्त का सस्वर पाठ किया। उनके पश्चात टिब्बटेन इंस्टिट्यूट फॉर परफॉर्मिंग आर्ट्स के एक समूह ने नागार्जुन के 'मूलमध्यमकारिका' के शरण गमन तथा वंदना के एक छंद का वाद्य के साथ गायन किया। अंत में, ताइवान के एक समूह ने चीनी में 'हृदय सूत्र' का पाठ किया। वे इस प्रवचन में सम्मिलित ७० विभिन्न देशों के ३३०० विदेशियों के बीच एक थे। उनकी आवश्यकताओं की पूर्ति हेतु परम पावन के शब्दों का साथ साथ अनुवाद किया जा रहा है और एफएम बैंड पर अंग्रेजी, चीनी, हिंदी, रूसी, मंगोलियायी, वियतनामी, कोरियाई, जापानी, फ्रेंच, स्पैनिश, रोमानियाई और अमदो और तावो तिब्बती बोलियों में स्थानीय स्तर पर प्रसारित किया जा रहा है।
"पिछला प्रवचन अधिकांश रूप से भारतीय श्रोताओं के लिए था और उसका सार्वजनिक रूप से हिंदी में अनुवाद किया गया था," परम पावन ने परिचय के रूप में समझाया। "इस समय बुद्ध की देशना को सुनने के लिए आए कई भक्त भिक्षु और साधारण लोग हैं। प्रारंभ करने के लिए सबसे महत्वपूर्ण एक उत्तम प्रेरणा है। लामा की ओर से इसका अर्थ है कि धन या ख्याति की किसी आशा के बिना शिक्षा देना। धर्म को व्यवसाय में बदलना बहुत नकारात्मक है। जब मैंने टुल्कु छूलो की तीन प्रतिबद्धताओं के बारे में जाना - गैर-शाकाहारी भोजन न करना, जानवरों की सवारी न करना और शिक्षण के लिए कोई राशि न लेना तो मैं बहुत प्रभावित हुआ।
"यदि ऐसे लोग हैं जो सोचते हैं कि धर्म क्या है तो कोई प्रतिबंध नहीं है, हमारे पास छिपाने के लिए कुछ नहीं है और सभी का स्वागत है। यह कुछ ऐसा है जिससे हम एक हजार से अधिक वर्षों से परिचित हैं। 'हृदय सूत्र' के अपने सस्वर पाठ के अंत में चीनी एक छंद जोड़ते हैं जो निम्नानुसार है:
तीन विषों का निर्मूल हो,
प्रज्ञा प्रकाश चमके,
हम किसी आंतरिक या बाहरी बाधाओं का सामना न करें
और हम बोधिसत्व मार्ग में प्रशिक्षित हों।
"यह हमें बताता है कि चीनी पारम्परिक रूप से बौद्ध हैं। जिस प्रज्ञा की यहाँ बात हो रही है, वह मात्र किसी भी तरह का ज्ञान नहीं है, अपितु नैरात्म्य का अनुभव करने वाली प्रज्ञा है। सांस्कृतिक क्रांति के विनाश के पश्चात चीन में बौद्ध जनसंख्या में पुनः वृद्धि हो रही है।
"मंगोलिया में भी बौद्ध धर्म के तीन चरण रहे हैं। प्रारंभ में इसकी यात्रा सिल्क रोड और मंगोलिया होते हुए थी। फिर एक युग था जब मंगोलियाइयों के सक्यों के साथ संबंध थे और अंत में तृतीय दलाई लामा ने उनके साथ संबंध रखे। बदले में उन्होंने उन्हें दलाई बक्षी का नाम दिया। बौद्ध धर्म अधिकांश रूप से तिब्बत से मंगोलिया में फैला। जब मैं वहाँ पहली बार १९७९ में गया तो कुछ वयोवृद्ध भिक्षु थे जो वास्तव में मुझसे बात नहीं कर सके थे, परन्तु लिखित भोट भाषा के माध्यम से मेरे साथ सम्प्रेषण कर सके। उन्हें गदेन थेकछेनलिंग विहार के अंदर अभ्यास करने की अनुमति थी, पर बाहर नहीं।
"उच्च कंठ से उनका गहन सस्वर पाठ अत्यंत मर्मस्पर्शी था। इसने मुझे तृतीय दलाई लामा सोनम ज्ञाछो, योंतेन ज्ञाछो, चौथे दलाई लामा, जिनका जन्म वहाँ हुआ था और पञ्चम दलाई लामा, जिनके साथ उनके निकट के संबंध थे, का स्मरण करा दिया।
"आज, बौद्ध धर्म को पुनर्जीवित किया जा रहा है और अभी भी हमारे पास कई महान मंगोलियाई आचार्यों के लेखन हैं। मेरे शास्त्रार्थ के सहायकों में से एक ङोडुब छोगञी, मंगोलियाई थे जिन्होंने मध्यमक परम्परा में मेरी रुचि को प्रेरित किया। इस समय कई सौ मंगोलियाई दक्षिण भारत के विहारों में अध्ययन कर रहे हैं और मैंने उन्हें सलाह दी है कि यह अत्यंत महत्वपूर्ण है कि वे अपना अध्ययन जारी रखें।
"यहाँ हिमालयी क्षेत्रों के समुदाय से बहुत लोग हैं और हमारे भिक्षु और भिक्षुणी विहारों में उनके समुदाय से कई हैं। जब से तिब्बत से भिक्षु और भिक्षुणियों के आने की संख्या में कमी हुई है उनकी संख्या बढ़ गई है, जिसके लिए हम पारस्परिक रूप से आभारी हो सकते हैं।
"यहाँ ऐसे लोग भी हैं जो पारम्परिक रूप से बौद्ध नहीं हैं, जो जूडो-ईसाई पृष्ठभूमि से आए हैं। बेहतर संचार व्यवस्था और यात्रा सुविधाओं के कारण कई लोगों ने तिब्बती धर्म और संस्कृति में रुचि ली है, हमें सहायता प्रदान की है तथा बुद्ध की शिक्षाओं से प्रेरित हैं। आप नव बौद्ध हैं और हम तिब्बत के और हिमालय क्षेत्र के प्राचीन बौद्ध आपका स्वागत करते हैं।"
परम पावन ने समझाया कि वे 'बोधिचित्त विवरण' पर प्रवचन देने वाले थे और परिचयात्मक छंद गुह्यसमाज तंत्र से आया है। उन्होंने उल्लेख किया कि उन्होंने नागार्जुन के तर्क के छह ग्रंथों की शिक्षा सेरकोङ छेनशब रिनपोछे से और 'मूलमध्यमकारिका' की शिक्षा खुनु लामा रिनपोछे से प्राप्त की थी, जो संस्कृत और तिब्बती संस्करणों की तुलना करने में सक्षम थे। उन्होंने यह भी विश्वास के साथ कहा कि उन्हें 'परमार्थ यथार्थ गीत’ पूर्व गदेन पीठधर रिज़ोंग रिनपोछे से उस स्थान पर प्राप्त हुआ जहाँ उन्होंने अपना तीन वर्ष का एकांत वास किया था।
परम पावन ने कहा कि वे इसके अतिरिक्त वे ङुल्छु थोंगमे संगपो के 'बोधिसत्व के सैंतीस अभ्यास' पर प्रवचन देंगे, एक ऐसा व्यक्तित्व जिन्हें उनके जीवन काल में ही बोधिसत्व के रूप में सम्मान प्राप्त हुआ। मंगोलियाई सुंगछो संगठन द्वारा नि:शुल्क वितरण के लिए भोट भाषा, हिंदी, चीनी, अंग्रेजी और स्पैनिश में 'बोधिचित्त विवरण' और ' बोधिसत्व के सैंतीस अभ्यास' की एक पुस्तक तैयार की गई थी। तिब्बती अनुभाग में परम पावन की स्वरचना '१७ नालंदा आचार्यों की स्तुति' शामिल है और उन्होंने सबसे पहले उसके पठन का चयन किया।
उन्होंने नागार्जुन, आर्यदेव, बुद्धपालित, भवविवेक, चंद्रकीर्ति, शांतिदेव, शांतरक्षित और कमलशील की स्तुति में छंद का पाठ किया। उन्होंने टिप्पणी करते हुए कहा कि शांतिदेव ने 'शिक्षा समुच्चय' और 'बोधिसत्चचर्यावतार' की रचना की, जिनमें से दोनों कदमपा आचार्यों के प्रिय थे। उन्होंने यह भी टिप्पणी की कि यह उपाध्याय - शांतरक्षित, सिद्ध - पद्मसंभव तथा सम्राट -ठिसोंग देचेन के प्रयासों के कारण है कि आज तिब्बतियों को नालंदा परम्परा के संरक्षक होने पर गर्व है।
परम पावन ने कहा कि उनके तत्वाधीन में सम्ये महाविहार की प्रतिस्थापना हुई जिसमें अनुवाद, विनय, ध्यान इत्यादि से संबंधित वर्ग थे। ध्यान वर्ग के कुछ चीनी शिक्षकों ने तर्क रखा कि ध्यान पूर्व अध्ययन की अपेक्षा रखता है। उनसे शास्त्रार्थ करने के लिए शांतरक्षित के प्रमुख शिष्य कमलशील को भारत से आमंत्रित किया गया। वे प्रतिस्पर्धा में विजयी हुए और परिणामस्वरूप तीन खंडों में 'भावनाक्रम' की रचना की।
परम पावन ने महान वंशावली के आचार्यों असंग, वसुबन्धु, दिङ्नाग, धर्मकीर्ति, विमुक्तिसेन, हरिभद्र, गुणप्रभ, शाक्यप्रभ और अतीश की स्तुति छंदों का पाठ जारी रखा। ग्यारहवीं शताब्दी में तिब्बत में बौद्ध धर्म बहाल करने के लिए उन्होंने पुनः अतीश, येशे ओ, जंगछुब ओ के प्रयासों की प्रशंसा की। जब उन्होंने 'नालंदा के १७ आचार्यों की स्तुति' का पाठ पूरा किया तो उन्होंने कहा कि ऐसे लोग भी थे जिन्होंने तिब्बती बौद्ध धर्म को लामावाद कहकर खारिज दिया था। अब उन्हें बल देते हुए कहने में कोई संकोच नहीं है कि तिब्बती विशुद्ध नालंदा परम्परा के अनुयायी हैं। उन्होंने खेद व्यक्त किया कि नालंदा स्वयं खंडहर रूप में है और बातों बातों में भारत की अधिकांश बौद्ध पवित्र स्थलों को पहचानने और सामने लाने में अंग्रेज़ों की भूमिका को स्वीकार किया।
नागार्जुन के ग्रंथ को लेते हुए, परम पावन ने 'बोधिचित्त विवरण' के प्रत्येक छंद का पाठ किया। उन्होंने द्रुत गति से पाठ किया और समझाने के लिए सामयिक विराम लिया। जब उन्होंने उसे पूरा किया तो उन्होंने सम शीर्षक के एक और संक्षिप्त ग्रंथ का पाठ किया, जो कि गुह्यसमाज के परिचयात्मक छंद पर टिप्पणी थी।
परम पावन ने घोषणा की कि कल वे उपासक संवर प्रदान करेंगे, बोधिचित्तोत्पाद समारोह का नेतृत्व करेंगे और अवलोकितेश्वर अभिषेक हेतु प्रारंभिक अनुष्ठान करेंगे। उन्होंने 'बोधिसत्व के सैंतीस अभ्यासों' का भी पाठ किया।
जब वे गदेन फेलज्ञे लिंग लौटे तो धूप सुहानी थी।