एम्स्टर्डम, नेदरलैंड, आज प्रातः उच्च नीला नभ वाष्प युक्त था जब परम पावन दलाई लामा गाड़ी से अहोय कन्वेंशन सेंटर गए। पहले सभागार में नीदरलैंड, बेल्जियम, ब्रिटेन, स्पेन और ऑस्ट्रिया से आए ५००० से अधिक तिब्बती उन्हें सुनने के लिए एकत्रित थे। अपना आसन ग्रहण करने से पूर्व उन्होंने मंच से उनका अभिनन्दन किया। इस बीच, युवा तिब्बती बच्चों के एक आनन्द भरे समूह ने उनकी दीर्घायु की प्रार्थना प्रस्तुत की।
दरलैंड में तिब्बती समुदाय के उप राष्ट्रपति कर्मा ङवंग ने परम पावन का स्वागत किया और अध्यक्ष लोबसंग छोदर ने उनके समक्ष एक संक्षिप्त रिपोर्ट प्रस्तुत की।
"हम लगभग साठ वर्षों से निर्वासन में रह रहे हैं," परम पावन ने प्रारंभ किया "और आप में से कुछ यहां दूसरे निर्वासन में हैं। हमारी मातृभूमि में, हमारे अपने लोग और संस्कृति विलुप्त होने के कगार पर है। ऐतिहासिक रूप से हमने सभी प्रकार के उतार-चढ़ावों का सामना किया है, पर अब हम एक महत्वपूर्ण मोड़ पर हैं जहां तिब्बती अस्मिता संकट में है। तिब्बतियों को अवलोकितेश्वर का आशीर्वाद प्राप्त है और हम एक स्वाभाविक रूप से करुणाशील लोग हैं।
"सोंगचेन गम्पो ने भारतीय देवनागरी के अक्षरों, स्वरों और व्यंजनों के आधार पर एक भोट साहित्यिक भाषा के निर्माण का प्रारंभ किया और शांतरक्षित ने भारतीय बौद्ध साहित्य के अनुवाद को प्रोत्साहित किया। ठिसोंग देचेन के शासनकाल के दौरान, तिब्बती धरा पर बौद्ध धर्म की स्थापना हुई थी। आज, बौद्ध धर्म ह्रास की अवस्था में है जबकि इसमें व्यापक रूचि बढ़ रही है। हजारों की मृत्यु के बावजूद हमारी भावना कम नहीं हुई है।
"मैंने सर्वज्ञानी जमयंग शेपा के शिक्षक के बारे में सुना है, जो सांस्कृतिक क्रांति के दौरान उन सौ में से थे जिन्हें मृत्यु दंड सुनाया गया था। मृत्यु दंड के मैदान में जाते हुए उन्होंने आराम के लिए एक क्षण का समय मांगा और इसके पहले कि उन पर गोली दागी जाए उन्होंने प्रार्थना की:
हे श्रद्धेय करुणाशील गुरुओं,
मुझे आशीर्वाद दो कि दुष्कर्मों और दुःख की सभी बाधाएँ
जो मातृसत्वों की हैं वे मुझ पर परिपक्व हों कि मैं दूसरों को अपना सुख और गुण दे दूं
ताकि सभी सत्व आनंदित हों।
"मात्र एक तिब्बती ही ऐसी प्रार्थना कर सकता है। चीन ने जिस तरह के दमन को व्यवहृत किया है, वे तिब्बती भावना को कुचलने में असमर्थ रहे हैं। यहां तक कि छोटे बच्चे जिन्हें शंघाई के एक स्कूल में भेजा जाता है, जहाँ उन्हें अपनी मूल भाषा बोलने की अनुमति नहीं है, उन्होंने गर्व से बल देकर कहा कि वे तिब्बती हैं। इसी प्रकार, फुनछोग वांज्ञल और अन्य साम्यवादी आदर्श को लेकर प्रतिबद्ध थे, लेकिन इससे उनकी तिब्बती होने की भावना कम नहीं हुई।
"ऐसे समय जब हमने बिना किसी मित्र के तिब्बत को छोड़ा तो भारत में पंडित नेहरू ने हमारी बहुत सहायता की। उन्होंने अंग्रेजी माध्यम तिब्बती स्कूलों की स्थापना में सहयोग दिया जहां हमारे बच्चे भोट भाषा भी सीख सकते थे। उन्होंने महान विहारीय शिक्षण केन्द्रों की पुनर्स्थापना का भी समर्थन किया - सेरा, डेपुंग और गदेन और अंततः नमडोललिंग।
हमें उस ज्ञान पर गर्व हो सकता है जिसे हमने जीवित रखा है।
"मैं हाल ही में एक थाई उपाध्याय से मिला जिन्होंने मुझे बताया कि उन्होंने शून्यता के बारे में सुना था - पर वे इसे समझ न पाए। एक अन्य कोरियाई उपाध्याय ने मुझे बताया कि उनकी परम्परा में वे बोधिचित्त तथा शून्यता की बात करते हैं, पर जब तक कि वे तिब्बतियों से मिले थे, उन्हें समझ में नहीं आया था कि उनका क्या अर्थ है। नालंदा परम्परा जिसका हम पालन करते हैं वह कारण तथा तर्क से गहन मनोविज्ञान और दर्शन व्याख्यायित करते हैं। आज, हमारी एकमात्र बौद्ध परमपरा है जो कारण और तर्क को व्यवहृत करती है। अतः यद्यपि हमने अपना देश खो दिया, हमें निराश नहीं होना चाहिए क्योंकि हमारे पास गौरवान्वित होने के लिए बहुत कुछ है।"
परम पावन ने व्यर्थ में संयुक्त राष्ट्र से की गई अपील और नेहरू की सलाह इससे कुछ न होगा का स्मरण किया। उन्होंने कहा कि १९७४ से, तिब्बती स्वतंत्रता की मांग नहीं कर रहे परन्तु उनका उद्देश्य चीनी संविधान में वर्णित अधिकारों और विशेषाधिकारों को प्राप्त करना है। मध्मम मार्ग दृष्टिकोण इस से उत्पन्न हुआ।
नेदरलैंड के तिब्बती समुदाय ने परम पावन को उनके काय, वाक् और चित्त के गुणों के प्रति कृतज्ञता के रूप में एक अलंकृत रजत धर्म चक्र प्रस्तुत किया। उन्होंने इच्छा व्यक्त की कि उनकी आकांक्षाएं पूरी हों। परम पावन ने उत्तर दिया कि वे जीवन के बाद जीवन तक उनके कल्याण के लिए प्रार्थना करेंगे।
परिसर में एक और सभागार में अपने ३०वें वर्ष के प्रति सम्मान व्यक्त करने के लिए अंतर्राष्ट्रीय कैंपेन फॉर टिब्बेट (आईसीटी) द्वारा आयोजित एक कार्यक्रम के लिए १२,००० की संख्या में लोग एकत्रित हुए थे। कार्यकारी निदेशक छेरिंग जम्पा ने इस अवसर का परिचय दिया। उन्होंने परम पावन को बताया कि आईसीटी की स्थापना ३० वर्ष पूर्व उनकी कल्पना को साकार करने के लिए की गई थी। यह वाशिंगटन में मूल कार्यालय से ब्रसेल्स, एम्स्टर्डम और बर्लिन में कार्यालय और धर्मशाला में एक क्षेत्रीय कार्यालय के रूप में विकसित हुआ है। आईसीटी संवाद द्वारा समाधान का उद्देश्य रखते हुए तिब्बती मुद्दे को जीवित रखने के लिए काम करता है। उन्होंने कहा कि तिब्बत की कहानी बताने और समान विचारधारा वाले व्यक्तियों और संगठनों के बीच मजबूत समर्थन बनाने के नए उपायों की खोज की आवश्यकता है।
छेरिंग जम्पा ने परम पावन को आईसीटी के अध्यक्ष रिचर्ड गियर के साथ संवाद में शामिल होने के लिए आमंत्रित किया। रिचर्ड गियर ने उपस्थित सभी का स्वागत कर और आश्चर्य व्यक्त करते हुए प्रारंभ किया कि इतने सारे लोग सम्मिलित हुए थे। परम पावन ने इंगित कि आज रविवार था, अतः उन्होंने अपनी नींद त्याग दी थी। गियर ने एक जापानी कविता से एक पंक्ति उद्धृत की: 'चेरी के वृक्षों के नीचे कोई अपरिचित नहीं है'। उन्होंने परम पावन की तुलना चेरी के वृक्ष से की क्योंकि जैसा लोगों को एकत्रित करने की उनकी क्षमता का पहले उल्लेख किया गया है। "चलिए चीन और तिब्बत की स्थिति और यह कैसे परिवर्तित हो गया है पर बात करते हैं। परम पावन, गियर ने आगे कहा, "क्या आपको लोदी ज्ञारी, माइकल वैन वॉल्ट और मिशेल बोहाना के साथ आईसीटी की शुरुआत का स्मरण है जिस समय बॉब थरमैन और मैंने न्यूयॉर्क में तिब्बत हाउस प्रारंभ किया था?"
परम पावन ने उत्तर दिया, "तिब्बती संघर्ष मात् राजनैतिक नहीं है," जो ज्ञान हमने जीवित रखा है, वह भारत में जन्मा, मुख्य रूप से नालंदा में। इसमें दर्शन और मनोविज्ञान के लिए एक तार्किक दृष्टिकोण शामिल है जो अब केवल तिब्बतियों में पाया जाता है। यह ज्ञान का एक भंडार है जो विश्व की निधियों में से एक है। मैं २००१ में राजनैतिक उत्तरदायित्व से सेवानिवृत्त हुआ और उस अधिकार को निर्वाचित नेतृत्व के हाथों में सौंप दिया। यद्यपि नालंदा परम्परा को संरक्षित करना और इसे अपने सह मानवों के लिए अधिक उपलब्ध करवाना एक प्रमुख चिंता है।"
रिचर्ड गियर ने स्मरण किया कि १९८६ में बोधगया में परम पावन ने उन्हें बताया था कि तिब्बतियों को बहुत सहायता की आवश्यकता है। उन्होंने पूछा कि क्या वह याद कर सकते हैं कि तिब्बत में जो हो रहा था, उसको लेकर वे क्या सोच रहे थे। परम पावन अपनी यादों को १९५६ में पूर्वी तिब्बत में जो खुला क्रांति छिड़ी वहां तक ले गए। १९५८ में यह अमदो में फैला जिसके परिणामस्वरूप कई मारे गए। १९८० के दशक में तथ्यान्वेषी प्रतिनिधिमंडल तिब्बत गया और उन गांवों और समुदायों की सूचना दी जहां पुरुष जनसंख्या में बहुत कमी आई थी।
सांस्कृतिक क्रांति के बाद, जब हू याओ बंग पार्टी सचिव थे, तिब्बत में स्थिति आसान हो गई। इसके बाद तियानानमेन घटना और एक नए सिरे से कड़ी कार्यवाही हुई। जियांग जेमिन के समय, प्रत्यक्ष संपर्क का पुनः नवीनीकरण हुआ।
परम पावन ने गियर को बताया "मेरी मुख्य चिंताओं में से एक, तिब्बत के प्राकृतिक पर्यावरण की सुरक्षा है। एक चीनी पारिस्थितिक विज्ञानी ने पृथ्वी की जलवायु पर तिब्बत के प्रभाव की तुलना उत्तर और दक्षिण ध्रुव से की और सुझाया कि इसे तीसरा ध्रुव कहा जा सकता है। भारतीय पारिस्थितिकीविदों ने भी यह बताया है कि जब इस तरह कि नाजुक उच्च पारिस्थितिक व्यवस्था क्षतिग्रस्त हो जाती है तो अन्य स्थानों की तुलना में इसे ठीक होने में अधिक समय लगता है अतः इसके लिए विशेष देखभाल और ध्यान की आवश्यकता होती है। इस बीच तिब्बत एशिया के अधिकांश भागों के लिए जल का स्रोत है।"
रिचर्ड गियर और परम पावन ने तिब्बत पर नालंदा विश्वविद्यालय के महान सकारात्मक प्रभाव की चर्चा की, जिसने परम पावन और अन्य तिब्बती विद्वानों को हाल के दशकों में आधुनिक वैज्ञानिकों के साथ पारस्परिक रूप से उपयोगी संवाद में सम्मिलित होने में योगदान दिया था। द माइंड एंड लाइफ इंस्टिट्यूट इन पारस्परिक चर्चाओं का परिणाम है और इसने न्यूरोप्लास्टिसिटी के बारे में अधिक जागरूकता में योगदान दिया है, जो इंगित करता है कि चेतना में परिवर्तन जैसे कारक मस्तिष्क को प्रभावित कर सकते हैं।
रिचर्ड गियर ने परम पावन के साथ संवाद का समापन श्रोताओं से अपील करते हुए किया, "कृपया तिब्बत के लोगों का स्मरण करें और देखें कि आप किस तरह उनकी सहायता कर सकते हैं।" आईसीटी के अध्यक्ष मटेयो मेकाची ने घोषणा की, कि आईसीटी परम पावन के प्रति कृतज्ञता के एक स्मारक उपहार के रूप में वित्तीय अनुदान प्रदान करेगी जो दलाई लामा इंस्टीट्यूट फॉर हायर एजुकेशन के लिए उपलब्ध होगा। इस प्रस्ताव को दर्शाते हुए एक प्रमाण पत्र, जो एक थंगका चित्र की तरह फ्रेम में लगा था, परम पावन को प्रस्तुत किया गया। आईसीटी कार्यक्रम को समाप्त करते हुए क्रिस्टा मींडर्समा ने कहा कि आईसीटी तिब्बत में जो हो रहा है उसे उजागर करने का प्रयास करता है और दूसरों को इस देश की भाषा और सुंदर संस्कृति की रक्षा के लिए अपनी भूमिका निभाने के लिए आग्रह किया।
लोगों को संबोधित करने के लिए आमंत्रित किए जाने पर परम पावन हँसे और कहा कि वह पहले ही जो कुछ कहना चाहते थे, कह चुके थे। उन्होंने हाल ही में पालि परंपराओं के भिक्षुओं की एक सभा में यह प्रश्न उठाया था - क्या धर्म आज भी प्रासंगिक है? अपने स्वयं के प्रश्न का उत्तर देते हुए उन्होंने टिप्पणी की,
"संयुक्त राज्य अमेरिका और यूरोप में हम जो भौतिक विकास देख रहे हैं वह अद्भुत है, पर यह कोई गारंटी नहीं कि जो लोग इसका अनुभव करते हैं वे खुश हैं। वास्तव में वे तनाव, लोभ, ईर्ष्या और चरम प्रतिस्पर्धा के साथ संघर्ष करते हैं। हाल के प्रमाण कि मूल मानव प्रकृति करुणाशील है, आशा का स्रोत है; परन्तु यह भी सुझाता है कि भौतिकवादी लक्ष्यों की ओर उन्मुख वर्तमान शिक्षा प्रणाली अपर्याप्त है। आंतरिक मूल्यों पर अधिक ध्यान देने की आवश्यकता है।
"हमें सीखने की आवश्यकता है कि हम किस तरह अपनी विनाशकारी भावनाओं से निपट सकते हैं, प्रार्थना द्वारा नहीं अपितु तर्क को व्यवहृत कर। चूंकि हम सभी समुदाय के बाकी लोगों पर निर्भर हैं, सौहार्दता आवश्यक है। हमें इसके परीक्षण की आवश्यकता है कि क्रोध कैसे समस्याओं को उकसाता है और समझना है कि कैसे प्रमुख उपचारों में से एक, मैत्री करुणा आधारभूत प्रकृति का प्रतिबिंब है।
"हम सभी मानव के रूप में समान हैं। शारीरिक, भावनात्मक और मानसिक रूप से हम समान हैं। हम सभी एक सुखी जीवन जीना चाहते हैं, इसी कारण मानवता की एकता को स्वीकार करना महत्वपूर्ण है और धार्मिक अभ्यास हमें ऐसा करने में सहायता कर सकता है। इस आधार पर हम २१वीं शताब्दी को शांति और करुणा का युग बनाने में सक्षम हो सकते हैं।"
श्रोताओं के कई प्रश्नों में जिनका परम पावन ने उत्तर दिया, उन्होंने शून्यता और परोपकार को समझने के महत्व की जैसा कि शांतिदेव के 'बोधिसत्वचर्यावतार' में वर्णित था उनकी अपनी भावनाओं से निपटने पर बात की। वे एक प्रश्नकर्ता के साथ सहमत थे कि जहां वे यहूदी लोगों की बहुत सराहना करते हैं, जिन्हें वे काबिल लोगों के रूप में देखते हैं, फिलिस्तीनियों और इज़राइलियों के बीच के संबंध बहुत दुखपूर्ण हैं। उन्होंने सुझाया कि पुनर्जन्म को पहचानने की परम्परा में यदा कदा निहित स्वार्थ सम्मिलित रहता है।
यह पूछे जाने पर कि छोटे बच्चों की देखभाल करने के लिए वे क्या सलाह देते हैं, उन्होंने उत्तर दिया कि उनके पास कोई अनुभव नहीं था। यद्यपि उन्होंने पुष्टि की, कि माता-पिता के लिए सबसे महत्वपूर्ण बात यह है कि वे अपने बच्चों को जितना उनके लिए संभव हो उतना प्रेम प्रदान करें।
उन्होंने अपने विचार को स्पष्ट किया कि यह बहुत अच्छी बात है कि यूरोपीय देशों ने अन्य देशों के शरणार्थियों को आश्रय दिया है। ये लोग अपनी मातृभूमि में हो रही हिंसा तथा हत्या से भागे हैं। आखिरकार, वे देश उनके घर हैं और अंत में, जब शांति बहाल हो जाती है, तो वे वहां अपने समाजों के पुनर्निर्माण के लिए वापस लौटना चाह सकते हैं। इस कारण यह अच्छा होगा अगर उनके यूरोपीय मेजबान बच्चों और युवाओं को उस पुनर्निर्माण के लिए तैयार करने के लिए शिक्षित और प्रशिक्षित कर सकें।
संकट में पड़ी एक महिला ने परम पावन से आशीर्वाद का अनुरोध किया कि वह उसे और उसके परिवार को शुगदेन या दोलज्ञल के अभ्यास के कारण हुई हानि से शमन और नुकसान से ठीक होने के लिए सहायता करें। परम पावन ने उनसे बताया, "हाँ, मैं आपके लिए प्रार्थना करूंगा। मैंने यह अभ्यास तब तक किया जब तक मैं समझ नहीं पाया कि यह अनुचित था। ५वें दलाई लामा ने पहचाना कि यह अभ्यास कितना विनाशकारी हो सकता है। शुगदेन उपासकों को ञिङमा या कर्ग्यू शिक्षाओं के अभ्यास की अनुमति नहीं थी, इसलिए मैंने तिब्बती विहारों में धार्मिक सद्भाव की रक्षा के लिए इस अभ्यास को प्रतिबंधित कर दिया।
"चिंता मत करें," उन्होंने उससे कहा, "आपका वास्तविक शरण सौहार्दता को विकसित करना है। यदि आप बोधिचित्त विकसित करते हैं तो हर कोई मित्र के रूप में दिखाई देता है। आर्य तारा के मंत्र का पाठ करें।"
अंत में, एक प्रश्नकर्ता जो जानना चाहता था कि परम पावन रोमांटिक प्रेम के बारे में क्या सोचते हैं, उन्हें उत्तर मिला, "आप गलत व्यक्ति से पूछ रहे हैं; बेहतर है एक विशेषज्ञ से पूछें।"
दलाई लामा फाउंडेशन की अध्यक्ष पाउला डी विज ने धन्यवाद के शब्द प्रस्तुत किए। रास्ते पर श्रोताओं की ओर अभिनन्दन में हाथ हिलाते हुए परम पावन मंच से निकले स्वयंसेवकों के साथ तस्वीरों के लिए पोज़ किया और अपने होटल लौटने के लिए गाड़ी में चढ़ गए।
कल, अहोय में पुनः लौटकर परम पावन 'चित्त शोधन के अष्ट पद' पर प्रवचन देंगे।